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फिल्म ‘धूप छांव’ में पारिवारिक मूल्यों की बात की गयी है- समीक्षा भटनागर

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-शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

देहरादून से दिल्ली, फिर दिल्ली से मंुबई पहुॅचकर अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर बाॅलीवुड में अपनी एक अलग जगह बना लेने वाली अदाकारा समीक्षा भटनागर हमेषा व्यस्त रहती हैं.इन दिनों समीक्षा भटनंागर को हेमंत सरन निर्देषित व सचित जैन निर्मित फिल्म ‘‘धूप छांव’’ के प्रदर्षन  का बेसब्री से इंतजार है।

आप अपने कैरियर में किसे टर्निंग प्वाइंट मानती हैं?

सच यह है कि अभी तक मेरे कैरियर का टर्निंग प्वाइंट नहीं आया। जिस दिन टर्निंग प्वाइंट आएगा, उस दिन सभी को पता चल जाएगा। मैं अभी काफी डिसेंट काम कर रही हॅूं। मेरी चार फिल्में प्रदर्षित होने वाली हैं.एक बहुत बड़ी फिल्म करने वाली हॅूं, जिसमें एक ग्रेड कलाकार है। इसमें मैं एक बड़े स्टार कलाकार के अपोजिट नजर आने वाली हॅ। यह बहुत बेहतरीन फिल्म होगी। पर इस फिल्म को लेकर अभी इससे अधिक बात नही कर सकती।

एक तरफ आप कहती है कि अभी तक आपके अभिनय कैरियर मंे टर्निंग प्वाइंट नहीं आया। पर आप तो निर्माता बन गयी हैं?

मैं गाने गाती हॅंू। मंैने सोचा कि मैं सिंगर तो हॅंू, पर मुझ पर पैसा कौन लगाएगा। मेरा यहां कोई गाॅड फादर नही है.अब मेरे लिए कोई रास्ता नही बनाएगा, तो मुझे तो अपने लिए रास्ता बनाना ही है। इसलिए मैने अपने पार्टनर के साथ मिलकर एक सेट अप तैयार किया.फिर मैने गाने से ही षुरूआत की। मंैने पहले गाना बनाया। फिर हमने सोचा कि अब लघु फिल्म बनायी जाए। तो हमने लघु फिल्म ‘भा्रमक’’ का निर्माण किया। यह लाॅक डाउन का वक्त था। हम खाली थे। फिल्म अच्छी बन गयी,तो इसे नेटफ्लिक्स ने ले लिया। मेरा कहना यह है कि जब आप कोई काम पूरी षिद्दत से करते हैं, तो फिर वह अच्छा हो ही जाता है। मेरे तीन चार गाने के वीडियो चल रहे हैं। कुछ दूसरे गाने के वीडियो पर काम कर रही हॅूं।

एक तरफ मैं अपने स्तर पर कुछ बना रही हॅूं, तो दूसरी तरफ मैं कुछ अच्छी फिल्में भी कर रही हूंू। मैं अभी बांगलादेष सीमा पर जावेद जाफरी के साथ एक बेहतरीन फिल्म ‘‘जांगीपुर’’ करके आयी हॅूं.तो वहीं मेरी एक फिल्म ‘‘धूप छांव’’ जल्द प्रदर्षित होने वाली है. इस फिल्म के निर्माता सचित जैन और निर्देषक हेमंत षरण हैं।

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फिल्म ‘‘धूप छंाव’’ करने की कोई खास वजह?

जब फिल्म के निर्देषक हेमंत सरन ने मुझे इस फिल्म की कहानी सुनायी तो मैने पाया कि इसमें पारिवारिक मूल्यों की बात की गयी है। मुझे यह बात पसंद आ गयी। रिष्तों की जो अहमियत खत्म हो गयी है,उस पर यह फिल्म बात करती है। इसी बात ने मुझे इस फिल्म को करने के लिए प्रेरित किया।

क्या लंबे समय से बाॅलीवुड से गायब हो चुके परिवार की इस फिल्म से वापसी होगी?

जी हाॅ! ऐसा होगा। अब लोगों को परिवार की अहमियत पुनः पता चलेगी। फिल्म ‘धूप छांव’ से लोगों को पता चलेगा कि हमारी जिंदगी में परिवार कितना आवष्यक है।

फिल्म ‘धूप छंाव’ के अपने किरदार का नाम बताएं। किरदार को आप किस तरह से परिभाषित करेंगी?

फिल्म ‘‘धूप छंाव’’ दो भाईयांे की कहानी है। बडे़ भाई के किरदार में अहम षर्मा हैं और उनकी पत्नी के किरदार में मैं हूंू.कहानी को लेकर ज्यादा नही बता सकती। लेकिन इस फिल्म में मेरे किरदार में काफी वेरिएषन देखने को मिलेगा। एक कालेज जाने वाली लड़की से लेकर एक कालेज जाने वाले बीस वर्ष के बेटे की मां तक का मेरा किरदार है। कालेज जाने वाली लड़की, षादी हुई, बच्चे पैदा हुए, वह बड़े हुए, फिर वह 15 वर्ष के हुए। फिर 21 वर्ष के हैं और फिर हमने उनकी षादी भी कराई। तो मेरे किरदार में इतनी बड़ी यात्रा ह। इसमें कई घटनाक्रम कमाल के हैं। मुझे अभिनय करते हुए अहसास हुआ कि कुछ कमाल का काम कर रही हंू। सिर्फ ग्लैमरस किरदार नही है।जरुरत है कि आपके चेहरे व आपके किरदार के साथ दर्षक जुड़ सकें।

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ के किरदार के लिए आपको किसी खास तरह की तैयारी करनी पड़ी?

सिर्फ इसी फिल्म के लिए नही बल्कि मैं अपने हर किरदार को निभाने से पहले अपनी तरफ से काफी तैयारी करती हूँ। मैं अपने निर्देषक से पूरी पटकथा की मांग करती हॅूं। फिर उसे गंभीरता के साथ कम से कम चार बार पढ़ती हूँ। उसके बाद मैं अपने दृष्यों व संवादों को पढ़कर हालात समझने का प्रयास करती हॅूं, जिससे मैं वहंा जा सकॅूं.अगर मेरे किरदार के साथ कोई घटना हुई है, तो मैं वहंा पर जाना चाहती हंू,उसे समझने का प्रयास करती हूं। मैं खुद को उस किरदार में बदलने का प्रयास करती हूँ। इसके लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ती है। मेरी राय में अगर आप खुद को कलाकार मानते हैं,तो आपको सेट पर अपनी तरफ से पूरी तैयारी के साथ ही पहुॅचना चाहिए।

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हर किरदार को निभाने को लेकर आपका अपना एक थाॅट प्रोसेस होता है। मगर कई निर्देषक अपनी सोच से कलाकार को इधर उधर नहीं होने देते। तब किस तरह की समस्याएं आती हैं?

मैं बहुत ही ज्यादा फ्लेक्सिबल हॅूं एक बार मुझे निर्देषक का थाॅट प्रोसेस समझ मंे आ जाता है, तो फिर मैं उसके अनुरूप ख्ुाद को ढालने का प्रयास करती हॅूं। क्यांेकि हर फिल्म तो निर्देषक का अपना वीजन होता है। वैसे मैं ख्ुाद को भाग्यषाली समझती हॅूं कि मुझे अब तक सभी निर्देषक सुलझे हुए मिले और सभी ने मुझे कलाकार के तौर पर पूरा स्पेस दिया.मैं अपनी तरफ से बहुत मेहनत करती हूँ। वैसे हमें तो परदे पर अच्छा काम करना है, तो निर्देषक के वीजन के अनुसार काम करने से कोई परहेज नहीं।

फिल्म ‘‘धूप छंाव ’के निर्देषक हेमंत षरण के साथ काम करने के अनुभव क्या रहे?

हेमंत जी बहुत ही सुलझे हुए निर्देषक हैं। उन्हे पता होता है कि उन्हे क्या चाहिए। वह अपने कलाकार को पूरी स्वतंत्रता देते हैं। वह दृष्य को समझाने के बाद कलाकार को परफाॅर्म करने के लिए कहते हैं, फिर उसमें कुछ सुधार की जरुरत होने पर वह उसे सुधरवाते हैं। उन्हे मेरी स्किल पर भरोसा भी रहा। कलाकार को स्पेस देना अच्छा होता है।

टीवी पर एक ही किरदार लंबे समय तक निभाना मोनोटोनस नही हो जाता है?

सच कहॅूं तो हम टीवी पर काम करते हुए रचनात्मक रूप से इतना व्यस्त रहते हैं कि हमंे रचनात्मक संतुष्टि के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता। फिल्म करते समय हम बैठते हैं, सोचते हैं, वर्कषाॅप करते हैं,निजी स्तर पर किरदार को लेकर विचार करते हंै। तो वहां पर हम रचनात्मक रूप से काफी कुछ अहसास करते हैं, जिससे हमें इस बात का भी अहसास होता है कि संतुष्टि मिल रही है या नही। देखिए, मंैने अभिनय का क्षेत्र महज धन कमाने के लिए ही चुना है। काम करते हुए आत्मा की संतुष्टि चाहिए.जब तक मेरी आत्मा के अंदर से आवाज नहीं आती, तब तक काम करने का मजा नहीं होता।  लेकिन हर इंसान की अपनी पसंद होती है.टीवी पर काम करते रहने से नियमित रूप से धन मिलने के साथ ही हमेषा लोगों की नजरों के सामने बने रहते हैं। पर कटु सत्य यह है कि सीरियल का प्रसारण खत्म होते ही लोग कलाकार को सबसे पहले भूल जाते हैं.वैसे जब मैं ‘कलेंडर गर्ल’ कर रही थी, उस वक्त भी मैं टीवी कर रही थी.जब मुझे फिल्म 2017 में ‘पोस्टर ब्वाॅयज’ मिली, तो मैने निर्णय लिया कि अब कुछ समय के लिए टीवी से दूरी होनी ही चाहिए।

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जब आप टीवी से ब्रेक लेकर जब आप थिएटर पर ‘‘रोषोमन ब्लूज’’ नाटक कर रही थी,उस वक्त आपके दिमाग में क्या चल रहा था?

हर कलाकार को मेरी सलाह है कि जितना जमीन पर रहेंगें, उतना ही अच्छा है.आपने टीवी पर काम कर लिया और जबरदस्त षोहरत पा ली,पर इसे अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए.हाथ जोड़कर रहने में ही भलाई है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितना सीखना चाहेंगे। जहां तक मेरा सवाल है,तो मैने सीखने को लेकर अपनी कोई सीमा रेखा खींची ही नही है। मैं हर इंसान से सीखने को तत्पर रहती हूंू। ‘रोषोमन ब्लूज’ नाटक करते हुए मैने काफी कुछ सीखा। मेरे अंदर काफी बदलाव आया।

फिल्म के सिनेमाघर में रिलीज होने और ओटीटी पर फिल्म के स्ट्ीम होने पर किस तरह का फर्क महसूस होता है?

थिएटर यानी कि सिनेमाघर का तो अपना एक अलग ही मजा है। एक बड़े परदे पर खुद को देखने का अलग मजा होता है। दर्षक समय निकाल कर,पैसे खर्च कर टिकट खरीदकर जिम्मेदारी के साथ फिल्म देखते हैं। लाॅक डाउन व कोविड के चलते ओटीटी प्लेटफाॅर्म ने लोगों को मनोरंजन परोसा। में तो ओटीटी प्लेटफार्म की तारीफ करुंगी। क्योंकि ओटीटी ने कई कलाकारों को काम दिया। आज हर कोई व्यस्त है। अब फिल्मकार के पास अपनी फिल्म को रिलीज करने का आप्षन मौजूद है.पहले कई फिल्में सिनेमाघर में पहुॅच ही नही पाती थीं। मसलन हमारी फिल्म ‘‘हमने गांधी को मार दिया’’ प्रदर्षित हुई थी,मगर स्क्रीन कम मिले थे। सही स्क्रीन व सही समय के षो नही मिले थे। पर बाद मे यह फिल्म ‘एम एक्स प्लेअर’ पर आयी, तो दर्षकांे ने इसका लुत्फ उठाया.तो यह अच्छा वक्त है। ओटीटी भविष्य है। लोगांे की दीमागी सोच बदल चुकी है। अब लोग हर फिल्म को देखने सिनेमाघर नही जाएंगे। ‘बाहुबली’ या ‘पुष्पा’ जैसी बड़ी फिल्में देखने लोग सिनेमाघर में जाएंगे।

शौक क्या हैं?

डांस, गायन, यात्राएं करना। कभी कभार कूकिंग कर लेती हॅंू। मुझे पूरा विष्व घूमना है।

जब आप घूमने गयी हों, उस दौरान की किसी घटना ने आपकी जिंदगी पर असर किया हो?

ऐसा कुछ नही। पर छोटी मोटी चीजे होती रही हैं।

आप लिखती भी होगी?

सच कहॅूं तो मुझे लिखने का कोई खास षौक नही है। प्रोफेषनली कभी कुछ लिखा नहीं। पर मैं लिखे हुए को समझती बहुत बेहतर हँू।मेरा वीजन बहुत साफ है।

सोषल मीडिया पर भी सक्रिय हैं। किस तरह के अनुभव हैं?

आज की तारीख में सोषल मीडिया बहुत ताकतवर है। पर मुझे यह सवाल जरुर अखरता है कि आपके सोषल मीडिया पर कितने फाॅलोवअर्स है? इस तरह के सवाल करके लोग कलाकार की अभिनय क्षमता को पूरी तरह से हाषिए पर डाल देते हैं। मेरा अपना मानना है कि सोषल मीडिया के फालोवअर्स का कलाकार के अभिनय कौषल से कोई संबंध नही है।

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