'नारद मुनि' का किरदार निभाने से मिले पैसों से बना था R K STUDIO राज कपूर ने 24 साल की उम्र,1948 में अपनी पहली फिल्म ‘आग’ का निर्देशन किया था,जिसे बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली थी. लेकिन इस फिल्म की असफलता से सबक सीख कर राज कपूर... By Shanti Swaroop Tripathi 14 Dec 2024 in एंटरटेनमेंट New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर राज कपूर ने 24 साल की उम्र,1948 में अपनी पहली फिल्म ‘आग’ का निर्देशन किया था,जिसे बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली थी. लेकिन इस फिल्म की असफलता से सबक सीख कर राज कपूर ने बाद में फिल्म ‘बरसात’ बनायी, जिसने सफलता के नए आयाम स्थापित किए थे. उसके बाद से राज कपूर ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा... फिल्म ‘बरसात’ के निर्माण के दौरान उन्होने जो टीम बनायी थी, वह लगातार उसी टीम के साथ फिल्म ‘बाॅबी’ से पहले तक काम करते रहे. फिल्म ‘बाॅबी’ में उनकी टीम में काफी कुछ बदला था. राज कपूर ने देश व समाज को ऐसी फिल्में दी, जिन्हे लोग आज भी देखना पसंद करते हैं. राज कपूर ने जो फिल्में बनायीं, वह सिर्फ दर्शकों के लिए ही नही बल्कि हर फिल्मकार को एक पाठ पढ़ाती हैं फिर चाहे उनकी फिल्म ‘बरसात’ हो या ‘आवारा हो या ‘जागते रहो’ हो या ‘श्री 420’ हो या ‘आगे’ हो या ‘जिस देश में गंगा बहती है’ हो या ‘राम तेरी गंगा मैली है’ हो या रोमांटिक फिल्म ‘प्रेम रोग’ ही क्यों न हो. राज कपूर अपनी इन सभी फिल्मों का निर्माण "आर के फिल्मस" के बैनर तले किया और लगभग हर फिल्म को अपने ही स्टूडियो "आर के स्टूडियो" में न सिर्फ फिल्माते रहे बल्कि हर फिल्म का पोस्ट प्रोडक्षन भी वह अपने ही स्टूडियो में करते थे.‘आर के स्टूडियो’ के निर्माण का बहुत ही रोचक किस्सा है. भारत में सबसे पुराना फिल्म स्टूडियो भालजी पेंढारकर का ‘प्रभात स्टूडियो" हुआ करता था. भाल जी पेंढारकर के बारे में कहा जाता था कि वह आर एस एस के काफी नजदीक हैं. भालजी ने धार्मिक व पौराणिक फिल्में ही बनायी थी. 1946 की बात है. तब तक राज कपूर अभिनय में कदम रख चुके थे. उनके पिता पृथ्वीराज कपूर भी अभिनय कर रहे थे. भालजी पेंढारकर और उनका प्रभात स्टूडियो अपने कठोर अनुशासन के लिए भी जाना जाता था. तो भालजी पेंढारकर ने एक फिल्म ‘महर्षि वाल्मीकी’ का निर्माण किया था, जिसमें उन्होने राज कपूर को ‘नारदमुनि’ का किरदार निभाने का अवसर दिया था.इस फिल्म के नायक पृथ्वीराज कपूर और नायिका शांता आप्टे थीे. नारद मुनि का किरदार निभाने में राज कपूर ने अपना जी जान लगा दिया था, जिसे देखकर भाल जी पेंढारकर काफी खुश हुए थे और उस जमाने मे जब कलाकारों को कुछ सौ रूपए ही पारिश्रमिक राशी के रूप में मिला करते थे, तब भालजी पेंढारकर ने खुश होकर राज कपूर को उनकी पारिश्रमिक राशी के रूप में चार हजार रूपए दिए थे. नारद मुनि का किरदार निभाने के लिए पारिश्रमिक राशी के रूप में चार हजार रूपए मिलने पर राज कपूर को लगा कि यह तो उनकी तो मुह मांगी मुराद पूरी हो गयी. वास्तव में ‘प्रभात स्टूडियो’ में शूटिंग के दौरान राज कपूर के मन में ख्याल आया था कि एक दिन उनका अपना स्टूडियो होगा. पर यह सपना इतनी जल्दी पूरा हो सकता है, इसकी तो उन्होेने कल्नपा ही नहीं की थी. अब राज कपूर ने तय कर लिया कि वह इन चार हजार रुपयों से अपने स्टूडियो की नींव डालेंगें.राज कपूर उन दिनों मुंबई के चेंबूर इलाके में ही रहा करते थे. इसलिए राज कपूर ने चेंबूर इलाके में ही तलाश कर दो एकड़ जमीन खरीदी. और उसी जमीन पर रज कपूर ने अपना "आर के स्टूडियो" खड़ा किया, जिसने दिन प्रतिदिन नए नए आयाम स्थापित किए. लेकिन नियति का खेल देखिए... एक तरफ ‘आर के स्टूडियो’ खड़ा हुआ,तो दूसरी तरफ 1947 में राष्ट्पिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद भालजी पेंढारकर के ‘प्रभात स्टूडियो’ में भयंकर आग लग गयी... उस वक्त माना गया था कि शायद कुछ लोगों ने उनके स्टूडियो को आग के हवाले कर दिया.क्योंकि गांधी जी के हत्यारे नाथू राम गोड़से का संबंध हिंदू वादी संगठन से था. और भालजी पेंढारकर खुद भी आरएसएस से जुड़े हुए थे. भालजी पेंढारकर के साथ हुए इस दुखद हादसे ने राज कपूर के लिए खुशियाँ की सौगात ला दी. राज कपूर ने अपने ‘आर के स्टूडियो’ मे ही अपने निर्देशन में 1948 में पहली फिल्म ‘आग’ का निर्माण किया था, जिसे बाक्स आफिस पर लोगो ने ठुकरा दिया था. ले किन जुझारू और हार न मानने वाले राज कपूर 1949 में दूसरी फिल्म ‘बरसात’ लेकर आए और इस फिल्म ने ऐसी सफलता दर्ज करायी कि इसके बाद राज कपूर बाॅलीवुड में बहुत बड़ी हस्ती बन गए. ‘बरसात’ के बाद राज कपूर को मरते दम तक कभी पीछे मुड़कर देखने की जरुरत ही नही पड़ी. राज कपूर का नाम सफलता का पर्याय बन चुका था. आर के फिल्म्स ने बाद में ‘आवारा’, बूट पॉलिश, जागते रहो और श्री 420 जैसी कई सफल फिल्मों का निर्माण किया. आवारा न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में विशेष रूप से सफल रही. आर.के. फिल्म्स की 15 फिल्मों में राज कपूर,अभिनेत्री नरगिस के साथ नजर आए.थे. तब तक उनकी फिल्म के कथानक की दिषा एक अलग तरह की थी,मगर जब नरगिस ने ‘आर के फिल्मस’ या यॅूं कहें कि राज कपूर का साथ छोड़ा,तब राज कपूर थोड़ा विचलित हो गए थे और उनकी फिल्मों में कामुकता का प्रवेष हो गया था. स्टूडियो की मुख्य इमारत के पीछे राज कपूर की कुटिया थी जहाँ वे अक्सर छोटी-छोटी अंतरंग बैठकें और समारोह आयोजित करते थे. आर.के.फिल्म्स की 25वीं वर्षगांठ यहां मनाई गई.‘आर के स्टूडियो’ में उस समय के अन्य बॉलीवुड स्टूडियो के विपरीत, आर.के. फ़िल्में अपनी फ़िल्मों में प्रयुक्त सभी परिधानों को संरक्षित करने में सक्षम था.जी हाॅ! यह अस्थायी संग्रहालय था (एक बार नरगिस का ड्रेसिंग और मेकअप रूम) एक खजाना था जो आग में नष्ट हो गया था. इसमें बरसात (1949), आवारा (1951), आग (1948), मेरा नाम जोकर (1970) और बॉबी (1973) के पोस्टर शामिल थे. इसमें एक बड़ा काला छाता भी था जो श्री 420 (1955) के गाने ‘यार हुआ, इकरार हुआ’ में जोड़े को स्टूडियो की बारिश से बचाता था, आवारा से नरगिस की लंबी काली पोशाक, संगम से वैजंतीमाला की साड़ी, डिंपल कपाड़िया की फंकी बॉबी से फ्रॉक, जिस देश में गंगा बहती है से पद्मिनी की साड़ी, मेरा नाम राजू में इस्तेमाल की गई डफाली (जिस देश में गंगा बहती है) और यहां तक कि राज कपूर द्वारा अपनी फिल्मों में पहनी गई कुछ टोपियां भी. यह सब आग में नष्ट हो गए. आर के स्टूडियो के अंदर कपूर परिवार द्वारा ‘हर साल मनाए जाने वाले गणेष उत्सव और होली की चर्चा भारत ही नही पूरे विष्व में हुआ करती थी. 16 सितंबर 2017 को आर.के. स्टूडियो में आग लग गई और वह ढह गया. जी हाॅ! एक टेलीविजन रियलिटी शो की शूटिंग के दौरान स्टूडियो में भीषण आग लग गई और स्टूडियो आग की चपेट में आ गया. कपूर परिवार ने बढ़ते घाटे के कारण प्रतिष्ठित आर.के. फिल्म्स एंड स्टूडियोज को बेचने का फैसला किया, जिसे लगभग 70 साल पहले महान अभिनेता राज कपूर ने बनाया था. आग लगने की घटना के बाद ‘मुंबई मिरर’ से बात करते हुए स्व.राज कपूर के उस वक्त् जीवित बेटे स्व. ऋषि कपूर ने कहा था-"स्टूडियो के पुनर्निर्माण में किए गए निवेश से इसे चालू रखने के लिए पर्याप्त राजस्व नहीं मिल पाता. आग लगने से पहले भी, वर्षों तक आर.के. स्टूडियो एक विशाल सफेद हाथी बन गया था. पिछले कुछ वर्षों में बुकिंग की संख्या में काफी कमी आई है और निर्माता गोरेगांव और अंधेरी के पास स्टूडियो को प्राथमिकता दे रहे हैं. पूर्वी उपनगरों का हिस्सा होने के कारण, चेंबूर को अब एक आकर्षक शूटिंग स्थान के रूप में नहीं देखा जाता था, जैसा कि 40 और 50 के दशक में था. कपूर्स ने अत्याधुनिक तकनीक के साथ पूरे स्थान का नवीनीकरण करने पर भी विचार किया था, पर आग लगने के बाद स्टूडियो को पुनर्जीवित करने की योजना अवास्तविक बना दिया. स्टूडियो का उपयोग करने वाले कुछ ग्राहकों ने मुफ्त पार्किंग स्थान, एयर कंडीशनिंग और छूट की मांग करना शुरू कर दिया था, जिससे घाटा और बढ़ गया था. अंततः इसे बेचने का फैसला किया गया." प्रतीक चिन्ह/"लोगो" कैसे बना ‘बरसात’ की सफलता के बाद ही राज कपूर ने फिल्म ‘बरसात’ के ही एक दृष्य जिसमें वह और नरगिस हैं,की नकल कर राज कपूर ने अपनी फिल्म प्रोडक्षन कंपनी ‘आर के फिल्मस’ का लोगो बनाया, जो कि आज भी हर फिल्म में नजर आता है. फिल्म ‘बरसात’ के पोस्टर में भी इसे देखा जा सकता है. बाद में प्रतीक चिन्ह को सरल बनाया गया. मगर बॉलीवुड अभिनेता मनोज कुमार ने दावा किया था कि यह प्रतीक चिन्ह बालासाहेब ठाकरे द्वारा डिजाइन किया गया था. लेकिन इस पर कभी किसी ने कुछ नही कहा. कभी यह ‘लोगो’,‘आर के स्टूडियो’ की भी पहचान हुआ करता था. अफसोस की बात है कि हम और राज कपूर के परिवार के सभी लोग 13 दिसंबर से 15 दिसंबर तक राज कपूर के जन्म की सौंवीं जयंती मना रहा है, मगर ‘आर के स्टूडियो’ अस्तित्व में नही है. सौ साल के सेलेब्रेषन के तहत पूरे देश में कुछ थ्एिटरों में महज सौ रूपए में राज कपूर की चुनिंदा यादगार फिल्में दिखायी जा रही हैं,जिका आनंद आप भी ले सकते हैं. Read More जब ऋषि कपूर ने रणबीर कपूर को उनके दादा राज कपूर की विरासत की दिलाई याद PM Modi ने Raj Kapoor की 100वीं जयंती पर दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि Vikrant Massey ने अपने 'रिटायरमेंट' पर तोड़ी चुप्पी जेल से रिहा होने के बाद Allu Arjun ने तोड़ी चुप्पी हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article