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हमारी पिछली पीढ़ी के लिए Julie, 1975 की वो बॉलीवुड फ़िल्म थी जिसे आम रूढ़िवादी परिवार के माँ बाप अपने बच्चों के साथ देखने से शर्माते थे और युवा लोग भी इसे या तो दोस्तो के साथ देखने का मजा लेते थे या प्रेमी प्रेमिका छिपकर इसे देखने का आनंद लेते थे हालांकि उस जमाने में, इसमें मादक दृश्यों, बिन ब्याही गर्भ ठहरने और ढेर सारी सनसनाती सेक्सी प्रेम दृश्यों के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से इसे अडल्ट फ़िल्म की श्रेणी में नहीं रखी गई। जूली उन फ़िल्मों में से एक है जो देखने के बाद भी लंबे समय तक आपके दिमाग में रहती है। यह रोमांस के नतीजे, प्यार की भावनाएँ , दिल टूटने, परिवार की रस्सा कस्सी और ऐसे समाज में रहने के संघर्षों को दिखाती है जो अपने पसंद के हिसाब से आपको आंकता है। के.एस. सेतुमाधवन द्वारा निर्देशित, जूली दरअसल 'चट्टाकारी' नामक एक मलयालम फ़िल्म की रीमेक थी। दिलचस्प बात यह है कि इस फ़िल्म की मुख्य अभिनेत्री लक्ष्मी ने दोनों संस्करणों में नायिका की भूमिका निभाई थी। हिंदी सिनेमा में जूली ही लक्ष्मी की पहली बड़ी शुरुआत थी, और उन्होंने इसे पूरी तरह से निभाया।
जूली (लक्ष्मी) की कहानी एक एंग्लो-इंडियन लड़की की कहानी है जो अपनी सख्त माँ मारग्रेट (नादिरा) और शराबी पिता मॉरिस (ओम प्रकाश) के साथ रहती है। रिचर्ड (जलाल आगा) उनके पारिवारिक दोस्त हैं जो जूली से प्यार करता है। जूली की ज़िंदगी तब बदल जाती है जब उसे अपनी पक्की सहेली उषा भट्टाचार्य (रीता भादुड़ी ) के भाई शशि भट्टाचार्य (विक्रम मकन्दर) से प्यार हो जाता है। अब यहाँ यह पेच है कि शशि एक हिंदू परिवार से है, और जूली की एंग्लो-इंडियन ईसाई पृष्ठभूमि, उनके प्रेम के रिश्ते को एक बड़ा इशू बनाती है। जब जूली अपने बॉयफ्रेंड से शादी किए बिना ही गर्भवती हो जाती है तो मामला और भी जटिल हो जाती हैं। शशि को जूली की प्रेग्नेंसी के बारे में पता नहीं चलता और वो काम के सिलसिले में शहर चला जाता है। कुँवारी माँ बनना उस समय बहुत बड़ी बात थी क्योंकि उन दिनों समाज उन महिलाओं के प्रति निष्ठुर रवैया अपनाती थी जो विवाह से पहले बच्चे पैदा करती थीं।
जूली की माँ मारग्रेट को जब जूली के गर्भावस्था के बारे में पता चलता है तो वह बहुत क्रोधित हो जाती है। वह अपने घर वालों और दुनिया से छुपा कर जूली का गर्भपात कराने बारे में सोचती है, लेकिन मार्गरेट की सहेली रूबी आंटी (सुलोचना) जो एक धर्म भीरु क्रिश्चियन है, उसे ऐसा करने से रोकती है और गर्भपात के बजाय, जूली को अपने बच्चे को गुप्त रूप से जन्म देने के लिए दूर भेज देती है है। जन्म देने के बाद, बच्चे को अनाथालय में छोड़ दिया जाता है, और जूली अपने परिवार और समाज का सामना करने के लिए घर लौटती है। इसके कुछ समय बाद ही उसके पिता की मृत्यु हो जाती है, जिससे जूली को घर चलाने के लिए जॉब करना पड़ता है। लेकिन वो अपने बच्चे को नहीं भूल पाती और तड़पती रहती है। फिल्म एक भावनात्मक चरमोत्कर्ष पर पहुँचती है जहाँ शशि वापस लौटता है और जूली उसे सारी बाते बात बता देती है। शशि उससे शादी करना चाहता है लेकिन उसकी माँ देवकि (अचला सचदेव) धार्मिक मतभेदों के कारण किसी क्रिश्चियन लड़की से अपने बेटे का विवाह करना नहीं चाहती। हालांकि शशि का पिता (उत्पल दत्त) खुले विचारों का है और उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है। जूली की माँ भी हिन्दू दामाद नहीं चाहती और बेटी को लेकर इंग्लैंड लौटना चाहती है। आखिर शशि के पिता सबको समझाते हैं और आखिर जूली और शशि के प्यार को सबका आशीर्वाद मिल जाता है। इस फ़िल्म में श्रीदेवी जूली की छोटी बहन बनी है। यह उनकी शुरुआती भूमिकाओं में से एक हैं। उस समय वह एक बच्ची ही थीं, लेकिन उनमें पहले से ही उस स्टार की झलक दिखाई दे रही थी जो वह आगे चलकर बनीं।
जूली के हिट होने का एक सबसे बड़ा कारण इसका संगीत था। महान संगीतकार रौशन के छोटे बेटे राजेश रोशन ने इस फिल्म में जो म्यूजिक दिए थे वो जादुई थे। हर ट्रैक आज भी ताज़ा लगता है। फिल्म का सबसे मशहूर गाना किशोर कुमार द्वारा गाया गया "दिल क्या करे" है - यह उन सदाबहार गानों में से एक है जिसे लोग आज भी गुनगुनाते हैं। अखरोटी आँखों वाली गायिका प्रीति सागर द्वारा गाया गया एक बेहतरीन गाना "माई हार्ट इज़ बीटिंग" ने उस वर्ष बॉलीवुड संगीत जगत में हलचल मचा दिया था। इस अनोखे गीत में वसंत मौसम और प्रेम को अंग्रेजी में रेखांकित किया गया था, जो उस समय बॉलीवुड हिंदी फिल्मों में आम नहीं था। इसके अलावा, 'भूल गया सब कुछ, यह रातें नई पुरानी, सांचा नाम तेरा भी बहुत ही हिट गाने थे।
जूली के पर्दे के पीछे की कहानियाँ भी काफी दिलचस्प हैं। उदाहरण के लिए, कथित तौर पर आनंद बख्शी ने राजेश रोशन की धुन सुनने के बाद सिर्फ़ दस मिनट में "दिल क्या करे" लिख दिया था, ऐसी रचनात्मक प्रतिभा दुर्लभ है। इस फिल्म के निर्माता और टीम ने फिल्म में एंग्लो-इंडियन संस्कृति को चित्रित करते समय बारीक से बारीक विवरणों पर भी पूरा ध्यान दिया। वे चाहते थे कि सब कुछ वास्तविक लगे।
लक्ष्मी ने खुद अपनी हिंदी पर कड़ी मेहनत की क्योंकि इस फिल्म से पहले वह हिंदी में पारंगत नहीं थीं।
हालांकि किशोरी डिंपल कपाड़िया ने इस फ़िल्म के रिलीज़ से दो साल पहले ही सुपर हिट फिल्म 'बॉबी' में अपने शो से लोगों का दिल जीत लिया था लेकिन लक्ष्मी अपनी शर्मीली मादक अदाओं और अंतर्मुखी, डरपोक किरदार को जिस तरह से निभाया वो ताजी हवा के झोंके की तरह थी। फ़िल्म में उसका किरदार जूली, वैसे तो बड़ी पाबंद स्वभाव की थी लेकिन अजीब तरह से अपनी सहेली के भाई (विक्रम) की इच्छाओं के आगे झुक जाती थी।
इस फ़िल्म के एक दृश्य में जब किसी बच्चे की रोने की आवाज सुनकर अपने खोए बच्चे के लिए तड़पती जूली का ब्लाउज दूध से भीग जाता है, यह दृश्य हर माँ के लिए एक मार्मिक दृश्य बन गया था। अपनी पहली हिंदी फिल्म की अपार सफलता के बावजूद, लक्ष्मी को ज्यादातर दक्षिण भारतीय फिल्मों में ही पहचान मिली।
प्रीति को 'माई हार्ट इज बीटिंग' (गीत लिखा एक्टर, हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने) के लिए फिल्मफेयर नामांकन तो जरूर मिला लेकिन आशा भोसले के क्लासिक 'चैन से हमको कभी' के आगे वे अवार्ड हार गईं। लेकिन अंततः उन्होंने तीन साल बाद फ़िल्म मंथन के, 'मेरो गाम काथा पारे' के लिए यह फिल्मफेयर पुरस्कार जीत ही लिया।
राजेश रोशन ने जूली के साथ संगीतकार के रूप में अपनी सफल शुरुआत की और 50 साल बाद भी शीर्ष संगीतकार बने हुए हैं जो आज तक किसी भी संगीतकार ने हासिल नहीं किया था।
राजेश रोशन की माँ भी संगीतकार थीं और उन्होंने अपने बेटे राजेश रोशन को उनकी रचना में मदद की। उनके सबसे बड़े बेटे राकेश रोशन एक अभिनेता निर्माता है। जो बाद में फिल्म निर्माता बन गए और आज वे 30 से अधिक वर्षों से प्रमुख शीर्ष फिल्म निर्माताओं में से एक हैं।
साथ ही उनके पोते ऋतिक रोशन भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े प्रमुख अभिनेताओं में से एक हैं।
लक्ष्मी मूल मलयालम फिल्म चट्टाकारी 1974 में भी मुख्य भूमिका में थीं।
दिल क्या करें गीत को क्वेल और मेकर द्वारा "द आईटी इन कीपिंग इट रियल" गीत में भी सैंपल किया गया था।
पॉप गायक सुखदेव ने "माई हार्ट इज़ बीटिंग" गीत का एक और संस्करण बनाया था।
श्रीदेवी 11 साल की थीं जब उन्होंने फिल्म की शूटिंग शुरू की। वह उसी समय दक्षिण में मुख्य नायिका के रूप में अपनी पहली फिल्म की शूटिंग भी कर रही थीं। मजे की बात यह है कि जूली में उनका एक प्रेमी होना था, लेकिन उस उम्र में श्रीदेवी को इसका मतलब नहीं पता था।
श्रीदेवी की मॉम इस बात से बेहद नाराज़ हो गई थीं कि फिल्म के शूटिंग के वक्त बिना पूछे श्रीदेवी के बाल काट दिए गए थे।
यह फिल्म संगीतकार राजेश रोशन की संगीतकार के रूप में पहली फिल्म थी और इसने वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार भी जीता और 25 साल बाद वर्ष 2000 में कहो ना प्यार है के लिए उन्होंने फिर से वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार नवाजा गया। इससे पता चला कि उनकी अभी भी मांग है। ऐसा पहली बार हुआ कि किसी संगीतकार ने 25 साल बाद दूसरा पुरस्कार जीता। जूली अभिनेता विक्रम, अभिनेत्री लक्ष्मी और श्रीदेवी (छोटी बहन की भूमिका में) की पहली हिंदी फिल्म है। माई हार्ट इज़ बीटिंग हिंदी फिल्म में पहला पूर्ण अंग्रेजी गाना था।
एक अजीब बात यह है कि श्रीदेवी और रीता भादुड़ी ने इस फिल्म द्वारा अपने-अपने हिंदी अभिनय करियर का डेब्यू किया था और दोनों का निधन भी वर्ष 2018 में हो गई थी।
जूली कोई साधारण एंगल में एक प्रेम कहानी नहीं थी यह अपने समय के हिसाब से बेहद बोल्ड थी क्योंकि इसमें अंतरधार्मिक रिश्तों और अविवाहित मातृत्व जैसे विषयों पर सवाल उठाए गए थे , जिन्हें उस समय वर्जित माना जाता था और दिखाया गया कि समाज उन लोगों के प्रति कितना कठोर हो सकता है जो इसके मानदंडों में फिट नहीं बैठते हैं, लेकिन यह भी कि कैसे प्यार उन बाधाओं को तोड़ सकता है।
आज भी, जूली एक क्लासिक माना जाता है। अगर हमारी आज की पीढ़ी ने इसे अभी तक नहीं देखा है, तो आप कुछ वाकई खास मिस कर रहे हैं।
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