‘दी लिगेसी ऑफ जिनेश्वर’ एक ज्ञानवर्द्धक तथा सशक्त फिल्म है। मानव सभ्यता के पुरोधा परमात्मा ऋषभदेव से लेकर आज से 1000 वर्ष पूर्व आचार्य श्री वर्द्धमानसूरि एवं श्री जिनेश्वरसूरि तक की जानकारी देती यह फिल्म ज्ञानवर्द्धक तथा रोचक है। भगवान महावीर के जैन धर्म शासन में कालान्तर में कुछ सुविधावादी एवं शिथिलाचारी आचार्यों तथा साधुओं के आचार व्यवहार के कारण भगवान महावीर का सुविहित पथ विस्मृत सा होने लगा था। उस समय आचार्य वर्द्धमानसूरि तथा जिनेश्वरसूरि ने शिथिलाचारियों के समूह, जो चैत्यवासी नाम से विख्यात थे, उनके गढ़ अणहिलपुर पत्तन पधारे।
The Legacy of Jineshwar
उनके प्रति चैत्यवासियों की दुर्भावना एवं उनके द्वारा किये दुष्प्रचार तथा उन्हें बदनाम करने के कुप्रयासों का सजीव चित्रण है। यह फिल्म एक प्रेरणा तथा चेतावनी के रूप में है कि किस प्रकार कोई व्यक्ति,संघ, समाज तथा धर्म अपने मूलभूत सिद्धांतों से विमुख होकर शिथिलाचारी बन सकता है एवं कैसे स्वतः वे विनाश को प्राप्त हो सकते हैं, ताकि हम सभी को सदैव सजग तथा सिद्धांत व आचार निष्ठ बने रहने का प्रयास करना है। फिल्म में भाषा तथा तर्क अत्यन्त उपयुक्त एवं प्रासंगिक हैं।कलाकारों का अभिनय स्वाभाविक, सहज एवं प्रभावी है।
उनके आचरण की पवित्रता तथा ज्ञान तप के ओज से आभामय व्यक्तित्व से प्रभावित होकर राजा के समक्ष चैत्यवासी प्रमुख सुराचार्य तथा जिनेश्वसूरि के शास्त्रर्थ तथा आचार सजगता को बड़े सजीव ढंग से दर्शाया गया है। जिनेश्वसूरि के तर्कों तथा आचार शुद्धि से सुराचार्य के उखड़ती भाव भंगिमा आदि का सजीव चित्रण किया गया है। प्रारंभ में इस फ़िल्म का विरोध करने वालों ने जब यह फ़िल्म देखी तो वे भी क़ायल हो गये व उन्होंने भी इसे वर्तमान की आवश्यकता बताया। परिवार व इष्ट मित्रों सहित सभी जाति व समप्रदाय के लोगों को यह फिल्म अवश्य ही देखनी चाहिये।
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