61 साल पहले रिलीज़ हुई फिल्म "Aaj Aur Kal" पीढ़ियों का अंतर, जज्बातों का अंतर और सोच का अंतर यह सिलसिला सतत विकास के साथ चलता रहता है. इस थीम के साथ 1963 मे आयी एक फिल्म थी "आज और कल"... By Sharad Rai 13 Nov 2024 in एंटरटेनमेंट New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर पीढ़ियों का अंतर, जज्बातों का अंतर और सोच का अंतर यह सिलसिला सतत विकास के साथ चलता रहता है. इस थीम के साथ 1963 मे आयी एक फिल्म थी "आज और कल". इस फिल्म का एक गीत बड़ा मिनिंगफ़ुल था 'तख्त ना होगा, ताज ना होगा, कल था लेकिन आज ना होगा.' मोहम्मद रफी, मन्ना डे और गीता दत्त की आवाज में गाया गया यह गाना बताते हैं उस समय समाज चिन्तन की दशा बदल दिया था. अशोक कुमार और सुनील दत्त के वैचारिक टकराव के कथानक पर बनी दो पीढ़ियों के अंतर को स्पस्ट करने वाली यह फिल्म थी. फिल्म की कहानी दो पीढ़ियों के वैचारिक दबाव और टकराव की थी. हिम्मतपुर के नकचढ़े राजा (अशोक कुमार) के बेजा आदेशों से लोग छुब्ध थे. उनके चार बच्चों में बड़ी बेटी हेमलता (नंदा) को डर के चलते लकवा मार गया था, उसके शरीर के निचले अंग निष्क्रिय हो गए थे. दूसरी बेटी आशालता (तनूजा) का सामाजिक कार्यकर्ता सुदेश कुमार से शादी नहीं हो पा रहा था. दो बेटे प्रताप (रोहित कुमार) और राजेंद्र (देवेन वर्मा) बाप के सनकी रवैये से छुब्ध थे. बेटी हेमलता (नंदा) के इलाज के लिए एक डॉक्टर नियुक्त किया जाता है. डॉक्टर संजय (सुनील दत्त) नई सोच के थे. दकियानूसी परंपराओं के खिलाफ थे. खूबसूरत और जवां थे.हेमलता को वह ठीक करने की कोशिशों में कईबार वह असहज कर दिए जाते थे. डॉक्टर और मरीज के बीच छुप छुपाकर प्यार पनपने लगता है.प्यार के इलाज से हेमलता ठीक हो जाती है और दो प्रेमी गा उठते हैं- "ये वादियां ये फिजाएं बुला रही हैं हमें..'' फिर तो दो पीढ़ियों के टकराव की स्थिति खुलकर सामने आजाती है. छोटी बेटी आशालता (तनुजा) का भी सुदेश कुमार से विवाह हो जाता है और राजा साहब आज की स्थिति को कबूल करते हैं. "आज और कल" मशहूर मराठी उपन्यासकार पु.ला. देशपांडे की किताब (सुंदर मी होनार) पर आधारित थी.इस कथानक पर नाट्य मंचन भी काफी सफल रहा है. आज और कल फिल्म की पटकथा भी पु. ला. देशपांडे ने ही लिखा था और संवाद लिखे थे अख्तर उल-ईमान ने. संगीतकार थे रवि. रफी की आवाज में गाया हुआ गीत 'ये वादियां ये फिजाएं बुला रही हैं हमें... ' सुनील दत्त के कैरियर को बहुत मजबूती दी थी. सुनील दत्त से यह गीत अक्सर कार्यक्रमों में सुनने की दरकार रहती थी. आशा भोसले का गाया गीत 'मुझे छेड़ो ना कान्हा' और फिल्म के दूसरे गीत उनदिनों के बहुत बजने वाले गीत हैं जब देश नई हवा की ओर बढ़ने की तरफ अग्रसर था. फिल्म के निर्माता- निर्देशक वसंत जोगलेकर थे जो आधुनिकता के बड़े पक्षधर थे. यह फिल्म आज की जनरेशन और पिछली जनरेशन के फासले को बताने वाली फिल्म थी. Read More Malaika Arora ने अपने पिता अनिल मेहता की मौत के बारे में की बात भोजपुरी एक्ट्रेस Akshara Singh को मिली जान से मारने की धमकी सुभाष घई ने की Aitraaz 2 की ऑफिशियल पुष्टि कोरियन ड्रामा एक्टर Song Jae Rim का हुआ निधन, कमरे मे मिली लाश हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article