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हाल ही में ‘कैडेन्स WWI एक्स्ट्रावैगेंज़ा’ (Cadence WWI Extravaganza) नाम की एक प्रेस मीट का आयोजन किया गया. जहाँ संगीत का शानदार जश्न मनाया गया. इस प्रेस मीट में सुरों के सरताज कहे जाने वाले मशहूर गायक मोहम्मद रफ़ी (Mohammad Rafi) के बेटे शाहिद रफ़ी (Shahid Rafi), लोकप्रिय सिंगर सोनू निगम (Sonu Nigam) और फिल्म निर्माता- निर्देशक सुभाष घई (Subhash Ghai) ने मोहम्मद रफ़ी और संगीत के विषय पर चर्चा की. कार्यक्रम की शुरुआत “संगीत की कोई भाषा नहीं होती” विषय से हुई.
रफ़ी को God lies in detailing कहा
इस कार्यक्रम में सोनू निगम ने रफ़ी साहब को सम्मानित करते हुए – “God lies in detailing” की संज्ञा दी. उन्होंने कहा ,”रफ़ी साहब केवल गायक नहीं थे, वे अभिनय, भावना और भक्ति का अद्वितीय संगम थे. उनकी आवाज़ में वो ताकत थी जो शब्दों को भावनाओं में ढाल देती थी, चाहे सुनने वाला उस भाषा को समझे या नहीं. उनके गीतों में इतनी सजीवता थी कि कई बार अभिनेता को उनकी गायकी के अनुरूप अपनी अदायगी को ढालना पड़ता था.”
सोनू निगम ने मोहम्मद रफ़ी की तारीफ़ में कहा
इस प्रेस मीट में सोनू निगम ने मोहम्मद रफ़ी की तारीफ़ करते हुए कहा कि रफ़ी जी जैसा कोई नहीं! उन्होंने कहा कि कभी कोई सोच नहीं सकता था कि गायिकी के साथ भी अदाकारी की जा सकती है, लेकिन रफ़ी साहब ने ऐसा किया. अगर गाने की भाषा ना भी समझ आए तब भी उसका मूलभाव समझ आ जाये, यह रफ़ी साहब बहुत अच्छे से जानते थे.
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मोहम्मद रफ़ी की आवाज उस समय के सभी अभिनेताओं पर जचती थी. चाहे वे जोनी वालकर (Johnny Walker) हो या दिलीप कुमार (Dilip Kumar) या फिर शशि कपूर (Shashi Kapoor) सभी पर उनकी आवाज का जादू एकसमान बरकरार था.
रफ़ी साहब के बेटे शाहिद रफ़ी ने बताया
इस कार्यक्रम के दौरान रफ़ी साहब के बेटे शाहिद रफ़ी ने बताया कि रफ़ी साहब बहुत ही धीरे बोला करते थे, जब वे कुछ कहते और हमें उनकी बात समझ नहीं आती तो हम उनसे कान लगाकर पूछते अब्बा (रफ़ी साहब के बच्चे उन्हें अब्बा कहकर पुकारते थे) आपने कुछ कहा? वे हमें जवाब देते हुए कहते “बहरे हो गए हो, सुनाई नहीं देता”.
रफ़ी साहब कितने विनम्र और सरल इंसान थे. इस बारे में उन्होंने बताया कि उन्हें पार्टियों में जाने का शौक नहीं था, जब कभी वे जाते भी थे तो 5 मिनट में सबसे मिलकर घर जाने के लिए कार में बैठ जाते. उन्हें सिर्फ संगीत, पतंग उड़ाना, कैरम, बैडमिंटन खेलना, परिवार और बच्चों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था. वे बिल्कुल सहज जीवन जीते थे.
जब बिग बी के साथ खाया खाना
इस मौके पर उन्होंने यह भी बताया कि वे बच्चों के साथ बच्चे हो जाते थे. इसके बारे में उन्होंने एक किस्सा शेयर करते हुए बताया कि एक बार उन्होंने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के लिए गाया और गाने के बाद उनके साथ खाना खाया, इस बात को उन्होंने बच्चों को बिल्कुल बच्चे की तरह उत्साहित होकर बताया – “कि आज मैंने अमिताभ के साथ खाना खाया!” जब हम सब उनसे पूछते कि उन्होंने क्या पहना था, तब वे बड़े खुश होकर सब बताते.”
हर गीत प्रिय था
इस कार्यक्रम के दौरान शाहिद रफ़ी ने बताया कि रफ़ी साहब कभी किसी एक गीत को अपना प्रिय नहीं कहते थे, लेकिन हर शो में कुछ गीत हमेशा गाते थे –"सुहानी रात ढल चुकी ना जाने तुम कब आओगी" "ओ दुनिया के रखवाले" (फिल्म बैजू बावरा 1952), "मधुबन में राधिका नाचे रे" (फिल्म कोहिनूर 1960) और मधुबन में राधिका नाचे रे" (फिल्म "दुल्हन वही जो पिया मन भाए" 1977), ये गीत उनके दिल के बेहद करीब थे – और हमारे दिलों में ये भी अमर हैं.
इस कार्यक्रम में फिल्म निर्माता- निर्देशक सुभाष घई ने बताया कि उन्होंने महान गायक मोहम्मद रफ़ी की महानता में छात्रवृति का आगाज किया है, जो हर साल छात्रों को दी जाएगी.
लता श्रेष्ठ हैं या आशा?
‘कैडेन्स WWI एक्स्ट्रावैगेंज़ा’ के आखिर में सोनू निगम ने मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा, “हर कलाकार से सीखो, लेकिन अपनी पहचान बनाओ. संगीत में तुलना नहीं, साधना होनी चाहिए. “लता श्रेष्ठ हैं या आशा? किशोर या रफ़ी?” – ये बहसें व्यर्थ हैं. सबकी अपनी जगह है, और हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है और सबसे ज़रूरी बात – “मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता.” रफ़ी साहब की तरह साधना ही आपको एक सच्चा कलाकार बनाती है.
रफ़ी साहब को समर्पित यह कार्यक्रम केवल संगीत का कार्यक्रम नहीं था, यह एक आध्यात्मिक यात्रा थी. एक ऐसा अवसर, जहाँ कला को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि साधना और भक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया था.