कुछ दिन पहले मेरे एक रिश्ते के कज़न, ज्योति भूषण मजुमदार ने मुझे किशोर कुमार का एक ब्लैक एंड व्हाइट कॉमेडी गीत का वीडियो भेजा, लेकिन गूगल सर्च खंगालने पर भी मुझे उस गाने का अता पता नहीं मिल रहा था. आखिर मैंने किशोर कुमार के बेटे सुप्रसिद्ध गायक, कॉमपोज़र अमित कुमार को वो वीडियो भेज कर माजरा पूछा कि गूगल में लीजेंड किशोर कुमार के सभी ब्लैक एंड व्हाइट वीडियो मौजूद है लेकिन यह गाना क्यों नहीं मिल रहा है तब अमित कुमार ने मुझे बताया कि यह गाना एक दूसरे गाने का सेकंड भाग है इसलिए गूगल में पहले वाला भाग दिख रहा है और पहले वाले भाग को अगर पूरा देखा जाए तो इसमें सेकंड पार्ट में यह दुर्लभ गीत दिख जाएगा अमित कुमार ने मुझे लिंक भी भेजा और उन्होंने यह भी कहा कि इस फिल्म में उनके पिता किशोर कुमार ने एक स्पेशल अपीयरेंस किया था. फिल्म का नाम है 'परवरिश' जो की 1956 में रिलीज हुआ था. आइए जानते हैं फ़िल्म 'परिवार ' के बारे में. एक संयुक्त परिवार जिसमें चार भाई, उनकी पत्नियाँ और उनके बच्चे एक ही छत के नीचे रहते हैं. असित सेन द्वारा निर्देशित और बिमल रॉय द्वारा निर्मित यह फिल्म, एक बड़ी हवेली के भीतर स्थापित पारिवारिक उथल पुथल पर आधारित कहानी है . कहानी चौधरी बंधुओं के इर्द-गिर्द घूमती है, प्रत्येक का व्यक्तित्व अलग है.जो उनके रिश्तों और व्यक्तिगत प्रेम और झगड़ों पर केंद्रित है.
इनमे से कुछ भाई प्रोफेशनल्स हैं, एक वकील, एक डॉक्टर, एक म्यूजिशियन और एक अन्य व्यवसायी हैं. वे एक खुशहाल परिवार में रहते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख साझा करते रहते हैं. घर में नौकर चाकर, खानसमा भी है. एक बार, घर में बच्चे के जनेऊ कार्यक्रम में बहुत मेहमान आते हैं और घर की महिलाएं मिलकर सब संभाल लेते हैं लेकिन फिर भी उन्हे डांट पड़ती रहती है. जब प्रोग्राम खत्म होता है और सब अच्छी तरह से निपट जाता है तो घर के पुरुष डिंगे हांकने लगते हैं कि उन्ही की वजह से सब कार्यक्रम सुचारु रूप से संपन्न हुआ जबकि असल बात यह है कि घर की महिलाओं ने मोर्चा संभाला था इसलिए सारा कार्यक्रम अच्छी तरह संपन्न हुआ था. मर्दों की डिंगे सुनकर घर की महिलाएं आपस में फैसला करती है कि वह अपने-अपने पतियों को मजा चखाएंगे और बताएंगे कि घर संभालने में घर की स्त्रियों का कितना बड़ा हाथ होता है. फिर एक दिन, एक गिलास दूध को लेकर बहस शुरू हो जाता है, और पूरे परिवार में गड़बड़ी और उथल पुथल मच जाता है और तब एकमात्र समाधान यह प्रतीत होता है कि पूरी संपत्ति को सभी भाइयों और उनके संबंधित परिवारों के बीच बांट दिया जाए. आधी फ़िल्म तो इतने बड़े परिवार का इंट्रोडक्शन और उनके अलग-अलग स्वभाव को दिखाने में ही निकल जाता है. यह फिल्म एक आम परिवार में होने वाले उथल-पुथल, समस्याओं, छोटी-छोटी खुशियां, एक दूसरे से प्यार और छोटे-छोटे झगड़ा टंटा पर आधारित है.
इस फिल्म में उस समय के बेहतरीन कलाकार विपिन गुप्ता, जयराज, दुर्गा खोटे, उषा किरण, सज्जन, कुमुद, अनवर हुसैन, सुलोचना लटकर, आगा, धुमाल, शिवराज और असीम कुमार ने काम किया था. हालांकि किशोर कुमार के पुत्र अमित कुमार के अनुसार इस फिल्म में उनके बाबा किशोर कुमार ने मेहमान भूमिका निभाई थी. लेकिन इस फ़िल्म के इतिहास में यह भी स्पष्ट है कि उस समय (और आज भी) किशोर कुमार का नाम इतना ज्यादा बुलंद था और वे एक विश्व प्रसिद्ध कलाकार तथा गायक के तौर पर इतने ज्यादा प्रसिद्ध थे कि उनका किसी फ़िल्म में एक छोटा सा स्पेशल अपीरियंस या एक गाना भी होना, फिल्म को सुपरहिट करने की ताकत रखती थी. 'परिवार' एक सुपर हिट फिल्म साबित हुई. किशोर कुमार के कारण ही दर्शक उमड़ उमड़ कर फ़िल्म देखने आए थे. किशोर कुमार की भागीदारी ने फिल्म में एक अनोखी झलक ला दी, क्योंकि इस फिल्म में उन्होंने न केवल गाया, बल्कि संगीत प्रतिभा के साथ हास्य का मिश्रण जोड़ते हुए स्क्रीन पर उन्होने आग लगा दी थी. यह फिल्म अपने समृद्ध चरित्र चित्रण और गंभीर विषयों के बीच हल्के-फुल्के क्षणों के लिए विख्यात है.
"परिवार" आज भी भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण कृति बनी हुई है, जो उस युग के दौरान संगीत और पारिवारिक जीवन के अंतरसंबंध को प्रदर्शित करती है. 1956 में रिलीज़ हुई, ये फ़िल्म 'परिवार' एक क्लासिक हिंदी फिल्म है जो भारत में पारिवारिक जीवन के सार को खूबसूरती से दर्शाती है. यह फिल्म नाटक, कॉमेडी और संगीत का एक दिल छूने वाला कमाल है, जो पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं को प्रदर्शित करती है. 'परिवार' का संगीत सलिल चौधरी द्वारा तैयार किया गया था, जो अक्सर पारंपरिक भारतीय संगीत को समकालीन म्यूजिक के साथ मिश्रित करने की अपनी नई शैली क्षमता के लिए, जाने जाते थे. उस फ़िल्म के गाने ही फिल्म की कहानी कहने का अभिन्न अंग हैं. किशोर कुमार ने फ़िल्म में अपने स्पेशल अपीरियंस के साथ "कूएँ में कूदके मर जाना" गीत के साथ अपने हुक स्टेप्स के जलवे बिखेरे. उनकी अनूठी गायन शैली और मस्ती से भरी योडलिंग को फ़िल्म में समा बांध देता था. इस कॉमेडी गीत के अलावा फिल्म में कई और अच्छे गाने हैं जैसे- जा तोसे नहीं बोलूं कन्हैया, झिर झिर झिर झिर बदरवा बरसे, एक दो तीन, एक दो तीन, बावली बनाकर छोड़ा है, गीत शैलेन्द्र द्वारा लिखे गए थे जिसके कारण फिल्म में भावनात्मक गहराई जुड़ गई थी.
Pariwar 1956 All Songs
'परिवार' का निर्माण दिलचस्प क्षणों से भरा हुआ था. इसमें किशोर कुमार विशेष रूप से उल्लेखनीय थे. वह सेट पर अपनी नटखट और मस्ती पूर्ण हरकतों के लिए जाने जाते थे. उनकी विशेष उपस्थिति सिर्फ अभिनय तक सीमित नहीं थी, वे अपने सहज हास्य से दृश्यों में जान डालने के बारे में भी था. टेक के बीच चुटकुले सुनाने और गंभीर शूटिंग शेड्यूल के दौरान मूड को हल्का बनाए रखने की कई कहानियाँ हैं. एक कम ज्ञात तथ्य यह है कि किशोर अक्सर गाते समय विभिन्न आवाज़ों के साथ प्रयोग करते थे. इस क्षमता ने उन्हें अपने गीतों में विशिष्ट चरित्र बनाने में मदद दी, जिससे वे यादगार बन गए. उनका चंचल स्वभाव संगीत से परे, दूर तक फैला हुआ था. वह अक्सर सेट पर अन्य अभिनेताओं की नकल करते थे, जिससे उनके आस-पास के सभी लोग हँसते थे. 'परिवार' में, उन्होंने अपनी संगीत प्रतिभा के साथ-साथ अपनी कॉमेडी टाइमिंग का भी प्रदर्शन किया.
मोंटू बोस की सिनेमैटोग्राफी ने हवेली के सार को खूबसूरती से कैद किया, जिससे फिल्म में पुरानी यादें जुड़ गईं. हालांकि आज ऑफिशल रूप से इसे माना नहीं जाता है लेकिन' इसमें कोई शक नहीं है कि फिल्म' परिवार' ने भारतीय सिनेमा में पारिवारिक नाटकों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस फिल्म में उनका योगदान अक्सर उनकी बाद की हिट फिल्मों से फीका पड़ जाता है, लेकिन यह उनके विविध करियर का एक अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है. 'परिवार' सिर्फ एक फिल्म नहीं, यह पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों का प्रतिबिंब है जो पीढ़ियों तक कायम रहता है. किशोर कुमार की विशेष उपस्थिति में आकर्षण और हास्य जोड़ने के साथ, यह फिल्म एक क्लासिक के रूप में सामने आता है जिसे भारतीय सिनेमा के प्रशंसकों द्वारा आज भी पसंद किया जाता है.
Pariwar 1956 Full Movie
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