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बीते दिनों, 9 जून को हिंदी सिनेमा के जाने-माने निर्देशक पार्थो घोष (Partho Ghosh) का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उनके निधन की खबर आई और चुपचाप गुजर भी गई. इस दौरान हैरान करने वाली बात यह रही कि उनके शव को अंतिम विदाई देने शमशान घाट में कोई नहीं पहुंचा. वो भी नहीं, जिन्हें इस महान निर्देशक ने तराश कर चमकाया था. लेकिन हाँ यह है कि 12 जून को उनकी प्रेयर मीट का जब आयोजन हुआ, तो वहां मौजूद थे सिर्फ गिनती के कुछ चेहरे- अरबाज खान (Arbaz Khan), सुनील पाल (Sunil Pal), श्याम कौशल (Shyam kaushal), दीपक पाराशर (Deepak Parashar).
एक ऐसा शख्स, जिसने '100 डेज' (100 Days), 'अग्निसाक्षी' (Agni Sakshi), 'तीसरा कौन' (Teesra Kaun) और 'दलाल' (Dalaal) जैसी फिल्में बनाकर 90 के दशक के सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज किया, उसे अंतिम विदाई देने के लिए पूरी फिल्म इंडस्ट्री से बमुश्किल कुछ ही लोग आए. क्या यही है इस चमचमाती इंडस्ट्री की सच्चाई? जहां तालियों की गूंज और फ्लैशलाइट की चमक तब तक साथ होती है, जब तक आप बॉक्स ऑफिस पर चमक रहे होते हैं?
ऐसा व्यक्ति जो समाज की परतें परदे पर उतारते थे
पार्थो घोष को उनकी सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कहानियों के लिए जाना जाता था. ‘अग्निसाक्षी’ जैसी फिल्में, जिन्होंने घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों को मुख्यधारा में लाकर खड़ा किया, ‘दलाल’ जैसी विवादित लेकिन गहरा संदेश देने वाली फिल्में—इन सबने उन्हें एक गंभीर फिल्मकार के रूप में स्थापित किया.
कई बड़े चेहरों के साथ किया काम, लेकिन अंतिम विदाई में दिखा कोई नहीं
90 के दशक में माधुरी दीक्षित (Madhuri Dixit), मनीषा कोइराला (Manisha Koirala), मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) और नाना पाटेकर (Nana Patekar) जैसे सितारों के साथ काम कर चुके पार्थो घोष ने एक समय बॉलीवुड के ऊंचे पायदानों पर जगह बनाई थी. उनकी आखिरी हिट फिल्म 'गुलाम-ए-मुस्तफा'- 1997 (Ghulam-E-Musthafa) थी. इसके बाद वे कई फिल्में और टीवी शोज़ करते रहे, लेकिन इंडस्ट्री की चमक धीरे-धीरे उनसे छिनती चली गई.
अपनी अंतिम सांसों तक वे सिनेमा से जुड़े रहे. '100 डेज' और 'अग्निसाक्षी' जैसी क्लासिक फिल्मों के सीक्वल पर वे फिर से कुछ नया और सशक्त कहने की तैयारी में थे, लेकिन समय ने उन्हें इजाज़त नहीं दी.
चमक-धमक के पीछे की खामोशी
कहते हैं बॉलीवुड एक परिवार है, लेकिन यह परिवार तब अक्सर गायब मिलता है जब किसी अपने का अंत आता है. पार्थो घोष जैसे निर्देशक, जिन्होंने इस इंडस्ट्री को अपनी कला से संवारा, अपने अंतिम संस्कार के समय अकेले थे. कैमरों की चमक नहीं थी, न ही किसी सुपरस्टार का ट्वीट.
यहाँ उनके एक एक्शन पर खड़े होकर अभिनय करने वाले जैकी श्रॉफ (Jackie Shroff), अपने बेहतरीन अभिनय- डांस के लिए लोकप्रिय माधुरी दीक्षित (Madhuri Dixit), हाल ही में दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) प्राप्त करने वाले मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) भी नज़र नहीं आए. यह एक आईना है इस ग्लैमरस दुनिया का- जहां स्टारडम की उम्र शॉर्टकट जितनी छोटी होती है, और स्मृतियों का बोझ कोई नहीं उठाता.
यही है सिनेमा की सच्चाई. जो जितना चमकता है, उतनी ही जल्दी भुला दिया जाता है. लेकिन उनके चाहने वाले और सिनेमा को समझने वाले दर्शक जानते हैं कि पार्थो घोष सिर्फ एक निर्देशक नहीं थे- वो एक संवेदनशील कहानीकार थे, जो समाज की खुरदुरी हकीकत को पर्दे पर खूबसूरती से उकेरते थे.
पार्थो घोष का करियर
पार्थो घोष का जन्म 8 जून 1949 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में हुआ था. उनका बचपन साहित्य, कला और संगीत में ही बीता. सिनेमा के प्रति जुनून ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की तरफ आकर्षित किया था. साल 1985 में उन्होंने एक सहायक निर्देशक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की. करियर की शुरुआत उन्होंने बंगाली फिल्मों से किया था, फिर बाद में कई हिंदी फिल्में बनाई.
सिनेमाई करियर के दौरान उन्होंने 15 से ज्यादा फिल्मों का निर्देशन किया, जिसमें उन्होंने सस्पेंस से लेकर रोमांस तक की जॉनर की फिल्में बनाई थी. वहीं उनकी आखिरी फिल्म की बात करें तो वह 'मौसम इकरार के दो पल प्यार के' (Mausam Ikrar Ke Do Pal Pyaar Ke) थी, जो 2018 में रिलीज़ हुई थी.
पुरस्कार और सम्मान
फिल्ममेकर पार्थो घोष को उनके शानदार करियर में कुछ सम्मान भी मिले थे. उनकी फिल्म 'अग्निसाक्षी' को फिल्मफेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए नामांकित किया गया था.
आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्में, उनका सिनेमा और उनकी सोच उन्हें हमेशा ज़िंदा रखेगी- चंद चमकदार चेहरों की भीड़ भले न दिखे, पर उनकी विरासत अमिट है.
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Tags : Partho Ghosh death | Veteran filmmaker Partho Ghosh films