अहम शर्मा: कलाकार को हर तरह के किरदार को निभाने में सहज होना ही चाहिए By Mayapuri Desk 05 Feb 2022 in इंटरव्यूज Videos New Update - शान्तिस्वरुप त्रिपाठी सिद्धार्थ तिवारी निर्मित व निर्देशित सीरियल ‘‘महाभारत’’ में कर्ण का किरदार निभाकर जबरदस्त शोहरत हासिल करने वाले अभिनेता अहम शर्मा किसी परिचय के मोहताज नही है। वह ‘चांद के पार चलो’,‘बैरी पिया’,‘अनाहत’,‘आसमान से आगे’, ‘फिअर फाइल्स’,‘ब्रह्मराक्षस’,‘विक्रम बेताल की रहस्य गाथा’ सहित कई सीरियलों और ‘‘ब्लू आरेंजेस’,‘यह जो मोहब्बत है’,‘कर ले प्यार कर ले’, ‘1962ः माई कंट्री लैंड’ सहित कई फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके हैं। इन दिनांे वह निर्देशक हेमंत सरन और निर्माता संचित जैन की फिल्म ‘धूप छंाव’ का लेकर अति उतसाहित है। प्रस्तुत है अहम शर्मा से हुई बातचीत के खास अंश… क्या आपके घर में कला का माहौल था,जिसके चलते आपके अंदर अभिनय के प्रति रूचि पैदा हुई? जी नहीं..मेरे घर में दूर दूर तक कला का कोई माहौल नहीं था। यदि मैं बहुत गौर करके विचार करुं कि मेरे अंदर अभिनय को लेकर जागरूकता कैसे पैदा हुई,तो उसके पीछे की वजह कुछ और है। बचपन में मेरी रूचि खेलों में थी। मेरा सपना स्पोटर््समैन बनकर नाम कमाना था। मगर यह सपना पूरा न हो सका। उसके बाद दोस्तों ने मेरे अंदर दबे कलाकार को हवा दी। दोस्तों की बातें सुनने के बाद मैंने अपने आप से सवाल किया कि क्या मैं ऐसा कर पाउंगा। फिर उस कसौटी पर खुद को आजमाना चाहा। धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि मैं अभिनय कर सकता हॅंू। तो मैं बिहार के सलीमपुर गांव से पटना, फिर इंदौर, फिर दिल्ली होते हुए मंुबई फिल्म नगरी में अभिनेता बनने के लिए पहुॅच गया। मुंबई पहुॅचते ही काम मिल गया? क्या ग्रामीण परिवेश से आने वालों के साथ मंुबई में कभी ऐसा हुआ है, जो मेरे साथ होता। जब मैं मुबई पहुॅंचा,तो मुझे लंबा संघर्ष करना पड़ा। अभिनय की कुछ बारीकियां सीखने के लिए मैंने कुछ दिन थिएटर भी किया। फिर 2009 में राजेश गांगुली निर्देशित फिल्म ‘ब्लू आरेंजेस’ मिली, जिसमें मैंने पूजा कंवल के साथ लीड किरदार निभाया था। उसके बाद सीरियल ‘चांद के पार चलो’ किया। फिर सिद्धार्थ तिवारी ने अपने सीरियल ‘महाभारत’ में कर्ण का किरदार निभाने का अवसर दिया। कर्ण के किरदार में हर तरह के रंग और अभिनय का रेंज है। कर्ण को कुछ लोग हीरो मानते हैं। कुछ लोग ‘ग्रे’ किरदार मानते हैं। उसने पूरी जिंदगी संघर्ष किया। वह वीर है और दयालु भी है। वीर इंसान मंे दयालुता का मिश्रण हो जाए, तो बात ही अलग हो जाती है। यह किरदार लोगों के लिए प्रेरणादायक है। इस सीरियल ने मुझे जबरदस्त लोकप्रियता दिलायी और यहीं से मेरे कैरियर की दिशा बदल गयी। ‘महाभारत’ से मिली शोहरत ने मेरे करियर को नई गति दी। मैंने कई सीरियल व फिल्में की। 2016 में मुझे असमिया फिल्मकार चाउ पार्थ बोर्गोहेन ने 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर फिल्म ‘1962: माई कंट्री लैंड’ में अभिनय करने का अवसर मिला. यह फिल्म काॅन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी गयी। मगर अफसोस यह फिल्म अब तक प्रदर्शित नहीं हुई हैं। चाउ पार्था बोर्गोहेन निर्देशित फिल्म ‘1962 माई कंट्री लैंड’ को लेकर क्या कहेंगे? युवा असमिया फिल्मकार चाउ पार्थ बोर्गोहेन ने 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर फिल्म ‘1962: माई कंट्री लैंड’ बनायी थी, जो कि काॅन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित की गयी थी। ढाई करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म के बोर्गोहेन ही पटकथा लेखक और कैमरामैन भी हैं। फिल्म में मशहूर मणिपुरी लोक कलाकार गुरु रेवबेन माशंगवा ने शंक शंकीनी के साथ मिलकर संगीत दिया था। हमने फिल्म को अरुणाचल प्रदेश के तवांग एवं मेचुका, मेघालय में सोहरा और गुवाहाटी में की थी। इसकी विषयवस्तु काफी संजीदा है। 1962 के भारत चीन युद्ध में युद्धबंदी बनाए गए असम मूल के भारतीय सैनिक लूइत्या के इर्द गिर्द घूमती है। लूइत्या का किरदार मैंने निभाया है। लुइत्या को नेफा सीमा पर भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के सर्वेक्षण की जिम्मेदारी दी गई है, जो भारत और तिब्बत के क्षेत्र का सीमांकन कर सकती है। वह और उसका कुली सर्वेक्षण करते समय रास्ता भटक कर उस जगह पहुॅच जाता है, जो कि भारत व चीन दोनो का हिस्सा नहीं है। वहां उसका सामना चीनी व्यापारियों से होता है, जो कि वहां के लोगों को बरगला रहे होते हैं। वहीं पर एक लड़की याका से लुइत्या को प्यार हो जाता है। याका और लुइत्या एक दूसरे के लिए अविभाज्य प्रेमी के रूप में अपने प्यार को कबूल करते हैं। तभी भारत-चीन युद्ध छिड़ जाता है। लुइत्या को वापस लौटने के लिए मजबूर किया जाता है। लुइत्या युद्ध समाप्त होने के बाद याका के पास लौटने का वादा करती है। मगर वांग अपने देश से धोखा करता है, जिसके चलते याका और वह गांव युद्ध में नस्ट हो जाता है। सीरियल में एक ही किरदार को लंबे समय तक निभाना मोनोटोनस नहीं होता? सर, इस सवाल का जवाब दे पाना मेरे लिए मुश्किल है। क्योंकि मैंने ऐसे सीरियल में अभिनय नहीं किया है, जहां मुझे एक ही किरदार को दो तीन वर्ष तक निभाना पड़ा हो। मैं टीवी को बहुत सम्मान से देखता हॅंूं। टीवी ने ही मुझे अभिनेता के तौर पर काम दिलाया है। फिल्मों मंे अभी तक मैंने कोई बड़ा तीर नहीं मारा है। शायद लोग अभी मुझे फिल्म अभिनेता न मानते हो। मगर टीवी कलाकार के रूप मंे पहचानते हैं। टीवी की बदौलत हम मंुबई जैसे शहर में खुद को टिकाए हुए हैं। लेकिन टीवी में कुछ चीजें ऐसी है, जो कि बेहतर हो जाएं, तो इस माध्यम का और इससे जुड़े लोगों का सम्मान और बढ़ जाएगा। टीवी के मेकर भी सारी चीजों को समझते हैं। मगर यहां सारा खेल टीआरपी का है। यदि टीआरपी अच्छी नहीं आएगी, तो सीरियल का प्रसारण बंद हो जाएगा। मैंने ‘महाभारत’ के बाद सीरियल ‘मनमर्जियां’ किया था। कर्ण और ‘मनमर्जियां’ के किरदार में जमीन आसमान का अंतर है। मैं इसकी एड एजेंसी की थीम के चलते काफी उम्मीदें लगायी थी, मगर यह जल्द बंद हो गया। जबकि ‘महाभारत’ के निर्माता सिद्धार्थ तिवारी ही ‘मनमर्जियां’ बना रहे थे। अच्छे कलाकार थे। विषयवस्तु अच्छी थी.पर यह टिपिकल डेली सोप यानी कि सास बहू जैसा सीरियल नहीं था। लोगों ने इसे पसंद नहीं किया। टीआरपी अच्छी नहीं मिली,तो बीच में ही बंद हो गया। सीरियल के अचानक बंद होने स सभी को नुकसान होता है। इसलिए लोग ऐसे सीरियल बनाते हैं, जिससे वह चले और चैनल से लेकर स्पाॅट ब्वाॅय, कलाकार हर किसी को कमायी हो.यही हालात फिल्मों में भी है.आप अति बेहतरीन कलात्मक फिल्म बनाएं और वह बाॅक्स आॅफिस पर धराशाही हो जाए, तो आप दूसरी फिल्म बनाने का इरादा ही छोड़ देंगे। सीरियल व फिल्म के निर्माण में पैसे बहुत लगते हैं। खैर,अब तक मैंने टिपिकल डेली सोप नहीं किए हैं। आप इसे मेरी किस्मत भी कह सकते हैं। पर हर कलाकार की तरह मैं हमेशा नए नए किरदार निभाना चाहता हॅू। खुद को एक्सप्लोर करना चाहता हॅूं। एक ही किरदार निभाते हुए हम लंबे समय तक तरोताजा व जिंदा नहीं रह सकते। हाॅ! हर कलाकार की अपनी प्राथमिकताएं हैं। आप खुद को मैथोलाॅजिकल या आम सीरियलों में से कहां अभिनय करते हुए ज्यादा सहज पाते हैं? इस सवाल का सीधा सा जवाब है कि कलाकार को हर तरह के किरदार को निभाने में सहज होना ही चाहिए अन्यथा आप कलाकार नहीं है। मेरी कोशिश रहती है कि मैं जो भी काम करुं, उसे उसी सहजता के साथ करुं। मुझे कुछ भी करने में तकलीफ नहीं होती. मैथोलाॅजिकल व ऐतिहासिक सीरियलों में अभिनय करते समय लुक के अलावा संवाद अदायगी के लहजे पर थोड़ा सा काम करना पड़ता है। ऐसे किरदारांे की चाल ढाल पर ध्यान देना पड़ता है। यह सब हमारे अंदर मौजूद है, सिर्फ कलाकार की नजर से उसे हमें ढूढ़ना होता है.मेरे अंदर कोई अंश ‘किंग’ यानी कि राजा जैसा जरुर होगा। दूसरी तरफ यदि आप रियालिस्टिक कहानी पर सीरियल या वेब सीरीज या फिल्म कर रहे हैं, तो उसमें आम बोलचाल की भाषा होगी। यहां बड़ी सहजता से संवाद अदायगी करनी है। हर कलाकार का काम होता है कि किरदार की सिच्युएशन के अनुसार खुद को ले जाएं, भले ही इसके लिए उसे कल्पना का सहारा लेना पड़े। मेरी राय में तो कलाकार को हर जाॅनर में कम्फर्टेबल होना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि मैं काॅमेडी में सहज हॅूं या एक्शन मंे सहज हॅूं, मेरी राय में यह सोच गलत है। मैं हर जाॅनर में कम्फर्टेबल हॅूं। मैं हर जाॅनर में काम करना चाहता हॅूं। मैने एक काॅमेडी फिल्म की है। एक फिल्म में सैनिक का किरदार निभाया। नई फिल्म ‘धूप छांव’ में एकदम साधारण घरेलू लड़का है। एक फिल्म में मैने स्टाइलिश लड़के का किरदार निभाया है। ‘एक्टिंग का भूत’ में एकदम ‘नेक्स्ट डोर ब्वाॅय’के साथ चार्मिंग लड़के का किरदार है। अब तक मैंने विविधतापूर्ण किरदार ही निभाए हैं। संचित जैन निर्मित और हेमंत सरन निर्देशित फिल्म ‘धूप छांव’ करने की कोई खास वजह? पहली बात तो मुझे यह फिल्म कोरोना महामारी के दौरान तब मिली, जब हर कलाकार की तरह मुझे भी काम की जरुरत थी। दूसरी बात कई साल बाद पारिवारिक फिल्म बनी है।यह दो भाईयों की कहानी है.इनके बीच की जटिलता व चीजों को समझने की बात है। आखिर ‘महाभारत’ भी परिवार के अंदर के रिश्तों की कहानी ही है। ‘धूप छांव’ पूरी तरह से मानवीय कहानी है। फिल्म ‘धूप छंाव’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगंे? मैने इसमें अमन का किरदार निभाया है,जो कि परिवार के दो लड़कांे मंे सबसे बड़ा है। अपनी जिंदगी में अमन कुछ हासिल नही कर पाया। लेकिन फिर भी वह जीवन में अपने उसूलों व आदर्शों से समझौता नही करता। वह अपने तरीके से जिंदगी जीना चाहता है। अहम शर्मा व अमन में कितना अंतर है? मैं चाहॅूंगा कि अमन की सच्चाई अहम शर्मा की भी सच्चाई बन सके। देखिए,जब हम किसी किरदार को निभाते हैं,तो उसमें समानता व अंतर दोनो ढंूढ़ते हैं। समानता को बिल्ड करते हैं और विषमता को घोलकर किरदार को गढ़ते हैं। मैं अपने बारे में यह नही कहना चाहॅूंगा कि मैं बड़ा उसूल वाला या आदर्शों वाला हॅूं। पर मैं एक अच्छा इंसान हॅूं। इमानदारी व मेहनत से अपना काम करने में यकीन करता हॅूं। सरल जीवन जीना चाहता हूँ। यह बातें ‘धूप छांव’ के अमन में भी हैं। मगर अहम शर्मा व अमन की परिस्थितियंा बहुत अलग हैं। फिल्म ‘धूप छांव’ के निर्देशक हेमंत सरन के साथ काम करने के अनुभव क्या रहे? हेमंत सरन उन निर्देशकों में से हैं,जिन्हे अपना काम बाखूबी आता है। उन्हे स्पष्ट रूप से पता होता है कि सेट पर अपने कलाकार के अंदर से क्या निकलवाना है। देखिए, एक किरदार को हर कलाकार निभाता है, लेखक उस किरदार को लिखता है,पर निर्देशक उसी किरदार को वीज्युअली देखता है और वही तय करता है कि वह इस किरदार को किस तरह दर्शकांे को दिखाना चाहता है। निर्देशक किसी किरदार व फिल्म को जितना स्पष्ट रूप से देख पाएगा, फिल्म उतना ही बेहतर बनेगी और कलाकार की परफार्मेंस भी निखरकर आएगी.इस हिसाब से हेमंत सरन बेहतरीन निर्देशक हैं.उनके वीजन में क्लीयरिटी थी। यह भेड़चाल वाली फिल्म नही है। उन्होने इसे एक खास फिल्म बनाने का प्रयास किया है। वह एकदम सुलझे हुए निर्देशक हैं। ‘धूप छांव’ के अतिरिक्त क्या कर रहे हैं? अभी मैने एक फिल्म ‘एक्टिंग का भूत’ पूरी की है। इसमंे मैं हीरो हूँ और यह बहुत ही अलग तरह की फिल्म है। यह जीवन में पूरी तरह से असफल है। उसका पूरा परिवार ही असफल है। काॅमेडी फिल्म है। वह खुद को स्थापित करने के लिए कुछ अजीब सी हरकतें करता है। वह बार बार फेल होता रहता है। वास्तव में वह असफल कलाकार है,पर अपने निजी जीवन में अभिनय कर वह खुद को महान कलाकार बताता रहता है। वह सफलता पाना चाहता है,पर उसे सफलता मिल नहीं रही है। वह हमेशा अलग अलग हालात में फंसता रहता है.इसमें एक प्रेम कहानी भी है.यह किरदार अमन से काफी अलग है। शौक क्या हैं? मेरे शौक समय के साथ बदलते रहे हैं। कभी मैं स्पोर्टस में रूचि रखता था। फिर मेरी रूचि अभिनय में हुई। मार्शल आर्ट में भी रूचि है। नृत्य व गायन का शौक है। संगीत सुनना पसंद है। अब अच्छी फिल्में देखना। लोगों को आब्जर्व करना शौक हो गया है। लोगों को जानना,समझना,उनकी मानसिकता को समझना भी शौक हो गया है। कला के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा है। अब समझ में आ रहा है कि अभिनय/कला एक अथाह सागर है,जिसमें जितना डूबते जाओ,उतना ही उसका मजा है। संगीत व गायन के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा है? जी नहीं..यह महज मेरा शौक है। पर भविष्य में क्या होगा,कह नही सकता। मैं शौक के तौर पर गाता हूँ,पर पाश्र्वगायन की कोई तमन्ना नहीं है। पर मेरी राय में अभिनेता को भी संगीत की समझ होनी चाहिए। सुर की समझ अभिनय में आती है। इसलिए मैं कभी कभार संगीत का रियाज भी करता हॅूं। डिजिटल माध्यम में कुछ कर रहे हैं? दोस्तों को खुश करने के लिए ही में मैं सोशल मीडियम पर हॅूं। पर ज्यादा नहीं। सोशल मीडिया के फालोअर्स के आधर पर काम मिलता है,टैलेंट की कद्र कम होने लगी है? इस संबंध में मेरा कुछ कहना उचित नही। जो लोग इस आधार पर निर्णय ले रहे हैं,उनके पास इसकी कोई वजह होगी। पर स्किल या टैलेंट का सोशल मीडिया पर फाॅलोवअर्स से कोई लेना देना नही है। फाॅलोवअर्स बढ़ाने के कई रास्ते हैं। फिटनेस को कितना महत्व देते हैं? हर कलाकार के लिए फिट रहना आवश्यक है। मैं खुद को फिट रखने के लिए मार्शल आर्ट करता हॅूं। टेबल टेनिस खेलता हॅूं। कभी कभार क्रिकेट भी खेलता हॅूं। #about Aham Sharma #actor Aham Sharma #Aham Sharma #Aham Sharma interview #tv actor Aham Sharma हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article