फिल्म ‘आपरेशन रोमियो’ का काॅसेप्ट बहुत अलग है: भूमिका चावला By Mayapuri Desk 24 Apr 2022 in इंटरव्यूज Videos New Update Follow Us शेयर -शान्तिस्वरुप त्रिपाठी आर्मी बैकग्राउंड में पली बढ़ी भूमिका चावला ने माॅडलिंग से कैरियर की षुरूआत की थी.2000 में उन्होने तेलगू फिल्म ‘‘उकाड़ू’’से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा.अब तक वह ‘तेरे नाम’,‘अनुसुईया’, ‘संम्बा’, ‘खुषी’, ‘दिल जो भी कहे’,‘एम डी धोनीः द अनटोल्ड स्टोरी’’,‘भ्रम’ व ‘सीटीमार’ सहित कई हिंदी, तमिल, तेलगू, पंजाबी, भोजपुरी, ‘मलयालम’ फिल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं.फिलहाल वह 22 अप्रैल को प्रदर्षित होने वाली फिल्म ‘‘आॅपरेषन रोमियो’’ को लेकर उत्साहित हैं,जिसमें वह एक महाराष्ट्यिन महिला के किरदार में हैं। प्रस्तुत है भूमिका चावला से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष... अपने कैरियर में किसे टर्निंग प्वाइंट्स मानती हैं? हिंदी की बात करुं,तो फिल्म ‘तेरे नाम’’ मेरे कैरियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा.उसके बाद मैने दो तीन फिल्में ऐसी की,जिनके गीत लोग आज भी सुनना पसंद करते हैं.‘गांधी माई फादर’ मेरे लिए न सिर्फ बेहतरीन फिल्म बल्कि टर्निंग प्वांइट भी थी.मुझे फिरोज के निर्देषन में काम करने का अवसर मिला.इसमे मैने न सिर्फ एक रीयल किरदार निभाया,बल्कि ऐसा किरदार जो कि पोलीटीकली बहुत सषक्त है.इसमंे मैने ‘फादर आफ नेषन’ यानी कि राष्ट्पिता महात्मा गांधी की ‘डाॅटर इन ला’ का किरदार निभाया.इसके लिए निर्देषक फिरोज के अलावा मंैने भी काफी पढ़ा.काफी रिसर्च किया था.यह मेरे लिए सीखने वाला बड़ा अनुभव था.यह मेरे कैरियर की पहली सिंक फिल्म थी.रसूल कुटी इसके साउंड इंजीनियर थे.जब ऐसे लोगांे के साथ काम करते हैं,तो आप सेट से खाली हाथ नहीं आते,सिर्फ पैसा नहीं कमाते, बल्कि जिंदगी में काफी कुछ सीखकर आते हंै.काफी अनुभव घर लेकर आते हैं.यह हिंदी फिल्म इंडस्ट्ी की बात है. तेलगू फिल्म इंडस्ट्ी में मैने बेहतरीन लोगों के साथ काम किया.मुझे मेरी दूसरी तेलगू फिल्म‘‘उकड़ू’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेअर पुरस्कार मिला.इसमें महेष बाबू व ज्यूनियर एनटीआर भी मेरे साथ थे.2003 में इस फिल्म ने 35 करोड़ कमाए थे.आज की तारीख में यह कम से कम चार सौ करोड़ गिने जाएंगे.फिर मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट छोटे बजट की फिल्म ‘‘सम्बा’’थी.इस फिल्म को करने से लोगों ने मुझे मना किया था.इसे सिर्फ सवा करोड़ रूपए में नए कलाकारों के साथ बनाया गया था.जबकि उन दिनो मैं 18 से बीस करोड़ वाले बजट की फिल्में कर रही थीं.पर मैने ‘सम्बा’की और रिस्क ली. इस फिल्म को नौ फिल्मफेअर नोमीनेषन मिले.पांच नंदी अवार्ड मिले थे.मुझे इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नंदी अवार्ड मिला था.आज भी वहां लोग षमा के नाम से जानते हैं.फिल्म खुषी’ का किरदार मधुमिता भी लोगों की जुबान पर है.इसी तरह मैने तेलगू फिल्म ‘अनुसुईया’ में पत्रकार का किरदार निभाया.यह फिल्म महज एक करोड़ में बनी थी.जबकि उन दिनों मैं बड़े बजट की फिल्में कर रही थी.मेरे कहने का अर्थ कि मैने किरदार को अहमियत दी,पैसे को नही.इस फिल्म को भी कई नोमीनेषन मिले.बाक्स आफिस पर जबरदस्त सफलता मिली.बाक्स आॅफिस पर इसने बारह करोड़ रूपए से अधिक कमाया था.मैने अलग अलग फिल्में की.रिस्क उठायी.तमिल मंे भी कई फिल्में की.मैने सूर्या के साथ फिल्म की.2007 में प्रदर्षित इस फिल्म के चलते लोग मुझे 2022 मेें भी आयषू कहकर बुलाते हैं.‘तेरे नाम’ के किरदार का नाम निर्जरा आज भी चल रहा है.मैने कुछ फिल्में ऐसी की हंै,जिन्होने हिंदी ,तमिल व तेलगू फिल्म इंडस्ट्री मंे अपनी अलग छाप छोड़ी है.जिन फिल्मों में षीर्ष भूमिका निभायी,वह नाम लोगों की जुबान पर हैं. कहा जाता है कि तमिल,तेलगू सिनेमा की तुलना में बाॅलीवुड काफी बड़ा है.पर हिंदी में आपको यादागर फिल्में कम मिली? तकदीर कह ले. कई बार मैने कुछ फिल्में साइन की,पर उनके बनने मेे देरी हुई तो मैं दूसरी जगह व्यस्त हो गयी और वह फिल्म नहीं कर पायी.मसलन-मैने फिल्म ‘जब वी मेट’ साइन की थी.इसी तरह मैने ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ भी साइन की थी.पर फिर नही कर पायी.वैसे भी मैं षुरू से ही कम फिल्में लेती रही हॅूं. अब इन कम फिल्मों मंे से भी यदि दो तीन किसी वजह से हाथ से निकल जाए,तो क्या होगा,आप सोच सकते हैं.यदि किसी वजह से फिल्म डिले हो जाती है,तो गैप बढ़ जाता है.गैप बढ़ने पर लोग सोचते हैं कि भूमिका काम नहीं करना चाहती.उसी गैप के दौरान मैं दक्षिण की फिल्में भी करती थी.उस वक्त भी मैं अपना पी आर नही करती थी.आज भी नही करती.फिल्मी पार्टियों में भी नही जाती थी. कोई ऐसी फिल्म जिसके लिए बहुत मेहनत की हो,पर उसे सफलता न मिली हो? एक तेलगू फिल्म के लिए काफी मेहनत की थी,पर उसे सफलता नहीं मिली थी.वास्तव में इस गंभीर विषयवाली फिल्म में उन्होने मसाला पिरो दिया था.आइटम सांग डाल दिया था,जो कि नही करना चाहिए था. किसी फिल्म को स्वीकार करने से पहले किस बात पर ध्यान देती हैं? सबसे पहले मुझे कहानी पसंद आनी चाहिए.फिर किरदार पर ध्यान देती हॅूं.जिनके साथ मैं ख्ुाद को कनेक्ट नही कर पाती,उन्हे करने से मना कर देती हूं.अभी भी मेरे पास कुछ वेब सीरीज के आफर आए,यह अच्छे निर्देषक हैं.इन्होने जो भी काम किया,उसे नेषनल अवार्ड भी मिला.लेकिन वह मेरे पास जिस तरह का विषय लेकर आए,उससे मैं ख्ुाद को कनेक्ट नहीं कर पायी.सिर्फ निर्देषक बहुत अच्छे होने पर भी मैने नही की.मेेरे लिए आवष्यक है कि पटकथा से कनेक्ट करुं.फिर किरदार के साथ कनेक्ट होना जरुरी है.मुझे लगना चाहिए कि मैं इस किरदार के साथ न्याय कर पाउंगी.तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं किन लोगों के साथ काम कर रही हॅूं.क्योकि मेरी आधी सफलता मेरी खुषी है.कजंदगी का कोई भरोसा नही.सुबह घर से निकला इंसान षाम को घर वापस आएगा,इसकी केाई गारंटी नहीं.यही जीवन का सच है.यदि मुझे सुबह घर से निकली और षाम को वापस आयी,तो मेरे अंदर खुषी का अहसास हो,यही मेरी सफलता है.यदि सेट पर माहौल सही नही होगा,घर वापस लौटी,पता चला कि निर्देषक से मेरी बात नहीं हुई थी,तो दुःख रहेगा.मैं ऐसा नही चाहती। मूड ़खराब कर घर पहुॅचना पड़े,ऐसे लोगों के साथ मैं काम नहीं कर सकती.फिल्म के सेट पर चार से 15 घंटे काम करने बाद थकी होने पर भी मन को मिली ख्ुाषी ही मेरी जीत है.वही मेरी सफलता है.फिल्म की सफलता तो बोनस है. फिल्म ‘‘आपरेषन रोमियो’’ करने की क्या वजह रही? इसका काॅसेप्ट ही बहुत अलग है.यह फिल्म माॅरल पाॅलीसिंग पर है.लोग दूसरो पर अपनी बात थोपने की कोषिष करते हैं.एक लड़की छोटे कपड़े पहनकर सड़क से निकलती है, तो आप देखिए,लोग उसकी तरफ किस तरह से देखते हैं। तो लोगो का नजरिया ही बदल जाता है.आप किस के साथ बैठे हैं,तो लोग सोचते हैं कि इसके साथ क्यांे बैठे हैं? क्या बात कर रहे हैं.इसके अलावा यह फिल्म रीयलिटी बेस है.फिर मेरा किरदार भी जबरदस्त है.इसमे मैने षरद केलकर के किरदार की पत्नी व एक छोटी बेटी की मां का किरदार निभाया है.यह महाराष्ट्यिन औरत का किरदार है.एक घटनाक्रम उसकी जिंदगी बदल देता है. समाज में माॅरल पाॅलीसिंग को लेकर जो बाते होती है,वह कहंा तक जायज हैं? माॅरल पाॅलीसिंग की अपनी सीमा होनी चाहिए.आप लोगों को डिक्टेट नही कर सकते.आप अपने बच्चों,बेटी हो या बेटा,उसकी सही परवरिष करें.उसे सिखाए कि जिंदगी किस तरीके से जीनी चाहिए.एक लड़का किसी भी तरीके से लड़की से बिहैव करे,वह सही नही है.यह षिक्षा बचपन मे ही दी जानी चाहिए. पुलिस की क्या भूमिका होनी चाहिए? आम जनता की मदद करनी चाहिए.वैसे तो वह ऐसा करते हंै,पर एक दो प्रतिषत जो नही करते हैं,उन्हें भी करना चाहिए. #Bhumika Chawla हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article