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मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि उसका काम समाज को सत्य की रोशनी दिखाना, लोगों को विश्वसनीय जानकारी देना और गलतियों पर सवाल उठाना है. लेकिन हाल ही में बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेन्द्र की मौत की झूठी खबर ने इस चौथे स्तंभ की नींव को हिला कर रख दिया. सोशल मीडिया पर एक अफवाह चली, और देखते ही देखते कई बड़े न्यूज़ चैनलों ने बिना पुष्टि के उसे ब्रेकिंग न्यूज की तरह चलाना शुरू कर दिया. अस्पताल में भर्ती होने की खबर थी, लेकिन इसे कुछ चैनलों ने मौत की घोषणा में बदल दिया. यह घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि हमारी पत्रकारिता किस दिशा में बढ़ रही है—सत्य से दूर और सनसनी के बेहद करीब.
पत्रकारिता का मूल मंत्र है—पहले सत्यापित करो, फिर प्रसारित करो. लेकिन आज हालात इसके उलट हो गए हैं. ‘सबसे पहले’ दिखाने की होड़ में अनेक चैनल बिना फैक्ट-चेक के खबरें चला देते हैं. दुखद यह है कि इसमें केवल गुमनाम सोशल मीडिया पेज नहीं, बल्कि देश के प्रतिष्ठित और नामी गिरामी न्यूज चैनल भी शामिल हैं—वे चैनल जो कभी अपनी सत्यनिष्ठा और संवेदनशीलता के लिए पहचाने जाते थे. धर्मेन्द्र जी की झूठी मौत की खबर ने इस नए दौर की पत्रकारिता का कुरूप चेहरा सबके सामने ला दिया. उनकी पत्नी और सांसद हेमा मालिनी ने खुद सोशल मीडिया पर इस अफवाह की निंदा करते हुए इसे ‘अक्षम्य’ कहा.
यह पहली घटना नहीं है; लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने पहले भी सिनेमा, राजनीति और कला जगत की अनेक हस्तियों को ऐसी ‘झूठी मौत’ की अफवाहों की मार झेलने पर मजबूर किया है. जैसे- असरानी, जो ‘शोले’ के मशहूर संवाद “हम अंग्रेजों के जमाने के हैं” के लिए जाने जाते हैं, उनकी मौत की खबर भी कुछ साल पहले वायरल हुई थी. असरानी जी को खुद सामने आकर कहना पड़ा—“मैं बिल्कुल ठीक हूँ, जिंदा हूँ!” इसी तरह स्वर कोकिला लता मंगेशकर के बारे में कई बार झूठी खबरें फैलाई गईं. दिग्गज अभिनेता प्राण को उनके जीवनकाल में कई बार ‘सोशल मीडिया पर मार दिया गया’. जगजीत सिंह के निधन से पहले अफवाहें इतनी फैलीं कि लोगों ने श्रद्धांजलि संदेश तक लिख दिए थे. सुपरस्टार रजनीकांत, राजनीतिक जगत में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, शक्ति कपूर और अरविंद त्रिवेदी (रामायण के रावण) भी इन अफवाहों के शिकार हुए हैं.
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इन घटनाओं से सिद्ध होता है कि पत्रकारिता का एक बड़ा हिस्सा तथ्य-पुष्टि और जिम्मेदारी जैसे बुनियादी सिद्धांतों को भूलता जा रहा है. वायरल को खबर मान लेना, भावनाओं के साथ खेलना और टीआरपी के लिए झूठ को हवा देना—अब आम बात हो चली है. यह न केवल पत्रकारिता के मूल्यों को चोट पहुँचाता है, बल्कि उन लोगों और उनके परिवारों के लिए भी अत्यंत पीड़ादायक होता है जिनके बारे में ऐसी खबरें फैलाई जाती हैं.
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जिसकी मौत की झूठी खबर फैल जाए, उसकी उम्र बढ़ जाती है
हमारे बुजुर्ग कहते आए हैं—“जिसकी मौत की झूठी खबर फैल जाए, उसकी उम्र बढ़ जाती है.” अगर इस कहावत को सच मानें, तो निश्चित ही धर्मेन्द्र साहब की उम्र अब कुछ और वर्षों से बढ़ गई होगी. उनकी जिंदादिली, उनका आत्मविश्वास और उनके काम के प्रति सच्ची लगन आज भी करोड़ों दिलों में धड़कती है. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि वे आगे भी हमें अपनी सादगी, ऊर्जा और मुस्कान से प्रेरित करते रहेंगे.
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अब समय आ गया है कि मीडिया अपने कर्तव्यों की ओर लौटे. पत्रकारिता का धर्म सत्य है, न कि सनसनी. समाचार का उद्देश्य जानकारी देना है, भ्रम फैलाना नहीं. विश्वसनीयता किसी भी मीडिया संस्थान की सबसे बड़ी पूँजी है—और जब वही कमज़ोर होने लगती है, तो उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता है. बड़े चैनलों को अपनी फैक्ट-चेकिंग व्यवस्था मजबूत करनी चाहिए और सोशल मीडिया से आने वाली हर जानकारी को बिना पुष्टि के चलाने की प्रवृत्ति पर तुरंत रोक लगानी चाहिए.
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‘मायापुरी’ परिवार की ओर से हिंदी सिनेमा के ही-मैन, करोड़ों दिलों की धड़कन और हमारे प्रिय धर्मेन्द्र जी के शीघ्र स्वस्थ होने की हार्दिक कामना! हम सब आपकी सलामती, लम्बी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की दिल से दुआ करते हैं.
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