'-सुलेना मजुमदार अरोरा
वहीदा रहमान की अपनी एक अदा है, जो वक्त के लम्बे साये के बावजूद भी अपनी मंधुरता नहीं खो पाई है। वहीदा पर्दे पर जितनी स्थिर चित्त खामोश और शर्मीली नजर आती है, सच कहूं तो वो वैसी ही है। वह निजी ज़िदंगी में, बल्कि अगर कहूँ कि उससे भी अधिक खामोश और अपने आप में सिमटी रहने वाली स्त्री है; तो गलत न होगा। कुछ दिन पहले मेरा उनसे टकराव हो गया चांदीवली में!
सेट में जहाँ सभी बातचीत में मशगूल थे, वहीं वहीदा अपने मेकअप रूम में अपने डायलॉग को एक बार दो बार तीन बार पढ़ने में मस्त थी!
“वहीदा जी आप जब फुर्सत में हो जायें तो कृपया मुझे चन्द सवालात करने का मौका दें?'
बहुत ही नपी तुली मुस्कान बिखेर कर वहीदा जी ने कहा-‘फुर्सत तो इसी वक्त है, इसके बाद तो शूटिंग में ऐसा बिजी हो जाऊँगी कि पसीना पोछने की भी फर्सत नहीं रहेगी, लेकिन अब जहाँ प्रश्नों का प्रश्न आता है तो मैं बार-बार तुम्हें तथा सभी पत्रकारों को बता चुकी हूँ कि, इंटरव्यू के लिए अब मेरे पास कुछ नहीं है। किस बात पर इंटरव्यू? इतने वर्षों से इस इंडस्ट्री में रहकर मैंने बहुत सारे सवालों के जवाब दे दिए हैं'
उनके मना करने के बावजूद भी मैंने आखिर उन्हें मना ही लिया और उसी वक्त कुछ एक सवाल के दरम्यान जो बातें हुई वह पेश हैं!
वहीदा जी इंडस्ट्री में इतने वर्ष रहने के बावजूद आप इतनी शर्मीली क्यों रह गयी?
“शर्मीली? यह तो स्त्रियों का गहना है, लेकिन मैं उस हद तक शर्मीली भी नहीं हूँ, मैं काफी बोल्ड और फ्री हूँ साथ ही रिजव्र्ड भी हूँ' उनके पतले होंठों में दृढ़ता की सख्ती आ गयी!
‘आप बहुत रिजर्व्ड नेचर की हैं, इसलिए शायद आप कोई दोस्त या सहेली भी नहीं बना पायी होंगी?
मैंने उनको हमेशा सेट पर अकेला देखा हैं, मेरे प्रश्न पर उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया- 'क्यों, मेरी और नंदा की दोस्ती को तो इंडस्ट्री में एक मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। हजार काम हों, हम एक दूसरे से मिलने की फुर्सत जरूर निकाल लेते हैं। किसी ने ठीक ही कहा था कि सच्चा दोस्त पाना बहुत मुश्किल है और मैंने वह पा लिया है, फिर कौन कहता है मेरी कोई सहेली नहीं है?”
क्या आप मुझे बतायेंगी कि नंदा जी के साथ आपकी पहली मुलाकात कहाँ हुई थी, पहली बार?
पहली बार हमारी मुलाकात फिल्म ‘काला बाजार’ के सैट पर हुई थी, आज से बहुत साल पहले!
आप दोनों ने एक साथ इस फिल्म को छोड़कर और किसी फिल्म में काम नहीं किया?
हाँ यह बड़े आश्चर्य की बात है कि हम दोनों इतने करीब होने के बावजूद भी सिर्फ एक फिल्म ‘काला बाजार’ में साथ काम कर पाये!
आपको अगर नंदा जी के साथ फिर कोई फिल्म ऑफर की जाए तो?
तो मैं शौक से स्वीकार कर लूंगी। हम दोनों चाहती तो यही हैं कि किसी फिल्म में साथ काम करें और दोनों का रोल जोरदार हो!
लेकिन वहीदा जी अगर नंदा जी बाज़ी जीत जायें तो?
तो मैं नंदा को गले लगा कर कहूंगी- 'नंदा मैं कहती थी न तुम मुझसे अच्छी अभिनेत्री हो, लेकिन तुम आज तक मानने को तैयार ही नहीं!
आप नंदा की सहेली हैं, आपको इस बात का अफसोस नहीं होता कि, नंदा जिंदगी की राह में जीवन साथी के बिना अकेली रह गई है?
यह नंदा का निजी मामला है, वह खूबसूरत है, प्रतिभाशाली है, समझदार है, वह जो राह चलेगी वह ठीक ही होगी, मुझे इतना विश्वास है!
जब आप नई थी, तब यह फिल्म इंडस्ट्री आपको कैसी लगती थी?
मुझे फिल्म इंडस्ट्री एक अजीब किस्म का गोरख धंधा लगता था। मैं हमेशा सेट पर फटी- फटी आँखों से सारा नजारा देखा करती थी, नई-नई फिल्मों में आई थी तो, मुझे एक बात का सबसे ज्यादा ताज्जुब होता था कि स्टार लोग रात को शूटिंग कैसे कर लेते थे? मैं जरा ज्यादा सोने वाली लड़की थी, रात के नौ बजते ही सो जाया करती थी, लेकिन जब एक बार मुझे भी रात को शूटिंग करनी पड़ी तो मुझे सचमुच अपने पर भी आश्चर्य होने लगा कि कल तक जो रात होते ही निढ़ाल हो जाया करती थी और जो दूसरे स्टारों के रात को शूटिंग करने पर दाँतों तले उंगली दबा लिया करती थी, वह खुद रात को मेकअप लगा कर तैयार कैसे हो गई? लेकिन स्टार होने की कीमत तो चुकानी ही थी, स्टार के लिए क्या दिन और क्या रात, जब बुलाया जाये तब कैमरे के आगे हाजिर होना पड़ता है!
वहीदा जी आपको अपने करियर बनाने के दौरान कभी किसी बात का डर नहीं लगा था, मसलन अन्य कलाकारों से होड़ लेने का डर या लड़कियों का फिल्म इंडस्ट्री में असुरक्षित होने का डर?
नहीं मुझे कभी किसी बात का डर नहीं लगा था, और न अब लगता है, मैं बचपन से ही निडर थी, पिता जी मेरी छोटी उम्र में ही गुजर जाने की वजह से मैंने जिदगी की ऊँच नीच को बहुत छोटी उम्र में ही जान लिया था, मैं जूझनां चेक जानती थी, इसलिए मुझे जीवन में किसी पंहलू से कभी डर नहीं लगा, अन्य कलाकारों के साथ मैं कभी स्पर्धा से डरी नहीं, बल्कि मुझे हमेशा चैलेंज अच्छा लगता है, कंपटीशन हमारे जमाने में हमेशा स्वस्थ स्पर्धा हुआ करती थी (आज की तरह नहीं) वैसे सुरक्षित रहना तो स्त्रियों के अपने हाथों में है, मैं कभी किसी भी बात से डरी नहीं लेकिन फिर भी सुरक्षित रही!
जब आप लोगों को यह कहते सुनती हैं कि, आप हीं वह अभिनेत्री हैं, जिसने कंधों से पल्ला सरकने न दिया, तो आपको कैसा महसूस होता है?
मुझे बड़ा अच्छा लगता है, सोचती हूँ. जो बात मैं हमेशा बनाने की कोशिश करती रही वह आखिरी दिन आ गयी देखो इस दुनिया में अपना नाम बदनाम करने में एक पल की भी देरी नहीं लगती लेकिन अच्छा नाम वर्षों की लगन और मेहनत के बाद मिलता है जो मैं समझती हूँ इस स्टेज में मुझे मिल रहा है!
वहीदा जी आप आज की फिल्म इंडस्ट्री के बारे में अपने विचार प्रकट करें साथ ही यह भी बतायें कि, क्या आपको आज अपना जमाना याद आता है, क्या आपको हीरोइन की ग्लैमर्स छविं के पश्चयात यह माँ-भाभी का सादा भेष कैसा लग रहा है?
मैंने एक ही साँस में सभी प्रश्न कर डाले तो वहीदा जी ने गंभीरता से जवाब दिया, ‘बाप रे, एक साथ इतने प्रश्न मुझे आज की फिल्म इंडस्ट्री से बस इतनी शिकायत है कि, आज इस तरह की बेमिसाल फिल्में नहीं बनती जैसी पहले बना करती थीं, फिल्म में हीरो-हीरोइन का रोमांस और डांस ही सब कुछ नहीं होता, हमारे समय में हीरोइन प्रधान फिल्में बना करती थीं जैसे ‘नीलकमल’, ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘खामोशी’, ‘मदर इंडिया’ इसमें हीरोइन का खूबसूरत या जवान होना जरूरी नहीं था, कई फिल्मों में तो माँ या भाभी का चरित्र ही इतना खूबसूरत और दमदार होता था कि, लोग उस माँ या भाभी को ही लीडिंग लेडी माना करते थे। वैसी फिल्में आज कहाँ बनती हैं, आज तो माँ, भाभी, दीदी का अस्तित्व ही नहीं होता, कुछ फिल्म अपवाद हैं,
मुझे अपना जमाना याद आता है उन दिनों हर चीज बड़ी सफाई और अच्छी तरह होती थी, हम कलाकार, निर्देशक को ही सब क॒छ माना करते थे बड़ा नियम कायदा था, लेकिन सोचती हूँ बीता समय लौट कर तो आने वाला है, नहीं फिर क्या फायदा, वैसे मुझे अपने आज के रोल से कोई शिकायत नहीं है, समय के साथ सबको ग्लैमर्स भूमिका छोड़नी पड़ती है, और मैं तो खैर अपने जमाने में भी सदा चरित्र निभाया करती थी! जिसमें सुन्दरता पर नहीं अभिनय पर बल दिया जाता है, इसलिए मुझे इस बात का अफसोस नहीं कि आज मैं सादी भेष में क्यों आ गयी हूँ!
अंतिम प्रश्न यह है कि, आप गृहस्थी की जिम्मेदारी और फिल्म की जिम्मेदारी एक साथ कैसे निभा रही हैं?
मैं गृहस्थी की जिम्मेदारी भली प्रकार समझती हूँ मैं घर में कुछ भी अ धूरा छोड़कर नहीं आती। सबके लिए अलग अलग समय निर्धारित है!
यह लेख दिनांक 15.1.1984 मायापुरी के पुराने अंक 486 से लिया गया है!