Advertisment

‘शाहरुख खान की तरह पूरे शहर में छा जाने की कामना लेकर मंुबई नहीं आया था...’’ सेहबान अजीम

New Update

शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

मूलतः पेंटर और कवि सेहबान अजीम ने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लेते हुए एक लघु फिल्म ‘स्टेशन’ में अभिनय कर शुरूआत की थी। इस लघु फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल गए। उसके बाद कुछ दूसरी फिल्में की। पर उन्हे लगा कि फिल्मों में उनका कैरियर काफी धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। इसी बीच उन्हे सीरियल ‘दिल मिल गए’ मंे डाॅ.युवराज का किरदार निभाने का मौका मिला, तब से वह लगातार टीवी पर काम कर रहे हैं। अब  तक वह नौ सीरियलों में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके हैं। इन दिनो 14 मार्च से ‘कलर्स’ चैनल पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘स्पाई बहू’ में संदिग्ध आतंकवादी योहान के किरदार में सेहबान अजीम नजर आ रहे हैं।
प्रस्तुत है ‘मायापुरी’ के लिए सेहबान अजीम से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..
आपकी माताजी लेखक, आपके पिता जी पेंटर हैं। आप खुद कविताएं लिखते हैं। मगर आपने इनसे अलग अभिनय को चुना?
- बहुत अच्छा सवाल है। वैसे मैं बता दॅूं कि मैं भी पंेटिंग करता था। कविताएं लिखना मैंने तब शुरू किया, जब प्यार में मेरा दिल टूटा। वैसे मैं अपनी अम्मा से कहता था कि मैं भी आपकी तरह लिखूंगा, पर कब यह नहीं पता। हार्ट ब्रेक होने के बाद कविताएं लिखनी शुरू की। स्कूल में पेंटिंग बनाने के लिए मुझे पचास से अधिक पुरस्कार मिले थे। लेकिन मुझे अहसास हुआ कि पेंटिंग के मामले मंे मैं स्कूल में अच्छा हॅूं, मगर घर में अच्छा नही हॅूं। मेरे घर में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। मेरे पिता जी के अलावा मेरे बड़े भाई और मेरे छोटे भाई मुझसे काफी अच्छी पेंटिंग बनाते हैं। तो मैंने सोचा कि पेंटिंग का टैंलेंट है, पर जिंदगी मंे कुछ दूसरा टैलेंट भी तलाशना चाहिए। बचपन में मुझे कम्प्यूटर का शौक था, तो मैंने कम्प्यूटर में काफी कुछ सीखा। मेरे अब्बा अब्दुल अजीम कमर्शियल आर्टिस्ट थे। उनकी अपनी एड एजेंसी थी और आफिस में कम्प्यूटर भी था। 12 वीं पढ़ाई खत्म होने तक मैं अपने शिक्षक को बताने लगा था कि कम्प्यूटर को इस तरह से ठीक करते हैं। इस तरह हार्ड डिस्क डालते हैं। तो फिर मंैने कम्प्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर ली। कुछ दिन नौकरी की, पर मुझे लगा कि यह मेरे वश की बात नही है। उन्ही दिनों मैं माॅडलिंग भी कर रहा था। तो मैने सोचा कि नौकरी छोड़कर माॅडलिंग में कुछ किया जाए। इसमें कुछ तो रचनात्मकता है। कंपनी मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थी। उन्ही दिनों मेरे भाई मंुबई शिफ्ट हो रहे थे। मैंने कंपनी से कहा कि मेरा परिवार मंुबई जा रहा है, इसलिए मुझे मंुबई जाना है। तो कंपनी ने मेरा ट्रांसफर मंुबई कर दिया। इस तरह मैं नौकरी के साथ मंुबई पहंुॅचा। छः सात वर्ष तक नौकरी करते हुए कुछ हाथ पैर मारे। मैं नही चाहता था कि मैं जिंदगी भर ख्ुाद को कोसता रहूंू कि मैंने अपनी तरफ से कोशिश नहीं की। अंततः मैंने नौकरी छोड़कर माॅंडलिंग के साथ अभिनय की शुरूआत की। आज मैं सोचता हॅूं तो मुझे लगता है कि इससे अच्छा मेरा निर्णय नहीं हो सकता था। जबकि मेरे सभी दोस्त मुझे सलाह दे रहे थे कि इतनी अच्छी परमानेंट नौकरी न छोडॅूं। दोस्त सलाह दे रहे थे कि परमानेंट नौकरी है। अब तो मुझे शादी करके घर बसा लेना चाहिए। पर मंैने उस वक्त दिल की सुनी। मेरे माता पिता ने भी मेरा साथ दिया।
अभिनय की ट्रेनिंग लेने की जरुरत पड़ी थी?

publive-image
- जी नहीं..मैंने ट्रेनिंग नहीं ली। मगर 2008 में मैंने इम्मानुएल कुइन्दो पालो द्वारा निर्देशित लघु फिल्म ‘स्टेशन’ में मुख्य किरदार निभाया था। जिसे बाद में ‘केरला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार मिला। इसकी शूटिंग थाईलैंड में हुई थी और इस फिल्म की शूटिंग से पहले वर्कशाॅप रखी गयी थी। हर दिन पचास लोगांे को पटकथा देकर पकड़ा देते थे और फिर उनमें से कुछ को चुनते थे। उन्हें दस लड़के व दस लड़कियंा चाहिए थीं। बिना किसी ट्ेनिंग के हमारा चयन हो गया। फिर एनएसडी से चार लोग आए और हमें अभिनय की ट्रेनिंग दी। इस प्रकार यह हमारी मुफ्त की ट्रेनिंग थी। इसके बाद मैने एक दूसरी लघु फिल्म की शूटिंग पुणे फिल्म संस्थान में की। उसे भी पुरस्कार मिल गए। दो माह तक पुणे फिल्म संस्थान में रहकर मैंने काफी कुछ सीखा। फिर जब हमने टीवी सीरियल में अभिनय करना शुरू किया, तो टीवी बहुत कुछ सिखा देता है। हमें सेट पर आधे घ्ंाटे पहले ही पटकथा मिलती है। हम उसे पढ़कर किरदार को, मूवमेंट आदि को समझते हैं। इस तरह काम करते करते मेरे अंदर परिपक्वता आती गयी। मैंने हॉलीवुड फिल्म ‘कर्मा  क्राइम , पैशन और रेइन्कर्नतिओन’ में छोटा सा किरदार भी निभाया। 2009 में मुझे ‘ स्टार वन’ का लोकप्रिय सीरियल ‘दिल मिल गए’ में डॉ.युवराज ओबेरॉय का किरदार निभाने का मौका मिल गया। उसके बाद मुझे पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी।
आपने शुरूआत फिल्मों से की थी। पर फिर टीवी तक ही सीमित होकर रह गए?
- टीवी तक सीमित नही रहा। पर फिल्में समय काफी लेती हैं। मैंने एक फिल्म की, फिर दूसरी फिल्म के लिए एक वर्ष का इंतजार करना पड़ा। फिल्मों में कैरियर काफी धीमी गति से आगे बढ़ रहा था। मैंने सोचा कि आखिर कब तक मैं घर पर खाली बैठकर इंतजार करुंगा। फिर उन्ही दिनों मैने लिखना शुरू किया था। उन्हीं दिनों मेरा दिल भी टूटा था। तभी स्टार प्लस से आॅडीशन के लिए बुलावा आया। मैंने आॅडीशन दिया, उसका कुछ नहीं हुआ। पर उन्होंने मुझे ‘दिल मिल गए’ के नए सीजन में डाॅ. युवराज ओबेराय का किरदार निभाने को दे दिया। उसके बाद से सिलसिला खत्म नहीं हो रहा। अब तक नौ सीरियल कर चुका हॅूं।

publive-image
अब तक के कैरियर को आप खुद अब किस तरह से देखते हैं?
- ईमानदारी से कहॅंू कि मैं इतना कुछ नहीं सोचता। मुझे लगता है कि मैं काम कर रहा हॅंू, जिंदगी जी रहा हॅूं, तो सब कुछ अच्छा है। मैं वर्तमान में जीता हॅंू। भविष्य की योजना नहीं बनाता। मैं अपने वर्तमान को सही बनाने में लगा हंू। मुझे उम्मीद है कि उसी से मेरा भविष्य भी अच्छा बन जाएगा। मैं यहां तक पहुॅच गया हॅूं, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। अन्यथा बचपन में मैं बहुत शर्मीला था। मैं हमेशा अपनी मां के पीछे छिप जाता था। मैं घर आए मेहमानों को अपना नाम बताने से भी कतराता था। ऐसे में इस मुकाम तक पहुॅचना मेरे लिए कम उपलब्धि नही है। मुझे लोग पसंद करते हैं, यह मेरी ख्ुाशनसीबी है। मैं शाहरुख खान की तरह यह सोचकर नहीं आया था कि मुंबई आते ही पूरे शहर में छा जाउंगा। स्टार बन जाउंगा। मेरे सपने बड़े नही थे। पर ईश्वर दे रहा है,तो उसे विनम्रता के साथ स्वीकार कर रहा हॅूं।
काम करने का मौका मिल रहा था, इसलिए आपने ‘कलर्स’ के सीरियल ‘स्पाई बहू’ मंे काम करना स्वीकार कर लिया?
-इस सीरियल के साथ कई चीजें जुड़ी हुई हैं। मसलन...यह सीरियल कश्मीर से जुड़ा हुआ है। और जिस वक्त मुझे इस सीरियल के आफर का फोन आया, उस वक्त मैं कश्मीर मंे ही छुट्टियां मना रहा था। योहान जिस तरह से कश्मीर में छिपा रहता है और रिस्पांॅड नहीं करता, उसी तरह मैं भी कश्मीर में था और सीरियल के निर्माता को जवाब नही दे रहा था। जब कश्मीर से वापस आकर निर्माता व लेखक से मिला और कहानी सुनी तो मुझे ‘स्पाई बहू’ की कहानी बहुत अलग लगी। इससे पहले मैं सीरियल ‘तुझसे है राब्ता’ में एसीपी का किरदार निभा रहा था। वह अच्छे इंसान हैं। देश प्रेमी हैं। वह अपनी पत्नी व बच्चे अथवा देश के लिए जान निछावर कर देगा। मगर ‘स्पाई बहू’ का योहान उससे काफी अलग है। योहान सिर्फ अपने बारे मंे सोचता है और सोचता है कि दुनिया बहुत चालाक है.मुझे भी चालाक बनना पड़ेगा और अपना जो दर्द है, उस दर्द को वह अपने अंदर लिए हुए घूम रहा है। मुझे योहान में यह सब बहुत अलग व रोचक लगा। मुझे लगा कि योहान के किरदार को निभाने में कुछ रोचक बात है। फिर इसमंे उसकी पत्नी भी स्पाई है। यूं तो हर पत्नी स्पाई होती है। मगर हर पत्नी इतनी बड़ी स्पाई नही होती कि ‘राॅ’ के साथ काम कर रही हो। वैसे हर पत्नी अपने पति  के बारे में स्पाई करके पता करती रहती है कि क्या चल रहा है। कहने का अर्थ यह कि मुझे अहसास हुआ कि ‘स्पाई बहू’ सास बहू नही है और इसमें कुछ करने का अवसर मिलेगा। सबसे अच्छी बात यह है कि मैं कश्मीर घूम कर आया था। कश्मीर से मुझे मोहब्बत हो गयी थी और फिर मुझे इस सीरियल की शूटिंग के लिए कश्मीर जाना पड़ा।

publive-image
योहान को किस तरह से परिभाषित करोगे?
- योहान एक ऐसा इंसान है, जिसका दर्द उसके अपने अंदर है। जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। वही अपने बारे में सब कुछ जानता है। वह काफी समझदार है। संजीदा है। वह अपनी जिंदगी, अपनी बहन, परिवार को लेकर काफी संजीदा है। पर योहान को लेकर जो रहस्य बना हुआ है, वह आगे जाकर पता चलता है कि वह कश्मीर क्यों गया था और इन शहरों में वह करता क्या है? वह काफी रोचक कहानी है, जिसे मैं अभी नहीं बता सकता। लोग इसे जानकर अचंभित होने वाले हैं।
हार्टब्रेक होने का जो दर्द आपके अंदर था? क्या योहान के किरदार को निभाते हुए वह काम आया?
- सच कहॅूं कि जिंदगी के हर अनुभव किसी भी किरदार को निभाते हुए काम आते हैं। आपके इमोशन भी कनेक्ट हो जाते हैं। कई बार माता या पिता के साथ के दृश्य भी निजी जीवन में माता पिता के साथ घटी घटनाओं से साथ जुड़ जाते हैं.यह स्वाभाविक रूप से होता है। इसके अलावा टीवी में हम एक साल से जिस किरदार को निभाते रहते हैं, उसे स्वााभाविक तरीके से जीने लगते हैं। कई बार कुछ चीजंे निजी जिंदगी से लाने की जरुरत नहीं पड़ती। बल्कि उस किरदार को निभाते हुए खुद ब खुद उसी किरदार सेे आ जाती हैं।
किसी किरदार को लंबे समय तक निभाते हुए अहसास नही होता कि मोनोटोनस हो गया?
- अब मैं सेहबान अजीम को कितने वर्षो से जी रहा हूं, तो क्या यह मोनोटोनस हुआ? इमानदारी से कहॅूं तो हम एक कलाकार के तौर पर अपनी जिंदगी मंे कई जिंदगियां जीने का अवसर पाते हैं। हम फिल्म में कोई किरदार निभाते हैं, तो वह छह माह में खत्म हो जाता है। सीरियल मंे हम एक ही किरदार को हर दिन बारह घ्ंाटे और काफी लंबे समय तक जीते हैं। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हँू कि मुझे एक ही जिंदगी मंे कई जिंदगियां जीने को मिल रहा है। मुझे सारे इमोशन को अहसास करने को मिल रहा है। पर कभी कभी लगता है कि इतने सारे किरदार निभाते हुए कभी मैं पगला न जाऊं। मगर मजा जरुर आता है।
इस सीरियल में आपके साथ अयूब खान, भावना बलसावर व शुभा खोटे जैसे दिग्गज कलाकार हैं। क्या अनुभव रहे इनके साथ काम करने के ?
- यह सभी कलाकार बहुत ही डाउन टू अर्थ और अच्छे इंसान हैं। इनसे बात करके मजा आता है। अयूब खान के साथ बातें करके मैंने काफी कुछ सीखा। मेरी राय में बड़ों से बातें करंे. हम कुछ न कुछ सीखते हैं। कुछ न कुछ लेकर ही जाते हैं। मुझे बचपन से शौक रहा है अपने दादा और नाना के साथ बैैठकर लंबी बातें करने का। हम इनसे बातें करके जो कुछ सीखते हैं, वह सब किताबंे या टीवी से नहीं सीख सकते। अयूब खान सिर्फ अनुभवी ही नहीं बल्कि बहुत खुशमिजाज इंसान है। उनके साथ हमारे सीन काफी रोचक हैं। क्योंकि इस सीरियल में पिता पुत्र के बीच नफरत वाली कहानी है और इसमें अयूब खान, योहान के पिता के किरदार में हैं। दोनो को एक दूसरे से नफरत है। मगर दोनों एक दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते। मैं अयूब खान की उर्दू भाषा से भी रिलेट कर लेता हॅूं। उनके साथ काम करते हुए मजा आ रहा है।
अयूब खान के साथ शूटिंग करते हुए कभी आपको आपके निजी जीवन के पिता के साथ की कोई घटना याद आयी?
- मुझे लगता है कि एक उम्र के बाद हर इंसान अपने से छोटों से मिलने पर उन्हे कुछ देना चाहता है, उन्हें कुछ बताना चाहता है। जिससे सामने वाला उन बातों को सीखकर अपनी जिंदगी मंे उपयोग कर सके। तो अयूब खान भी चलते फिरते कुछ बातें बोलते रहते हैं, जिन्हे सुनकर मुझे लगता है कि हाॅं यह तो मेरे अब्बा ने भी कहा था।

publive-image
सना सय्यद के साथ काम करने के इक्वेशन कैसे रहे?
- ईमानदारी से बात कहॅूं तो उसके साथ अचानक ही केमिस्ट्री विकसित हो गयी थी। वह काफी फ्रंेंडली है.साधारण है।
कश्मीर का अनुभव?
- पहली बार जब मैं कश्मीर घूमने गया था, तो कश्मीर में लोग मुझे मल्हार के नाम से बुला रहे थे। इस बार शूटिंग के दौरान मेरे किरदार का नाम योहान सुनकर लोग योहान बुला रहे थे। सेहबान के नाम से किसी ने नही बुलाया। जब घूमने गया था, तो दुनिया से परे घूम रहा था। मैं शहर में कम, पहलगाम में बिना मोबाइल, बिना इंटरनेट के पहाड़ांे पर ट्रैकिंग कर रहा था। इस बार शूटिंग करने गया, तो मेरे साथ पूरी युनिट थी।
आप खुद लेखक हैं, तो स्क्रिप्ट पढ़ते समय उसमें कुछ बदलाव करने की इच्छा होती होगी?
- हॅंसते हुए..सच बताऊं..जब मुझे किरदार मिलता है, तो उस वक्त उसमें लेखक की लाइने होती हैं, मगर जब मैं उसे पढ़ रहा होता हॅूं,तो मेरे दिमाग में मेरी लाइने होती हैं। जब तक ऐसी लाइने न हो,जिन्हें बदलना ठीक न हो अथवा ऐसी जानकारी हो, जिसे देना जरुरी हो, मैं किरदार के हिसाब से उन लाइनों को थोड़ा बहुत आगे पीछे करता ही हॅूं। मुझे लगता है कि किरदार में मेरा अपनापन देना जरुरी है।
किस तरह की कवितांए लिखते हैं?
- हर तरह की कविताएं लिखता हॅूं। देश के उपर भी लिखता हॅूं। प्यार, जिंदगी, अच्छ-बुरे अनुभवों पर भी लिखता हॅूं।
शौक?
- यात्राएं करना..नए नए लोगों से मिलना। नई चीजे सीखना। पहाड़ों पर ट्रैकिंग करना ज्यादा सकून देता है। पहाड़ों पर पहुंचने पर अहसास होता है कि हमारा कोई वजूद ही नहीं है।
ओटीटी के लिए कुछ कर रहे हैं?
- जी हाॅं! मैंने कुछ किया भी है। इरोज नाउ के लिए दो लघु फिल्में की हैं। एक अदा शर्मा के साथ ‘सोल साथी’ और दूसरी अनुप्रिया गोयंका के साथ ‘अनकही’ की है। पर टीवी करते हुए ज्यादा कुछ करने का वक्त नहीं मिलता है। ‘सोल साथी’ रोमांस पर थी। ‘अनकही’ में हरियाणा का जाट बना हॅूं।

#Sehban Azim
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe