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संगम’ बॉलीवुड के इतिहास की सबसे खूबसूरत फिल्मों में से एक है जो राज कपूर की रोमैंटिक दृष्टिकोण को रेखांकित करती है. पूरे एक्सठ वर्ष हो गए इस फ़िल्म को रिलीज़ हुए लेकिन आज भी प्रेम त्रिकोण पर बनी फिल्मों में से यह सबसे ऊपर है. जून 1964 में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने उस दौर के तीन सबसे बड़े सितारों- राज कपूर, वैजयंतीमाला और राजेंद्र कुमार को एक साथ कैमरे के सामने ला खड़ा किया था. यह फ़िल्म प्रसिद्ध आरके बैनर के तहत बनी थी और इसका निर्देशन निर्माण और संपादन खुद राज कपूर ने किया था. राज कपूर को तब से आज तक भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा शोमैन कहा जाता है.
Sangam Full Movie
संगम’ तीन बचपन के दोस्तों- सुंदर, राधा और गोपाल की कहानी कहती है. राज कपूर द्वारा निभाया गया सुंदर, एक सरल और प्यार करने वाला व्यक्ति है जो राधा (वैजंतीमाला) से बहुत प्यार करता है. लेकिन राधा का दिल गोपाल (राजेंद्र कुमार) के पास है, जो सुंदर का सबसे करीबी दोस्त भी है. जब गोपाल को पता लगा कि उसका दोस्त सुंदर राधा से प्यार करता है तो वो बीच से हट गया. कहानी तब नाटकीय मोड़ लेती है जब सुंदर भारतीय वायु सेना में शामिल हो जाता है और एक खतरनाक मिशन पर जाता है. हर कोई मानता है कि सुंदर मर चुका है, और राधा और गोपाल आखिरकार एक-दूसरे के लिए अपने प्यार को कबूल करते हैं. लेकिन जैसे ही वे एक नया जीवन शुरू करने वाले होते हैं, सुंदर ज़िंदा वापस आ जाता है. सुंदर को राधा और गोपाल के प्रेम के बारे में मालूम पड़ते ही वो अपने दोस्त और पत्नी की बेवफाई पर क्रोधित होकर पागल जैसे हो जाता है. तब गोपाल, अपने दोस्त के प्रति वफ़ादारी के कारण फिर से अपने प्यार का त्याग कर देता है. फिल्म में प्यार, दोस्ती, वफ़ादारी और त्याग की दिल छूने वाली कहानी है, जो इसे एक कालातीत प्रेम त्रिकोण बनाती है जिसने लाखों दिलों को छुआ है. फ़िल्म के अन्य किरदार है इफ्तिखार, राज मेहरा, नाना पाल्सीकर, ललिता पवार, हरी शिवदासानी, अचला सचदेव. इस फ़िल्म का रन टाईम चार घंटे (सबसे ज्यादा) है.
‘दिलचस्प बात यह है कि गोपाल की भूमिका पहले दिलीप कुमार को ऑफर की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया क्योंकि वह खुद फिल्म को एडिट करना चाहते थे, जिसकी राज कपूर अनुमति नहीं दे रहे थे. इस फ़िल्म के साथ राज कपूर अपनी फिल्मों का स्वयं एडिटिंग शुरू करना चाहते थे. इसलिए एडिटिंग का अधिकार वे सिर्फ अपने पास रख रहे थे. इस रोल के लिए देव आनंद और महानायक उत्तम कुमार से भी संपर्क किया गया था, लेकिन दोनों ने मना कर दिया. आखिरकार, राजेंद्र कुमार ने भूमिका स्वीकार कर ली और उनका यह प्रदर्शन उनके करियर के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में से एक बन गया.
‘संगम’ का संगीत बेहद कर्णप्रिय और शानदार है. मशहूर संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन द्वारा रचित, फिल्म का हर गाना क्लासिक बन गया. ‘बोल राधा बोल’, ‘दोस्त दोस्त न रहा’ और ‘ये मेरा प्रेम पत्र’ जैसी धुनें आज भी पसंद की जाती हैं. बोल राधा बोल 1964 में बिनाका गीत माला में प्रथम लिस्टेड था. यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर, बिनाका के अनुअल लिस्ट 1964 में सेकंड पोजिशन पर था, मैं क्या करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया, बिनाका गीतमाला अनुअल लिस्ट में दसवें पोजिशन पर था, दोस्त दोस्त ना रहा बिनाका गीत माला में बारहवें पोजिशन पर था. इनके अलावा, 'हर दिल जो प्यार करेगा, ओ मेरे सनम, ओ महबूबा भी सुपर हिट हुआ था. लता मंगेशकर, मुकेश, मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों और हसरत जयपुरी तथा शैलेंद्र के बोलों ने इन दिल छूने वाले गीतों को अमर कर दिया.
‘संगम’ अपने समय के हिसाब से तकनीकी चमत्कार था. यह लंदन, पेरिस और स्विटज़रलैंड जैसे विदेशी स्थानों पर बड़े पैमाने पर शूट की गई पहली हिंदी फ़िल्म थी. राधु करमाकर की सिनेमैटोग्राफी ने यूरोप की खूबसूरती को कुछ इस तरह से कैद किया कि भारतीय दर्शकों को पहली बार भारत के बाहर की दुनिया की इतनी विस्तृत झलक दिखाई दी. इस फ़िल्म के साथ राज कपूर के संपादन और कला निर्देशन ने भारत में फिल्म निर्माण के मानक को एक नया आयाम दिया.
उस जमाने में ‘संगम’ जैसी फ़िल्म बनाना आसान नहीं था. यह फ़िल्म 1940 के दशक के उत्तरार्ध से ही राज कपूर की योजना में बनी हुई थी. पहले इसका नाम घरौंदा रखा गया था और इसमें अन्य कलाकार (जैसे नर्गिस) को लिए जाना तय हुआ था. लेकिन आखिरकार इसकी शूटिंग शुरू होने में एक दशक से अधिक समय लग गया.
राज कपूर ने 'संगम' में युद्ध के दृश्यों के लिए भारतीय वायु सेना के साथ मिलकर सब तय किया और यह आरके बैनर द्वारा बनाई गई पहली पूर्ण-रंगीन फ़िल्म भी थी. उन दिनों यूरोप में शूटिंग करना बहुत जोखिम भरा काम होता था और बहुत महंगा भी था. लेकिन राज कपूर को अपने विजन पर पूरा भरोसा था और उन्होंने फ़िल्म की कहानी के अनुरूप दृश्यों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया.
‘संगम’ का बजट उस समय किसी भी हिंदी फिल्म के हिसाब से आश्चर्यजनक रूप से ज़्यादा था. लेकिन इतना खर्च और सारी मेहनत आखिर रंग लाई. जब संगम रिलीज़ हुई, तो यह 1964 की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म बन गई तथा यह पूरे दशक की दूसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई. संगम ने दुनिया भर में लगभग ₹8 करोड़ कमाए. यह न केवल भारत में बल्कि सोवियत संघ और अन्य देशों में भी एक ब्लॉकबस्टर थी.
पर्दे के पीछे, कई दिलचस्प कहानियाँ हैं. संगम में वैजयंतीमाला ने अपनी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता. राज कपूर ने भी सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ संपादन के लिए पुरस्कार जीते. यह अलग बात है कि इस फ़िल्म ने फ़िल्म ‘दोस्ती’ के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार खो दिया. ऐसे में राज कपूर का बेहद निराश हो जाना लाजिमी था.
शूटिंग से पहले, इस फ़िल्म के प्रत्येक किरदार की वेशभूषा, संवाद और यहाँ तक कि छोटी-छोटी बातों पर भी महीनों तक चर्चा और योजना बनाई गई. फ़िल्म के लीडिंग अभिनेताओं के बीच की केमिस्ट्री इतनी वास्तविक थी कि लोगों को लगा कि उनका प्रेम त्रिकोण ऑफ-स्क्रीन भी सच है.
‘संगम’ के बारे में कुछ और भी ढेर सारी अज्ञात तथ्य है. यह पहली बार था जब भारतीय दर्शकों ने किसी हिंदी फिल्म में विदेशी लोकेशन देखी. फिल्म की अवधि लगभग चार घंटे थी, जो उस समय की सबसे लंबी हिंदी फिल्म थी. इस फिल्म ने हॉलीवुड की ‘पर्ल हार्बर’ सहित कई भविष्य की फिल्मों को प्रेरित किया. राज कपूर की वायुसेना के साथ दोस्ती की बदौलत कई दृश्य वास्तविक वायुसेना के विमानों और अधिकारियों के साथ फिल्माए गए थे.
संगम यूरोप में शूट होने वाली पहली भारतीय फिल्म थी. ऊटी शेड्यूल के दौरान, 'ओ महबूबा' गाने की शूटिंग के वक्त वैजयंतीमाला ने कई टेक दिए. सड़क पर भीड़ में मौजूद एक छोटी लड़की ने कहा कि मैं तो यह सीन आसानी से कर सकती थी. राज कपूर ने यह सुना और उससे कहा कि क्या तुम बड़ी होकर अभिनेत्री बनना चाहती हो. यह लड़की अभिनेत्री राधा सलूजा थी, वह और उनकी बहनें रेणु और कुमकुम भीड़ में गाने में देखी जा सकती हैं.
अंधेरी ईस्ट जेबी नगर में मुंबई के प्रसिद्ध सिनेमा हॉल संगम का नाम इस फिल्म के नाम पर रखा गया. दरअसल सिनेमा हॉल की शुरुआत करने वाले टंडन परिवार राज कपूर के प्रशंसक थे. राज कपूर भी अक्सर इस थिएटर में आते थे.
यह फ़िल्म राज कपूर की विजयंतीमाला के साथ आखिरी फिल्म थी. प्रसिध्द सिनेमैटोग्राफर राधू करमरकर की यह पहली रंगीन थी. संगम, पूरी दुनिया के फिल्म इतिहास की प्रमुख क्लासिक कृतियों में से एक है. एलीफेंट मैन के गाने "इंडियन वाइन" में इसी फिल्म का एक गाना था.
सुपरहिट हो चुकी संगम के बाद आर.के.फिल्म्स से दुनिया को काफी उम्मीदें थीं. हर कोई आर.के.फिल्म्स की अगली फिल्म का इंतजार कर रहा था. संगम के करीब 6 साल बाद इंतजार खत्म हुआ और नतीजा, निराशाजनक फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' के रूप में सामने आया. हालांकि सालों बाद यह भी क्लासिक बन गई. इस बीच, नए कलाकारों डिंपल और ऋषि कपूर के साथ राजकपूर ने फ़िल्म 'बॉबी' बनाया था जो सुपर हिट हुई. खबरों के मुताबिक संगम की रिलीज के बाद वैजयंतीमाला ने डॉ. बाली से शादी कर ली. संगम (1964) में अंग्रेजी जर्मन गीत "विविन लोब-इच लिबे डिच-आई लव यू" से प्रेरणा ली गई और कई दशकों बाद राम तेरी गंगा मैली (1985) में "सुन साहिबा सुन" के रूप में फिर से तैयार किया गया. राज कपूर ने इस फिल्म के साथ संपादक के रूप में अपनी शुरुआत की और इस फिल्म के बाद उन्होंने अपनी बनाई सभी फिल्मों का संपादन किया. एक बार किसी बात पर संगीतकार जयकिशन, हसरत जयपुरी से नाराज थे, फिर बाद में हसरत ने जयकिशन को एक पत्र लिखा जिसमें लिखा था 'यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज न होना..' फिर उनके बीच दोस्ती हो गई. बाद में इसी पत्र को संगम में एक गीत के रूप में बनाया गया था, जो मोहम्मद रफी की सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है. ध्यान से देखेंगे तो इस फ़िल्म में बबीता के पिता भी एक सेवानिवृत्त कप्तान के रूप में थे. राज कपूर ने फिरोज खान से कहा था कि अगर राजेंद्र कुमार ने गोपाल की भूमिका को अस्वीकार कर दिया तो वे उन्हें साइन करेंगे. इससे फिरोज को उम्मीद थी कि संगम उनके लिए ए ग्रेड फिल्म में स्टारडम की टिकट होगी. राजेंद्र ने संगम को स्वीकार कर लिया, जिससे फिरोज की उम्मीदें टूट गईं. बाद में लगभग उसी समय फिरोज को फ़िल्म आरजू में सेकंड हीरो की भूमिका मिली. आरजू में राजेंद्र कुमार लीड नायक थे और यह भी संगम की तरह एक प्रेम त्रिकोण था.
ये मेरा प्रेम पत्र वाले गाने की शूटिंग के लिए राज कपूर के दिमाग में जिस तरह की लोकेशन थी उसे ढूंढने वे पूरी टीम के साथ दिल्ली पहुंचे थे. लेकिन बहुत ढूंढने पर भी उन्हे अपनी पसंद की जगह नहीं मिली. वे निराश होकर लौट ही रहे थे कि उन्हे एक लोकेशन पसंद आ गई, लेकिन वो सरकारी जमीन पर थी. राज कपूर को सरकारी अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ी और उन्होंने अनुमति ले ली और उन्होंने खुशी-खुशी उस गीत को वहां फिल्माया.
आर.के.फिल्म्स और नवकेतन फिल्म्स लगभग एक ही समय में पहली बार अपनी रंगीन फिल्में संगम और गाइड बना रहे थे और दोनों फिल्में भारतीय सिनेमा के इतिहास में महत्वपूर्ण फिल्में बन गई.
राज कपूर ने जब संगम की कहानी वैजंतीमाला को सुनाई थी और उनसे कहा था कि, वह फिल्म में राधा बनेंगी या नहीं. वैजंतीमाला ने कहा, कुछ दिन सोच के बताएगी. फिर कुछ समय बाद राज कपूर उनके जवाब का इंतजार कर रहे थे. एक दिन राज कपूर ने वैजंतीमाला को एक टेलीग्राम भेजा और टेलीग्राम में राज कपूर ने उन्हे लिखा , 'बोल राधा बोल ये संगम होगा या नहीं?' वैजंतीमाला ने भी एक टेलीग्राम के साथ जवाब दिया, उन्होंने लिखा, 'होगा....होगा.....होगा..!' तो यहीं से राज कपूर को गीत का विचार आया, बोल राधा रोल.
खबरों के मुताबिक फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद राज कपूर और फ़िल्म के लेखक इंदर राज आनंद के बीच किसी बात को लेकर हाथापाई हो गई. उसके बाद इंदर राज आनंद को फिल्म इंडस्ट्री में बहिष्कार कर दिया गया. उन्हें 18 फिल्में गंवानी पड़ीं. इससे उन्हें दिल का दौरा पड़ा. राजकपूर को अफसोस हुआ और उन्होने इंदर के पास जाकर उन्हे गले लगाया.
61 साल बाद भी ‘संगम’ आज भी ताजा है और हर उम्र के लोगों को पसंद आती है. इसकी कहानी, संगीत और अभिनय आज भी याद किए जाते हैं. सुंदर, राधा और गोपाल नाम भारतीय सिनेमा में प्यार और दोस्ती के प्रतीक बन गए हैं. ‘संगम’ मात्र एक फिल्म नहीं है, यह भावनाओं, रिश्तों और बॉलीवुड के अमर जादू का जश्न है.
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