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Raj Kapoor के 27वें जन्म दिन पर रिलीज़ हुई थी फिल्म आवारा

'आग' की असफलता और 'बरसात' को मिली जबरदस्त सफलता के बाद राज कपूर ने भारतीय अपराध ड्रामा प्रधान फिल्म 'आवारा' बनायी थी, जो कि राज कपूर के 27 वें जन्मदिन यानी कि 14 दिसंबर 1951 को रिलीज हुई थी...

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'आग' की असफलता और 'बरसात' को मिली जबरदस्त सफलता के बाद राज कपूर ने भारतीय अपराध ड्रामा प्रधान फिल्म 'आवारा' बनायी थी, जो कि राज कपूर के 27 वें जन्मदिन यानी कि 14 दिसंबर 1951 को रिलीज हुई थी. ख्वाजा अहमद अब्बास लिखित इस कहानी वाली 'आवारा' को विदेशों में 'द वागाबॉन्ड' के नाम से जाना जाता है. न्याय व्यवस्था पर एक नया दृष्टिकोण पेश करने वाली फिल्म 'आवारा' में राज कपूर के साथ उनके वास्तविक जीवन के पिता पृथ्वीराज कपूर, नरगिस, लीला चिटनिस, शशि कपूर ,दीवान बशेश्वरनाथ कपूर और के.एन.सिंह ने अभिनय किया हैं. इस फिल्म में राज कपूर के सबसे छोटे भाई शशि कपूर ने उनके चरित्र के युवा संस्करण को निभाया है.जबकि पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर इस फिल्म में कैमियो किया है. फिल्म के संगीतकार शंकर जयकिशन व गीतकार शैलेन्द्र है.

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आवारा के गीत अनूठी कहानी

जब राज कपूर ने फिल्म "आवारा" बनाने की योजना बनायी, तब इस फिल्म की कहानी ख्वाजा अहमद अब्बास लिख रहे थे. एक दिन राज कपूर, शैलेन्द्र को लेकर ख्वाजा अहमद अब्बास के घर पहुँच गए, वहां पर जब ख्वाजा अहमद अबास ने फिल्म की कहानी सुनानी शुरू की,तो अचानक बीच में ही शैलेन्द्र गुनगुनाने लगे- "अवारा हॅूं मैं या गर्दिश में आसमान का तारा हॅूं.." अब्बास ने तुरंत राज कपूर से कहा कि 'भाई यह नगीना कहां से ले आए.. इसने तो पूरी कहानी सुने बिना ही गाने का मुखड़ा लिख दिया.. इसाक जिंदगी भर साथ नही छोड़ना.." राज कपूर ने ख्वाजा अहमद अब्बास की बता मानकर आजीवन शैलेन्द्र से संबंध बनाए रखा. यह अलग बात है कि जिस दिन राज कपूर अपना 42वां जन्मदिन मना रहे थे,उसी दिन शैलेन्द्र राज कपूर ही नही इस संसार का साथ छोड़कर चले गए थे.

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सामाजिक सुधार वादी फिल्म

फिल्म 'आवारा' समाजिक सुधार की बात करती है. जी हाॅ! राज कपूर ने इसमें सामाजिक और सुधारवादी विषयों को अपराध, रोमांटिक कॉमेडी और संगीत मेलोड्रामा शैलियों के साथ मिश्रित किया है. कथानक एक गरीब चोर राज (राज कपूर द्वारा अभिनीत), विशेषाधिकार प्राप्त रीता (नरगिस द्वारा अभिनीत), और जज रघुनाथ (पृथ्वीराज कपूर द्वारा अभिनीत) के आपस में जुड़े जीवन पर केंद्रित है, जो इस बात से अनजान है कि राज उसका बेटा है. फिल्म में राज कपूर का 'छोटा आवारा' चरित्र चार्ली चैपलिन का संदर्भ देता है और इसे श्री 420 जैसी अन्य कपूर फिल्मों में और विकसित किया गया था. आवारा को बॉलीवुड के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है.

यह फिल्म दक्षिण एशिया में रातों-रात सनसनी बन गई और इसे सोवियत संघ, पूर्वी एशिया, अफ्रीका, कैरेबियन, मध्य पूर्व और पूर्वी यूरोप में और भी अधिक सफलता मिली. विशेष रूप से शैलेन्द्र के बोल के साथ मुकेश द्वारा गाया गया गीत "आवारा हूं मैं, गर्दिश का मारा हॅूं.." (आई एम अ वागाबॉन्डश), भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ सोवियत संघ, बुल्गारिया, तुर्की, अफगानिस्तान और रोमानिया जैसे देशों में बेहद लोकप्रिय हुआ. इस फ़िल्म को 1953 में कान्स फ़िल्म समारोह में ग्रैंड पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था. बताा जाता हे कि फिल्म 'आवारा' की विदेशों में 200 मिलियन से अधिक टिकटें बिकी थीं. जिनमें से सिर्फ चीन में 100 मिलियन से अधिक और सोवियत संघ में लगभग 100 मिलियन टिकटें शामिल हैं. इतने सारे देशों में अपनी लोकप्रियता के कारण, यह फिल्म अब तक की सबसे सफल फिल्म की उम्मीदवार है और इसे अब तक की सबसे महान फिल्मों में से एक माना जाता है. 'आवारा' को टाइम पत्रिका द्वारा सर्वकालिक 100 महानतम फिल्मों की 20 नई प्रविष्टियों में शामिल किया गया था.

कथानक:

रघुनाथ (पृथ्वीराज कपूर) एक ऐसे अमीर जिला न्यायाधीश हैं, जिनका मानना है कि 'अच्छे लोगों का जन्म अच्छे लोगों से होता है, और अपराधियों का जन्म अपराधियों से होता है. इसी सोच के साथ वह एक अपराधी के बेटे जग्गा (के एन सिंह) को मामूली सबूतों के बावजूद बलात्कार का दोशी ठहराते हैं. बाद में जग्गा जेल से भाग जाता है और बदला लेने के लिए जज की पत्नी लीला (लीला चिटनिस ) का अपहरण कर लेता है. जब जग्गा को पता चलता है कि लीला अभी-अभी गर्भवती हुई है, तो वह अपनी योजना को बदलते हुए लीला को चार दिन बाद छोड़ देता है. लेकिन लोगों को लीला पर व्यभिचार का संदेह है. रघुनाथ भी अपनी पत्नी लीला की इस दलील को खारिज करते हुए कि बच्चा उनका है, उसे अपने घर से बाहर निकाल देते हैं. लीला सड़कों पर राज को जन्म देती है, और वह दोनों गरीबी में रहते हैं. स्कूल में राज (शशि कपूर ) की दोस्ती रीता (नरगिस ) से हुई. जूता साफ करने वाले की नौकरी बनाए रखने की कोशिश के दौरान राज को स्कूल से निकाल दिया जाता है और रीता अपने पिता के साथ दूसरे शहर चली जाती है. जग्गा अपनी भूखी माँ को बचाने के लिए राज को चोरी करने के लिए मनाता है. राज (राज कपूर ) बड़ा होकर एक कुशल अपराधी बन जाता है, जेल के अंदर-बाहर आता-जाता रहता है और जग्गा के गिरोह के लिए काम करता है. इधर लीला सोचती है कि उसका बेटा राज एक व्यापारी है. राज, रीता के जन्मदिन की तस्वीर अपने घर पर रखकर उसे कभी नहीं भूलता. 

एक बैंक डकैती के लिए, जग्गा, राज से एक ऑटोमोबाइल चुराने के लिए कहता है. जब वह कार से बाहर निकल रही एक महिला का पर्स छीन लेता है लेकिन उसे कोई चाभी नहीं मिलती वह किसी भी संदेह को दूर करने के लिए चोर का पीछा करने का नाटक करता है और महिला को पर्स लौटा देता है, जो उसके व्यक्तित्व और स्पष्ट निस्वार्थता से मंत्रमुग्ध हो जाती है. बाद में जब राज सफलतापूर्वक एक कार चुरा लेता है, तो वह पुलिस से बचने के लिए एक हवेली में छिप जाता है जहाँ उसकी मुलाकात उसी महिला से होती है. उसकी जन्मदिन की तस्वीर देखकर राज को पता चलता है कि वह तो उसकी स्कूल की दोस्त रीता है. वह रीता को बताता है कि वह एक चोर है, लेकिन उसके आलंकारिक बयानों से उसे लगता है कि वह एक वित्त पेशेवर है. कानून की पढ़ाई कर रही रीटा अब रघुनाथ की शिष्या है, जिसे तब संदेह होता है जब वह सुनती है कि राज नहीं जानता कि उसके पिता कौन हैं. राज को रीता से प्यार हो जाता है. इस चिंता में कि रीता उसकी चोरी के कारण उसे स्वीकार नहीं करेगी, राज एक कारखाने में काम करना शुरू कर देता है लेकिन जब प्रबंधक को पता चलता है कि वह चोर था, तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है.

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रीता अपने जन्मदिन की पार्टी में राज को भी आमंत्रित करती है. राज ऋण के लिए जग्गा के पास जाता है ताकि वह रीटा के लिए एक उपहार खरीद सके. जग्गा उसके सुधार के प्रयासों का मज़ाक उड़ाता है और उसे और अधिक अपराध करने के लिए कहता है. राज मना कर देता है. लेकिन बाद में सड़क पर वह यह जानते हुए भी कि ह जज रघुनाथ हैं,वह उनसे हार चुरा लेता है. रीता के जन्मदिन पर, जब राज उसे बिना केस का हार देता है और रघुनाथ उसे बिना हार के केस देता है, तो उसे एहसास होता है कि राज वास्तव में एक चोर है. रीता, राज की माँ लीला के पास जाती है. लीला अपनी व राज की जिंदगी की दास्तां बताती है. तब रीटा तय करती है कि राज बुरा नहीं है,लेकिन बुरे प्रभावों और हताश परिवेश के कारण उसे अपराध करने के लिए मजबूर होना पड़ा. राज शर्मिंदा है, फिर भी मानता है कि वह उसके लिए अच्छा नहीं है, लेकिन रीता उसे माफ कर देती है.
राज,रघुनाथ के पास यह पूछने के लिए जाता है कि क्या वह रीता से शादी कर सकता है, लेकिन जज ने उसे मना कर देते हैं.

इस बीच जग्गा और गिरोह बैंक डकैती को अंजाम देते हैं, लेकिन यह गलत हो जाता है और उन्हें पुलिस से भागना पड़ता है. जग्गा, राज के घर में छिप जाता है, जहां लीला उसे पहचान लेती है और वह उस पर हमला कर देता है. राज अंदर आता है और उससे लड़ता है, आत्मरक्षा में जग्गा को मार देता है. जग्गा की मौत के लिए रघुनाथ की ही अदालत में राज पर मुकदमा चलता है. जब लीला अपना प्रत्यक्षदर्शी विवरण देने के लिए अदालत में जाती है, तो वह रघुनाथ को देखती है और उसका पीछा करती है लेकिन एक कार से टकरा जाती है. रीता अस्पताल में लीला से गवाही एकत्र करती है, और बाद में राज को उससे मिलने की अनुमति दी जाती है. लीला, राज को बताती है कि रघुनाथ उसके पिता हैं और अपने बेटे से उसे माफ करने के लिए कहती है. राज केवल उसे और उसकी माँ को कष्ट देने के लिए रघुनाथ पर क्रोधित होता है.

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राज जेल से भाग जाता है और बदला लेने के लिए रघुनाथ को मारने की कोशिश करता है लेकिन रीता उसे रोक देती है. रीता मारपीट के मुकदमे में राज का बचाव करती है, जो पिता-पुत्र के रिश्ते का खुलासा करता है. राज अपने कार्यों का बचाव नहीं करना चाहता है और कहता है कि वह एक बुरा आदमी है. वह अदालत से अनुरोध करता है कि वह उसके बारे में न सोचें, बल्कि उन लाखों अन्य बच्चों के बारे में सोचें जो गरीबी में बड़े होते हैं और अंततः अपराध की ओर मुड़ जाते हैं क्योंकि उच्च समाज को उनकी परवाह नहीं है. जब वह अपने फैसले का इंतजार कर रहा होता है, तब राज से रघुनाथ मुलाकात करते है. और अंततः स्वीकार करते हैं कि राज उसका बेटा है और रोते हुए माफी मांगते हैं. अंत में, राज को फाँसी से बचा लिया गया लेकिन उसके अपराध के लिए तीन साल जेल की सजा सुनाई गई. राज वादा करता है कि रिहा होने के बाद, वह रीता के लिए खुद को सुधार लेगा, जो उसका इंतजार करने का वादा करती है.

तीन घंटे 13 मिनट की फिल्म "आवरा" ने उस दौर में बाक्स आफिस पर लगभग सोलह करोड़ रुपए एकत्र किए थे. राज कपूर को संगीत की भी अच्छी समझ थी,इसी वजह से उन्होने फिल्म "आवारा" में ड्रीम सिक्वेंस वाले गीत "घर आया मेरा परदेसी" के फिल्मांकन में फिल्म के बजट के डेढ़ लाख जितनी रकम यानीकि डेढ़ लाख रूपए इस गाने के फिल्मांकन पर खर्च कर दिए थे,जबकि कई लोगों ने राज कपूर को ऐसा करने से मना किया था. मगर जुनूनी फिल्मकार राज कपूर कब किसकी सुनते. उन्होने अपने आर के स्टूडियो में ही इस गाने को हाथी से प्रेरित छवि के साथ सेट बनाकर इस गाने को फिल्माया था. फिल्म के इस ड्रीम सिक्वेंस को सर्वाधिक पसंद किया गया था.लोग मानते हैं कि इसी वजह से तीन घंटे 13 मिनट की फिल्म "आवारा" ने उस दौर में बाक्स आफिस पर लगभग सोलह करोड़ रुपए एकत्र किए थे. जबकि उस दौर में सोेने का भाव 98 रूपए प्रति तोला था. जबकि आज की तारीख में 24 करेट सोने का भाव लगभग 78 हजार प्रति तोला है.इस हिसाब से इस फिल्म ने तेरह सौ पचास करोड़ से अधिक एकत्र किए

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नारी सशक्तिकरण और शिक्षा

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायपालिका में पर्याप्त महिलाओं की अनुपस्थिति पर अफसोस जताया और तर्क दिया कि कानून स्कूलों में लड़कियों के लिए सीटों का एक महत्वपूर्ण आरक्षण होना चाहिए. जहां कई लोगों ने उनके सुझाव की सराहना की, वहीं आरक्षण के खिलाफ लोगों का मानना था कि महिलाओं को इसे अपने दम पर करना चाहिए. जबकि राज कपूर ने आज से 73 वर्ष पहले ही राज कपूर ने अपने निर्देषन में बनी तथा के ए अब्बास और वी पी साठे द्वारा लिखित फिल्म 'आवारा' में शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की बात की थी.

जी हाॅ! 'आवारा' की शुरूआती दर्शय में रीटा बनी नरगिस पुरुषों के प्रभुत्व वाले कोर्ट रूम में आत्मविश्वास से चलते हुए एक प्रभावशाली प्रवेश करती है. एक वकील का काला लबादा पहनकर, वह अपने बचपन के दोस्त राज का बचाव करती है, जिसने स्कूल से निकाले जाने के बाद अपराध करना शुरू कर दिया था.फिल्म का यह द्रश्य अपने आप ही बहुत कुछ कह जाता है. देश के आज़ाद होने के चार साल बाद बनी फिल्म 'आवारा' में दिखाया गया है कि कैसे बस्तियों में पल रहे बच्चे, बिना स्कूल गए, अपराधियों के लिए चारा बन जाते हैं. यही काम फिल्म के अंदर अपराधी जग्ग,राज के साथ करता है फिल्म मे ख्वाजा अहमद अब्बस लिखित भयानक विडंबनाओं से भरपूर शक्तिशाली संवाद 'वर्ग दंभ' की आलोचना करते हैं और अमीरों को वंचितों के साथ तुलना करते हैं.

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अमीरों के अपराध पर ब्यंग

यह फिल्म अमीर लोगों द्वारा किए गए उन अपराधों को भी उजागर करती है जिनका पता नहीं चल पाता है. जब राज, रीता को बताता है कि वह चोर है, तो वह जवाब देती है, 'तो फिर तुम्हें किसी बैंक या शेयर बाज़ार में काम करना चाहिए!' तीखे, सारगर्भित संवादों ने न केवल भारत जैसे संघर्षरत नए देश में, बल्कि यूएसएसआर और तुर्की जैसे देशों में भी दर्शकों को प्रभावित किया. निर्देषक ने इस फिल्म में पितृसत्तात्मक सोच पर भी हमला किया है. यदि राज कपूर की 73 साल पहले आयी फिल्म 'आवारा' का गहन अध्ययन यिका जाए,तो यह बात साफ होती है कि फिल्मकार ने 73 साल पहले ही संदेष दिया था कि यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को वर्ग, जाति और लिंग से परे सुलभ बनाया जा सके तो विभाजनकारी आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं होगी. अफसोस हमारे देष के शुरुआती योजनाकारों ने इस पर अमल नही किया और अब करेंगे, ऐसा नजर नही आता. अब तो शिक्षा का पूरी तरह से व्यवसायी करण हो चुका है.

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