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Memorable story inspiring eccentric artists: पचास साल से भी ज्यादा वक्त गुज़र गया है जब एक अजीबोगरीब घटना ने ना सिर्फ बॉलीवुड की एक फ़िल्म की किस्मत बदल दी थी बल्कि एक एक्टर को सुपर स्टार की श्रेणी में भी ला खड़ा किया था । (memorable story) अपने बेबाक डायलॉग्स और अनोखे अंदाज़ के लिए मशहूर अभिनेताओं में से एक, राज कुमार ने अपने क्रेज़ी बर्ताव के चलते कुछ ऐसा मज़ाक कर दिया जो उस ज़माने में बहुत से लोगों को पसंद नहीं आया, खासकार बॉलीवुड के कई निर्माता निर्देशकों ने तो इस घटना के बाद राजकुमार से कन्नी काटना शुरू कर दिया । (eccentric artists)
घटना यूँ घटी कि उस समय के टॉप मोस्ट निर्माता निर्देशक डॉक्टर रामानंद सागर, अपनी नई फ़िल्म 'आँखे' में मुख्य भूमिका का प्रस्ताव लेकर राजकुमार से मिलने उनके घर गए ।(inspiring story)
राजकुमार अपने खिलन्दड़ मूड में थे। जब रामानंद सागर ने राज कुमार को फ़िल्म 'आँखें' की कहानी सुनाई,
तो अभिनेता ने पहले तो ध्यान से कहानी सुनी, , फिर अपने पालतू डॉगी को आवाज़ देकर बुलाया। जब कुत्ता राजकुमार के पास आ कर बैठा तो मज़ाक के मूड में राजकुमार ने 'आँखें' की कहानी को कुत्ते के कान के पास मुंह करके दोहरा दिया। कुत्ता तो कुत्ता ही था, वो इधर उधर देखने लगा। (art and inspiration) राज कुमार ने कुत्ते से पूछा कि क्या वह इस फ़िल्म में काम करना चाहता है? कुत्ते ने कोई रिएक्शन नहीं दिया। तब हंसते हुए राजकुमार ने डॉक्टर रामानंद सागर से कहा, 'मेरा डॉगी भी यह भूमिका नहीं करेगा।' इस अजब बर्ताव से रामानंद सागर चौंक गए। एक पल के लिए वे क्रोध से भर उठे लेकिन बेहद शांत इंसान होने की वजह से उन्होने तीर का जवाब तुक्का से नहीं दिया। उस जमाने के पत्रकारों का मानना है कि अगर रामानंद जी के बदले किशोर कुमार होते, तो जरूर इस मज़ाक का बदला लेते हुए राज कुमार को सही जवाब देते। लेकिन संत जैसे स्वभाव के मालिक रामानंद सागर ने कुछ नहीं कहा और खून का घूँट पीकर वहां से लौट गए।(lesson for artists)
अब, कमाल देखिए, राज कुमार ने जिस रोल की खिल्ली उड़ाई थी ,
वह रोल धर्मेंद्र को मिल गया। 1968 में फ़िल्म 'आँखें' रिलीज़ हुई और इतना बड़ा ब्लॉक बस्टर साबित हुई कि अचानक धर्मेंद्र के करियर ने एक लंबी छलांग लगाई। (unique artist experience) यह फ़िल्म उनके जीवन की सबसे सफल फ़िल्मों में से एक बन गई और उन्हें लाखों लोगों के चहेते एक्शन स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। लोगों ने माला सिन्हा के साथ उनके अभिनय की खूब तारीफ़ की और फ़िल्म की कहानी और संगीत भी सभी को पसंद आया।(new perspective in art)
'आँखें' केवल 85 लाख रुपये के बजट के साथ बनाई गई थी,
लेकिन बॉक्स ऑफिस पर 6 करोड़ से अधिक की कमाई की, जिससे यह 1968 की सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी फिल्मों में से एक बन गई। यह फिल्म कई कारणों से खास थी। (motivational story) यह बेरूत में शूट की गई पहली हिंदी फिल्म थी, एक मनोरंजक जासूसी कहानी थी, और इसमें कुमकुम, सुजीत कुमार, महमूद, ललिता पवार और परदुमन रंधावा जैसे कई बड़े नाम सहायक भूमिकाओं में थे। फिल्म में धर्मेंद्र ने एक मिशन पर एक बहादुर व्यक्ति की भूमिका निभाई, जो विभिन्न देशों में दुश्मनों का सामना कर रहा था। लोग आज भी इसे इसके सस्पेंस भरे कथानक और रोमांचक एक्शन के लिए देखते हैं।(artist insights)
और फिर रामानंद सागर,
धर्मेंद्र और माला सिन्हा की तूती बोलने लगी। यानी जिस फ़िल्म को राजकुमार ने मज़ाक में लिया, वही फ़िल्म रामानंद सागर, धर्मेंद्र, माला सिन्हा के लिए गेम चेंजर फ़िल्म साबित हुई।(unforgettable experience)
पुराने पत्रकार और साक्षात्कारों में,
ऐक्टर्स और फ़िल्म विशेषज्ञों ने बताया है कि यह घटना सिर्फ़ एक अस्वीकृत स्क्रिप्ट की नहीं, बल्कि नियति की भी थी। राज कुमार के बारे में और भी कहानियाँ सामने आई हैं कि उन्होंने और भी फ़िल्में ठुकरा दीं, हमेशा अजब गज़ब कारण बताकर।(memorable artistic story)
यह कहानी अब फिल्म प्रेमियों के लिए एक मीठी याद बन गई है,
जो बताती है कि कभी-कभी एक के द्वारा ठुकराई गई चीज़ दूसरे के लिए सोना बन सकती है। रामानंद सागर तो इस फ़िल्म के बाद आसमान की बुलंदी छूने लगी। (art motivation story)
उधर 1968 के बाद राजकुमार की
तीन फिल्में, 'दिल का राजा' (1972)
हिंदुस्तान की कसम (1973)
36 घंटे (1974) फ्लॉप हो गई।
हालाँकि, 1976 से फिर राजकुमार की कई फिल्में सफल हुई लेकिन इस यादगार किस्सेे ने एसेंट्रिक कलाकारों की आंखे खोल दी।
FAQ
प्रश्न 1: यह यादगार किस्सा किस बारे में है?
उत्तर: यह किस्सा एक ऐसे अनुभव को दर्शाता है जिसने एसेंट्रिक कलाकारों को प्रेरित किया और कला और रचनात्मकता के नए दृष्टिकोण से अवगत कराया।
प्रश्न 2: इसने कलाकारों पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर: इसने उन्हें प्रेरित किया, उनके कला के दृष्टिकोण को बदला और उनके रचनात्मक काम में प्रयोग और नवाचार करने के लिए उत्साहित किया।
प्रश्न 3: इस किस्से से कौन लाभ उठा सकता है?
उत्तर: कलाकार, प्रदर्शनकारी और किसी भी रचनात्मक क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस कहानी से मूल्यवान सीख और प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 4: क्या यह किस्सा वास्तविक घटनाओं पर आधारित है?
उत्तर: हाँ, यह वास्तविक अनुभवों पर आधारित है जिसने एसेंट्रिक कलाकारों पर गहरा प्रभाव डाला।
प्रश्न 5: यह किस्सा यादगार क्यों माना जाता है?
उत्तर: इसकी सीख, भावनात्मक गहराई और जो परिवर्तनकारी अनुभव यह प्रदान करता है, वह इसे कलाकारों और रचनात्मक लोगों के लिए अविस्मरणीय बनाता है।
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