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एंटरटेनमेंट:बॉलीवुड की प्रतिष्ठित लेखन जोड़ी सलीम-जावेद का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है उन्होंने न सिर्फ हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दीं, बल्कि लेखकों को उनका उचित दर्जा दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इस लेखन जोड़ी के संघर्ष और उनके आत्म-सम्मान की एक प्रेरणादायक कहानी फिल्म 'जंजीर' से जुड़ी हुई है, जिसने बॉलीवुड में लेखकों की पहचान को लेकर एक नई दिशा तय की,1973 में रिलीज़ हुई फिल्म 'जंजीर' बॉलीवुड के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई, यह फिल्म न केवल अमिताभ बच्चन के करियर के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुई, बल्कि सलीम-जावेद की जोड़ी ने भी इस फिल्म से खुद को एक मजबूत और प्रभावशाली लेखक जोड़ी के रूप में स्थापित किया हालांकि, फिल्म के पोस्टरों में उनकी पहचान की उपेक्षा की जा रही थी सलीम-जावेद ने इस बात को गंभीरता से लिया और यह तय किया कि उनका नाम पोस्टरों पर जरूर लिखा जाएगा
नहीं मिलती थी अहमियत
जब 'जंजीर' के पोस्टर तैयार हुए, तो सलीम-जावेद ने देखा कि फिल्म के पोस्टरों में कलाकारों, निर्देशक और प्रोड्यूसर के नाम तो बड़े अक्षरों में लिखे गए थे, लेकिन लेखक की कोई पहचान नहीं थी यह उस दौर की बात है, जब बॉलीवुड में लेखकों को उतनी अहमियत नहीं दी जाती थी जितनी वे डिजर्व करते थे सलीम-जावेद ने इस स्थिति को बदलने की ठानी और इस ओर कदम उठाने का फैसला किया,उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के एक पेंटर को हायर किया, जिसका काम सिर्फ इतना था कि वह फिल्म 'जंजीर' के पोस्टरों पर सलीम-जावेद का नाम जोड़ दे यह कदम उस समय के लिए बेहद क्रांतिकारी था, क्योंकि इससे पहले किसी लेखक ने अपने नाम को लेकर इस तरह की मांग नहीं की थी इस फैसले पर जब लोगों ने सवाल उठाए, तो सलीम-जावेद का जवाब साफ था: "यही तरीका रहेगा" उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर फिल्म को उनकी कहानी से पहचान मिली है, तो पोस्टरों पर उनका नाम भी होना चाहिए
मिसाल कायम की
यह घटना सिर्फ सलीम-जावेद की व्यक्तिगत लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह बॉलीवुड के लेखकों के लिए सम्मान और पहचान की लड़ाई थी उन्होंने साबित कर दिया कि लेखक सिर्फ कहानियों के पीछे नहीं रहते, बल्कि उनकी भी उतनी ही अहम भूमिका होती है जितनी किसी अभिनेता या निर्देशक की उनके इस कदम ने बॉलीवुड में लेखकों के प्रति दृष्टिकोण को बदलने में मदद की,सलीम-जावेद की यह लड़ाई सिर्फ 'जंजीर' तक सीमित नहीं रही इसके बाद भी उन्होंने हर फिल्म के पोस्टर पर अपना नाम सुनिश्चित किया यह उनके आत्म-सम्मान और अपनी कला के प्रति समर्पण का प्रतीक था सलीम-जावेद का यह कदम एक ऐसी पहल थी, जिसने आने वाले लेखकों के लिए एक मिसाल कायम की
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