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भारत की नारी शक्ति ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि उनके सिंदूर से खेलने वालों को किस तरह से घर में घुसकर नेस्तनाबूद किया जाता है. ऑपरेशन सिंदूर वो सैन्य मिशन था जिसने एक साफ संदेश देकर बता दिया कि आतंकियो ने आग से खेला है.
लेकिन जिस चीज ने इस मिशन को और भी खास बना दिया, वह थी इसमें महिलाओं की भूमिका. जब दुनिया इस मिशन के बारे में सुनने के लिए टीवी देख रही थी, तब दो महिला अधिकारी, वायु सेना से विंग कमांडर व्योमिका सिंह और सेना से कर्नल सोफिया कुरैशी ने कैमरों के सामने खड़ी होकर मिशन सिंदूर की सफलता की कहानी बताई. यह उन महिलाओं के लिए एक नमन था जिन्होंने अपने पतियों को खो दिया था.
विंग कमांडर व्योमिका सिंह और सेना से कर्नल सोफिया कुरैशी इस बात का प्रतीक था कि कैसे महिलाएं अब भारत की रक्षा के केंद्र में हैं. विंग कमांडर व्योमिका सिंह भारतीय वायुसेना में एक सम्मानित हेलीकॉप्टर पायलट हैं, जो अपने साहस और नेतृत्व के लिए जानी जाती हैं. बचपन से ही वे आसमान से प्रेरित रही. वे अपने स्कूल के दिनों में नेशनल कैडेट कोर (NCC) में शामिल हुईं और बाद में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. व्योमिका अपने परिवार में सशस्त्र बलों में शामिल होने वाली पहली महिला बनीं और दिसंबर 2019 में IAF की फ्लाइंग ब्रांच में स्थाई रूप से कमीशन प्राप्त किया. उनका नाम, व्योमिका का अर्थ है "आसमान की बेटी", जो उनकी कर्म के अनुसार बिल्कुल सही है. उन्होंने अक्सर जम्मू और कश्मीर तथा पूर्वोत्तर जैसे कठिन इलाकों में चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टरों में 2,500 घंटे से अधिक उड़ान भरी है, उन्होंने 2020 में अरुणाचल प्रदेश में भी एक बड़े ऑपरेशन सहित कई अन्य उच्च-दांव वाले बचाव अभियानों का नेतृत्व किया है. 2021 में, वह एक महिला त्रि-सेवा पर्वतारोहण टीम का हिस्सा थीं. इस टीम ने माउंट मणिरंग पर चढ़ाई की, जिसमें उनके साहस और टीम वर्क की भावना दिखाई दी. व्योमिका सिंह को बृहद रूप से तब पहचान मिली जब उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के लिए मीडिया ब्रीफिंग का सह-नेतृत्व किया. उन्होने भारतीय वायुसेना का प्रतिनिधित्व किया और भारत के रक्षा बलों में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को रेखांकित किया. उन्होने भारत के कई सबसे कठिन स्थानों पर उड़ान भरी है, लोगों को बचाया है और खतरे का सामना किया है.
पैंतीस वर्षीया कर्नल सोफिया कुरैशी भी भारतीय सेना में एक मुख्य अधिकारी हैं, जिन्हें कठिन से कठिन बाधाओं को तोड़ने और यह साबित करने के लिए जाना जाता है कि सेना में महिलाएं क्या स्थान रखती हैं. 1990 में जन्मी, कुरैशी को सेना के सिग्नल कोर में नियुक्त किया गया था और उन्होंने अपने समर्पण और लीडरशिप से जल्दी ही अपनी पहचान बना ली. उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक 2016 में थी, जब वह फोर्स 18 आसियान प्लस मल्टीनेशनल फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज में भारतीय सेना की टुकड़ी की कमान संभालने वाली पहली महिला बनीं. यह भारतीय धरती पर आयोजित अब तक का सबसे बड़ा ग्राउंड फोर्स ड्रिल था. वे सभी भाग लेने वाले देशों में एकमात्र महिला कमांडर थीं, जिन्होंने शांति और मानवीय मिशनों में सैनिकों का संचालन किया. कर्नल कुरैशी ने कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भी काम किया है और कई अंतरराष्ट्रीय मिशनों में शामिल रही हैं. उनके अगुआई की टॉप सैन्य नेताओं द्वारा प्रशंसा खूब तारीफ की गई है. कुरैशी ने अपनी क्षमता के माध्यम से अपनी जगह अर्जित की, न कि टोकनवाद के माध्यम से. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, उन्होंने आधिकारिक ब्रीफिंग का सह-नेतृत्व किया. भारत की इन दोनों बेटियों ने इस तरह से सशस्त्र बलों में महिलाओं की ताकत और क्षमता का प्रतीक और कई युवा महिलाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.
इन्होने सेना का प्रतिनिधित्व करने के साथ साथ हर उस महिला का प्रतिनिधित्व किया जिनका सिंदूर उजड़ा था. ब्रीफिंग के दौरान उनकी शांत, स्पष्ट आवाज़ ने दुनिया को दिखाया कि भारतीय महिलाएँ सिर्फ पीड़ित नहीं हैं-वे नेता, योद्धा और निर्णय लेने वाली भी हैं. सेना ने उन्हें एक बयान के रूप में ब्रीफिंग का नेतृत्व करने के लिए चुना. महिलाएँ अब घर पर सिर्फ खबरों का इंतज़ार नहीं कर रही हैं, वे खबरों को आकार दे रही हैं. वे मिशन की योजना बना रही हैं और देश के संकल्प को अपने कंधों पर उठा रही हैं.
भारत की इन बेटियों ने मिशन सिंदूर' के अंतर्गत खुफिया जानकारी जुटाने से लेकर योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने तक, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. उन्होंने लक्ष्यों की पहचान करने में मदद की, सशस्त्र बलों की विभिन्न शाखाओं के बीच समन्वय स्थापित किया और सुनिश्चित किया कि हर विवरण सटीक और सही हो. ऑपरेशन सिर्फ़ 25 मिनट में पूरा हो गया, जिसमें 24 मिसाइलों ने नौ आतंकी शिविरों को निशाना बनाया. इस मिशन में एक भी भारतीय जेट नहीं खोया और मिशन पूरी तरह सफल रहा.
ऑपरेशन सिंदूर मिसाइलों और लक्ष्यों से कहीं ज़्यादा ताकतवर था. यह उन भारतीयों को सम्मान अर्पित करने की कहानी थी जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था. यह हर महिला को विश्वास दिलाने का मिशन था कि पूरा देश उनके साथ है. विंग कमांडर व्योमिका सिंह और सेना से कर्नल सोफिया कुरैशी ने साबित कर दिया कि भारतीय महिलाएँ सिर्फ़ दुख की प्रतीक नहीं हैं, बल्कि शक्ति और उम्मीद की भी प्रतीक हैं.
ऑपरेशन सिंदूर की कहानी महिला शक्ति की कहानी है.सिर्फ शोक मनाने वाली महिलाओं की नहीं बल्कि लड़ने और नेतृत्व करने वाली, योजना बनाने वाली और प्रेरणा देने वाली महिलाओं की भी कहानी है. इससे यह साबित होता है कि आज के भारत में महिलाएँ सिर्फ़ कहानी का हिस्सा नहीं हैं-वे इसे खुद लिख रही हैं.
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