सत्यजीत दुबे: बेस्टसेलर्स केवल मनोवैज्ञानिक थ्रिलर नहीं है अपितु ह्यूमन इमोशंस से भी डील  करती है

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लिपिका वर्मा

सत्यजीत दुबे ने, ऑलवेज कभी कभी से अपनी फिल्मी जर्नी शुरू की थी। किन्तु इससे पहले उन्होंने कुछ दिनों टेलीविजन  में भी काम किया  है। मुंबई डायरीज में भी काम क्र उन्होंने अपनी काबिलियत प्रूव कर दी है।  उनकी अगली सीरीज बेस्टसेलर जो हाल ही में अमेज़न प्राइम वीडियो पर रेलसे हुई है लोगों को बहुत पसंद भी आ रही  है।

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आपको जो काम मिल रहा है उस से आप कितने संतुष्ट है?

जिस तरह की कहानियाँ एवं चरित्र मुझे करने को मिल रहे है उससे मेंअत्यंत खुश हूँ। मैंने एक्टिंग करने के बारे में १३/१४ साल से ही मन में साजो रहा था. जब में स्टेज पर कुछ करता बेहद ख़ुशी मिलती। मेरा सफर यहाँ मुंबई में जा में १७ वर्षका था तब से शुरू हुवा और जैसी जर्नी  रही है उससे, मैं बहुत खुश हूँ। जो कुछ भी मुझे मिला है वह मेरे लिए ठीख -ठाक ही है। बहुत उत्तार - जड़ाव  भी देखे है मैंने। मेरा सफर समृद्ध रहा। इस दौरान मै इवॉल्वे भी हुवा हूँ। जहां में ऐतिहासिक प्रोजेक्ट्स किये है वहां मैंने मुंबई डायरीज  भी की है, जो ह्यूमन  इमोशंस को दर्शाती है। अब मनोवैज्ञानिक थ्रिलर बेस्टसेलर्स कर रहा हूँ। खासकर ४ वर्षो से बेहद अच्छा समय चल रहा है। संजय दत्त लीजेंड के साथ फिल्म 'प्रस्थानम' भी की है और उन्हें करीब से काम करते हुए देखने का मौका भी मिला है। में मटेरियल सक्सेस से ज्यादा अलग अलग कहानियां करने का भूखा हूँ। बस अपने काम में और बेहतर हो जाऊँ यही आशा करता हूँ और इसके लिए बहुत हार्ड वर्क भी कर रहा हूँ।

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'बेस्टसेलर' सीरीज  में आपका किरदार क्या है  लोगों को बहुत पसंद आ रहा है कैसे डिफाइन कीजिये अपने किरदार को?

कैसे परिभाषित करूँ मेरे ख्याल से दर्शक उसे देख कर बेहतर समझ पाएंगे। देखिये जब भी आपको कुछ मिलता है तो आप सबसे पहले यही  देखते है कि  आपके पास कितने ऑप्शन  है उसके बाद आप उनमें से सबसे बेहतरीन रोल चुनते है.पान्डेमिक की वजह से बेस्टसेलर मेरे पास आया तो में ऑडिशन दिया। जिसे जैसे मैं पढ़ रहा था जैसे मेंसूच रहा तह उसके बिलकुल विपरीत कहानी आगे बढ़ रहे थी और मुझे बतौर पाठक यह कहानी बहुत ही अच्छी लगी और मुझे रुझाती  चली गई। इसीलिए दृष्कों को पसंद भी। ख़ुशी हो रहे है की दर्शक इस सीरीज को देखने में तल्लीन हो रहे है।

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इस मनोविज्ञानिक  के बारे में क्या कहना चाहेंगे?

प्रोडूसर सिद्धार्थ मल्होत्रा और मुकुल अभ्यंकर द्वारा निर्देशित बेहद बेहतरीन शो है। इस में क्राइम,मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर एलिमेंट्स सरे मौजूद है। कास्ट बेहद अच्छी ही और इसे सौंदर्य विषयक तरीके से शूट किया गया है। रियल लाइफ में भी अक्सर जीवित प्राणी ट्रॉमा, ह्रदय विदारक घटनाओ को एहसास करते हुवे जीव आगे  बढ़ाते है। जैसे जैसे आप उम्र के बढ़ाव में आगे बढ़ते है आप बेहतरीन इंसान  बनते है। यह आप के ऊपर निर्भर है कभी आप अपने मन की भावनाओं  को सबके सामने प्रकट कर देते है और कभी उसे छिपा जाते है। कभी कभी हम एक मास्क भी ओड लेते है। बस यह सारी जटिलताओं को सारे किरदार किस तरह निभाते हुए अपने किरदार को आगे ले जाते है यह देखने लायक कहानी है। यह केवल मनोवैज्ञानिक थ्रिलर नहीं है अपितु ह्यूमन इमोशंस से भी डील  करती है। रियल लाइफ में भी कई मर्तबा हम सभी इन  सारी चीज़ो से डील करते है, किन्तु बाहरी सतह पर एक उत्तम पिक्चर दिखलने की कोशिश  करते है।

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तो आप मनते है की सभी प्राणी ड्यूल पर्सनालिटी <दोहरी शख्शियत> को अपने अंदर रखे  होते है ?

हम अपनी पसंद के भी गुलाम है। हम कभी कभी यह भी सोचते है क्या हम जो वार्तालाप कर  रहे है यह सही तरह से सामने वाले तक पहुँच रही  है या नहीं। कभी कही हम अपने शब्दों का चयन भी सोच समझ कर करते है ताकि हम कुछ अटपटा न बोल जाये जिससे सामने वाले को परेशानी हो जाये। इस में भी दोहरी शख्सियत की बू नजर आती है। बस अभिनय करते समय भी मै यही सोचता हूँ कि मैं अपने फिल्म-मेकर एवं अपने  दर्शकों से ऑनेस्ट कैसे रहूँ।

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सिद्धार्थ मल्होत्रा से कभी मिलना  हुवा सेट पर या अन्यथा?

जी उनको मैं दोस्त बोलने की गुस्ताकी भी कर सकता हूँ। वो बेहद गर्मजोशी से सभी से मिलते है। सभी एक्टर्स के साथ काम करने में बहुत मजा आया।

जब आपने  फिल्मी सफर शुरू किया था आपकी माताजी आपसे नाराज थी?

जी आज वो मेरे साथ ही रहती है। और में खुश हूँ जो कुछ भी मैंने अपने  हार्ड वर्क से पाया है वह मेरे लिए बहुत कुछ है। आज मेरी माँ मेरे साथ एक बेहतरीन जीव व्यतीत कर रहे है यह मेरे  लिए गर्व एवं ख़ुशी की बात है।

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