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फ़िल्म 'दो चोर' उस युग के विकसित होते सिनेमाई पैटर्न का एक प्रमाण है

"दो चोर", अपने समय का एक आकर्षक रोमांटिक, कमेडी, एक्शन ड्रामा है जो 1972 में रिलीज़ हुई थी. बी पद्मनाभ द्वारा निर्देशित और सुप्रसिद्ध निर्माता राज खोसला द्वारा निर्मित...

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फ़िल्म 'दो चोर' उस युग के विकसित होते सिनेमाई पैटर्न का एक प्रमाण है
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"दो चोर", अपने समय का एक आकर्षक रोमांटिक, कमेडी, एक्शन ड्रामा है जो 1972 में रिलीज़ हुई थी. बी पद्मनाभ द्वारा निर्देशित और सुप्रसिद्ध निर्माता राज खोसला द्वारा निर्मित, इस फिल्म में बॉलीवुड के उस जमाने के टॉप स्टार्स, ही मैन धर्मेंद्र और खूबसूरत तनुजा ने अभिनय किया. उनके साथ शोभना समर्थ, के.एन. सिंह, जगदीश राज, भगवान दादा, लक्ष्मी छाया, धूमल, सज्जान, मुराद, रणधीर त्रिलोक कपूर असित सेन, लीला मिश्रा मोहन चोटी, जलाल आगा जैसे प्रतिभाशाली कलाकार भी हैं.

यह फिल्म कमेडी, प्रेम, ड्रामा, रहस्य और अपराध की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी है. प्लॉट कुछ इस तरह की है कि अचानक एक शहर के चार अलग अलग अमीर घरों में चोरी हो जाती है, चोरी का मोडस ऑपोरेंडी बहुत अजीब होता है. सभी घरों में चोरी का तरीका एक जैसे नज़र आता नज़र आता है. चोर अलमारी तोड़ता है, लॉकर खोलता है और उसमें रखे सारे गहनों में से सिर्फ कोई एक गहना चुराता है, बाकी को वापस रख देता है. और वहां एक स्वस्तिक का निशान छोड़कर चला जाता है जो एक कॉलिंग कार्ड प्रतीत होता है. पुलिस को शक होता है कि यह सारी चोरियां टोनी करता है जो इलाके का एक जाना माना चोर है. हालाँकि, टोनी जोर देकर पुलिस को कहता है कि वह निर्दोष है और खुद यह पता लगाने का फैसला करता है कि असली अपराधी कौन है.

इस सस्पेंस भरे तनाव के बीच, टोनी छिप छिप कर रात को इलाके में हो रही सारी गतिविधियों पर नजर रखता है और तभी उसकी मुलाकात एक चोरनी संध्या से होती है, जिसका किरदार प्रतिभाशाली तनुजा ने निभाया है. दरअसल टोनी संध्या को चोरी के दौरान, एक गहना लेकर बाकी गहने वापस रखने की कोशिश करते हुए पकड़ लेता है. पूछने पर संध्या बताती हैं कि ये गहने उसकी माँ के हैं. संध्या बताती है कि इन अमीर लोगों ने उसके पिता की मृत्यु के बाद उसके परिवार को धोखा दिया था, और माँ के सारे गहने चुरा लिए थे जिससे उसकी माँ मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गई और मानसिक अस्पताल में भर्ती है.

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टोनी को संध्या से सहानुभूति होती है और वो भी उन सफेदपोश अमीरों के घर माँ के गहने चुराने में संध्या की मदद करता है. इस बीच दोनों के बीच एक खूबसूरत प्यार पनपने लगता है. टोनी आखिर अपने प्रयासों से उन चारों सफेदपोशों से सारे गहने वापस लेकर संध्या के मां को दिलवाने में कामयाब हो जाता है और सफेदपोशो को जेल भी भिजवा देता है. अब संध्या की माँ स्वस्थ हो जाती है. टोनी और संध्या भी अपने को पुलिस के हवाले कर देते हैं और कुछ महीनों के जेल की सजा के बाद एक दूसरे से विवाह कर के अच्छी जिंदगी गुजारने की कसम खाते हैं.

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फिल्म में महान संगीतकार आर.डी. बर्मन द्वारा रचित और मजरूह सुल्तानपी द्वारा लिखित गीत, उस जमाने में बेहद हिट साबित हुए. लता मंगेशकर द्वारा गाया गीत यारी हो गई यार से लक टूनो टूनो, मोरा छोटा सा बलमवा और किशोर कुमार तथा लता मंगेशकर द्वारा गाया गीत चाहे रहो दूर चाहे रहो पास, काली पलक तेरी गोरी, खुलने लगी है थोड़ी थोड़ी और किशोर कुमार द्वारा गाया गीत मेरी जान, मेरी जान सत्तर के दशक की बड़ी रंगीन गाने हुआ करती थी.

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राज खोसला हमेशा से ही वो फिल्में निर्मित करते थे जो दर्शकों को रोमांच, रहस्य और प्यार के झूले में झुला सके. फ़िल्म 'दो चोर' उन्ही में से एक फ़िल्म थी. यह कहानी न केवल मनोरंजन करती है बल्कि हमें प्यार, न्याय और जो सही है उसके लिए खड़े होने के महत्व के बारे में भी सिखाती है.

आइए जानते हैं इस फ़िल्म के पीछे की कुछ फैक्ट्‍स:--

फ़िल्म का एक गीत "मेरे जान" क्लिफ रिचर्ड्स के गाने "फॉल इन लव विद यू" से लिया गया था.

फिल्म बहुत सफल रही और इसके इंटीरियर की बड़ी सराहना हुई.

कुछ लोग मानते हैं कि यह फ़िल्म 'हाउ टू स्टील अ मिलियन' का रीमेक.

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बताया जाता है कि पहले एक्ट्रेस साधना को इस फिल्म के लिए साइन किया गया था लेकिन बाद में उन्होंने फिल्म छोड़ दी.

आर.डी. बर्मन के गीत 'काली पलक तेरी गोरी' के अंतरे, उनके के एस डी बर्मन के गीत "सुन मेरे मुन्ने आ" ("ज्योति", 1969) के अंतरे की रचना से प्रेरित हो सकती है.

इस फ़िल्म का एक और गीत 'मेरी जान मेरी जान कहना मानो' का मुखड़ा क्लिफ रिचर्ड के "फॉल इन लव विद यू" (1960) से लिया बातया गया था.

यह भी अफवाह है कि फ़िल्म का वो गाना, 'चाहे रहो दूर चाहे रहो पास, को जतिन - ललित ने अपने गीत "हम तुम" ("हम तुम", 2004) के पहले अंतराल में इस गीत के पहले अंतराल में सैक्सोफोन एकल का पुन: उपयोग किया.

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फिल्म में समकालीन सिनेमैटोग्राफ़िक तकनीकों का उपयोग किया गया, जिसमें बॉम्बे के शहरी इलाकों को प्रामाणिकता के साथ दर्शाया गया है.

हालांकि यह फिल्म कोई बहुत बड़ा ब्लॉकबस्टर नहीं था लेकिन इसने व्यावसायिक रूप से काफी अच्छा प्रदर्शन किया. यह कई थिएटरों में लगभग 25 सप्ताह तक चला.

इसके अनुमानित वित्तीय विवरण के अनुसार इसका प्रोडक्शन बजट: 7 लाख रुपए और कलेक्शन 25-30 लाख रुपये था.

1972 बॉलीवुड के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष था, जिसमें कई उल्लेखनीय फ़िल्में रिलीज़ हुईं:
- पाकीज़ा, सीता और गीता, दुश्मन, राजा जानी और दो चोर और यह पांचों फिल्में आज भी याद की जाती है.

यह फ़िल्म 1970 के दशक की शुरुआत के फैशन को दर्शाता है:
- बेल-बॉटम, पैंट और फिटेड शर्ट.

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नायिका के लिए भी अपारंपरिक भारतीय परिधान इसमें दिखा.

खबरों के मुताबिक एक सीन में प्रोप ज्वेलरी के बजाय असली ज्वेलरी के साथ शूट किया गया था.

कहा जाता है कि यह फिल्म राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार में संरक्षित है, जो 1970 के दशक की शुरुआत के भारतीय सिनेमा की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कलाकृति का प्रतिनिधित्व करती है.

"दो चोर" 1970 के दशक की बॉलीवुड की क्रिएटिव क्षमता का उदाहरण है, यह दर्शाता है कि कैसे फिल्में एक साथ मनोरंजक और कथात्मक रूप से जटिल हो सकती हैं. यह उस युग के विकसित होते सिनेमाई पैटर्न का एक प्रमाण है.

यह फिल्म क्लासिक हिंदी सिनेमा की सराहना करने वालों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती है.

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