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धर्मेंद्र (Dharmendra) के जाने से मानो हिंदी सिनेमा का एक पूरा युग ही खत्म हो गया—वह सितारा, जिसने न सिर्फ़ पर्दे पर हीरो की परिभाषा बदल दी, बल्कि अपनी सादगी, अपनापन और इंसानी रिश्तों की गर्माहट से करोड़ों दिलों में जगह बनाई, अचानक ईश्वर की इच्छा मानकर इस संसार से विदा हो गए. लेकिन उनकी चमकदार यात्रा की जड़ें जहाँ से फूटीं, वहाँ एक और नाम शिद्दत से याद आता है—अर्जुन हिंगोरानी (Arjun Hingorani).
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पंजाब का एक युवा
साल 1959 में पंजाब के एक छोटे से गांव से मुंबई आया एक नौजवान—धरम सिंह देओल—जेब में बेहद कम पैसे और आंखों में बेहद बड़े सपने लेकर संघर्ष कर रहा था. बिमल रॉय (Bimal Roy) की ‘बंदिनी’ (Bandini) साइन कर तो ली थी, लेकिन शूटिंग शुरू होने में समय था. ऐसे ही दिनों में उनकी मुलाकात नए निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी से हुई, जिन्होंने पहली ही नजर में कह दिया—“तुम हीरो बनोगे.” धर्मेंद्र को लगा था कि शायद पाँच हज़ार रुपये का साइनिंग अमाउंट मिलेगा, लेकिन उन्हें मिले सिर्फ़ 51 रुपये. आम इंसान मायूस हो जाता, पर धर्मेंद्र ने इन 51 रुपयों के साथ ही अपने दोस्तों के साथ जमकर पार्टी की.
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‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से की शुरुआत
1960 में आई अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ (Dil Bhi Tera Hum Bhi Tere) से धर्मेंद्र ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भले न चली हो, लेकिन उनकी मासूमियत और गाना “रात की तन्हाइयों में न बुलाना…” लोगों के दिलों में उतर गया. यहीं से दोनों के बीच वह रिश्ता शुरू हुआ जिसने धर्मेंद्र के करियर को नई दिशा दी. लगभग दस साल के अंतराल के बाद 1970 में उनकी फिल्म कब? क्यों? और कहाँ? रिलीज़ हुई जिसने सुपरहिट बनकर उनकी जोड़ी को फिर से स्थापित कर दिया. उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि धर्मेंद्र मजाक में कई बार उन्हें “कान का कच्चा” कहते थे और अर्जुन भी बुरा नहीं मानते थे.
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धर्मेंद्र–हिंगोरानी: हिट फिल्मों की लंबी फेहरिस्त
धर्मेंद्र और अर्जुन हिंगोरानी ने मिलकर ‘कहानी किस्मत की’, ‘खेल खिलाड़ी का’, ‘कातिलों के कातिल’ और ‘कौन करे कुर्बानी’ जैसी कई सफल फिल्में दीं. उनकी दोस्ती सिर्फ़ काम तक सीमित नहीं थी—जब धर्मेंद्र ने Sunny Super Sound स्टूडियो शुरू किया, तो सबसे पहली बुकिंग अर्जुन हिंगोरानी ने करवाई. धर्मेंद्र के प्रति हिंगोरानी की यह आत्मीयता उनकी सालों पुरानी गहरी दोस्ती का सबूत थी.
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साधना-अनीता राज सहित कई सितारों को किया लॉन्च
हिंगोरानी ने न केवल धर्मेंद्र, बल्कि साधना को भी ‘अबाना’ (Abana) से लॉन्च किया, उनकी भतीजी अनीता राज (Anita Raj) परिवार का हिस्सा बनीं, बेटे अमित हिंगोरानी फिल्मों से जुड़े और बेटी करिश्मा कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर बन गईं. 2005 में उन्होंने ‘How to Be Happy and Realize Your Dreams’ जैसी प्रेरणादायक किताब भी लिखी.
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दोस्त की मौत पर हुए भावुक
जीवन के आखिरी सालों में धर्मेंद्र के दोस्त अर्जुन हिंगोरानी वृंदावन में बस गए थे, जहाँ वे पूरी तरह कृष्ण-भक्ति में लीन हो चुके थे. अपने दोस्त के निधन पर धर्मेंद्र ने बेहद भावुक ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा था- “जब मैं मुंबई में बिल्कुल अकेला था… अजनबी था… उस समय जिस शख़्स ने मेरे कंधे पर हाथ रखा था, वो आज चला गया। दुख बहुत है…”
बात धरम जी ने बताया था कि जब उन्हें हिंगोरानी के निधन की खबर मिली, तो ऐसा लगा जैसे दिल भीतर से टूट गया हो. बरसों पुराने वे सभी पल—संघर्ष के दिन, शुरुआती उम्मीदें, पहला भरोसा और पहला सहारा—सब एक ही क्षण में आँखों के सामने तैर गए थे.
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51 रुपये से शुरू हुई यह यात्रा 65 साल की अमर दोस्ती में बदल गई. धर्मेंद्र और अर्जुन हिंगोरानी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जिस संघर्षरत युवक को मौका दिया, वही युवक आगे चलकर देश का प्रिय सुपरस्टार बना था. उनकी यह दोस्ती, भरोसा और मानवीय रिश्ता—फिल्मी दुनिया में हमेशा एक मिसाल के रूप में याद किया जाएगा.
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FAQ
Q1. धर्मेंद्र के निधन से हिंदी सिनेमा पर क्या असर पड़ा?
A: उनके जाने से हिंदी सिनेमा का एक युग खत्म हो गया और उनके योगदान की यादें अमिट रह गईं।
Q2. अर्जुन हिंगोरानी का धर्मेंद्र की यात्रा में क्या योगदान था?
A: अर्जुन हिंगोरानी ने धर्मेंद्र के करियर की शुरुआत और उनके सफ़र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उनकी यात्रा और चमकदार बनी।
Q3. धर्मेंद्र और अर्जुन हिंगोरानी का रिश्ता कैसा था?
A: दोनों का रिश्ता पेशेवर और गहरी सिनेमा साझेदारी पर आधारित था, जिसमें विश्वास और सम्मान की भावना थी।
Q4. धर्मेंद्र की चमकदार यात्रा का महत्व क्या है?
A: उनकी यात्रा ने भारतीय सिनेमा में एक नई पहचान बनाई और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।
Q5. अर्जुन हिंगोरानी को क्यों याद किया जाता है?
A: अर्जुन हिंगोरानी को उनके योगदान और धर्मेंद्र की सफलता में उनके अहम रोल के कारण याद किया जाता है।
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