25 जनवरी 1980 को रिलीज हुई 'Khubsoorat' आज भी अपना जादू जगाती है हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित, निर्मित तथा शानू बनर्जी, गुलजार और अशोक रावत द्वारा लिखित, डी एन मुखर्जी की कहानी पर आधारित फ़िल्म ख़ूबसूरत (1980), अस्सी के दशक... By Sulena Majumdar Arora 28 Nov 2024 in एंटरटेनमेंट New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित, निर्मित तथा शानू बनर्जी, गुलजार और अशोक रावत द्वारा लिखित, डी एन मुखर्जी की कहानी पर आधारित फ़िल्म ख़ूबसूरत (1980), अस्सी के दशक की वो हिंदी कॉमेडी-ड्रामा है जिसे शुद्ध कॉमेडी विथ मॉरल का दर्जा दिया जाता है. यह फ़िल्म रूढ़िवादी सोच, बड़ों द्वारा छोटों को उनके अधिकार, स्वतंत्रता पर सख्ती किए जाने और बात बात पर लगाए गए रोक टोक के परिणाम पर आधारित है. फिल्म की कहानी रेखा द्वारा अभिनीत मंजू दयाल पर केंद्रित है. पुणे शहर में निर्मला गुप्ता (दीना पाठक) अपने पति द्वारका प्रसाद गुप्ता (अशोक कुमार) और चार बेटों इंदर गुप्ता (राकेश रोशन) और चंदर गुप्ता (विजय शर्मा),जगन (रंजीत चौधरी), सुंदर के साथ रहती है, निर्मला देवी बेहद सख्त मिजाज और अनुशासन पसंद स्त्री है. वो अपने बेटों के साथ साथ पति को भी सख्त अनुशासन में बांध कर रखती है और कोई भी अगर टस से मस हो जाए तो महाभारत खड़ा कर देती है. इसलिए पूरा परिवार उनसे डरते हैं और मन ही मन निर्मला देवी से दूर रहना ही पसंद करते हैं जबकि निर्मला देवी को ऐसा लगता है कि वह जो कुछ भी सख्ती कर रही है वह अपने परिवार के भलाई के लिए ही कर रही है. निर्मला देवी अपने एक बेटे की शादी मुंबई की लड़की अंजू दयाल (आराधना) से कर देती है. अब अंजू भी इस घर की सख्ती में कैद हो जाती है. एक दिन अंजू की छोटी बहन मंजू दयाल (रेखा) अपनी दीदी के घर कुछ दिनों के लिए रहने आती है और अपनी मस्ती भरी, बेबाकी, बिंदास, खिलनदड़ स्वभाव और अनुशासन हीन जिंदगी से सबको मुग्ध कर लेती है जो निर्मला देवी को बिल्कुल पसंद नहीं आती और वह चाहती है की मंजू भी अनुशासन पालन करें. उधर इंदर गुप्ता और मंजू में प्रेम पनपने लगता है. एक दिन जब निर्मला देवी घर पर नहीं होती है तो मंजू उसकी नकल करते हुए एक नाटक प्रस्तुत करके सबको बताती है कि निर्मला देवी कितना सख्त इंसान है और निर्मला का अभिनय करके सबको हंसाती है लेकिन तभी वहां सचमुच निर्मला देवी आ जाती है और उसे यह समझते देर नहीं लगती कि उसकी सख्ती उसके परिवार वालों को बिल्कुल पसंद नहीं है. गुस्से में आकर वह मंजू को घर से निकाल देती है, लेकिन तभी उसके पति द्वारका प्रसाद को हार्ट अटैक आ जाता है. ऐसे में वह मंजू को ही देखना चाहता है और मंजू वापस आकर निर्मला देवी के पति को संभाल लेती है इससे निर्मला देवी को पता चल जाता है कि सचमुच सख्ती और जरूरत से ज्यादा अनुशासन किसी काम का नहीं है और वह भी मंजू की बातों पर राजी हो जाती है. व्यावसायिक दृष्टि से यह 80 के दशक की सबसे हिट फिल्मों में से एक है. इस फिल्म के लिए ऋषिकेश मुखर्जी को फिल्म फेयर अवार्ड फॉर बेस्ट फिल्म मिला था, रेखा को भी फिल्म फेयर अवार्ड फॉर बेस्ट एक्ट्रेस हासिल हुआ था दीना पाठक को फिल्मफेयर अवार्ड फॉर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस नॉमिनेट किया गया था. गुलज़ार के गीतों के साथ आर डी बर्मन द्वारा रचित संगीत में 'सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए एक रिश्ता आया है, ' सारे नियम तोड़ नियम से चलना छोड़ दो', पिया बावरी, कायदा कायदा आखिर फायदा जैसे कई यादगार गाने शामिल हैं. सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए वाला गाना आज भी शादी ब्याह में खूब गया बजाया जाता है. फिल्म में रोमांस को हास्य के साथ खूबसूरती से जोड़ा गया है अपनी रिलीज़ पर,' ख़ूबसूरत' को आलोचकों की भरपूर प्रशंसा और व्यावसायिक सफलता मिली. रेखा के मैजिकल और चुंबकीय प्रदर्शन तथा ऋषिकेश मुखर्जी की उत्कृष्ट स्टोरी टेलिंग क्षमता को देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों में उमड़ पड़े थे.यह हृषिकेश फ़िल्म मुखर्जी की सबसे बड़ी व्यावसायिक फिल्मों में से एक थी. रेखा पूरी फिल्म में दो चोटी में नजर आई, जिसे बाद में उन्होंने हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म झूठी में भी जारी रखा. पहले इस फिल्म का नाम 'नमकीन' रखा गया था. 1980, के इस फिल्म खूबसूरत में जहां दीना पाठक ने निर्मला देवी की भूमिका निभाई थी वहीं इसके रीमेक 2014 वाली फ़िल्म 'खूबसूरत' में निर्मला देवी की भूमिका उसकी बेटी रत्ना पाठक ने निभाई. इस फिल्म में रेखा ने बतौर गायिका डेब्यू किया था. 1979 में जब फिल्म की शूटिंग हुई थी तब रेखा सिर्फ 25 साल की थीं. रेखा जब मात्र 13 साल की थी तभी से वह ऋषिकेश मुखर्जी के घर में आती जाती थी और ऋषिकेश मुखर्जी की फेवरेट थी. ऋषिकेश मुखर्जी उन्हें चीनापन्नू कहकर पुकारते थे तमिल में जिसका अर्थ है नन्ही बिटिया. इस फिल्म के शुरू होने से पहले ही चरित्र अभिनेता डेविड अब्राहम फिल्मों से संन्यास ले चुके थे और कनाडा में बस गये थे. लेकिन वह ऋषिकेश मुखर्जी के बेहद अच्छे दोस्त थे. जब ख़ूबसूरत का निर्माण चल रहा था तब वह छुट्टियों पर भारत में थे और उन्होंने ऋषि दा के कहने पर एक फ्रेंडली भूमिका निभाई. यह दृश्य विशेष रूप से उनके लिए हृषिकेश मुखर्जी द्वारा फ़िल्म में डाला गया था. डेविड ने बाद में दो और फिल्मों में अभिनय किया, जिनकी शूटिंग कनाडा में हुई थी. अंबरीश संगल की 'दूर देश' और हृषिकेश मुखर्जी की 'नामुमकिन', जो डेविड की आखिरी फिल्म भी थी. यह फिल्म तमिल में लक्ष्मी वन्धाचु के नाम से बनी तथा तेलुगु में स्वर्गम के नाम से बनी और मलयालम में वान्नू कांडू कीज़ाड़क्की के नाम से बनी. 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