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Rana Daggubati ने साझा किए अपने अनुभव- पैन इंडिया सिनेमा, Venkatesh के साथ ऑनस्क्रीन नफरत और दर्शकों की बदलती पसंद पर की बात

साउथ इन्डियन एक्टर राणा दग्गुबाती (Ramanaidu Daggubat), जिन्होंने प्रभास की लोकप्रिय फिल्म  ‘बाहुबली’ में  ‘भल्लालदेव’  का ग्रे किरदार निभाकर लोकप्रियता हासिल की थी...

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Rana Daggubati shares his experiences on Pan India cinema
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साउथ इन्डियन एक्टर राणा दग्गुबाती (Ramanaidu Daggubat), जिन्होंने प्रभास की लोकप्रिय फिल्म ‘बाहुबली’ में ‘भल्लालदेव’ का ग्रे किरदार निभाकर लोकप्रियता हासिल की थी; को हाल ही में वेब सीरीज़ ‘राणा नायडू 2’ (Rana Naidu 2) में देखा गया. सीरीज में उनका काम दर्शकों को काफी पसंद आया. कुछ दिनों पहले उन्होंने मीडिया में एक इंटरव्यू दिया, जहाँ उन्होंने ‘राणा नायडू 2’, अपने किरदार चुनने, पैन-इंडिया फिल्मों, 3 निर्देशकों के साथ काम करने और थिएटर तक दर्शकों की कम पहुँच पर खुलकर बात कीं, क्या कहा उन्होंने आइये जानते हैं...

Rana Naidu Season 2

हर प्रोजेक्ट एक नया अनुभव होता है, कुछ नया सिखाता है. इस सीज़न ने आपको खुद के बारे में क्या नया महसूस कराया?

‘राणा नायडू’ शायद मेरे अब तक के सबसे ट्रॉमेटिक किरदारों में से एक है. एक ऐसा इंसान जो बचपन में शोषण झेल चुका है पिता अनुपस्थित रहा, मां और बहन को खो चुका है. लेकिन वह इन सबके बावजूद एक मजबूत चेहरे के साथ जी रहा है. यह किरदार गहराई और दर्द लिए हुए है. तो कई परतें हैं, जो आपको एक किरदार को जीते हुए समझ आती हैं जिससे आप काफी कुछ सीखते हैं.

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फिल्में चुनने के मामले में आप हमेशा साहसी रहे हैं — ‘लीडर’ जैसी पॉलिटिकल फिल्म से डेब्यू, बेबी में सशक्त लेकिन सपोर्टिंग रोल, और फिर ‘बाहुबली’ जैसा ग्रे कैरेक्टर. किरदार चुनते वक्त आपकी सोच क्या होती है? क्या आप स्क्रिप्ट देखते हैं, कैरेक्टर या सिर्फ चैलेंज?

फिल्मों में आने के साथ से ही मेरी एक ही सोच रही है कि अगर एक दर्शक के तौर पर वो फिल्म देखना चाहूंगा जो पहले नहीं देखी हो, तो करैक्टर भी मैं वो करना चाहूंगा जो फिल्मों में पहले से ना हों. आपने मेरी पहली फिल्म ‘लीडर’ की बात की, उस समय बिना गाने और फाइट सीन के फिल्म करना सभी के लिए अजीब था. किसी ने ऐसा किया नहीं था, मगर वो फिल्म पूरी मेनस्ट्रीम बन गई. मेरे करियर में ऐसी बहुत -सी फिल्में थीं, जो कोई और करना नहीं चाहता था. मुझे भी सलाह दी गई कि वे फिल्में ना करूं, लेकिन मैंने किया और वे बेहद सफल हुईं. इस प्रफेशन का यही मजा है कि एक एक्टर होने के नाते आप किसी और की जिंदगी जीते हैं और उस जिंदगी को चुनने की ताकत ही हमारे पास होती है कि तो मैं इंट्रेस्टिंग की जिंदगी चुनना पसंद करता हूँ. 

Rana naidu

पिछले कुछ समय से पर्दे पर एंटी-हीरो किरदारों को ग्लैमराइज करने को लेकर काफी चर्चा हो रही है. ऐसे में ‘राणा नायडू’ में आपका किरदार भी एक एंटी-हीरो है — इस बहस को आप कैसे देखते हैं? क्या आप मानते हैं कि ग्रे कैरेक्टर्स को लेकर दर्शकों की सोच बदल रही है?

हम वो दिखा रहे हैं जो असल जिंदगी में होता है. जो समाज में हो रहा होता है, हम उसी को थोड़ा मनोरंजक तरीके से दिखाने की कोशिश करते हैं. फिर, अच्छे-बुरे, सही गलत की परिभाषा हर किसी के लिए अलग होती है, यह उनके बैकग्राउंड पर निर्भर करता है. भले किसी इंसान को वो सही ना लगे, क्योंकि वो उसकी कहानी नहीं है. किसी और की कहानी है और यही सिनेमा का मजा है कि आप अलग-अलग लोगों की कहानी देखते हैं. राणा नायडू जो भी अटपटे काम करता है, वो अपने परिवार के लिए करता है, क्योंकि जब वो छोटा था तो उसके पास वो परिवार नहीं था. माँ गुजर गई थीं और पिता ने कभी ख्याल नहीं रखा, तो परिवार इकलौती चीज है, जिसके लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

Rana dagubati venkatesh

असल जिंदगी में आप वेंकटेश सर के बहुत करीब हैं, लेकिन सीरीज में आपको अपने ही अंकल से नफरत करनी है. क्या ये प्रोफेशनल और पर्सनल बॉन्ड के बीच तालमेल बैठाना कभी मुश्किल हुआ?

एक्साइटमेंट ज्यादा थी कि मैं अपने अंकल के साथ पहली बार काम कर रहा हूँ. आमतौर पर जब आप परिवार के सदस्य के साथ काम करते हैं, तो वही घिसी-पिटी केमिस्ट्री और रिश्ता होता है कि पिता-बेटे का रोल कर रहे हैं. पिता बेटे को बचा रहा है या बेटा पिता को बचा रहा है, लेकिन शो में हमारी इक्वेशन पिता-बेटा होने के बावजूद बहुत अलग है.

Karan Anshuman Suparn Varma Abhay Chopra

तीन निर्देशकों की अलग-अलग स्टाइल्स के साथ काम करना आपके लिए कैसा रहा? इसने आपको एक कलाकार के रूप में कितना प्रभावित किया?

एक एक्टर को एक ही डायरेक्टर गाइड करता है. यहां मेरे पास तीन थे कभी-कभी करण अंशुमान (Karan Anshuman) ने शुरुआत में गाइड किया, फिर सैट पर सुपर्ण वर्मा (Suparn Varma) या अभय चोपड़ा (Abhay Chopra) से फीडबैक मिलता और क्योंकि यह कोई 'हीरो' की कहानी नहीं है यह एक परिवार और उसके मुद्दों की कहानी है. हर शॉट के बाद मैं मॉनिटर की तरफ देखता था और डायरेक्टर की बॉडी लैंग्वेज से समझ जाता था कि वो खुश हैं या नहीं. हर दिन अच्छा नहीं हो सकता यह बात हमने एक-दूसरे को याद दिलाई. लेकिन यही असल टीमवर्क होता है.

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‘बाहुबली’ के बाद से साउथ इंडस्ट्री से जिस तरह की पैन-इंडिया फिल्मों की लहर शुरू हुई है, उसे आप किस नज़र से देखते हैं? क्या ये भारतीय सिनेमा के लिए एक सकारात्मक बदलाव है?

बहुत ही अच्छी बात है. अब जाकर हम एक भारतीय इंडस्ट्री के तौर पर बात कर रहे हैं, क्योंकि कुछ तेलुगु फिल्में यहां अच्छा कर रही हैं, कुछ हिंदी फिल्में वहां अच्छा कर रही हैं, तो एक इंडस्ट्री बनने से हम कुछ ही कदम दूर हैं, वरना अब तक एक भारतीय एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री जैसा हमारे यहां कुछ नहीं था. बड़े से बड़े कन्नड फिल्ममेकर्स को यहां आप नहीं जानते होंगे. कई ऐसी इंडस्ट्री हैं, जो भाषा के स्तर पर बहुत बड़ी हैं, जैसे असमी या उड़िया, मगर उनकी फिल्म इंडस्ट्री बहुत छोटी है, उन्हें भी बढ़ाना चाहिए.

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इन दिनों थिएटर्स में दर्शकों को वापस लाना फिल्म इंडस्ट्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. आपके नजरिए से ऐसा क्यों हो रहा है, और इसमें सुधार के लिए सबसे अहम बदलाव कहां ज़रूरी है — कंटेंट, मार्केटिंग या सिनेमाघरों का अनुभव?

मुझे लगता है कि हमारी इंडस्ट्री में हर कोई मीडिया के लिए बहुत जवाबदेह है. केमिकल इंडस्ट्री में भी देखें तो कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ी हैं, मगर वे मीडिया को जवाब नहीं देते. मुझे लगता है कि जब ज्यादा चर्चा करते हैं तो दिक्कत जितनी होती है, उससे ज्यादा बड़ी लगती है. आज थिएट्रिकल निश्चित तौर पर कम हुआ है, लेकिन पहली बार हम यह भी देख रहे हैं कि फिल्में 1000 करोड़ कमा रही हैं. हमने कभी ऐसा सुना भी नहीं था, लेकिन आज एक नहीं 5 से 6 फिल्मों ने वह आंकड़ा पार किया है. अभी फिल्मों के लिए पहले से कहीं बड़ी ऑडियंस है, पर वे बहुत ज्यादा अलग कॉन्टेंट चाहती हैं तो ये स्किल हमें डेवलप करना है. पश्चिम में देखें, तो अगर प्रॉडक्शन एग्जीक्यूटिव बनना है तो 3 या 4 साल की डिग्री लेनी होगी. लेकिन देश में एक इंडस्टी भी नहीं है. 10 से 12 इंडस्ट्री है. जो अलग राज्यों में हैं, हर राज्य की अपनी जरूरतें हैं, तो हमारी अलग चुनौतियां हैं, जिसे इंडस्ट्री के भीतर सुलझाया जाना चाहिए.

आपको बता दें कि राणा दग्गुबाती की वेब सीरीज ‘राणा नायडू 2’ नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है. इसे करण अंशुमान, अभय चोपड़ा और सुपर्ण वर्मा ने डायरेकट किया है. सीरीज में डीनो मोरिया, अभिषेक बनर्जी, अर्जुन रामपाल और कृति खरबंदा अहम भूमिकाओं में हैं. 

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