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क्योंकि उन्हें 100 प्रतिशत रिजल्ट चाहिए होता था
किसी ने संजय लीला भंसाली से उनकी सीरीज हीरा मंडी की भव्यता को लेकर कहा- 'तुम तो के.आसिफ की तरह सोचते हो !' भंसाली ने तुरंत बड़प्पन में हाथ जोड़ लिया- 'अरे नहीं, वह महान थे!' तुरंत वहां बैठे एक दूसरे आदमी ने कहा 'वो तो सनकी थे, फिल्म बनाने का पागलपन था उनमें.' और, किस्सा शुरू हो गया के.आसिफ के काम के प्रति समर्पण का. यहां उस वार्ता से निकले किस्से हम सुनाने से पहले बतादें कि स्वर्गीय के. आसिफ भारत मे बनी कालजयी फिल्म "मुगल-ए-आजम" के निर्माता निर्देशक थे. अपने काम मे पूर्णता नहीं, 100 प्रतिशत का रिजल्ट चाहिए था उन्हें. उन्होंने 'मुगल ए आजम' बनाने में 16 साल का समय लगा दिया था.
गाने की एक पीस के लिए दिया 50 हजार बड़े गुलाम अली को :
'मुगल ए आजम' 1944 में शुरू हुई थी और उसकी शूटिंग 1960 में पूरी हुई थी. इसकी एक एक बात पर बार बार नहीं, बहुत बार के.आसिफ साहब साहब उस डिपार्टमेंट के आदमी से चर्चा किया करते थे. फिल्म के संगीतकार थे नौशाद साहब, जिनसे आसिफ साहब की तमाम सिटिंगे होती रहती थी. गाने के एक एक दृश्य पर उनकी चर्चा चलती थी. ऐसा ही एक दृश्य था जब सलीम (दिलीप कुमार) और अनारकली (मधुबाला) के साथ के एक प्रातः दृश्य में तानसेन के द्वारा संगीत जाने का प्रसंग था. के.आसिफ ने शिगार का कश लेते हुए नौशाद को कहा- जब इस दृश्य के साथ तानसेन का संगीत हुआ करता था, तब उसी स्तर का कोई बंदा हमारी फिल्म के लिए होना चाहिए. नौशाद ने कहा- हैं एक, लेकिन वो फिल्मों के लिए काम नहीं करते. उनका इशारा बड़े गुलाम अली की तरफ था.
नौशाद अपने साथ के.आसिफ को लेकर बड़े गुलाम अली को मिलने लखनऊ गए. बड़े गुलाम अली साहब ने फिल्म में संगीत देने से मना कर दिया. आसिफ बोले संगीत आपको ही पूरा करना है. बड़े गुलाम अली नौशाद को कमरे में अलग ले गए , बोले कैसा आदमी है? नौशाद ने उन्हें बताया यह आदमी काम के लिए समर्पित है, इसमें काम की पूर्णता के लिए पागलपन है. बड़े गुलाम अली ने कहा- अभी इसे भगाता हूं. बड़े गुलाम अली साहब दिमाग मे एक बहुत बड़ा अमाउंट मांगने की सोचकर बाहर आए, बोले-50 हजार लूंगा. नौशाद ने एक लेख में जिक्र किया था इसबात का कि इतना बड़ा अमाउंट सुनकर उन्हें चक्कर सा आगया था. क्योंकि उनदिनों 1944 में, 500 रुपए में महीने भर तक काम करते थे संगीतकार. के.आसिफ ने शिगार की कश खींचते हुए कुर्ते की जेब से 10 हजार के नोट निकाला और उनकी और बढ़ाते हुए कहा- यह पेशगी है, बाकी के पैसे बम्बई में. काम के लिए यह पागलपन था के आसिफ में.
आज के फिल्मकारों में ना वह पागलपन है और ना काम को लेकर 100 प्रतिशत देने की सनक है. संजय लीला भंसाली ने ठीक ही कहा है- ' वो (के.आसिफ) महान फिल्मकार थे !'
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