टीवी इंडस्ट्री में उत्कृष्ट व सफलतम पांच सीरियलों में से एक "फैमिली नंबर वन" से एक नया इतिहास रचा गया था. कंवलजीत सिंह व तन्वी आज़मी के अभिनय से सजे टीवी सीरियल "फैमिली नंबर 1" में कलाकारों के साथ एक अभिनव नृत्य के साथ एक शानदार शीर्षक गीत है. यह टाइटल गीत बिनायफर कोहली के ही दिमाग की उपज था, जिसे उन्होने स्वयं कोरियोग्राफ किया था. यह बिनायफर कोहली कोई और नही बल्कि मशहूर टीवी सीरियल निर्माता बिनायफर कोहली हैं, जो कि अपने पति संजय कोहली के साथ मिलकर 'एडिट 2' प्रोडक्षन हाउस चला रही है. बिनायफर कोहली की एक पहचान यह भी है कि वह अच्छी लेखिका भी हैं. बिनायफर कोहली व संजय कोहली का 'एडिट 2' प्रोडक्षन हाउस 'माही वे', 'निलांजना', 'एफआईआर', 'भाबीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन', 'जीजा जी छत पर हैं', 'फैमिली नंबर 1', 'में आई कम इन मैडम' और 'शादी नंबर वन' सहित 32 से अधिक सामाजिक एवं कॉमेडी सीरियलों का निर्माण कर टीवी इंडस्ट्री में पिछले 32 वर्शों से अपनी धाक जमाए हुए हैं.
पेश है "मायापुरी" के लिए बिनायफर कोहली से हुई बातचीत के खास अंश...
आपकी मम्मी तो एलआईसी गोल्ड मैडलिस्ट हैं. ऐसे में आप एलआई सी के साथ जुड़कर काम कर सकती थी?
आपने कुरेद ही दिया है, तो मैं आपको अपने बारे में कुछ बता देती हॅूं. मैं मूलतः पारसी हूँ और पंजाबी बंदे संजय कोहली से विवाह किया है. मेरे पिताजी एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ थे. मेरी मम्मी 'एलआईसी' से जुड़ी हुई थी और गोल्ड मैडलिस्ट थी. मेरे भाई बहन भी काफी उच्च शिक्षित हैं. मेरा भाई सीए और बहन ट्पिल ग्रेज्युएट है. मेरे दोनों बच्चे विहान व चेन स्कल्प्चर बनाते हैं. इलुस्टेशन बनाते हैं. लेकिन मेरी रूचि बहुत अलग रही है. मैं पहले एक मॉडल थी. मॉडलिंग के ही दौरान मेरी मुलाकात संजय कोहली जी से हुई थी. संजय कोहली जी तो भारत के नंबर वन मॉडल थे. पढ़ाई में ज्यादा रूचि न होते हुए भी मैं अपनी कक्षा में कई बार फस्ट आती रही हॅूं. जबकि रचनात्मक क्षेत्र में मेरी रूचि स्कूल दिनों से ही हो गयी थी. स्कूल दिनों से ही मैं नाटकों में काम करने लगी थी. स्कूल के एक नाटक में जापानी लड़की का किरदार निभाया था. मुझे अभिनय के लिए कई अवार्ड मिले थे. लिखने में कुछ ज्यादा ही रूचि थी. मैं तो निबंध प्रतियोगिता में कई बार जीती. मैं भाषण प्रतियोगिता के लिए, खुद ही लिखती थी. इतना ही नही भाषण प्रतियोगिता में भी मैने पुरस्कार जीते थे. मुझे लेखन व आर्ट से बहुत लगाव है. मैं पेंटिंग नहीं बनाती हॅूं. पर मुझे अच्छी पेंटिंग देखना अच्छा लगता है. कालेज में पहुँचते ही मुझे मॉडलिंग के आफर मिलने लगे. मैने मॉडल के तौर पर रैप शो और लाइव शो भी किए. जब मैं सोलह वर्ष की थी, तभी एक दिन बॉम्बे डाइंग के मशहूर वितरक किरण जी ने ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके एक शो को कोरियोग्राफ कर सकती हॅूं? पर कम उम्र के चलते यह संभव नही था. तब नरेश जैन ने मेरे लिए काफी काम किया. वह मेरे मेंटर थे. फिर तो मैने मॉडलिंग के साथ ही बॉम्बे डाइंग, मफतलाल,'आईडब्ल्यूएस, पोर्श, एस्टी लॉडर आदि के लिए भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैशन शो की कोरियोग्राफी और मॉडलिंग की. कई लाइव शो कोरियेाग्राफ किए. उधर भारत के नंबर वन मॉडल संजय जी भी काफी काम कर रहे थे. संजय जी ने पेप्सी, टेफ्को, टेक्सटाइल सहित सैकड़ो काम्पनिंग की. जब हम मिले तो हम दोनो ने मिलकर अपनी एडवरटाइजिंग एजंसी भी खोली. हमने जीटीवी का लाइव लांच कार्यक्रम किया था. हमने कई इंटरनेशनल शो किए. मुझे रचनात्मकता से जुड़े रहना पसंद है.
एड एजंसी चलाते हुए आप लोगों ने सीरियल बनाने की बात कैसे सोच ली?
हमारी एड एजंसी बहुत अच्छी चल रही थी. पर हमें सीरियल बनाने का आफर चैनल की तरफ से मिला और फिर सीरियल बनाने का काम इतना अधिक मिलने लगा,कि हमें अपनी एड एजंसी बंद करनी पड़ी. हमने सबसे पहले जीटीवी के लिए 'हाय जिंदगी बाय जिंदगी' बनाया था. इसमें जसपाल भट्टी जी भी थे. उसके बाद हमने सोनी टीवी के लिए 'फैमिली नंबर वन' बनाया. टीवी इंडस्ट्री में पांच सर्वश्रेष्ठ सीरियलों में से एक है 'फैमिली नंबर वन'. इसकी मूल वजह यह है कि हमारी क्रिएटीविटी बहुत अच्छी थी. हमें रचनात्मकता में मजा आ रहा था, हम कुछ न कुछ नया क्रिएट करने का प्रयास कर रहे थे. कॉमेडी में तो संजय जी को महारत हासिल है. लोग उन्हे 'किंग आफ कॉमेडी' बुलाते हैं. 'फैमिली नंबर वन' के बाद पीछे मुड़कर देखने की जरुरत ही नही पड़ी. हमने कई चैनलों के लिए कार्यक्रम बनाए. 'माही वे', 'निलांजना', 'एफआईआर', 'भाबीजी घर पर हैं',' हप्पू की उलटन पलटन', 'जीजा जी छत पर हैं', 'फैमिली नंबर 1', 'में आई कम इन मैडम' और 'शादी नंबर वन' सहित 32 से अधिक सामाजिक एवं कॉमेडी सीरियल बनाए. हम खुद लिखते थे,कलाकारों के चयन से लेकर सारी रचनात्मक जिम्मेदारी भी निभाते... यह सब करना अच्छा लगता और आत्मिक संतुष्टि भी मिलती. काम बढ़ने लगा, तब हमने अपने साथ कुछ अन्य रचनात्मक लोगों को जोड़ना शुरू किया. हमने आर्ट डायरेक्टर, कैमरामैन से लेकर निर्देशक तक क्रिएट किए हैं. मैं अपने हर सीरियल को अपने बच्चे की तरह लेती रही हॅूं. आज भी उसी तरह से लेती हूं. तो हम सोचते थे कि आज हम इसे कौन सी टोपी पहनाउं, कौन सी पोशाक पहनाउं.. वगैरह.. हमने कुछ नियम बना रखे हैं. मसलन, हम बम ब्लास्ट पर एक भी एपीसोड नही बनाते. बम ब्लास्ट से कईयों को बहुत तकलीफ हुई थी, हम उस तकलीफ की याद किसी को भी नहीं दिलाना चाहते. हमारा मकसद तो हर किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना है. हम बॉडी शैमिंग को भी नही दिखाते. हम तो मजाकिया चीज दिखाते हैं. मैं तो हर अवार्ड लेने पहुँच जाती हॅूं. जबकि संजय जी तो आईटीए को छोड़कर किसी भी अवार्ड फंक्षन में नही जाते. उन्हे अपनी फोटो खिंचवाना भी पसंद नही है. वह अपने आपको काम में व्यस्त रखना चाहते हैं. वह सीमित व अच्छा काम करना चाहते हैं. मैं भी अच्छा काम करना चाहती हॅूं, मगर मैं अठारह अठारह घंटे काम करने में यकीन रखती हॅूं. मैं बहुत काम करना चाहती हॅूं. टीवी पर दस अति लोकप्रिय व बेहतरीन कॉमेडी सीरियलों में से छह सीरियल तो हमारे ही हैं. हमारी कंपनी यानी कि 'एडिट 2' का सीरियल 'एफआई आर' पूरे दस साल तक प्रसारित होता रहा. 'भाबी जी घर पे हैं' को भी दस साल हो गए. 'हप्पू की उलटन पलटन' पांचवे वर्ष में है. 'मे आई कमिंग मैडम' के तीन सीजन टेलीकास्ट हो चुके हैं. 'जीजा जी छत पे हैं' के दो सीजन टेलीकास्ट हुए. हमारे सीरियल 'फैमिली नंबर वन' की गिनती पहले पांच में होती है. हमने कई सामाजिक सीरियल भी बनाए, जिन्हे पुरस्कृत भी किया गया. मुझे साामजिक सीरियल लिखने में महारत हासिल है तो वहीं संजय केाहली जी को कॉमेडी मे महारत है. तो वह अपनी टीम के साथ कॉमेडी सीरियलों पर काम करते हैं.
आप तो क्रिएटिब एक्सपरीमेंट काफी करती रही हैं?
यह तो मेरी फितरत है. मैं शांत बैठ नही सकती. हमारा सीरियल 'फैमिली नंबर वन' भारत के 5 रेटेड सीरियलों में से एक है. सीरियल की अवधारणा संजय कोहली द्वारा शुरू की गई थी और फिर लेखकों ने इसे संभाला. यह पहला सीरियल था जिसका अपना शीर्षक गीत कोरियोग्राफ किया गया था. इससे पहले शीर्षक गीत बनाने के लिए क्लिपिंग का उपयोग किया जाता था. मुझे याद है कि मैंने गाने को दो भागों में कोरियोग्राफ किया था. एक नीले और हरे रंग के आकर्षक लुक में और दूसरा काले और सफेद औपचारिक रंगों में. यह बहुत बड़ा पंखा था जिसे हमने गाने की शूटिंग के दौरान इस्तेमाल किया था. शीर्षक गीत के लिए सराहना और प्रतिक्रिया हमारे द्वारा किए गए सभी प्रयासों के लायक थी. मुख्य कलाकार कंवलजीत सिंह, तन्वी आज़मी और बच्चों ने शानदार काम किया था. 'फ़ैमिली नंबर 1' के बाद, लोगों ने पैकेजिंग करना शुरू कर दिया और अब हर सीरियल में एक शीर्षक गीत के लिए एक पैकेजिंग टीम है. इसलिए हर तरह से यह सीरियल मेरे लिए बहुत खास है और मेरे दिल में इसकी बहुत खास जगह है. फिर मैने यही काम अपने दूसरे सीरियल 'मस्ती' में किया. धीरे धीरे दूसरे निर्मातओ ने हमारी नकल करते हुए टाइटल्स के लिए अलग शूट करना शुरू किया और अब तो सीरियल के टाइटल्स और प्रोमो को फिल्माने के लिए अलग से युनिट बुलायी जाती है.
आपने अब तक 32 से अधिक सीरियलों का निर्माण किया है. किस सीरियल का कौन सा संदेश लोगों तक पहुंचा?
हम हर सीरियल में मनोरंजन के साथ संदेश देने का प्रयास करते हैं. हमारी कोशिश होती है कि हमारा सीरियल देखते हुए दर्शक मनोरंजन के साथ प्रेरणा भी ग्रहण करे. हमने अपने सीरियलों में बार बार 'स्वच्छता' का संदेश देते हैं. हमने अपने सीरियल में यह सवाल भी उठाया है कि हम लोग पीलिया, चिकनगुनिया सहित हर बीमारी को पहचानते हैं, उन्हें महत्व देते हैं, पर हम मानसिक स्वास्थ्य को तवज्जो क्यों नहीं देते? जब मोबाइल नही था, तो हम गाड़ी में बैठकर अंधेरी से चर्चगेट तक जाते थे, तो रास्ते में चारों तरफ हमरी नजर जीवन के कई तरह के लोगों पर, कई घटनाओं पर पड़ती थी, हमारा दिमाग कई दिशा में सोचता था. पर मोबाइल आने के बाद तो हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे आस पास क्या घट रहा है. हम सभी अपने मोबाइल में व्यस्त रहते हैं. इससे दीमागी बीमारियां बढ़ रही हैं, जिसकी तरफ किसी का ध्यान नही है. अब तो लोग रास्ते में चलते हुए मोबाइल पर बात करते रहते हैं, जिसकी वजह से दुर्घटनाएं भी होती हैं. मैं दूसरों की बात क्यो करू मेरे साथ भी मोबाइल पर बात करते हुए दुर्घटना घट चुकी है. सोशल मीडिया तो बहुत ही ज्यादा नशा वाला है. मुझे तो टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया से डर लगता है. हमने सोनी टीवी के लिए सीरियल "लज्जा" बनाया था. इसमें एक औरत की लड़ाई का चित्रण था. वह बहुत ही ताकतवर लोगों से अंततः जीत हासिल करती है. सीरियल 'जारा' में दो बहने एक ही पुरूष से विवाह करती हैं. यह एक रियलिस्टिक घटनाक्रम पर आधारित सीरियल था. इसमें एक बहन अननी दूसरी बहन की मदद करने के लिए आती है और उसी में फंस जाती है. सीरियल 'हमारी बेटी राज करेगी' में एक बिगड़ी हुई लड़की के सुधर जाने की कहानी है. 'फैमिली नंबर वन' तो हमारा आइकोनिक सीरियल है. दो शादीशुदा परिवार एक ही घर में रहते हैं. फिर उनके बच्चों की क्या समस्याएं आती हैं,उनकी समस्याओं का निराकरण..इसमे 14 साल की लड़की,बीस साल का लड़का, एक दस साल का लड़का..अलग अलग उम्र में अलग अलग समस्याएं तो उन समस्याओं को मां बाप किस तरह हल करते हैं.. बच्चो की वजह से भी माता पिता की जिंदगी में समस्याएं आती हैं, तो उसे कैसे हल किया जाता है. बच्चे कैसे आपस में जुड़ जाते हैं. उनके मन में कोई खटास नहीं रहती. सीरियल 'माही वे' में हमने बहुत पुराना पंजाब दिखाया. इसमें रीटा भादुड़ी, कुलभूषण खरबंदा थे. उस वक्त पंजाब में परिवार के अंदर किस तरह के झगड़े होते थे, उस वक्त लोग काफी कट्टर होते थे. आखिर अपने लोग,अपना देश अपना ही होता है. 'एफ आई आर' में दिखाया है कि किस तरह पुलिस स्टेशन की हेड महिला पुलिस इंस्पेक्टर चंद्रमुखी चैटाला हैं और वह किस तरह केस हल करती हैं. हास्य सीरियल "जीजा जी छत पर है' और 'जीजा जी कोई छत पे है' मे हीबा नवाब थी. इसमें हमने दिखाया कि प्यार हो तो फिर पैसा कोई मायने नहीं रखता. 'भाबी जी घर पे हैं' में दो कपल्स की इन्नो सेंट प्रेम कहानी है,जहां महिला किरदारों की इज्जत है. इसमें दोनों दोस्त भी हैं और दोनों दुश्मन भी हैं. स्वच्छ भारत,चुनाव आदि पर बात की है. कॉमेडी सीरियल 'हप्पू की उलटन पलटन' में हप्पू पुलिस स्टेशन में कार्यरत है और अब उसकी बेटी उसकी बॉस बनकर आयी है. पुलिस स्टेशन में बेटी, अपने पिता पर किस तरह से राज करती है और शाम को घर आकर किस तरह पिता, बेटी पर गुस्सा होता है. 'धक धक इन दुबई' को हमने दुबई में फिल्माया. इसमें एक दूसरे से नफरत करने वाला एक पंजाबी और दूसरा गुजराती परिवार है,फिर कैसे दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं. 'नीलांजना' एक वास्तविक कहानी पर बनाया गया सीरियल था. सुखवंत ढढ्ढा निर्देशित सीरियल पंजाब में फिल्माया गया था. इसे मैने व सचिन ने मिलकर लिखा था. सचिन भौमिक पुराने लेखक हैं. उन्होने राजेश खन्ना वाली फिल्म 'आनंद', 'ताल' व 'कहो ना प्यार है' जैसी फिल्में लिखी हैं. उन्हे मेरी कहानी पसंद आयी थी, तो उन्होने मेरे साथ संवाद लिखे थे. सामाजिक सीरियल 'ये है मेरे अपने' में दादा कैसे अपने छोटे बच्चों को बड़ा करता है. इसके अलावा 'मे आई कमिंग मैडम' सहित कई कॉमेडी सीरियल बनाए,पर हर सीरियल हंसाने के साथ साथ कोई न कोई सीख जरुर दे गया. 'शादी नंबर वन' में अलग अलग कपल्स की कहानी है. एक महिला क्लासेस चलाते हुए अपनी वैवाहिक जिंदगी किस तरह से चलाती है. वह सभी को शादी सफल बनाने की सलाह देती रहती है. पर उसने नही बताया कि कलासेस का प्रिंसिपल उसका पति है और वह दोनों स्वयं तलाक ले रहे हैं. इस सीरियल में हर अनोखी शादी की अलग अलग समस्याओं पर बात की गयी है.
नीलांजना तो?
जी हाँ! यह पीटर व इंद्राणी मुखर्जी के चैनल 'INOX' पर था,पर यह चैनल बंद हो गया. मेरा लेखक कमलेश कुंती सिंह ने मुझसे पूछा कि इसे में अन्य चैनल पर ले जाउं, मैने उसे इजाजत दे दी. इसी सीरियल को लेकर वह जीटीवी पर गया और जीटीवी पर यह सीरियल 'अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो' के नाम से टेलीकास्ट हुआ और काफी लोकप्रिय हुआ.
आपके साथ तो कई कलाकार लंबे समय से काम कर रहे हैं?
जी हाँ! शुभांगी आठ वर्ष से हमारे साथ बहुत अच्छा काम कर रही है. आसिफ शेख और रोहिताश्व गौ़ड़ की मैं जितनी तारीफ करुं,उतना ही कम है. मुझे लगता है कि इश्वर ने सीरियल "भाबी जी घर पे हैं' पर अपना हाथ ही रखा हुआ है. योगेश त्रिपाठी को हमने सिर्फ एक एपीसोड के किरदार के लिए बुलाया था. पर वह आज भी काम कर रहा है. उसका अभिनय बहुत अच्छा था, लेकिन वह बुंदेलखंडी बोलता था. पर उसके उपर से पूरा सीरियल शुरू हो गया और पिछले पांच वर्ष से चल रहा है. इस सीरियल में हिमानी षिवपुरी जी भी हैं. फिर 'चिड़ियाघर' वाले सुमित अरोड़ा भी हैं. वह सुपर एक्टर है. हम 'मुगल ए आजम' तो नही बना रहे हैं, मगर हमारी अच्छी वाइब्स से एक सीरियल चलता रहता है. कॉमेडी सीरियल में जरुरी है कि हर कलाकार के बीच एक अच्छी बोन्डिंग हो. आसिफ शेख व रोहिताश्व गौड़ के बीच सुपर बोन्डिंग है. 'जीजा जी छत पे हैं' में हीबा नवाब थी, वह तो मेरी बच्ची जैसी है. जो कलाकार नाटक की दुनिया से आते हैं, वह तो बहुत ही ज्यादा अनुशासित होते हैं. इन कलाकारों को किरदार में घुसने में ज्यादा समय नही लगता. 'भाबी जी घर पे हैं' में आसिफ शेख ने जोकर, महिला, यूरोपियन महिला, दर्जी, कबड्डी खिलाड़ी, सहित 360 किरदार निभाए हैं. हर बार वह अपना लहजा भी बदलते हैं. वास्तव में अंगूरी थोड़ी भोली है, तो उस बुद्धू बनाना आसान है. इसलिए आसिफ अलग अलग किरदार निभाते हुए अंगूरी को बुद्धू बनाते रहते हैं. जबकि गोरी मैम को बुद्धू बनाना आसान नहीं है.
हमने सुना है कि आपके साथ तकनीशियन काफी लंबे समय से काम करते आ रहे हैं?
जी हाँ! मेरे सभी तकनीशियन तो मेरे दिल में रहते हैं. मेरे सभी तकनीशियन 20 से 30 वर्ष पुराने हैं. मुझे टीवी इंडस्ट्री में काम करते हुए 32 वर्ष हो गए. हमारे कैमरामैन राजा दादा मेरे पहले सीरियल से हमारे साथ काम कर रहे हैं. यानी कि 32 वर्ष से हमारे साथ हैं, जब जीटीवी शुरू हुआ था. मेरे निर्देशक शशांक बाली ने हमारे 'स्टार प्लस' पर प्रसारित सीरियल "शादी नंबर वन" में बतौर सहायक निर्देशक काम किया था. हमने उन्हे सीरियल 'एफआई आर' में निर्देशक बना दिया. शशांक बाली पहले मशहूर हास्य निर्देशक राजन वागधरे के सहायक थे. समीर कुलकर्णी भी राजन वागधरे के सहायक थे, जिन्होने 'फैमिली नंबर वन' निर्देशित किया था. एफआई आर' के बाद शशांक बाली तो संजय जी के छोटे भाई बन चुके हैं. सभी सीरियल वही निर्देशित करते हैं. अब शशांक की सहायक हर्षदा भी हमारे सीरियल निर्देशित करती है. जयपुर से रघुबीर शेखावत जब आया था, तो मेरे आफिस में ही रहता था. उसने सबसे पहले हमारे लिए 'फैमिली नंबर वन' लिखा, उस वक्त वह बहुत छोटा और क्यूट था. अब वह पिछले पांच वर्ष से 'हप्पू की उलटन पलटन' लिखता है. फिर मनोज शंतोशी जी हमारे साथ जुड़े. मनोज शंतोशी जैसा कॉमेडी लेखक मैंने टीवी इंडस्ट्री में नहीं देखा. हमारी पूरी टीम में मनोज जी बच्चे जैसे हैं. वह काफी इन्नोसेंट है. वह बीमार भी अक्सर हो जाता है. वह बहुत ही ज्यादा इमोशनल भी हैं. संजय जी के मुकाबले मैं थोड़ी कड़क हॅूं. लेकिन मेरा कोई भी तकनीशियन मुझे रात के एक बजे भी फोन कर सकता है और उसका फोन आते ही मैं तुरंत पहुँचती हॅूं. क्योकि वह मेरी 'वर्किंग फैमिली' है. मेरे आर्ट डायरेक्टर अरूप की बात करना जरुरी है. मैं सीरियल 'फैमिली नंबर वन' के लिए लोकेशन के तौर पर 'सनकिट बंगला' देखने गयी थी. वह वहां पर किसी के साथ बतौर सहायक काम करते हुए पतंग वगैरह लगा रहा था. मुझे उसके बात करने का तरीका पसंद आ गया. मैने उसका नंबर लिया और उससे वादा किया कि मैं उसे अपने अगले सीरियल का आर्ट डायरेक्टर बनाउंगी. मैने उसे अपने नए सीरियल के लिए बुलाया, उसे थोड़ा सा गाइड कर मैने उसे आर्ट डायेरक्टर बना दिया. उस वक्त मेरा एडवरटाइजिंग से जुड़ा होना काम आया. अब तो वह काफी सीनियर आर्ट डायरेक्टर है. शशांक का सहायक रित्विक अब हमारा 'हप्पू की उलटन पलटन' निर्देशित कर रहा है. राजा दादा के साथ सहायक के रूप में काम करने वाला अब 'मे आइ कमिंग मैडम' का कैमरामैन है. मेरे सभी तकनीशियन बहुत अच्छे हैं. कभी कभी एक आध लोग गलत निकल आते हैं. लोग कहते हैं कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है. पर मेरा अनुभव कहता है कि अगर तालाब अच्छा हो,तो सभी उस गंदी मछली से दूर हो जाती है. शुरू आत में तो सभी उस गंदी मछली के प्रभाव में आ जाती हैं,पर जल्द ही सच जानकर वह उससे दूरी बना लेती हैं. मेरे कलाकार भी पिछले सत्रह वर्ष से मेरे साथ काम कर रहे हैं. मैं अपने कलाकारों को एक सीरियल से दूसरे सीरियल में रिपीट करती रहती हूँ. क्योंकि कॉमेडी करना इतना आसान नही है. मेरे सभी कलाकारों की कॉमिक टाइमिंग कमाल की है.
कोविड के दौरान आपने कैसे अपनी पूरी टीम व कलाकारों को संभाला था?
कोविड के दौरान हमारे सभी कलाकारों ने पूरी तरह से सहयोग किया और वह लगातार शूटिंग करते रहे. जिसके चलते हमने एक दिन भी शूटिंग बंद नही की. हमें किसी भी एपीसोड को रिपीट करने की जरुरत नही पड़ी. कोविड के दौरान मैने कई कलाकारों से सपर्क कर उन्हे मदद करने की पेशकश की थी, कई तकनीशियनों को भी मदद करने की पेशकश की थी. पर कई इमने अच्छे हैं कि उन्होने हमसे कोई मदद नही ली. ज्यादातर लोगो ने मुझसे कहा कि फिलहाल सब कुछ मैनेज हो रहा है. जब तकलीफ होगी,तो हम मांग लेंगे. अनिरूद्ध पाठक ने पहले मेरे साथ काम नही किया था. पर उसे कोविड हो गया तो उसे वेबसीरीज के सेट से 'एअरलिफ्ट' करके ले गए थे, लेकिन उसने भी मुझसे कोई मदद नही ली. कोविड के समय ज्यूनियर आर्टिस्ट सप्लायर ने संजय जी से कहा कि कुछ एडजस्टमेंट करना हो तो बताएं, संजय जी ने उससं कहा कि स मुसीबत के समय हम एडजस्टमेंट करेंगे, किसी जयूनियर आर्टिस्ट को एडजस्टमेंट करने की जरुरत नही हैं सौम्या टंडन, शुभांगी सहित सभी कलाकारों ने कोविड के दौरान सेट पर आकर शूटिंग कीं सौम्या टंडन के घर पर उसका छोटा बच्चा और उनकी बुजुर्ग मां थी, तो उसने मुझसे कहा कि मैं उसकी जगह किसी अन्य कलाकार को ले लूं पर मैं लंबे समय तक उसके लिए रूकी रहीं. मैं किसी भी किरदार के कलाकार को बदलने मे बहुत ही ज्यादा पर्टिकुलर हॅूं. काफी समय बाद उसकी जगह पर नेहा आयी, फिर विदिशा आयी. शिल्पा की जगह पर शुभांगी आयी. शुभांगी आठ वर्ष से हमारे साथ बहुत अच्छा काम कर रही है. कोविड के दौरान हमने बबल्स बनाया था, सभी को सेट पर ही रहना होता था. सेट पर सभी के लिए खाना बनता था. सभी के कोविड के रिजल्ट पर हमें ध्यान भी रखना पड़ता था.
किसी नए सीरियल की शुरू आत करने की आपकी प्रक्रिया क्या है?
जब हमारा कोई लेखक कोई कहानी देता है, तब मैं या संजय जी पूरी टीम के साथ मिलकर उस कहानी पर काम करते हैं. उसे बेहतर कैसे बनाया जा सकता है, इस पर विचार विमर्श करते हैं. उसके बाद हम किरदारों के योग्य कलाकारों का चयन करते हैं. हमारे एक सीरियल के लिए कलाकारों का चयन हो चुका था. हीबा हमारे एक सीरियल में काम कर चुकी थी, तो वह उस सीरियल की पारिश्रमिक राशी लेने दफ्तर आयी. मैने उसे देखा तो मुझे लगा कि मेरे नए सीरियल के लिए तो हीबा ज्यादा फिट बैठेगी. हीबा ने बताया कि उसने एक दूसरा सीरियल साइन किया है. तब मैने उस निर्माता से बात कर हीबा को उस सीरियल से मांग कर अपने सीरियल के साथ जोड़ा था. मैने चैनल से बात की. हीबा उस किरदार में इस तरह गुम हुई कि सीरियल सफल हो गया. देखिए, कुछ किरदार इकॉनिक होते है. मसलन- इलायची का किरदार, जिसमें हीबा फिट बैटी. इसी तरह मेरे सभी सीरियलों के किरदार इकॉनिक हैं. फिर चाहे वह चंद्रमुखी चैटाला हो या अंगूरी हो या भाभी जी हो. मेरी राय में सीरियल में किरदार चलते हैं. उसके बाद कहानी.. यह बात मुझे संजय जी व शशांक बाली ने सिखाया. हम कलाकारों का चयन काफी सोचकर करते हैं. सीरियल 'एफ आईआर' के लिए हमें गुजराती लड़की चाहिए थी. पर कविता कौशिक ऑडीशन देने आयी. पता चला कि कविता कौशिक तो हरियाणवी बोलती है. पता चला कि कविता के पिता उस क्षेत्र में इंस्पेक्टर रह चुके थे. हमें कविता का अभिनय पसंद आ गया. तो हमने सीरियल में गुजराती इंस्पेक्टर के किरदार को हरियाणवी में बदलकर कविता कौशिक को साइन कर लिया. सीरियल कितना सफल हुआ, यह कहने की जरुरत नही. शिव पंडित नया था, हमने उसकी प्रतिभा को देखते हुए उसे फ्राड इंस्पेक्टर बना दिया कि पहले वह चोर था,जो यहां आ गया. हम किसी भी किरदार को छोटे कपड़े पहनाने में यकीन नहीं करते. हम आकर्षक मगर क्लासी पोशाक पहनाते हैं. हमारे सीरियल 'फैमिली नंबर वन' में छोटी लड़की थी,तो उसे हम घुटने तक की पोशाक पहनाते थे, मगर शॉर्ट्स नही पहनाया.
पर हर कॉमेडी सीरियल को लंबे समय तक चलाने के लिए किरदार में कुछ न कुछ नए पंच डालने होते हैं, इसका निर्णय आप किसी आब्जर्वेंशन के तहत करते हैं?
बहुत कुछ आब्जर्वेंशन पर ही संभव है. हम जब भी घर से बहर निकलते हैं, या किसी नए इंसान से मिलते हैं,तो हम उसे बारीकी से आब्जर्व करते रहते हैं. सड़क पर घट रही छोटी से छोटी बात पर हमारी नजर रहती है. यह सब हमारी अपनी आदत का हिस्सा बन चुका है और फिर हम उसे किरदारों का हिस्सा बनाते रहते हैं. मसलन कोई शराबी किरदार है. तो हम याद करते है कि उसके बाल किस कदर विखरे होने चाहिए. उसके कपड़े कितने गंदे होने चाहिए. इसके बाद कलाकार का सहयोग भी जरुरी होता है. 'भाबी जी घर पे हैं' के कलाकार आसिफ शेख खुद भी किरदार पर काफी काम करते हैं. कई बार वह खुद कपड़े भी चुनते हैं. मसलन एक एपीसोड में वह मछुआरा बने थे, तो हम उसी तरह के कपड़ों के साथ ही दो बड़ी बड़ी नाव लेकर आए थे. हम सब मिलकर शोध कार्य करते हैं. वह एक एपीसोड में कुश्तीबाज बने थे, तो हमने उनके लिए उसी तरह की पोशाक तैयार करवायी थी. हमारे सीरियलों की ड्रेस डिजायनर को भी काफी रिसर्च करना पड़ता है. बेचारी कई बार डांट भी खाती है.
आपका अपना पसंदीदा सीरियल कौन सा है?
भाबी जी घर पे हैं... मेरा सबसे ज्यादा पसंदीदा सीरियल है. इसमें हर किरदार मजाकिया हैं. पारिवारिक माहौल है. एक भोली है, एक स्मार्ट है. अंगूरी के संवाद तो तकिया कलाम हैं.
आपके हास्य सीरियल देखकर लोग किस तरह की प्रतिक्रियाएं देते हैं?
मैं अस्पताल का नाम नही लेना चाहती, मगर एक अस्पताल तो अपने हर मरीज को हमारा सीरियल देखने की सलाह देता है. एक दिन हमारे घर जॉय मुखेर्जी की पत्नी एक थाली में गणेश जी की मूर्ति के इर्द गिर्द दीपक वगैरह सजाकर मेरे घर आयी. मैं तो उन्हे पहचानती ही नही थी. उसने मुझसे कहा- "मैं अस्पताल में बीमार थी, तब डाक्टर मुझे इंजेक्षन दे रहे थे, जिनकी गर्मी से मेरे मुह में छाले पड़ गए थे. मैं दवा भी नही लेना चाहती थी. मेरी हालत देखकर डाक्टर ने टीवी ओं करके सीरियल 'भाभी जी घर पे है' शुरू कर दिया और मुझसे कहा कि आप यह सीरियल देखिए. मैं जितने दिन अस्पताल में थी, दिन रात यही सीरियल चलता रहता था. मुझे कुछ लोगो ने बताया कि उनके दफ्तर में भी यही सीरियल चलता रहता है. कैंसर पेशंट को भी हम लोग यही सीरियल दिखाते हैं. आप शायद यकीन न करें, मगर हमारे सीरियल "भाबी जी घर पे हैं" के कलाकार बहुत अच्छे हैं, वह कैंसर पैशंट को संदेश भेजते रहते है कि आप लोग जल्दी से ठीक हो जाए और फिर हमारे सीरियल के सेट पर आएं. कई लोग हमारे सीरियल के सेट पर आते हैं. दूसरे सीरियल वालों की तरह हम अपने सेट पर आने वालों से पैसे नहीं लेते. हम तो सभी को लंच के समय बुलाते हैं और उन्हे मुफ्त में कलाकारों के साथ ही खाना भी खिलाते हैं.. लोग सेट पर आते हैं, उसके बाद हमसे कहते हैं कि हम सभी के चेहरे पर ख़ुशी लेकर आते हैं. 'भबाी जी घर पे है' देखकर लोग काफी कुछ कहते हैं. लोगों का मानना है कि उन्हे इस सीरियल को देखकर सकून मिलता है. तनाव से राहत मिलती है. मन प्रसन्न हो जाता है. हमारे कलाकार बीमार लोगों को उनके नाम के साथ संदेश भेजते हैं कि जल्दी से ठीक हो जाइए,फिर हमारे सेट पर आइए.
टीवी पर महिला किरदार काफी अलग नजर आते हैं. अन्य सीरियलों में महिला किरदार तो किचन पोलीटिक्स करती हुई नजर आती हैं. आपने महिला किरदारों को लेकर क्या सोच रखी है?
सीरियलो में मॉडर्न और दकियानूसी हर तरह के महिला किरदार होते हैं. हमारे सीरियल में गोरी मैम वेस्टर्न है तो हम उसे वेस्टर्न आउट फिट देते हैं. पर वह साड़ी भी पहनती है. अंगूरी भोली और घरेलू है, तो उसकी पोशाक उसी तरह से है. लेकिन अंगूरी भाभी के घाघरा चोली बहुत अच्छे होते हैं. कुछ में मॉडर्न डिजाइन भी होती है. देखिए, हम लोगों को हंसाना चाहते हैं. हमारे सभी किरदार आम इंसान ही हैं. हमारे सीरियल में करोड़ों की बात नहीं होती. अंगूरी भाभी की ज्वेलरी भारतीय झुमके आदि होते हैं, जबकि गोरी मैम की ज्वेलरी वेस्टर्न होती है. हीबा को भी हमने सलवार कमीज व दुपट्टा दिया था. हमारा सीरियल "भाबी जी घर पर हैं!" हो अथवा राजन साही का सीरियल "अनुपमा" हो, इनमें महिलाओं को सकारात्मक तरीके से महिमामंडित किया गया है. यहां तक कि अंगूरी भाभी और अनुपमा जैसी साधारण महिलाओं को भी उनके जीवन में पुरुष अपना खुद का कुछ शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. भाबीजी विभिन्न चीजें करने का प्रयास करती हैं चाहे वह नृत्य हो या अभिनय और उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया जाता है. हिमानी शिवपुरी जी तो हमारे साथ काफी समय से काम कर रही हैं. हिमानी जी ने हमारा एक सीरियल "हम आपके हैं कौन" किया था. हिमानी जी बहुत क्यूट हैं, बात करने में भी, गुस्सा होने में भी.
शुरू आती दौर में कुछ सफलता मिलने के बाद अपसेट का दौर भी आया? उससे आपने क्या सीखा?
आपने बात एकदम सही कही. एक दो बहुत बड़ी गड़बड़ी हुई. पर बाद में पता चला कि हम सही हैं और वह गलत हैं. तब मुझे गुस्सा आया कि हमारे साथ ही ऐसा क्यों होता है? हम किसी के साथ गलत व्यवहार नही करते, हम किसी के साथ अन्याय नही करते. हम तो किसी का एक रूपया भी नहीं रोकते. तब संजय जी ने एक दिन मुझसे कहा-'बिनायफर, तू उसका बुरा मत चाहना. वह सारी विष हमारा अच्छा होने के लिए रख. संजय जी की मम्मी एक सरदार हैं. संजय जी भी बहुत ही ज्यादा भावुक,सीधे सादे इंसान है. मुझे संजय जी की बात से अहसास हुआ कि उन्हेने कितनी बड़ी सच्चाई बयां की है. हमें दूसरों का बुरा सोचने की बजाय सिर्फ अपना भला हो यही सोचना चाहिए. हमे किसी को भी सजा देने का हक ही नही है. संजय जी किसी भी इंसान के प्रति अपने मन में कोई गलत भाव नही रखते. मैं बदला नही लेती, पर मैं सामने वाले की गलत बात को भुला नहीं पाती. मैने अपने एकाउंटेंट को भी पकड़ा था. पर फिर संजय जी ने मुझे फोन किया कि उसने गलती मान ली है और रो रहा था, तो मैंने उसे फिर से नौकरी पर रख दिया है. अब संजय जी की जुबान को मैं नही काटती. मैं तो संजय जी को बॉस मानती हॅूं. मेरा मानना है कि आफिस में एक ही बॉस होगा और वह संजय जी हैं. पर मैं माफ करने में यकीन नही रखती. उस एकाउंटेंट ने पांच साल तक बहुत अच्छा काम किया,संजय जी कहते कि देखो कितना अच्छा काम कर रहा है. पर पांच साल बाद उसने ऐसी चपट लगायी कि अब क्या कहें. यदि किसी निर्माता ने मुझे बताया कि फलां इंसान ने उन्हे बहुत सताया,तो मैं उस इंसान से दूरी बनाकर रखती हॅूं. अगर उसने मेरे मित्र को सताया, तो वह मुझे भी सता सकता है. देखिए, तकनीशियन कभी किसी निर्माता को नहीं परेशान करता. यह कलाकार ही निर्माता व निर्देशक को सताते हैं. हर कलाकार को समझना चाहिए कि असली हीरो स्क्रिप्ट व स्क्रिप्ट राइटर होता है. मेरे लेखक सौ प्रतिशत न्याय करते हैं. पर यह टीम वर्क होता है. अकेले कलाकार या अकेले स्क्रिप्ट राइटर कुछ नही कर सकता. जब दोनों मिलकर प्रयास करते हैं. तभी एक अच्छा सीरियल या फिल्म बन पाती है. सीरियल हिट होते ही कलाकार सोचता है कि अब तो वह सीरियल का चेहरा हो गया है. अब उसे इस सीरियल से हटाया नही जा सकता. इसलिए वह अपनी कीमत तीन गुना बढ़ा देता है. यह तरीका सही नही है. राजन साही ने बहुत अच्छा काम किया. राजन सही ने तुरंत उस कलाकार को हटाकर उसी किरदार के लिए दूसरे कलाकार को शामिल कर लिया. मजेदार बात कि सीरियल की टीआरपी भी नही गिरी. हमने भी अपने दो सीरियल में यही कदम उठाया था, मेरे सीरियल की टीआरपी तो कलाकार के बदलने के बाद बढ़ गयी थी. अब मेरे सीरियल 'भाबी जी घर पे है' को लेकर लोग कहते हैं कि 'भाभीजी' सीरियल चला रही है, तो ऐसा नही है. सीरियल की सफलता में लेखक, निर्देशक व सभी कलाकारों का समान रूप से योगदान है. अगर 'एंड टीवी' चैनल ने सीरियल को टेलीकास्ट करने के लिए नही लिया होता, तो शायद वह सीरियल मेरे घर पर पड़ा होता. तो चैनल ने अपने प्लेटफार्म के लिए मेरे सीरियल को लिया, उनके प्लेटफार्म के दर्शकों ने मेरे सीरियल को देखा, तब सीरियल की लोकप्रियता बढ़ती गयी. मैने चैनल से कहा कि देखो मैंने अच्छे दर्शक लाकर दिए, पर हम यह नही भूल सकते कि चैनल ने हमें अच्छा काम करने का अवसर दिया. चैनल व हम एक परिवार ही हैं.
आपको कुछ लोगो ने काफी चोट पहुंचाई थी?
हम एक समय कई सीरियल एक साथ बना रहे थे. उस वक्त हमारा एकाउंटेंट बहुत बड़ी धनराशी लेकर भाग गया. फिर भी हमने सभी को समय पर पैसे चुकाए थे.
सुना है आपके साथ अभिनेता दीपेश भान भी काम करता था, जिसकी अचानक मौत हो जाने पर उसके परिवार की भी आप लोगों ने मदद की थी?
हाँ! दीपेश भान अपने घर के सामने क्रिकेट खेल रहा था, अचानक वह गिर पड़ा, उसके दोस्तो ने उठाया तो पता चला कि उसे ब्रेन हैमरेज हुआ था. अस्पताल उसके घर से चार मिनट की दूरी पर था, पर वह बच नही पाया. वह इतना अच्छा था कि मैं हमेशा सोचती थी कि मेरे बच्चे उसके जैसे हों. वह तो धरती पर इश्वर का भेजा हुआ फ़रिश्ता था. उसने घर के लिए चालिस लाख रूपए का कर्ज ले रखा था. कार व अन्य कुछ दूसरी चीजें भी कर्ज पर ले रखी थी. दीपेश की मौत के बाद हमारी युनिट के सभी लोगो ने मिलकर उसका सारा कर्जा चुकवा दिया. सौम्या टंडन ने 'कीटो' पर क्राउड फंडिंग भी की. उसकी पत्नी बहुत कम उम्र की है. छोटा बच्चा भी है. हर किसी ने उसकी मदद की. हमारे आफिस से भी मदद की गयी. हम सभी को ख़ुशी है कि दीपेश की पत्नी अब बिना कर्ज वाले घर में रह रही है. हमारे कलाकार, तकनीशियन सभी ने इस नेक काम के लिए बिना मांगे पैसे दिए. तभी तो मैं अपने सेट को 'वर्किंग फैमिली' का नाम देती हॅूं.
सीरियल निर्माताओ के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा?
जी नही. .सभी निर्माता बहुत अच्छे हैं. जब पुलवामा कांड हुआ,तो संजय जी ने कहा कि पुलवामा के शहीदों के लिए कुछ किया जाना चाहिए. तो महाराष्ट् से जो दो शहीद हुए थे, उनकी विधवा को हमने घर पर बुलाया. मिसेस गुहा भी आयी. हमने उन दो विधवाओ और उनके बच्चों के नाम पर एक एक लाख रूपए फिक्स्ड डिपोजीट करके दिए. हम उन्हे देने के लिए काफी समान लेकर आए थे, जो कि इनोवा में भी नही आए थे. हमने कोई शोरशराबा नही किया था. सब कुछ घर के अंदर ही किया था. उन सभी को हमने खाना भी खिलाया था. राजन साही, संजय भट्ट, श्याम आशीष, अभिमन्यू ,सिद्धार्थ कुमार तिवारी, सिद्धार्थ पी मल्होत्रा यह सभी निर्माता बहुत अच्छे हैं. यह सभी अच्छा काम करने में और लोगों की मदद करने में यकीन करते हैं.
टीवी इंडस्ट्री में आपके सबसे अच्छे दोस्त कौन हैं?
टीवी इंडस्ट्री में मेरे सबसे ज्यादा अच्छे दोस्त तो उम्दा लेखक व निर्देशक ही हैं. मसलन-सुखवंत ढढ्ढा जी,लेख टंडन जी, ब्रज कात्याल जी, राज कुमार बेदी,राजन वागधरे आदि... राज कुमार बेदी तो मेरे काफी प्रिय मित्र थे. मुझे इन सभी से काफी कुछ सीखने को मिलौ राजन वागधरे तो टीवी इंडस्ट्री के पिलर हैं. वह दिल के बहुत अच्छे इसान हैं. उन्होने 'यस बॉस', 'श्रीमान श्रीमती' सहित कई सफलतम सीरियल निर्देशित किए हैं. मैं उनका बहुत आदर करती हॅूं. संजय कोहली जी तो कॉमेडी के मास्टर हैं. मेरा दावा है कि उनके जैसा कॉमेडी में माहिर कोई नही है. वह अपनी टीम के साथ एक परिवार की तरह रहते व काम करते हैं. संजय जी अपनी टीम के साथ हंसते खेलते हुए एपीसोड दर एपीसोड बनाते रहते हैं. अन्यथा लगातार दस वर्ष तक हर एपीसोड अलग अलग बनाना आसान नही हो सकता. मैं अपने अनुभवो के आधार पर कह सकती हॅूं कि सामाजिक या ड्रामा वाले सीरियल के चार एपीसोड कॉमेडी सीरियल के एक एपीसोड के बराबर होते हैं. सामाजिक या ड्रामा सीरियल के एपीसोड में हम थोड़ा थ्रिल पैदा कर सकते हैं, किरदार के पैर धीरे धीरे आगे बढ़े, फिर हमने उसका चेहरा दिखाया. दूसरे लेाग इधर उार देख रहे हैं... लेकिन यही तरीका यदि हमने कॉमेडी सीरियल में अपनाया तो, लोग मुह बनाकर सीरियल देखना बंद कर देंगें. कॉमेडी सीरियल में हर दस सेकंड के बाद एक लाफ्टर होना ही चाहिए. पंच लाइन होना चाहिए. इसका मतलब यह नही कि सामाजिक या ड्रामा सीरियल बनाना आसान है, इस तरह के सीरियलों की प्रतिस्पर्धा तो फिल्मों से होती है. कभी करीना कपूर तो कभी कटरीना, तो कभी दीपिका पादुकोण या शाहरुख खान या सलमान खान की फिल्म रिलीज होती है. पर उस वक्त भी हमें दर्शक को बांधकर रखना ही होता है. हमारे सभी सीरियल बहुत मजेदार होते हैं.
पिछले 32 वर्शों के दौरान टीवी इंडस्ट्री में जो बदलाव आए हैं, उन्हे किस तरह से देखती हैं?
जब हम टीवी से जुड़े तो सोनी टीवी हम निर्माताओ को लेकर अमरीका गया था. वहां पर हमने देखा था कि लाइट, कैमरा, सब कुछ इलेक्ट्निक्स से चल रहा था. वहां पर हर सीरियल के एपीसोड करोड़ों रूपए में बनते हैं और हमारे यहां हर एपीसोड चंद लाख रूपए में बनता है. शूटिंग के दौरान टाली नही है तो नीचे से पट्टा लगा दो और पीछे से दो आदमी धक्का मार रहे हैं, इस तरह से हम शूटिंग करते हैं. उपर बेचारा लाइट मैन चल रहा है. लेकिन पिछले 32 वर्शों में टीवी इंडस्ट्री में बदलाव यह आया कि अब हमारे पास भी बेहतरीन उपकरण आ गए हैं. पर बहुत ज्यादा बदलाव नही आया है. समय के साथ लेखकों के नजरिए में बदलाव आया है. टीवी में महिलाएं हीरो हैं और फिल्मों में पुरूष हीरो हैं. लेकिन सीरियल 'भाबी जी घर पे हैं' में हीरो और हीरोईन सभी के किरदार एक समान हैं. अब सीरियल के सेट बड़े बनने लगे हैं. अब सेट काफी रियालिस्टिक बनने लगे हैं. सीरियल के प्रजेंटेशन में बदलाव आया है. बदले हुए वक्त में अब हमें फिल्मों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. पहले हमारे सीरियल के सारे अधिकार हमारे पास होते थे, पर अब सारे अधिकार चैनल के पास होते हैं. हम तो सिर्फ उन्हे बनाकर देते रहते हैं. अब तो सीरियल, के किरदार व सब्जेक्ट हर चीज का अधिकार चैनल के पास है. पर ठीक है. कोई किसी पर दबाव नही डाल रहा है. जिसे इस शर्त पर काम करना हो वह करे, जिसे न करना हो, न करे.
लेकिन चैनल के पास सारे अधिकार चले जाने से किएटिब इंसान को तो भारी नुकसान है?
मैं इस बात से इंकार नहीं करती. क्रिएटिब इंसान को 'वन टाइम' पेमेंट मिल जाता है. सारे अधिकार चैनल के पास होते हैं. चैनल उसे कई जगह अलग अलग अंदाज में उपयोग करता रहता है. जबकि फिल्मों में यह स्थिति नही है. आप देख लीजिए, गायक, गीतकार,संगीतकार इन सभी को शुरू आत में एकमुष्त राशी मिलने के बाद भी जब भी कहीं उनका गाना बजता है, तो हर बार उनका गाना बजने पर रॉयल्टी के नाम पर कुछ धन राशी मिलती है. जब सीरियल असफल होता है, तो चैनल व निर्माता दोनों का नुकसान होता है. पर अंतिम सत्य यही है कि किसी ने भी सीरियल निर्माता पर दबाव नहीं डाला, वह चाहे तो चैनल की बात न माने और काम न करे. हर चैनल में एक ही नियम है और सभी ख़ुशी-ख़ुशी काम कर रहे हैं.. देखिए, एक क्रिएटिब इंसान के दर्द की बात करू, तो इसका कोई इलाज नही है. कई बार मेरे कई रजिस्टर्ड कांसेप्ट नाम के साथ चुराए गए. यहाँ तक कि अगर हमने मारवाड़ी परिवेश का कांसेप्ट बनाया था, चुराने वाले ने उसे मारवाड़ी परिवेश का बनाया. ऐसे वक्त में कई बार हम सोचते हैं कि अगर हम सभी क्रिएटिब इंसान हैं, तो चोरी करने की बजाय ज्वंवइंट क्रिएटिब काम कर सकते हैं. मेरा बस चले तो मैं आफिस में बैठे रहकर नए नए कांसेप्ट क्रिएट करती रहॅूं.
टीवी इंडस्ट्री में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि पहले सीरियल की शुरू आत में बैकग्राउंड में टाइटल सांग चलता था,परदे पर सीरियल से जुड़ी टीम व कलाकारों के नाम आया करते थे, पर अब ऐसा नही होता. किसी भी सीरियल में अभिनय कर रहे कलाकारों के नाम नही दिए जाते... इसे आप कितना सही या गलत मानती हैं?
ऐसा एक बड़ी समस्या से निपटने के लिए किया गया. पहले एक सीरियल खत्म होने पर उसके तकनीशियन के नाम आते थे, उसके बाद शुरू हुए सीरियल में कलाकारों के नाम आते थे, तो इस दौरान जो समय बीतता था, उस समय में दर्शक दूसरे चैनल की ओर मुड़ जाता था. तो दर्शकों को बांधे रखने के लिए यह बदलाव किया गया. यह रिसर्च से पता चला था और जब यह बदलाव हुआ तो इसका फायदा हर सीरियल को मिला भी. सीरियल निर्माता की हैसियत से हम चाहते हैं कि हमारा सीरियल ज्यादा से ज्यादा दर्शक देखें और चैनल भी चाहता है कि उनके चैनल के साथ ज्यादा दर्शक जुड़े रहे. दर्शक ज्यादा होंगे, तभी तो विज्ञापन से रकम ज्यादा मिलेगी. जो सभी के लिए फायदेमंद है, वही बदलाव किया गया.
आपने ओटीटी के लिए अलग से फिल्म या वेब सीरीज बनाने की बात नही सोची?
टीवी पर ही हमारे पास इतना काम है कि हम उस दिशा में सोच नही पाए. हमारे पास 'एंड टीवी' पर दो अति लोकप्रिय सीरियल होने के बावजूद हम 'जी5' पर नही गए. अब मेरा बेटा विहान अमरीका से फिल्म निर्माण व अभिनय की ट्रेनिंग लेकर वापस लौटा है. अब वह संजय जी के साथ 'ओटीटी' व फिल्म के लिए कुछ काम कर रहा है. तो अब हम ओटीटी के लिए कई वेब सीरीज और फिल्मों की योजना पर काम कर रहे हैं.
आप का कहना है कि आफिस में 'बॉस' एक ही होना चाहिए. मगर क्रिएटिब क्षेत्र में बॉस होगा तो क्रिएटीविटी का नुकसान होता है?
जी हाँ! क्रिएटिब क्षेत्र में बॉस नही होता है. पर मैने आपसे कहा कि हमरे यहां बॉस संजय जी है. उसकी वजहें है. मैं कॉमेडी अच्छा नही करती. संजय जी अपनी टीम के साथ कॉमेडी सीरियल संभालते हैं और मुझे सामाजिक सीरियलों की अच्छी समझ है, तो मैं सामाजिक सीरियल संभालती हॅूं. कॉन्ट्रैक्ट सब मैं करती हूँ. तकनीकी टीम का चयन वह करते हैं. हमने अपने काम विभाजित कर रखे हैं, जरुरत पडने पर हम एक दूसरे से पूछते हैं. हम एक दूसरे की गलतियों की तरफ भी इशारा करते हैं. पर यदि सजय जी ने मुझे बताया कि वास्तव में क्या सही है, तो मैं मान लेती हॅूं. हमारे बीच झगड़े नही होते. लेकिन रचनात्मकता से इतर आफिस संभालने के लिए तो एक ही 'बॉस' चाहिए और वह बॉस 'संजय जी' ही हैं.
32 वर्शों में 32 से अधिक सीरियलों का निर्माण कर आपने कई अवार्ड हासिल किए हैं किस सीरियल के किस अवार्ड ने आपको उत्साहित किया?
मुझे हर अवार्ड ने आगे बढ़ने और नए नए विषयों पर उत्कृष्ट सीरियल बनाने के लिए प्रेरित किया. हर अवार्ड ने मुझे जिम्मेदार बनाया. सबसे ज्यादा अवार्ड तो हमें 'भाबी जी घर पे हैं' के लिए मिले हैं.
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