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सबक जो Raj Kapoor ने हमें सिखाये

भारत की आजादी से कुछ  वर्ष पहले सन् 1943 में एक फिल्म आई इंकलाब  इस फिल्म में राज नाम के उस बच्चे ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था जिसने आगे चलकर...

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Lessons that Raj Kapoor taught us
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भारत की आजादी से कुछ  वर्ष पहले सन् 1943 में एक फिल्म आई इंकलाब  इस फिल्म में राज नाम के उस बच्चे ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था जिसने आगे चलकर ना सिर्फ अपनी अदाकारी बल्कि अपनी बनाई फिल्मों के जरिये फिल्मी दुनिया पर राज किया और फिल्मी दुनिया का पहला शो मैन  कहलाया. जी हां, सही समझे हम कालजयी अभिनेता राज कपूर की ही बात कर रहे हैं, राजकपूर ने 10 फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें से अधिकांश हिट और ब्लॉकबस्टर थीं. उनका जूता जापानी, पतलून अंग्रेजी और  टोपी लाल रूसी थी, फिर भी उनका दिल हिंदुस्तानी था.

राजकपूर के आरके फिल्म्स बैनर के तहत,  21 फिल्मों का निर्माण हुआ, साथ ही, आवारा  (1951), संगम (1964) और चोरी चोरी (1956) जैसी फिल्मों में संगीत के उस्ताद शंकर-जयकिशन और मुकेश के साथ उनका लगातार सहयोग  ट्रेंडसेटर बन गया. राज कपूर की फिल्में ड्रामा, रोमांस और पारिवारिक मूल्यों को जोड़ती हैं. वे मूल बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर हैं जो आज भी भारतीय सिनेमा को प्रभावित करती हैं. लेकिन जो चीज इन फिल्मों को इतना महत्वपूर्ण बनाती है, वे है जीवन के सबक जो हमें कुछ नहीं बल्कि सिखाते हैं. आईए जानते हैं की राज कपूर अपनी फिल्मों के माध्यम से हमें क्या-क्या सबक सिखाते हैं-

1. क्रोध से कुछ नहीं होता (आवारा, 1951)

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वो शख्स जो बाहर हंसा, लेकिन अंदर ही अंदर रोया. वह सही मायने में हिंदी सिनेमा का 'शोमैन' था.  राज कपूर की  आवारा में राज कपूर ने एक ऐसे आवारा को अभिनीत किया जिसने  अपनी माँ के दुख के लिए जिम्मेदार है अपराधिक प्रवृत्ति के बदमाश जग्गा को गुस्से में मार डाला.

उनकी प्रेमिका रीता (नरगिस ) उसके मामले का बचाव करती है, हालांकि उसे तीन साल जेल की सजा सुनाई जाती है. रीता कहती है कि वह उसके रिहा होने का इंतजार करेगी, यहीं हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में, हम यह सोचे बिना क्रोध में भी कार्य कर सकते हैं जो यह हमारे जीवन और उन लोगों को कैसे प्रभावित कर सकता है जिन्हें हम प्यार करते हैं.

2. सुरंग के अंत में हमेशा रोशनी होती है (बूट पोलिश, 1954)

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बूट-पोलिश निस्संदेह राज कपूर द्वारा निर्मित सबसे मार्मिक फिल्मों में से एक है. फिल्म अनाथों, भोला (रतन कुमार) और बेलू (नाज़) की गंदी कहानी बताती है, जिन्हें अपनी दुष्ट चाची द्वारा जीवित रहने के लिए जूते पॉलिश करने के लिए मजबूर किया जाता है. लेकिन उन्हें बूटलेगर जॉन (डेविड) के द्वारा अपना लिया जाता है, जो उन्हें आत्म-सम्मान के बारे में सिखाता है. जीवन में कुछ कठोर मोड़ के बाद, बच्चे अलग हो जाते हैं. लेकिन वे अंत में फिर से जुड़ जाते हैं, जो उनके जीवन की अंधेरी सुरंग में प्रकाश का प्रतीक है.

3. सरलता ही सर्वोत्तम नीति है (श्री 420, 1955) 

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वह सीधा-सादा स्नातक युवक राज है, जो समृद्धि की तलाश में मुंबई की यात्रा करता है. उसे शिक्षक विद्या (नरगिस ) से प्यार हो जाता है, लेकिन जल्द ही वह धन के लालच में बह जाता है... तभी बेईमान व्यापारी सोनाचंद और मोहक माया (नादिरा) उसे '420' के नाम से जाना जाने वाला एक बदमाश बना देती है.

आखिरकार विद्या राज को धोखे से पैसा कमाना बंद करने के लिए मना लेती है. आजकल, हम सभी पैसा कमाने और जीवन यापन करने के लिए दृढ़ हैं. दिलचस्प बात यह है कि राज कपूर भी फिल्म में कहते हैं: "आज गरीब भी गरीब को नहीं पहचान."

यह उस समाज पर लागू होता है जिसमें हम आज रहते हैं, क्योंकि कोई भी प्रसिद्धि और भाग्य से अंधा हो सकता है. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सादगी सबसे अच्छी नीति है!

4. शो चलते रहना चाहिए (मेरा नाम जोकर, 1970)

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अगर बूट पोलिश ने आपकी आंखों में आंसू ला दिए, तो मल्टी-स्टारर मेरा नाम जोकर भी उतना ही भावुक और विचारोत्तेजक है.

मेरा नाम जोकर  सबसे अच्छा सर्कस जोकर राजू  की कहानी बताता है, जिसके पिता की मृत्यु एक अभिनय करते समय सर्कस में ही हुई थीं वह अपनी माँ  के साथ रहता था.

अपनी टीचर से उसके दिल टूटने से लेकर सर्कस में शामिल होने तक राजू के जीवन को अध्यायों में दिखाया गया है,

हर चैप्टर के साथ राजू का दिल टूटता है... लेकिन सबसे बड़ी बात उसका सामना एक स्टंट करते समय उसकी मां की मौत से होता है. इसके बावजूद, राजू इस विचार को विश्वास दिलाता है कि शो को चलना चाहिए, और उसी की तर्ज पर जिंदगी भी हमेशा चलनी चाहिए

5. बदलते समय को गले लगाओ (कल आज और कल, 1971)

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पहली बार, कपूर-कबीले की तीन पीढ़ियां एक साथ एक फिल्म में दिखाई दी: पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर और रणधीर कपूर यही इस फिल्म की यूएसपी थी.

इसके अलावा, फिल्म दीवान कपूर (पृथ्वीराज कपूर द) और उनके पोते राजेश (रणधीर कपूर) के बीच वैचारिक संघर्ष को बताती है, और कैसे पिता राम (राज कपूर) इस संघर्ष को हल करने में मदद करते हैं.

फिल्म इस बात पर जोर देती है कि एक परिवार में मतभेदों को बातचीत और समझ से सुलझाया जा सकता है, साथ ही यह फिल्म यह भी बताती है कि समय बदल रहा है और पुरानी पीढ़ियों को नए के अनुकूल होने की जरूरत है.

6. प्यार सभी को जीत लेता है (बॉबी, 1973) 

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यह ट्रेंडसेटिंग फिल्म एक मछुआरे (प्रेमनाथ) की बेटी, बॉबी ब्रागांजा (डिंपल कपाड़िया) और एक अमीर-व्यवसायी व्यक्ति (प्राण) के बेटे, राज नाथ (ऋषि कपूर) की प्रेम कहानी है.

राज के पिता के अहंकार, बॉबी के पिता के अपमान और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण यह पारिवारिक कलह बन जाता है.

लेकिन एक विद्रोह और विवाद के बाद, उन्होंने  अपने प्यार के लिए सभी को जीत लिया. मोहब्बत के पास किसी भी चीज़ और किसी पर भी अधिकार है!

7. सच्ची सुंदरता भीतर निहित है (सत्यम शिवम सुंदरम, 1978)

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[सत्यम शिवम सुंदरम] मिस्टर राज कपूर की सबसे ज्यादा दिखने वाली फिल्म है,जिसकी कहानी एक पंडित की बेटी रूपा (जीनत अमान) की है, जिसका चेहरा आधा जल चुका है.  उसका पति, राजीव (शशि कपूर ) उसे खदेड़ देता है, और वह उससे नफरत करने लगता है. अपने पति की उदासीनता से परेशान, रूपा रात में खुद को परदे का वेश बनाकर राजीव से मिलने का फैसला करती है. आखिरकार उसे उसके व्यक्तित्व से प्यार हो जाता है, यह महसूस नहीं होता कि यह वास्तव में उसकी पत्नी है. एक घटनाक्रम के बाद उसकी समझ में आता है कि हमें यह समझना चाहिए कि सुंदरता भीतर से आती है.

कुल मिलाकर राज कपूर सिर्फ एक अभिनेता और निर्देशक नहीं थे. वह एक जादूगर थे, जिन्होंने सिनेमा के माध्यम से जादू बिखेरा.राज कपूर की फिल्में न केवल हिंदी सिनेमा के कलाकारों की पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं, बल्कि हमारे लिए, दर्शकों के लिए भी हैं.

-हनीफ अजहर

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