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Children's Day पर सितारों ने कहा "दिल तो बच्चा है जी"

आज यानी 14 नवबंर को पूरे देश में चिल्डर्न्स डे मनाया जा रहा है. सभी जानते हैं कि चिल्ड्रन्स डे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सालगिरह के अवसर पर मनाया जाता है...

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Children's Day पर सितारों ने कहा दिल तो बच्चा है जी
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आज यानी 14 नवबंर को पूरे देश में चिल्डर्न्स डे मनाया जा रहा है. सभी जानते हैं कि चिल्ड्रन्स डे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सालगिरह के अवसर पर मनाया जाता है. इस मौके पर आज हम आपको टीवी और सिनेमा जगत के सितारों के बचपन से जुड़े किस्से, उनके शौक  और उनके बच्चा बनने की तमन्ना के बारे में बता रहे हैं.  

चुराकर कैरी खाने का अपना मजा है- शुभांगी अत्रे 

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'भाभी जी घर पर हैं'  फेम शुभांगी अत्रे ने कहा कि मुझे लोगों को डराने में मजा आता है, जैसे दरवाजे के पीछे छिपकर जोर से चिल्ला कर 'भो'  करके किसी को डरा देना. मैं अक्सर अपनी बेटी आशी या मम्मी-पापा के साथ ये हरकत करती हूं. एक और बच्चों-सी हरकत करने में मुझे बहुत मजा आता है. मुझे बचपन से ही पेड़ों पर चढ़कर फल खाने की आदत रही है. आज भी मैं अपने फार्म के आस-पास के फार्म के पेड़ों पर चढ़ जाती हूँ और खट्टी-मीठी कैरी खाती हूँ. मुझे ये छिपकर करने में बहुत मजा आता है. चुराकर कैरी खाने का अपना मजा है. बचपन में मेरे नाना के घर एक अमराई हुआ करती थी, वहां हम कैरी चुराने जाते थे और चौकीदार हमारे पीछे दौड़ लगाता था. मैं मानती हूँ कि हमें अपने अंदर के बच्चे को हमेशा जिंदा रखना चाहिए.

हर इंसान के अंदर एक बच्चा होता है- तुषार कपूर

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मैं समझता हूं कि हर इंसान के अंदर एक बच्चा होता है और मौका मिलने पर वह अपना बचपना जरूर दिखाता है. मैं अपनी डायट और वर्कआउट को लेकर अनुशासित हूँ लेकिन  मेरा बच्चों की तरह पिज्जा और आइसक्रीम खाने का शौक जाता ही नहीं. बच्चों की तरह छुप-छुप कर आइसक्रीम और पिज्जा खाने का सुख अलग होता है.

मैं आज भी कार्टून देखती हूँ- दिव्यांका त्रिपाठी

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‘द मैजिक ऑफ़ श्री’ की दिव्यांका त्रिपाठी ने एक किस्सा शेयर करते हुए कहा कि मैं समझती हूँ कि मेरे दिल के किसी कोने में बच्चा आज भी जिंदा है और वह बच्चा कार्टून देखना पसंद करता है. मैंने और विवेक (उनके पति विवेक दहिया) ने एक लंबे वक्त से कोई फिल्म नहीं देखी थी,  लेकिन हाल ही में जब प्लान बना,  तो मैं उन्हें एनिमेशन फिल्म ‘द वाइल्ड रोबोट’ दिखाने ले गई. हमने वहां खूब मजे किए. उन्होंने आगे कहा “मेरे अंदर का बच्चा कार्टून्स और एनिमेशन फिल्मों का शौकीन है और अब तो मैं उस बचपने को विवेक में भी ट्रांसफर कर रही हूँ."

मेरे अंदर तो अभी तक भी काफी बचपना है- संजय मिश्रा

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‘आंखों देखी’ और ‘दम लगा के हईशा’ जैसी बेहतरीन फ़िल्में करने वाले संजय मिश्रा कहते हैं कि मेरे अंदर तो अभी तक भी काफी बचपना है. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले मैं बैंगन चोरी करते हुए पकड़ा गया. शिर्डी के पास एक छोटा-सा गांव है. वहां मैंने ये बचकानी हरकत की. मुझे छोटी-मोटी चोरी करने की आदत है (शरमाते हुए) जैसे एक नींबू चुरा लेना या एक बैंगन,  उसे चुराकर,  मुट्ठी में छिपाकर जो अचीवमेंट-सा महसूस होता है, उसके क्या कहने! वाह! जब भी मैं दिल्ली में होता हूँ और नीचे कोई ठेले वाला आता है, तो मैं झट से लुंगी पहनकर नीचे उतरता हूं और कुछ न कुछ जरूर टाप लेता (नजर बचाकर चुरा लेना) हूँ. मैं समझता हूँ कि अगर हम अपनी जिंदगी से बचपना हटा दें, तो फिर जिंदगी के क्या ही मायने रह जाएंगे?  एक आर्टिस्ट को तो अपने अंदर एक बच्चा रखना ही चाहिए जिससे उसकी जिज्ञासा कभी खत्म न हो और वह अलग-अलग भूमिकाओं में रंग भर सके.

कार्टून देखना पसंद करता हूँ- पर्ल वी पुरी

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एकता कपूर के शो नागिन 3 और ‘फिर भी न माने... बदतमीज दिल'  सीरियल में काम करने वाले एक्टर वी पर्ल पुरी कहते हैं कि कार्टून देखने का शौक मेरे बचपन का अभिन्न अंग था जो आज भी वैसा ही है. मैं आज भी अपने पसंदीदा कार्टून जैसे टॉम एंड जेरी, स्कूबी डू, पोकेमॉन, पोपेय, जॉनी ब्रावो देखना पसंद करता हूँ. फिर अपने पसंदीदा कार्टून करेक्टर  के ज्यादा से ज्यादा कार्ड इक्कट्ठा करना पसंद है, मैं आज भी उन मज़ेदार पात्रों को अपने डेस्कटॉप वॉलपेपर के रूप में सम्भालकर रखता हूँ.

यहां मैं अपने भीतर के बच्चे को उजागर करता हूँ- श्रेयस तलपड़े

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मुझे नहीं लगता कि हम बिना बच्चा बने सर्वाइव कर सकते हैं. कई बार ऐसा होता है कि फिल्में देखते हुए मेरा मुंह खुला रह जाता है और मेरी पत्नी मेरा मुंह बंद करती है, तो मैं फिल्में आज भी बच्चों की तरह ही देखता हूँ. इसके अलावा मुझे बाथरूम में जोर-जोर से गिबरीश (ऊटपटांग आवाजे) अंदाज में चिल्लाना अच्छा लगता है. अब मैं खुलेआम तो ऐसी हरकत नहीं कर सकता न, तो मैं इसके लिए नहाते समय बाथरूम को चुनता हूँ. यहां मैं अपने भीतर के बच्चे को उजागर करता हूँ. कई बार हम डबिंग के जरिए भी अपने अंदर के बच्चे को बाहर निकाल पाते है. इसे आप मेरा बचपना कह सकते हैं.

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इन सितारों के बचपन के किस्से और उनकी मासूमियत हमें यह याद दिलाती है कि उम्र चाहे जितनी भी हो, अंदर का बच्चा हमेशा जिंदा रहता है. वे अपनी खुशियों, शरारतों और मासूमियत के जरिए हमें यह सिखाते हैं कि जिंदगी को हल्के-फुल्के अंदाज में जीने की अहमियत है. अपने अंदर के बच्चे को जिंदा रखना न सिर्फ खुश रहने का राज है, बल्कि यह हमें अपनी कला और काम में भी नयापन और उत्साह बनाए रखने में मदद करता है.

इस चिल्ड्रनस डे पर, हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि बचपन की शरारतों और खुशियों से भरी जिंदादिली को हम अपने हर दिन में शामिल करें, ताकि ज़िन्दगी और भी कलरफुल  और हैप्पी बन सके.

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