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'गंगा जमुना (1961)' एक ऐसी ऐतिहासिक बॉलीवुड फिल्म है, जो उन दिनों न्याय अन्याय पर विचार चाहते हुए बनाया गया था, जिन दिनों हमारे देश में डकैतों के खौफ का बोलबाला था. ये फ़िल्म नितिन बोस द्वारा निर्देशित और प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार द्वारा निर्मित है, जिसमें खुद दिलीप कुमार वैजयंतीमाला और दिलीप कुमार के सगे भाई नासिर खान ने मुख्य भूमिका निभाई. उस जमाने में बनी ये फ़िल्म आज भी एक कल्ट फ़िल्म के तौर पर बॉलीवुड के फिल्मों के इतिहास में एक मिसाल के तौर पर रेखांकित है. यह फिल्म दो भाइयों, गंगा और जमुना की मार्मिक कहानी पर आधारित है. यह दोनों भाई अपनी अपनी परिस्थिति के कारण, एक कानून के पक्षधर और दूसरा कानून के विरोधी बन जाते हैं. एक भाई डाकू के रूप में और दूसरा एक पुलिस अधिकारी के रूप में.
उत्तर प्रदेश के एक काल्पनिक गांव हरिपुर पर आधारित यह फिल्म सामंतवाद के तहत भाई-भाई की प्रतिद्वंद्विता, गरीबी और सामाजिक अन्याय पर प्रकाश डालती है. यह फ़िल्म, उस दौर की फिल्मों में, अपने टेक्नीकलर प्रॉडक्शन और हिंदी के बदले अवधी भाषा के उपयोग के कारण उत्तर प्रदेश, बिहार में तो उल्लेखनीय था ही , पूरे देश में हर अवधि, भोजपुरी, हिन्दी बोलने वालों के लिए पसंदीदा फ़िल्म बन गई थी, आज भी ये फ़िल्म विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में याद की जाती है. इस फ़िल्म ने डकैत शैली की फिल्मों में एक एवरग्रीन और निर्णायक प्रविष्टि बना दिया. फ़िल्म बनकर पूरी होने के बाद भी, कई तकनीकी और राजनैतिक अड़चनों के कारण यह फ़िल्म छह महीने की देरी के बाद जनवरी 1961 में रिलीज हुई. यह फ़िल्म उस दशक की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक के रूप में इतिहास रच चुकी है. दुनिया भर में इसके अनुमानित 84 मिलियन टिकट बेचे गए, जो दशकों बाद भी भारत की सबसे ज्यादा कलेक्शन करने वाली फिल्मों में शुमार हो गई.
उन दिनों दिलीप कुमार सिर्फ बतौर एक्टर टॉप पर थे लेकिन इस फिल्म के साथ उन्होने पहली बार फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और सिर्फ यही नहीं- दिलीप कुमार ने पूरी फ़िल्म का घोस्ट निर्देशन, घोस्ट राइटिंग और घोस्ट संपादन सहित प्रॉडक्शन के सभी पहलुओं में भारी रूप से शामिल हुए थे. फिल्म का संवाद वजाहत मिर्जा द्वारा लिखा गया था, जिसने फ़िल्म के ऑथेंटिक ग्रामीण स्वाद में योगदान दिया. गंगा जमुना (1961) एक मौलिक बॉलीवुड फिल्म है जो भारतीय सिनेमा की समृद्ध कहानी और सांस्कृतिक गहराई का प्रमाण है. यह फिल्म ग्रामीण भारत की पृष्ठभूमि में भाईचारे, कानून और नैतिकता के विषयों को बड़ी ही खूबसूरती से बुना है.
अवध क्षेत्र के गांव पर आधारित, 'गंगा जमुना' दो गरीब भाइयों, गंगा (दिलीप कुमार) और जमुना (नासिर खान) के जीवन में एक दुखद मोड़ आता है जब उनकी मां, गोविंदी, जिसका किरदार लीला चिटनिस ने निभाया है, पर स्थानीय जमींदार द्वारा चोरी का झूठा आरोप लगाया जाता है. इस अन्याय के शॉक के कारण माँ की असामयिक मृत्यु हो जाती है , जिससे गंगा को अपने छोटे भाई की देखभाल करते हुए कठिनाइयों से भरी जिंदगी गुजारनी पड़ती है . बड़ा भाई गंगा, बहुत मेहनत मजदूरी करके अपने अपने छोटे भाई को पढ़ाता लिखाता है, लेकिन जमींदार के धौंस में कभी नहीं आता. वो दिल ही दिल में उस जमीदार के कारण माँ की मृत्यु का बदला लेना चाहता है. जमींदार भी अक्सर, बिना किसी गलती के गलत इल्ज़ाम में गंगा को फँसाता रहता है. जमींदार की बुरी नजर गंगा की प्रेमिका धन्नो (वैजयंती माला) पर रहती है, एक दिन वो धन्नो के साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश करता है और तब गंगा मौके पर पहुंच कर धन्नो को बचा लेता है. इस बात से नाराज जमीदार गंगा पर बहुत बड़ा झूठा आरोप लगाकर उसपर पुलिस केस कर देता है. इससे बचने के लिए गंगा और धन्नो दोनों गांव से भाग कर बीहड़ में चले जाते हैं और डाकुओं के गिरोह में शामिल हो जाते हैं और डकैतों के साथ गंगा अपराध के जीवन में उलझ जाता है. धन्नो के साथ वो बीहड़ में ही विवाह कर लेता है. इसके विपरीत, उसका छोटा भाई जमुना, एक पुलिस अधिकारी (नज़ीर हुसैन) के संरक्षण में उच्च शिक्षा प्राप्त करके एक पुलिस अधिकारी बन जाता है. इस तरह दोनों भाइयों के रास्ते नाटकीय रूप से अलग हो जाते हैं, जिससे तीव्र संघर्ष होता रहता है. अपने बच्चे के जन्म के बाद जब गंगा वापस साफ सुथरे जीवन में लौटने के लिए, और कानून से माफी मांगने के लिए अपने गांव - घर लौटता है तो कानून के रक्षक के रूप में उसका छोटा भाई के हाथों गोली का शिकार हो जाता है क्योकि छोटे भाई को लगता है कि गंगा फिर भाग जाएगा. उधर अपने भाई के हाथों मरते मरते गंगा के अंतिम शब्द, 'हम घर आय गए मुन्ना' दर्शकों के दिल को छलनी कर जाता है.
'गंगा जमुना' न केवल अपनी मनोरंजक कथा के लिए बल्कि अपनी तकनीकी उपलब्धियों के लिए भी उल्लेखनीय है. यह टेक्नीकलर में शूट की गई पहली भारतीय फिल्मों में से एक थी, जिसने इसकी दृश्य कहानी को एक वैभवशाली रूप दिया. वजाहत मिर्ज़ा द्वारा लिखित फिल्म के संवाद में अवधी बोली का समावेश है, जो इसे आम जनता के लिए अपनेपन प्रदान करता है और इसे क्षेत्रीय संस्कृति में स्थापित करता है. स्थानीय बोलियों का यह प्रयोग उस समय नया था क्योंकि उस जमाने की फिल्मों में साफ हिंदी और उर्दू डायलॉग का चलन था. लेकिन फ़िल्म गंगा जमुना में अवधि डायलॉग्स ने फिल्म के यथार्थवाद में योगदान दिया.
फिल्म का संगीत नौशाद द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें यादगार गाने शामिल थे जो तब भी क्लासिक बन गए हैं और आज भी एवरग्रीन है. 'ढूंढो ढूंढो रे साजना, मोरे कान का बाला, दगाबाज तोरी, बतिया ना मानू रे, दो हंसों का जोड़ा, झनन झनन घुंघरू बाजे, नैन लड़ जैहें तो मनवा मा कसक होईबे करी, ओ छलिया रे छलिया रे, तोरा मन बड़ा पापी सवारियां रे, चल चल रे गोरिया पी की नगरिया, इंसाफ की डगर पे" जैसे ट्रैक आज भी दुनिया याद करती है. यह गाने फिल्म की व्यापक कथा के अनुरूप हैं.
छह महीने की देरी के रोक थाम के बाद जनवरी 1961 में रिलीज़ होने पर, गंगा जमुना को आलोचकों की प्रशंसा और व्यावसायिक सफलता दोनों भरपूर मिली. दुनिया भर में अनुमानित 84 मिलियन टिकटों की बिक्री के साथ, यह अपने समय की सबसे अधिक मुनाफा करने वाली फिल्मों में से एक बन गई है. फिल्म का प्रभाव बॉक्स ऑफिस आंकड़ों से कहीं आगे तक बढ़ गया था. इसने नौ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में एक्सलेंसी योग्यता के प्रमाणपत्र सहित ढेर सारे कई और पुरस्कार जीते.
दिलीप कुमार के गंगा के चित्रण को उनके बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक माना जाता है, जिसने अभिनेताओं की पीढ़ियों को प्रभावित किया है. अमिताभ बच्चन ने अपने करियर को आकार देने में इस भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है. फिल्म की पारिवारिक प्रेम और नैतिक संघर्ष के विषयों ने बॉलीवुड में अनगिनत फिल्म निर्माताओं और पटकथा लेखकों को इस तरह की अन्य कई फिल्में बनाने के लिए प्रेरित किया है.
जानिए इस फ़िल्म की कुछ अन्य अनजान बातें :--
दिलीप कुमार फिल्म के निर्देशन और संपादन में पूरी तरह से शामिल थे. फ़िल्म के फाइनल प्रोडक्ट पर दिलीप कुमार के संपूर्ण प्रभाव के कारण उन्हें अक्सर घोस्ट निर्देशक के रूप में जाना जाता था.
क्लाइमैक्स सीन में, जब दिलीप कुमार की गोली लगने से मृत्यु होती है, उस सीन को शूट करते समय, दिलीप कुमार ने कैमरा मैन वी बाबासाहेब को निर्देश दिया था कि वो थोड़ी ही दूरी से इस दृश्य को शूट करे ताकि उसके एक एक चेहरे का भाव कैप्चर हो सके.
इस फ़िल्म में दिलीप कुमार का परफॉर्मेंस को हिंदी फिल्मों के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ माना था.
दिलीप कुमार ने पहली और आखिरी बार कोई फ़िल्म प्रोड्यूस किया, citezan films के बैनर तले.
अरुणा ईरानी इस फ़िल्म में बाल कलाकार के रूप में काम किया.
जब ये फ़िल्म विवादित फ़िल्म के रूप में सेंसर में अटक गई थी तो जर्नलिस्ट वीर सांघवी घवी के पिता श्री रमेश सांघवी ने फ़िल्म की रिलीज़ में मदद की. उन दिनों वे जाने माने लॉयर थे.
वैजयंती माला ने साउथ इंडियन होने के बावजूद पहली बार अवधि डायलॉग बोली और ऐसे बोली की अच्छे अवधि बोलने वाले भी दंग रह गए.
उन दिनों लोगों ने इस फ़िल्म को 1957 की फ़िल्म 'मदर इंडिया' से प्रेरित फ़िल्म बताया.
फिल्म में दो भाईयों, गंगा और जमुना का किरदार दिलीप कुमार और नासिर खान ने निभाया जो सचमुच, रियल लाइफ भाई थे. अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे.
खबरों के मुताबिक 1997 में, आज के सुपर डुपर हिट निर्देशक अनीस बज़्मी, शरद कपूर और मुकुल देव को 'गंगा जमुना' नामक फ़िल्म में निर्देशित कर रहे थे, पर वो बनी नहीं.
इस फिल्म ने तमिल और मलयालम रूपांतरण सहित विभिन्न भाषाओं में कई रीमेक को प्रेरित किया.
फ़िल्म 'गंगा जमुना' को बोस्टन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के पुरस्कारों सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रशंसा मिली.
अवधी बोली के बहुत ज्यादा उपयोग ने उस युग की हिंदी फिल्मों से एक बदलाव को चिह्नित किया, जिससे किरदारों की बातचीत में गहराई आई.
फ़िल्म 'दीवार' (1975) और 'अमर अकबर एंथोनी' (1977) जैसी फिल्मों में कथा संरचना और विषयों ने पटकथा लेखक सलीम-जावेद के भविष्य के कार्यों को प्रभावित किया.
'गंगा जमुना', भारतीय सिनेमा की एक प्रेस्टिजिअस मिसाल बन गई है जो न केवल दिलीप कुमार की अपार प्रतिभा को प्रदर्शित करती है बल्कि अपनी सम्मोहक कहानी के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को भी दर्शाती है. इसकी विरासत फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं को समान रूप से प्रेरित करती है. सीनेमैटिक इतिहास में यह फ़िल्म एक क्लासिक के रूप में अपनी जगह दशकों-दशकों तक मजबूती से कायम रखा हुआ है जो आज भी दर्शकों के बीच प्रसिध्द है.
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