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स्वर की शक्ति, योग की गहराई और 'Lata Mangeshkar' के ज्ञान के माध्यम से जप और गायन के बीच का अंतर...

उन दिनों, योग को व्यायाम के रूप में नहीं माना जाता था, यह ध्यान का एक तरीका था, जिसे ज्यादातर प्राचीन भारत में संन्यासियों और गुरुओं द्वारा मोक्ष या किसी शक्ति के लिए किया जाता था...

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World Music Day 2025 The Power of Voice, Exploring the Depths of Yoga and difference between Chanting and Singing through the Wisdom of Lata Mangeshkar
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उन दिनों, योग को व्यायाम के रूप में नहीं माना जाता था, यह ध्यान का एक तरीका था, जिसे ज्यादातर प्राचीन भारत में संन्यासियों और गुरुओं द्वारा मोक्ष या किसी शक्ति के लिए किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे ज्ञान के साथ, योग ने दैनिक जीवन शैली में प्रमुखता हासिल कर ली. 

mangeshkar: Lata Mangeshkar treated her domestic helps with love & respect;  provided them with food & clothes - The Economic Times

मुझे अभी भी वह दिन याद है जब मैं पेडर रोड में प्रभु कुंज निवास पर लता मंगेशकर से मिलने गई थी. इमारत बाहर से साधारण दिखती थी, लेकिन अंदर हवा में एक शांत जादू था. यह कई साल पहले की बात है, लेकिन उनकी मधुर आवाज़, उनकी धूप भरी मुस्कान और उनके शब्द आज भी मेरे दिल में गूंजते हैं.

मैं अपॉइंटमेंट लेकर आई थी और उन्होंने मेरा स्वागत किया, उनकी बॉडी लैंग्वेज विनम्र और ऊर्जा दिप्त दोनों थी.

हम उनके लिविंग रूम में बैठे, खिड़की के पर्दों से सूरज की रोशनी छन कर अंदर आ रही थी. मैंने उनसे गायन, जीवन और उनकी सदाबहार आवाज़ के पीछे के रहस्यों के बारे में पूछा. हमारी बातचीत गीतों से हटकर गायन के तरीके पर आ ठहरी . उन्होंने कहा, 'सतत सालों तक गाने के लिए, आपको अपने पेट से साँस लेना सीखना होगा, न कि अपनी छाती से. इसे डायाफ्रामिक श्वास कहते हैं. यह आपकी आवाज़ को शक्ति और नियंत्रण देता है.' उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि वे योग की तरह हर दिन इसका अभ्यास करती हैं. उन्होंने कहा, "संगीत में साँस ही जीवन है, और योग में भी. दोनों ही आपके भीतर के आत्म से जुड़ने को लेकर  हैं"

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हमारी बातचीत गहरे स्तर पर पहुँच गई और मैंने उनसे पूछा, "मंत्र जप और मंत्र गायन में क्या अंतर है?"

उन्होंने मेरी ओर देखा, थोड़ा आश्चर्यचकित होकर, "क्या आप समझ पाओगी? मुझे संदेह है. शायद यह आपकी उम्र नहीं है कि  आप इतनी गहरी तकनीकों पर सवाल उठा सको."

लेकिन मैं जिद करती रही, और फिर उन्होने जो कहा वह कुंडलिनी जागृति जादू जैसा था.

उन्होंने कहा, "मंत्र जप और मंत्र गायन दोनों ही हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. हालांकि, दोनों के बीच एक बड़ा अंतर है, खासकर इस बात में कि वे हमारे शरीर और दिमाग को कैसे प्रभावित करते हैं. जब हम मंत्र जप की बात करते हैं, तो हमारा मतलब कुछ शब्दों या ध्वनियों को स्थिर, लयबद्ध तरीके से दोहराना होता है. उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध 'ओम' ' ध्वनि का अक्सर योग और ध्यान में जप किया जाता है. जब आप 'ओम' का जाप करते हैं, तो आप अपनी छाती, गले और यहां तक कि अपने मस्तिष्क में कंपन महसूस करते हैं. यह कंपन केवल एक एहसास नहीं है, इसका वास्तव में आपके शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. प्राचीन भारतीय ज्ञान के अनुसार, हमारे शरीर में 72,000 'नाड़ियाँ' या तंत्रिकाएँ होती हैं. जब हम मंत्र जपते हैं, तो ध्वनि कंपन इन तंत्रिकाओं से होकर गुजरती है, जिससे मन शांत होता है और शरीर में ऊर्जा आती है. दूसरी ओर, मंत्र गायन अलग है. गायन में राग और संगीत शामिल होता है. जब आप कोई मंत्र गाते हैं, तो आप धुन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं और शब्दों के कंपन पर कम. उदाहरण के लिए, यदि आप 'ओम नमः' शिवाय’ मंत्र को संगीतमय तरीके से गाते हैं तो यह सुन्दर लगता है, लेकिन आप अपने शरीर में उस गहरे कंपन को महसूस नहीं कर सकते हैं जैसा आप तब महसूस करते हैं जब आप इसे एक विशेष उच्चारण के साथ धीरे-धीरे और स्थिर रूप से जपते हैं."

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लता जी ने गहरी साँस ली और आगे कहा, "इस अंतर का मुख्य कारण यह है कि हम अपनी आवाज़ का उपयोग कैसे करते हैं. जप करते समय आमतौर पर एक लयबद्ध स्थिर स्वर का उपयोग किया जाता है, और  'ध्यान' हमारे गले, नाभि (बेल बटन) से ध्वनि और शरीर पर इसके प्रभाव पर होता है. गायन में कई तरह के स्वरों का उपयोग किया जाता है, और 'ध्यान' धुन पर अधिक होता है. जब आप जप करते हैं, तो आपके स्वर रज्जु और आपके शरीर में हवा एक विशेष तरीके से कंपन करती है, जिससे एक प्रतिध्वनि पैदा होती है जिसे शारीरिक रूप से महसूस किया जा सकता है. यही कारण है कि जप को कभी-कभी शरीर के लिए 'ध्वनि व्यायाम' कहा जाता है."

मैंने उनसे पूछा कि क्या वे कोई उदाहरण दे सकती हैं? इसपर वे इस मुद्दे पर बहुत दिलचस्पी लेती दिखीं और बोलीं, "चलिए एक उदाहरण लेते हैं. जब आप 'ज्ञ' ध्वनि का जाप करते हैं, तो आपको अपने सिर और छाती में एक भनभनाहट या गुनगुनाहट जैसी ध्वनि महसूस होगी. माना जाता है कि यह कंपन तंत्रिकाओं को उत्तेजित करता है और विश्राम और एकाग्रता में मदद करता है. लेकिन अगर आप उसे 'ग्या' जैसे उच्चारित करने जैसी ध्वनि में गाते हैं, तो कंपन खो जाता है और यह सिर्फ़ एक संगीतमय स्वर बन जाता है. कुछ सामान्य मंत्र जिन्हें अक्सर जप किया जाता है, उनमें 'ओम', 'ओम नमः शिवाय', 'गायत्री मंत्र' और 'महामृत्युंजय मंत्र' शामिल हैं. जब आप इन मंत्रों का जाप करते हैं, तो आप सिर्फ़ शब्द नहीं बोल रहे होते हैं, आप शक्तिशाली कंपन पैदा कर रहे होते हैं जो आपके दिमाग को शांत करने, तनाव को कम करने और शांति लाने में मदद कर सकते हैं." मैंने उससे कहा, "लेकिन लोग सोचते हैं कि यह योगियों, संन्यासियों और गुरुओं द्वारा की जाने वाली एक प्राचीन प्रथा है.

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उन्होने तुरंत बीच में टोकते हुए कहा, "नहीं, आधुनिक विज्ञान भी इस विचार का समर्थन करता है. अध्ययनों से पता चला है कि जप करने से आपकी हृदय गति धीमी हो सकती है, रक्तचाप कम हो सकता है और आप अधिक आराम महसूस कर सकते हैं. जप से उत्पन्न कंपन आपके मूड और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकते हैं. जप करना आपके शरीर और मन को अंदर से एक कोमल मालिश देने जैसा है. यह हमारे शरीर की ध्वनि कंपन की शक्ति का उपयोग द्वारा उपचार और ऊर्जा प्रदान करने के लिए करता है. मंत्रों का गायन, जबकि सुंदर और आनंददायक है, नसों और शरीर के कंपन पर समान प्रभाव नहीं डालता है. इसलिए, यदि आप भारतीय मंत्रों की वास्तविक शक्ति का अनुभव करना चाहते हैं, तो उन्हें धीरे-धीरे जपने का प्रयास करें और अपने अंदर कंपन महसूस करें. यह खुद से जुड़ने और शांति पाने का एक सरल और शक्तिशाली तरीका है."

मैं लता जी के उज्ज्वल ज्ञान के मीठे अमृत में पूरी तरह से भीग गई थी. उन्होंने अपने शुरुआती दिनों के बारे में भी बात की, जब उन्होंने अपने पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर से शास्त्रीय संगीत सीखा था. "उन्होंने मुझे हर सुर, हर शब्द का सम्मान करना सिखाया. शास्त्रीय संगीत ही नींव है. अगर आप इसका अभ्यास करते हैं, तो आप कुछ भी गा सकते हैं." उन्होंने धीरे से, अतीत को खंगालते हुए कहा, याद करते हुए कि कैसे वे घंटों अभ्यास करती थीं, एक ही पंक्ति को तब तक दोहराती थीं जब तक कि वह पूरी तरह से सही न हो जाए. उन्होंने कहा, 'रियाज मेरा मंत्र है. यह मेरी दैनिक प्रार्थना है' और योग भी ऐसा ही है.

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Lata Ji (1)

मैंने उनसे पूछा कि हज़ारों गाने गाने के बाद भी इस उम्र में भी उन्होंने अपनी आवाज़ को इतना शुद्ध और स्पष्ट कैसे रखा है. उन्होंने बताया, 'मैं हर सुबह सरल योग और ध्यान करती हूँ. यह मेरे दिमाग को शांत और मेरे शरीर को स्वस्थ रखता है. गायन केवल गले का जादू नहीं है. यह पूरे अस्तित्व का सार है. जब आप गाते हैं, तो आपको हर शब्द, हर भावना को महसूस करना चाहिए".

उन्होंने अपने उच्चारण के बारे में एक रहस्य भी साझा किया. "मैंने अपना उच्चारण सही करने के लिए एक मौलवी से उर्दू और हमारे पारिवारिक गुरु से शुद्ध संस्कृत की शिक्षा ली. हर भाषा की अपनी सुंदरता होती है. अगर आप शब्दों का सम्मान करते हैं, तो गीत जीवंत हो जाता है".

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हमारी बातचीत धीरे धीरे कृतज्ञता के भाव में बदल गई. वे अपनी आंखे पल भर के लिए बंद करते हुए बोली, 'मैं भगवान, अपने गुरुओं और अपने देश की आभारी हूं. कृतज्ञता के बिना सफलता कुछ भी नहीं है. यह आपको जमीन से जुड़ा और आशावान बनाए रखती है.'

जब मैं उस दिन उनके घर से निकली, तो मुझे लगा कि मैं किसी दिव्य व्यक्ति से मिली हूं. लताजी एक विश्व प्रसिद्ध गायिका थीं और आज भी हैं, लेकिन इसके अलावा, वे विनम्रता, अनुशासन और भक्ति का एक जीवंत पाठ थीं और आज भी हैं.

आज भी, जब मैं उनके श्लोक, मंत्रोच्चार, 'शांताकारं भुजगशयनं', सर्वमंगलमंगल्ये, या कुण्डेन्दु तुषारहारधवला', 'ओम' और 'लग जा गले' या 'ऐ मेरे वतन के लोगों' जैसे गीत सुनती हूं, तो मुझे उनके शब्द, उनकी गर्मजोशी और उनकी आंखों में शांति याद आती है. उनकी आवाज न केवल संगीत में बल्कि उन सभी के दिलों में जीवित है जिन्होंने उन्हें गाते हुए सुना है.

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