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हर शख्स को हर क्षेत्र में काम करना चाहिए: देवेंद्र खंडेलवाल

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-शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक, अभिनेता व फिल्म सर्जक देवेंद्र खंडेलवाल किसी परिचय के मोहताज नही है। अंतरराष्ट्ीय ख्याति के प्रतिभाषाली फिल्मकार देवेंद्र खंडेलवाल पिछले 45 वर्षों से मंुबई फिल्म नगरी में सक्रिय हैं। वह छह भाषाओं की 18 फिल्मों में अभिनय करने के अलावा ‘‘भीम भवानी’’ व ‘मोरारजी’ सहित कई सीरियलों तथा फिल्म ‘‘मौत की सजा’’ का निर्माण, लेखन व निर्देषन कर चुके हैं। फिल्म ‘‘मौत की सजा’’ में देवेंद्र खंडेलवाल ने सोनिका गिल के साथ हीरो बने थे। इसके अलावा 550 से अधिक डाक्यूमेंट्ी व एड फिल्में भी बना चुके हैं। इसके लिए उनका नाम ‘‘लिम्का बुक आफ वल्र्ड रिकाॅर्ड’’ में दर्ज है। वह बेहतरीन लेखक भी हैं। वह सौ से अधिक व्यंग, नाटक, लेख, कविताएं, यात्रा वृत्तांत,कहानियंा लिख चुके हैं। उनकी बच्चों के लिए एक किताब ‘‘बच्चों के खेल’’ को ‘‘लाइट आॅफ इंडिया’’ ने प्रकाषित किया है। इन दिनों देवेंद्र खंडेलवाल, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर लिखे हुए नाट्यसंग्रह ‘‘एक था मसीहा’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसे हाल ही में ‘‘नेषनल बुक ट्रस्ट’’ ने प्रकाषित किया है।

फिल्म व टीवी क्षेत्र की उपलब्धियों के लिए देवेंद्र खंडेलवाल को अनकों पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के जूरी मंडल का सम्मनित सदस्य नियुक्त किया गया.सबसे पहले 1998-99 की फिल्मों के राष्ट्ीय पनोरमा के चयन के लिए भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जूरी मंडल का सदस्य नियुक्ति किया गया। वह प्रसार भारती के एम्पावरमेंट कमेटी के सदस्य हैं। ‘गांध पैनोरमा’ के अध्यक्ष हैं। इतना ही नही ‘अंतरराष्ट्ीय पर्यटन फिल्म समारोह’ तथा ‘कला और संस्कृति पर आधारित अंतरराष्ट्ीय फिल्म समारोह के चेयरमैन भी हैं।

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हाल ही में देवेंद्र ख्ंाडेलवाल से उनके घर पर लंबी बातचीत हुई... जिसका अंष यहां प्रस्तुत है...

फिल्मों में रूचि कब पैदा हुई?

जब मैं षिमला में एमबीए की पढ़ाई कर रहा था, तब भी मेरी रूचि फिल्मों में थोड़ी बहुत थी। पर उस वक्त मैं पढ़ने में काफी होषियार था। उस वक्त तक मैने अपनी जिंदगी में सिर्फ तीन फिल्में देखीं थी। एक दिन मैं अचानक मिला पुलिस की तरफ से आयोजित एक प्रतियोगिता मंे चला गया, जिसमें मुझे पहला प्राइज मिल गया। जिसके चलते दूसरे दिन वहां के अखबारों में मेरी फोटो छप गयीं। मेरे बारे मंे छपा। मेरा सौभाग्य कि उन्हीं दिनों मुंबई से फिल्म निर्देषक दुबे षिमला अपने घर गए हुए थे। वह मुझसे मिले। उन दिनों बी आर इषारा एक फिल्म बनाने वाले थे, जिसके लिए दुबे जी हीरो की तलाष में थे। दुबे जी को लग रहा था कि मैं फिल्मों में काम करने के लिए लालायित हॅूं। उन्होने मुझसे मिलते ही पूछा दिया कि क्या मैं बी आर इषारा की फिल्म करना चाहॅूंगा? उस वक्त मेरा फिल्मी ज्ञान न के बराबर था। मैं सिर्फ बासु भट्टाचार्य व मृणाल सेन के बारे में ही जानता था.मैने पूछा कि बी आर इषारा कौन हैं? मैंने कहा कि मैं इस नाम के किसी इंसान को नही जानता। दुबे जी ने मुझे बी आर इषारा के बारे में विस्तार से बताया। पर मंैने उनके साथ मंुबई आने से मना कर दिया। कुछ दिनों बाद दुबे जी ने मंुबई से मेरे होस्टल में फोन कर मुझसे बात की कि बी आर इषारा मिलना चाहते हैं। उन्होेने हमे मंुबई पहुॅचने के लिए टिकट भी भेजी। तो मैं मंुबई पहुॅच गया। मंुबई में दुबे जी मुझे बीआर इषारा ‘बांबे लैब’ में बी आर इषारा से मिलाने ले गए। वहां पर बासु भट्टाचार्य से भी मुलाकात हो गयी। बी आर इषारा ने बासुदा से परिचय कराया.बासुदा ने कह दिया कि मिलते रहना। बासु भट्टाचार्य को मैने बताया कि मैने अब तक फिल्मों में अभिनय नहीं किया है। मगर काॅमन वेल्थ में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। बात आयी गयी.बी आर इषारा चाहते थे कि मैं पढ़ाई छोड़कर तुरंत मुंबई में उनकी फिल्म में अभिनय करुं। तो मैं वापस षिमला लौट गया। कुछ समय बाद मेरे मन में अभिनय का कीड़ा कुलबुलाया,तो मैने बासु चटर्जी, बासु भट्टाचार्य और मृणाल सेन को पत्र लिखा कि अगर आप मुझे अपनी फिल्म में काम देंगें,तो मैं मंुबई आ सकता हॅूं। मेरे पत्र का जवाब किसी ने नही दिया.एक माह बाद बासु भट्टाचार्य का पोस्टकार्ड मिला कि अगर तुम मंुबई आना,तो एक बार मुझसे मिल लेना.मैं भूल गया कि मुझे अभिनय करना है। एमबीए की पढ़ाई में प्रैक्टिकल ट्ेनिंग के लिए किसी न किसी कंपनी में भेजा जाता है। मुझे मंुबई में ‘फर्टिलाइजर कारपोरेषन आफ इंडिया’में ट्ेनिंग के लिए भेजा गया। मंुबई पहुॅचने पर मैं बासु भट्टाचार्य से मिलने पहुॅचा। उन्हें याद था कि हम मिले थे। मंैने उन्हे बताया कि मैं दादर में एक गेस्ट हाउस में ठहरा हॅूं। उन्होने कहा कि होटल में रूकने की क्या जरुरत? मेरा एक घर खाली पड़ा हुआ है, उसमें आप लेखक व नाटककार ज्ञानदेव अग्निहोत्री के साथ रहो। तो मैं गेस्ट हाउस से अपना बिस्तर बांधकर बासुदा के घर रहने पहुॅच गया।

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अभिनय कैरियर की षुरूआत कैसे हुई?

इसे नियति ही कह सकते हैं। मैं बासु भट्टाचार्य के घर पर रहने लगा। लेकिन मेरा सारा ध्यान अपनी एमबीए की प्रैक्टिकल ट्ेनिंग पूरी करने में ही थी। उसके बाद मुझे वापस षिमला ही जाना था.उन दिनों बासु भट्टाचार्य फिल्म ‘‘आविष्कार’’ बना रहे थे। उन्होने मुझसे कहा कि इसमें मैं षर्मिला टैगोर के छोटे भाई का छोटा सा किरदार निभा लॅूं.अब उनके घर मे मुफ्त में रह रहा था,तो मना करते न बना। इसमें षर्मिला टैगोर और राजेष खन्ना के साथ मेरा सीन था, जिसकी काफी तारीफ हुई थी। इधर यह फिल्म पूरी हुई,उधर मेरी एमबीए की ट्ेनिंग पूरी हुई और मै वापस षिमला लौट गया। फिल्म ‘‘आविष्कार’ को अच्छी खासी सफलता मिल गयी। अब बासु दा ने मुझे लक्की चार्म समझा या उनके मन में क्या बात आयी,पता नही,पर उन्होने मुझे षिमला से दोबारा बुलाया और पूरे दो वर्ष तक अपने घर में रखा तथा उन दिनों के सिस्टम के अनुसार दो वर्ष तक मासिक सैलरी भी दी। मैंने सबसे पहले बासु भट्टाचार्य की फिल्म ‘‘तुम्हारा कल्लू’’ में अभिनय किया.फिर छह जनवरी 1978 को प्रदर्षित बासु चटर्जी के निर्देषित फिल्म ‘‘खट्टा मीठा’’ में अभिनय किया।बासु चटर्ली के निर्देषन में मैंने ‘जीना यहां’,‘दुर्गा’,‘कमला की मौत’ जैसी फिल्में भी कीं. फिर खुषबू के साथ बी आर इषारा की फिल्म ‘‘सौतेला पति’’ की। सोनी की फिल्म ‘ष्याम तेरे कितने नाम’ की। राजेंद्र सिंह आतिष की फिल्म ‘‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, पुरस्वनी की फिल्म ‘यहां सब कुषल है’ के अलावा भोजपुरी फिल्में ‘सेनुरवा भइल मोहाल’ व ‘बाजे षेहनाई हमार अंगना’,पंजाबी फिल्म ‘साल सोलवां चढ्या’, राजस्थानी फिल्म ‘कर्मा बाई’ व ‘थारी म्हारी’,गुजराती फिल्म ‘खेमरो लोडा’ और ‘बंगला फिल्म ‘षोनार काठी रुपर काठी’सहित 18 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया.इनमें से कुछ सफल रही। कुछ असफल रही.मैने कुछ फिल्में साइन की थी,जो कि बाद में नही बनी। मगर इन फिल्मों में अभिनय करने के साथ साथ मैं विज्ञापन फिल्में व डाक्यूमेंट्ी फिल्में बनाने लगा था। फिर 1991 में मेने खुद एक फिल्म ‘‘मौत की सजा’’ का निर्माण व निर्देषन किया। इस फिल्म में मैने सोनिका गिल के साथ बतौर हीरो अभिनय किया था। ‘मौत की सजा’ में आलोकनाथ, सुधीर पांडे,अनीता राज, सतीष कौषिक, रंजीत व दारा सिंह जैसे दिग्गज कलाकार थे। दिग्गज अभिनेता अषोक कुमार ने ‘मौत की सजा’ को मेरे कैरियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म की संज्ञा दी थी।

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आप फिल्म ‘‘मौत की सजा’’से इतर कई टीवी सीरियलों का भी लेखन व निर्देषन कर चुके हैं?

आपको तो सब पता है। देखिए, फिल्म इंडस्ट्ी का हिस्सा बनने वाले हर षख्स से मैं यही कहता हॅूं कि उसे हर क्षेत्र में काम करना चाहिए। मैंने सिर्फ भारतीय टीवी चैनल के लिए ही नही बल्कि यूरोपीय चैनल ‘‘नमस्ते’’ के लिए ‘हिंदी सीखिए’ नामक सीरियल का लेखन व निर्देषन किया है। तो वहीं भारतीय टीवी के लिए मैने पहला सीरियल ‘भीम भवानी’ का लेखन, निर्माण व निर्देषन किया था,जिसमें अषोक कुमार और अनूप कुमार ने अभिनय किया था। मंैने पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई पर ‘मोरारजी’ नामक सीरियल का लेखन,निर्माण व निर्देषन किया। इसके अलावा ‘हकीकत’, ‘वीरों तुम्हे सलाम’, ‘यह है झुमरीतलैया’, ‘यह दिल किसको दॅूं’, ‘सिंहासन’, ‘दिल करे धक धक’, ‘भारतीय खेल’, ‘गीतमाला’, ‘हंसे के फंसे’, ‘यह चांद सा रोषन चेहरा’ व ‘मायाजाल’ सहित बीस से अधिक सीरियलों का निर्माण व निर्देषन किया.

अभिनय के लिए आपको पुरस्कृत भी किया गया था?

बासु चटर्जी निर्देषित फिल्म ‘‘जीना यहां’’ में उत्कृष्ट अभिनय के लिए मुझे मास्को फिल्म फेस्टिवल में ‘मास्को सर्टीफिकेट आॅफ मेरिट’ से सम्मानित किया गया था। चीन, इजराइल, ईरान, अमरीका व नेपाल के अंतरराष्ट्ीय फिल्म समारोहों में मुझे आमंत्रित किया गया। पंजाबी फिल्म ‘‘साल सोलवां चढ्या’’ में अभिनय करने के लिए ‘पंजाब सिने गोअर्स एसोसिएषन की तरफ से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्रदान किया गया। उत्तर प्रदेष फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएषन ने भोजपुरी फिल्म ‘‘सेनुरवा भइल मोहाल’ के मुझे सम्मानित किया.इतना ही नही पांच माह के अंदर 29 लघु फिल्में निर्देषित कर राष्ट्ीय रिकार्ड बनाने पर मेरा नाम ‘‘लिम्का बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड’’ में दर्ज किया गया। 1997 में ‘आल इंडिया अचीवर्स काॅफ्रेंस’ द्वारा ‘जेम आॅफ इंडिया पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। ‘मालवा मंच’ने नाट्यकला के संवर्धन के लिए ‘मालवाश्री’ पुरस्कार प्रदान किया। इसी तरह कई पुरस्कार मेरी झोली में आ चुके हैं।

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डाक्यूमेंट्ी फिल्मों के निर्माण से आपका जुड़ना कैसे हुआ?

जब मेरी फिल्म ‘‘खट्टा मीठा’’ के प्रदर्षन से छह सात दिन पहले बासुदा ने कहा कि ‘खट्टा मीठा’ बहुत अच्छी बनी है। लोग तुम्हारे किरदार की तारीफ करेंगे। मंैने उनसे कहा कि पता नहीं... आज तो मेरी जेब में सौ रूपए भी नहीं है। दूसरे दिन मुझे बासु चटर्जी के साथ हृषिकेष मुखर्जी ने फिल्म देखने के बाद खुष होकर मुझे हजार रूप्ए दिए। षाम को मैं अपनी प्रेमिका,जो बाद में मेरी पत्नी बनी, के साथ में जैमिनी सर्कस देखने गया था। अचानक मेरे अंदर की जिज्ञासा जगी और मैंने जैमिनी सर्कस के मालिक से बातचीत षुरू की। उसने मुझे अपने सर्कस की तीन विज्ञापन फिल्म बनाने का काम दे दिया। मंैने ऐसा कुछ काम तो किया नही था। मैंने मषहूर कैमरामैन अषोक मेहता से बात की और जेमिनी सर्कस की विज्ञापन फिल्म बनायी। इस फिल्म को देखकर खुष होकर जेमिनी सर्कस के मालिक ने मेरे पैसे बढ़ाकर मुझसे दो और विज्ञापन फिल्में अपने दूसरे सर्कस के लिए बनवायीं।

कितनी विज्ञापन फिल्में बनायी?

अब तक तीन सौ से अधिक विज्ञापन फिल्में बनायी हैं। उस वक्त मैं पहला फिल्ममेकर था,जिसने जापान व दुबई सहित कई देषों के लिए विज्ञापन फिल्में बनाई। फिर मै धीरे-धीरे कारपोरेट फिल्में व डाक्यमेंट्ी बनाने लगा था। ‘फेडर्स लाॅयड’, ‘गोवा षिपयार्ड लि.’,‘राजश्री सीमेंट’, ‘बिरला सीमेंट’ सहित 20 कारपोरेट फिल्में बनायीं। एक वक्त वह आया, जब मैं एड फिल्म बनाने से बोर हो गया। उसके बाद मैने डाक्यूमेंट्ी बनायी। एड फिल्म बनाना सबसे कठिन होता है। एक मिनट मंे हमें सारी बात कहनी होती है। मंैने ‘पराग साड़ी’ के लिए एड फिल्म ‘वाह पराग साड़ी’ बनायी थी.उस वक्त दस सेकंड की एड फिल्मों का जमाना न था। मगर मैंने दस सेकेंड, दस मिनट व तीस मिनट की एड फिल्म बनाई थी। एक छोटे से कमरे में चलने वाली कंपनी बहुत बड़ी हो गयी थी। मेरी यह फिल्म अमरीका के एडवरटादजिंग के कोर्स में पढ़ाई जाने लगी कि फिल्म किस तरह किसी प्रोडक्ट के लिए सफलता दिला सकती है.‘डबल बुल’ की एड भी काफी लोकप्रिय थी। मैंने कई चर्चित व बेहतरीन विज्ञापन फिल्में बनायी हैं। मैंने राष्ट्ीय फिल्म विकास निगम’ और भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के लिए पल्स पोलियो पर अमरीष पुरी, पूनम ढिल्लों व दारा सिंह के साथ फिल्में बनाई। पा्रवरा पर मेरी बनायी गयी फिल्म में बी आर चोपड़ा, बासु चटर्जी व सुनील दत्त ने हिस्सा लिया था। तो वहीं अभिनेता अनिल कपूर के साथ भूकंप से सुरक्षा को लेकर फिल्म बनाई।

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पर्सनालिटीज आॅफ इंडिया के तहत आपने सौ भारतीय हस्तियों पर लघु फिल्में बनाने का ख्याल कैसे आया?

यह एक लंबी कहानी है। इसका बीज आज से सोलह वर्ष पहले पड़ा था। मेरे मित्र, ‘स्याह’, ‘दंगा’ और ‘वैषाली’’ जैसी फिल्मों के लेखक, भाजपा के राज्यसभा सदस्य व केंद्र सरकार में मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने एक दिन मुझे भारत की कुछ विषिष्ट हस्तियों पर  लघु फिल्में बनाने की सलाह दी। मैंने उनसे कहा कि आप इस पर काम षुरू कीजिए। तो उन्होने कहा कि, ‘अरे भाई ! यह मेरा काम नही है.आप इसे कर सकते हो। ’उसके बाद मैने इस पर सोचना षुरू किया। पहले सोचा कि फिल्मी हस्तियों पर फिल्में बनायी जाएं। फिर राजेनताओं पर विचार किया। अंत में मैंने निर्णय लिया कि हर क्षेत्र की कुछ चुनिंदा हस्तियों पर लघु डाक्यू फीचर फिल्में बनायी जाए। सूची बनायी तो दो सौ से उपर पहुॅच गयी.पुनः इसे घटाकर सौ किया। उसके बाद अपने कुछ मित्रों की मदद से रिसर्च किया। फिर फिल्में बनाई। इनमे स्वामी विवेकानंद,दादाभाई नौरोजी, राजीव गांधी, अभिनेता अषोक कुमार, बाल गंगाधर तिलक, रवींद्र नाथ टैगोर, बिपिन चंद्र पाल, पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, सिस्टर निवेदिता, बिरसा मंुडा, श्री अरबिंदो, लालबहादुर षास्त्री, मधुबाला, एनटीरामाराव, अटलबिहारी बाजपेयी, राज कपूर, इंदिरा गांधी, लाला हर दयाल,राजेंद्र प्रसाद, ष्यामा प्रसाद मुखर्जी, कंुदन लाल सहगल, एम एस गोलवलकर व मदर टेरेसा जैसी सौ हस्तियों का समावेष है। इन सभी फिल्मों का लोकार्पण  आर एस एस के सरसंघ चालक मोहन भागवत जी ने किया था। इस अवसर पर सभी सौ हस्तियों का संक्षिप्त परिचय के साथ सोवेनियर भी निकाला था।

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आपने तो भाजपा के लिए चुनावी फिल्में भी बनायी?

जी हाॅ! मगर मैं स्पष्ट कर दॅंू कि मैं एक इमानदार फिल्म मेकर हॅूं। मैं कम पैसो में अच्छी फिल्में बनाता हॅंू। इसलिए मुझसे भाजपा की तरफ से फिल्म बनाने के लिए कहा गया तो मैने एक फिल्मकार के धर्म का निर्वाह करते हुए फिल्म बना दी। पर मैं स्पष्ट कर दॅंू कि मैं आरएसएस या भाजपा का सदस्य नही हैं। मैं भाजपा का समर्थक भी नही हॅूं..मुझसे प्रधानमंत्री मोदी पर फिल्म बनाने के लिए कहा गया, तो मंैने सिख भाई बहनों के लिए उन्होने जो काम किया है,उस पर 15 मिनट की फिल्म बना दी।

आपको लिखने का षौक रहा हंै। तो इस दिषा में कुछ कर रहे हैं?

जी हाॅ! लेखन का काम बंद नही हुआ है। मैंने फिल्म लिखी। सीरियल लिखे। डाक्यूमेंट्ी ,लघु फिल्में व विज्ञापन लिखे। मंैने महात्मा गांधी पर नाटक लिखा, जिसे ‘एक था मसीहा’’ के नाम से हाल ही में नेषनल बुक ट्स्ट ने प्रकाषित किया है।

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