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बेटियाँ है अनमोल, परिवार का गर्व और सम्मान, उन्हे सदा सहेज कर, संभाल कर रखना चाहिए, कहा सिनेमा जगत के इन दिग्गजों ने

बेटी घर की शान है, बेटी, घर का गुरूर है. वो लक्ष्मी का रूप है, वो सरस्वती का नूर है. वो घर को रोशन करती है, खुशियों से भर देती है. वो बेटी है, जो हर बंधन से बढ़कर है. "वो बेटी है, जो हर मुश्किल में साथ देती है...

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बेटी घर की शान है, बेटी, घर का गुरूर है. वो लक्ष्मी का रूप है, वो सरस्वती का नूर है. वो घर को रोशन करती है, खुशियों से भर देती है. वो बेटी है, जो हर बंधन से बढ़कर है. "वो बेटी है, जो हर मुश्किल में साथ देती है." "वो बेटी है, जो हर दर्द को सह लेती है, " "वो बेटी है, जो हर सपने को सच कर दिखाती है." "वो बेटी है, जो हर रिश्ते को निभाती है." "वो बेटी है, जो हर घर की शान है."

बेटी के संबंध में यह कविता मन को भिगो जाती है.

कई साल पहले, जब मुझे महान बॉलीवुड अभिनेता सुनील दत्त के साथ साक्षात्कार करने का शानदार अवसर मिला था तब बातो बातों में उन्होने, जीवन में बेटियों के महत्व की बात करते हुए मुंशी प्रेमचंद के अनुसार घर की बेटियों को भोजन में नमक की तरह बताया था, जिनके होने का एहसास तब तक नहीं होता जब तक कि वे पास रहती है लेकिन दूर चली जाने पर जिंदगी फीकी हो जाती है . यह दिल को छू लेने वाली बातचीत थी, जिसने उनके जीवन के कई पहलुओं को छुआ. उनका करियर, उनकी फ़िल्में और सबसे महत्वपूर्ण, उनका परिवार.

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सुनील दत्त एक बेहतरीन अभिनेता तो थे ही, लेकिन सब से पहले वे एक प्यारे पिता भी थे, जो अपने बच्चों की बहुत परवाह करते थे. जब मैंने उनसे उनके बच्चों - उनके बेटे संजय दत्त और उनकी बेटियों प्रिया और नम्रता के बारे में पूछा था, तो उनकी आँखें प्यार और गर्व से चमक उठीं थी. उन्होंने कहा था, "मेरी बेटियाँ मेरी जीवन रेखा हैं." यह स्पष्ट था कि जहाँ वे अपने सभी बच्चों से समान रूप से प्यार करते थे, वहीं उनके दिल में अपनी बेटियों के लिए एक ख़ास जगह थी. उन्होंने इसे खूबसूरती से समझाते हुए कहा, "लड़कियाँ सोने, हीरे, प्लेटिनम की तरह होती हैं. वे अनमोल हैं और उनकी रक्षा और देखभाल की जानी चाहिए." दत्त साहब ने लड़कों की तुलना लोहे से करते हुए कहा, "लोहा मज़बूत होता है और उसे ज़्यादा सुरक्षा की ज़रूरत नहीं होती." हमारी बातचीत जल्द ही एक ऐसे विषय पर आ गई थी, जिसके बारे में कई माता-पिता और बच्चे सोचते हैं - बेटियों को बेटों से ज़्यादा सुरक्षा क्यों दी जाती है, और क्यों लड़कियों को कभी-कभी ऐसा लगता है कि उनके माता-पिता उनकी आज़ादी पर हस्तक्षेप करते हुए उनकी स्वतंत्रता को सीमित कर देते हैं. सुनील दत्त ने इस पर अपने अनुभव और विचार साझा करते हुए कहा, "हमारे समाज में बेटियों को ज़्यादा सुरक्षा दी जाती है. लेकिन क्यों? कोई माता-पिता अपनी बेटियों की आज़ादी छीनना क्यों चाहेंगे? ऐसा वे कभी नहीं चाहते हैं, पर यहां बात स्वतंत्रता हनन की उठती कहाँ से है?"

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सुनील दत्त ने कुछ पल ठहर कर कहा, "एक सरल सी बात है, पर कोई समझना नहीं चाहता. जब हम घर या खानदान की बेश कीमती धरोहर को सहेजना, संभालना चाहते हैं तो तिजोरी को तो घर के सबसे मजबूत हिस्से में बनवाते ही हैं, साथ ही तिजोरी को भी मजबूत मटिरियल से बनवाते हैं. हम सबके लिए बेटियां भी एक अनमोल धरोहर है इसलिए उन्हे सहेजने संभालने के लिए हम पैरेंट्स, उनके इर्द गिर्द ढाल बनाना चाहते हैं ताकि बुरी नज़र वालों से बेटियां बची रहे. और ये ढाल है शालीन कपड़े, और सही समय पर घर लौट आने की हिदायतें. यह उनके लिए सुरक्षा कवच जैसे हैं जबकि लड़कों को कोई विशेष ढाल या सुरक्षा नहीं दी जाती. जिसे लोग उनकी आज़ादी समझते हैं. इसका उद्देश्य बेटियों को तन या मन से कैद करना या उनकी आज़ादी छीनना कतई नहीं है, बल्कि उन्हें हर मुसीबत से बचाना है क्योंकि बेटियां माता पिता के जीवन की सबसे कीमती, सबसे सम्मानीय धरोहर होती हैं."

सुनील दत्त साहब पुत्र और पुत्री के साथ माता पिता के अलग अलग व्यवहार की बात कर रहे थे जिसका मैं सटीक व्याख्या चाहती थी, अतः उनसे पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि पुत्र पुत्री के बीच व्यवहार में यह अंतर उचित है. उन्होंने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, "यह एक मुश्किल संतुलन है. एक पिता के तौर पर, मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटियाँ सुरक्षित रहें. लेकिन मैं यह भी समझता हूँ कि लड़कियाँ आज़ादी से जीना चाहती हैं और अपने जीवन का आनंद लेना चाहती हैं. दुनिया बदल रही है, और मुझे उम्मीद है कि एक दिन बेटियाँ भी बेटों की तरह आज़ादी और सुरक्षा से जी सकेंगी. लेकिन उसके लिए हमें ऐसे समाज की गठन करने की जरूरत है जहां किसी भी घर के बेटे द्वारा किसी भी घरकी बेटी का मान, सम्मान, अस्मिता और शील का हनन ना हो सके. हर पुत्र को विरासत में यह सीख घुट्टी में मिला कर पिलाना चाहिए कि नारी सम्मान सबसे बड़े सम्मानों में से एक है."

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सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय को महिलाओं का सम्मान करना सिखाने के बारे में भी बात की. उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा संजय से कहा है कि महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए. वे मौज-मस्ती की वस्तु नहीं हैं. प्योर प्रेम करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन फिर जिम्मेदारी भी उठाने का जज्बा होना चाहिए. अगर हर लड़का यह सीख ले, तो दुनिया हमारी बेटियों के लिए एक बेहतर जगह बन जाएगी."

बातों बातों में सुनील दत्त साहब ने अपनी दिवंगत पत्नी नरगिस दत्त की एक याद साझा की, जो एक सशक्त महिला और एक प्यारी माँ थीं. उन्होंने कहा, "नरगिस ने हमेशा हमारी बेटियों को मजबूत और स्वतंत्र होने के लिए प्रोत्साहित किया. लेकिन उन्होंने उन्हें सावधान रहना और खुद को महत्व देना भी सिखाया. वह चाहती थीं कि वे आत्मविश्वास से भरी हों, लेकिन सुरक्षित हों, उत्तेजक पोशाक, उत्तेजक बॉडी लैंग्वेज से संभल कर रहे."

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हमने लड़कियों की स्वतंत्रता और सुरक्षा के उपायों पर बात करते हुए उनसे पूछा, "कई लड़कियों को लगता है कि उनके माता-पिता के नियम उन्हें अपना जीवन पूरी तरह से जीने से रोक रहे हैं." सुनील दत्त इस भावना को समझते थे. उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि बेटियों को कभी-कभी लगता है कि उनकी स्वतंत्रता को रोका जा रहा है." लेकिन माता-पिता ऐसा उनकी सुरक्षा और उनके प्रति अगाथ प्रेम के कारण करते हैं. हर माता-पिता के लिए अपनी बेटी की सुरक्षा का सही तरीका खोजना आसान नहीं है. लेकिन बच्चों को डांट कर, पीट कर या उन्हे बंदी बनाकर उन्हे समझाना नहीं चाहिए, वर्ना वे बागी हो जाएंगे. बच्चों की यह नाजुक उम्र होती है. ऐसे में उन्हे सही तरीके से, प्यार से समझाना चाहिए, तो वे क्यों नहीं समझेंगे."

जब मैंने उनसे पूछा कि वे आज की (उस वक्त 2002 का जमाना था ) युवा लड़कियों को क्या सलाह देंगे, तो उन्होंने गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए कहा था, "कभी भी यह मत सोचो कि तुम किसी से कम हो. तुम अनमोल और मजबूत हो. कड़ी मेहनत करो, आत्मविश्वास रखो और हमेशा खुद का सम्मान करो. अगर तुम खुद का सम्मान करोगी तो दुनिया तुम्हारा सम्मान करेगी."

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सुनील दत्त की तरह आमिर खान भी हिंदी सिनेमा जगत के सिर्फ़ एक मशहूर अभिनेता ही नहीं हैं, वे एक ऐसे व्यक्ति भी हैं जो समाज की बहुत परवाह करते हैं. विशेष कर वे नारी सम्मान, गर्ल्स एडुकेशन, महिला सशक्तिकरण और लड़कियों की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे हैं. शुरू से ही वे अपने स्लोगन 'बेटियाँ अनमोल हैं' पर काम कर रहे हैं. कई बार आमिर ने इस बारे में की कि हमारा समाज लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार करता है और इसमें बदलाव की किस तरह ज़रूरत है? उनका एक सवाल कि पुराने जमाने से ही ऐसा क्यों सोचा जाता रहा है, कि वंश बढ़ाने के लिए बेटा ही पैदा होना चाहिए. देश के कई हिस्सों में आज भी यही सोच है कि पैदा हो तो सिर्फ बेटा ही पैदा हो ? भारत के कई ग्रामीण इलाकों में लोग लड़कियों की बजाय लड़के पैदा होने को शुभ मानते हैं. लेकिन आमिर खान कहते हैं, "ये सब इंसानों द्वारा बनाया गया कारण हैं. असल में महिलाएँ ही दुनिया में नया जीवन लाती हैं. महिलाओं के बिना परिवार और यहाँ तक कि मानव जाति भी आगे नहीं बढ़ सकती."

एक पिता के तौर पर आमिर खान अपने निजी अनुभव साझा करते हैं. वे कहते हैं कि उनकी बेटी, इरा उनके जीवन में एक ख़ास खुशी, केयर और सुंदरता लेकर आई है जो उनके बेटे जुनैद से अलग है. दोनों ही उनसे बहुत प्रेम करते हैं और दोनों ही अनोखे हैं और वो भी दोनों को ही समान रूप से प्यार करते है. आमिर ने कहा, "लड़कियों में एक ख़ास तरह की देखभाल करने वाली प्रकृति और ताकत होती है जिसका सच में, जश्न मनाया जाना चाहिए."

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आमिर खान इस बारे में भी अपनी राय प्रस्तुत करते हुए कहा कि कितनी सारी महिलाओं को सिर्फ़ इसलिए छोटा या कम महत्वपूर्ण महसूस कराया जाता है क्योंकि वे लड़कियों को जन्म देती हैं. यह बहुत अनुचित है. आमिर बताते हैं कि जब कोई महिला गर्भवती होती है, तो वह कुछ ऐसा कर रही होती है जो कोई पुरुष नहीं कर सकता. उसके साथ सम्मान से पेश आना चाहिए और उसे खास महसूस कराना चाहिए, न कि उसे बेटी पैदा करने के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए. दरअसल, यह पुरुष का शुक्राणु ही तय करता है कि बच्चा लड़का होगा या लड़की, न कि महिला.

आमिर खान शुरू से ही जन्म से पहले बच्चे के लिंग का पता लगाने के लिए चिकित्सा विज्ञान के इस्तेमाल के खिलाफ रहें हैं. उन्होने कहा, "यह न केवल भारत में अवैध है, बल्कि यह दुनिया में एक नए जीवन का स्वागत करने के आश्चर्य और खुशी को भी छीन लेता है." आमिर को वह खुशी याद है जो उन्हें तब मिली थी जब उन्होंने पहली बार सुना था कि उन्हे बेटी हुई है. उन्हे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनका बच्चा लड़का है या लड़की.

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कन्या भ्रूण हत्या, जिसका मतलब है कि जन्म से पहले एक बच्ची को मार देना, भारत में एक बड़ी समस्या रही है, (हालांकि अब ऐसा खुले रूप से नहीं होता है). आमिर खान कहते हैं कि इसे हर हाल में, हर रूप में रोकना चाहिए. वह सभी से उन माता-पिता का सम्मान करने और उनसे प्यार करने के लिए कहते हैं जिनकी बेटियाँ हैं. आमिर ने कहा था, "समाज उन पुरानी परंपराओं को पीछे छोड़ दे जो लड़कियों को कम महत्वपूर्ण महसूस कराती हैं."

इसके लिए आमिर ने एक सरल उपाय बताया था, "जब भी हमारे परिवार, पड़ोस या दोस्तों के बीच कोई लड़की पैदा होती है, तो हमें और भी ज़्यादा जश्न मनाना चाहिए. इससे हमारे समाज में गलत सोच को दूर करने में मदद मिलेगी. उन्हें उम्मीद है कि आगे की जनगणनाओं में लड़के और लड़कियों के बीच ज़्यादा समानता होती रहेगी."

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पुराने भारत में दहेज और कन्या भ्रूण हत्या जैसी पुरानी मान्यताओं और प्रथाओं के कारण लड़कियों की संख्या लड़कों से कम होती गई थी. लेकिन आज के नए भारत में, सरकार ने लिंग-चयनात्मक गर्भपात को रोकने के लिए कानून बनाए हैं, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी, बेटे का समान हक कानून, नारी अस्मिता कानून की वजह से आज की नारी पहले से बहुत बेहतर स्थिति में है. लेकिन बदलाव दिल से भी आना चाहिए. सुनील दत्त और आमिर खान जैसे बॉलीवुड लिजेंड्स की मेहनत सहित कई लोग जागरूकता लाने के लिए अपनी आवाज़ उठा रहे हैं.

उम्मीद की कई कहानियाँ और भी हैं. कुछ गाँवों में लोग लड़की के जन्म पर पेड़ लगाते हैं. कुछ परिवार अब बेटी के जन्म पर बेटे जितनी ही खुशी मनाते हैं. लड़कियाँ स्कूल जा रही हैं, डॉक्टर, इंजीनियर और यहाँ तक कि पायलट भी बन रही हैं. वे खेलों में भारत के लिए पदक जीत रही हैं. ये बदलाव दिखाते हैं कि अगर मौका मिले तो बेटियाँ बेटों की तरह चमक सकती हैं.

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