अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊँ...? और, वह बिना सुलझाये ही चली गयी
यह अनुभव दर्शाता है कि जीवन में उलझनें और कठिनाइयाँ अक्सर बिना समाधान के हमारे सामने रहती हैं। कभी-कभी लोग हमें छोड़कर चले जाते हैं, जिससे भावनात्मक रूप से और भी चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है।
किंग्स अपार्टमेंट में, जमीन पर फैली सी एक साधारण सी मैक्सी पहने, ना चेहरे पर मेकअप था ना बाल बंधे थे, न आयी- ब्रो शेप में था, वह एक अस्तव्यस्त सी लड़की से औरत बनी हुई दिखाई दे रही थी। मुझे देखते ही सकुचाई थोड़ी। मेरी साथी पत्रकार छाया मेहता को बोली- "इन्हें साथ लाना था तो बता दिया होता ? ये पत्रकार हैं तुमतो मेरी सहेली हो!" फिर हमारा उनके यहां आना जाना बढ़ता गया था। (Casual girl turned woman at Kings Apartment)
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मेरे जहन में उनका गाया हुआ एक गाना था -"अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊँ (फिल्म उलझन), मैंने कहा- "उलझनों से बाहर निकलिए !" जवाब था-" अरे कहां ! एक से बाहर निकलो दूसरा सामने खड़ा होता है।" कल रात (6 नवम्बर 2025) को जब खबर मिली सुलक्षणा पंडित नहीं रही, मन डोल गया। बीती यादों में बहुत से चित्र तैर से गए। सुलक्षणा... जो बहन- भाई (संध्या, माया, विजेयता, मंधीर, जतिन, ललित) के बारे में सोचती रहती थी ! सुलक्षणा... जो प्यार में (संजीव कुमार से) पूरित नहीं हो पाई थी! सुलक्षणा... जिसके गाने और गायिकाओं के पास चले गए थे! सुलक्षणा... जिसकी एक्टिंग करने की उमर हाथ से मिट्टी की रेत की तरह फिसलती गयी थी! फिर यह गिरावट का दौर थमा ही नहीं था,चलता गया था। बाद की मुलाकातों में वह मानसिक थकावट का बोझ लिए हमारे सामने चाय की प्याली लिए, चुस्कियां लेते एक खोई खोई औरत होती थी। (No makeup natural look description)
किंग्स अपार्टमेंट में एक अनौपचारिक मुलाकात: एक दोस्त के साथ स्वाभाविक और अनछुए पल
बताने के लिए बहुत कुछ है। बताया था सुलक्षणा ने कि जब 13 साल की थी फिल्म 'तकदीर' (1967) के लिए लता जी के साथ डुएट गीत गाई थी - 'सात समुंदर पार से' और किशोर कुमार के साथ 'बेकरार दिल तू गाए जा' (दूर का रही) से नोटिस हुई थी।फिर तो गाना गाने का सिलसिला चलता गया। हर बड़े सिंगर के साथ गाया था। 'अपने जीवन की उलझन को' (उलझन), 'तू ही सागर है तू ही किनारा' (संकल्प), 'बंधी रे काहे प्रीत' ( फिल्म 'संकोच'- जिसके लिए बेस्ट गायिका का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था), 'खाली प्याला उजला दर्पण' (स्पर्श), 'जाना कहाँ है' (चलते चलते), 'मौसम मौसम लवली मौसम' (थोड़ी सी बेवफाई) आदि अनेक गाने हैं जो मिस पंडित के होठों से फूल की तरह झड़ते हुए माइक तक पहुचते थे।
खूसूरती और स्वभाव की सुलक्षणा को पर्दे पर अपने साथ हीरोइन लेने के लिए सितारे खुद निर्माताओं को कहते थे। वह संजीव कुमार के कहे को नहीं टाल पायी थी। 'उलझन' में वह संजीव कुमार के साथ हीरोइन बनी तो खुद भी उलझ गई उनके व्यक्तित्व से, बताया था- "हरि भाई का चार्म मनसे जुड़ गया...भाई वाला भाई मत समझना! सभी गुज्जु 'भाई' ही कहे जाते हैं।" हंसती थी कहकर। 'वक्त की दीवार' तक हरि भाई (संजीव कुमार) से प्यार परवान चढ़ गया था उसका , जो जीवन पर्यंत नहीं उतरा। संजीव कुमार के अलावा ऋषि कपूर के साथ 'राजा', जितेंद्र के साथ 'संकोच', 'अपनापन', 'धरम कांटा', राजेश खन्ना के साथ 'बंडलबाज', विनोद खन्ना के साथ 'हेरा फेरी', शशि कपूर के साथ 'फासी' आदि फिल्मों की वह नायिका रही। (Journalist meeting her friend in Kings Apartment)
फर्स पर बैठकर चाय पीने का दौर उम्र की फिसलन के साथ कम होता गया। रिश्तों में गिरावट, पारिवारिक हादसे, जो देखती थी उसपर एहसास की चादर चढ़ती गयी थी। 'लव स्टोरी' की नायिका छोटी बहन विजयता का स्टारी- विराम लगना- जब कुमार गौरव घर मे आकर बिना हेलो का जवाब दिए सीधे सामने के कमरे में चले जाते थे। फिर संगीतकार आदेश का आना और हमेशा के लिए चले जाना, भाइयों जतिन-ललित की कामयाबी पर खुश होना और फिर एकपर एक यथास्थिति के एहसास के साथ वर्षों बेड रिडेन की अवस्था मे रहना...सब यादें ही तो हैं जो बिना सुलझाए हुए वह चली गयी। यह भी इत्तेफाक है कि सुलु उसी दिन दुनिया से पलायन की, जिस दिन 6 नवम्बर 1985 को उनके सबसे बड़े चाहने वाले हरि भाई गए थे- निःशब्द हृदय की धड़कन रोक कर और कुछ ऐसा ही सुलक्षणा का जाना भी हुआ है। (Natural appearance with unshaped brows)