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बॉलीवुड की दुनिया में कुछ फ्रैंचाइज़ी ऐसी होती हैं, जो अपनी अनूठी शैली और दर्शकों के दिलों में जगह बनाने की कला के लिए जानी जाती हैं. ‘हाउसफुल’ ऐसी ही एक फ्रैंचाइज़ी है, जिसने अपनी शुरुआत से ही दर्शकों को हंसी, गुदगुदाहट और मनोरंजन का डबल डोज़ दिया है. 6 जून, 2025 को रिलीज़ हुई ‘हाउसफुल 5’ इस सिलसिले की पांचवीं कड़ी है, जो एक बार फिर दर्शकों को हंसाने और गुदगुदाने का वादा करती है.
‘हाउसफुल 1’ और ‘हाउसफुल 2’ जैसी फिल्में उस दौर की थीं जब फूहड़ता और दोहरे अर्थ वाले संवादों की अधिकता नहीं थी. एक समय था जब परिवार के साथ बैठकर ये फिल्में देखी जा सकती थीं. इन फिल्मों में भले ही परिस्थितिजन्य कॉमेडी हो, लेकिन संवादों की मर्यादा थी. उदाहरण के लिए, हाउसफुल (2010) में अक्षय कुमार का किरदार “अरुष” अपने दुर्भाग्य को लेकर संघर्ष करता है, लेकिन हास्य सिर्फ एक्टिंग और सिचुएशन से आता है — संवादों में अश्लीलता का कोई स्थान नहीं था. बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक, सभी ठहाके लगाते थे. यह फिल्म अपने समय की साफ-सुथरी कॉमेडी का उदाहरण थी. 2012 में आई ‘हाउसफुल 2’ ने इस फ्रैंचाइज़ी को और बड़ा बढ़ाया. साजिद खान के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अक्षय कुमार,रितेश देशमुख,जॉन अब्राहम और अभिषेक बच्चन थे. कहानी चार दोस्तों के इर्द-गिर्द थी, जो शादी और रिश्तों के चक्कर में फंसकर हास्यास्पद गलतफहमियों का शिकार होते हैं. ‘हाउसफुल 2’ ने भी दर्शकों को हंसी के ठहाके लगवाए.
समय बदला, दर्शक बदले, और शायद निर्माता यह मान बैठे कि हँसी लाने के लिए अब डबल मीनिंग संवाद जरूरी हो गए हैं. ‘हाउसफुल 3’ (2016) और ‘हाउसफुल 4’ (2019) में कई ऐसे संवाद देखने को मिले जो वयस्कों के लिए भी असहज थे. ‘हाउसफुल 3’ में चंकी पांडे का किरदार ‘आखिरी पास्ता’ कई बार ऐसे संवाद बोलता है, जो सतही तौर पर मज़ेदार लगता है, लेकिन इसका डबल मीनिंग बच्चों या परिवार के बुजुर्गों के साथ बैठकर देखने में असहज कर सकता है, जैसे “मेरे पास दो हैं, तुम्हारे पास कितने हैं?” वहीँ ‘हाउसफुल 4’ में एक सीन है जहाँ अक्षय कुमार का किरदार परीक्षित साहनी से कहता है “देख लिया.” फिल्म में एक दूसरा संवाद भी है “ये लव ट्रायंगल नहीं, लव पेंटागन है!”, अब कल्पना कीजिए, यदि आप यह सीन अपने माता-पिता या बच्चों के साथ देख रहे हों, तो माहौल कैसा होगा? इसी तरह, सेक्सुअल इन्युएन्डो अब कॉमेडी का नया चलन बन चुके हैं. जिन्हें देखने पर हास्य की जगह शर्मिंदगी अधिक होने लगी है.
वहीँ हालिया रिलीज फिल्म हाउसफुल 5 में बेशक कलाकारों की फौज है – अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, संजय दत्त, अभिषेक बच्चन, फरदीन खान, श्रेयस तलपड़े, नाना पाटेकर, जैकी श्रॉफ, डीनो मोरिया, जैकलीन फर्नांडिस, नरगिस फाखरी, चित्रांगदा सिंह, सोनम बाजवा, सौंदर्या शर्मा, चंकी पांडे और जॉनी लीवर. लेकिन सवाल यह है कि क्या इतनी बड़ी स्टारकास्ट वाकई ‘स्मार्ट ह्यूमर’ दे पाएगी या फिर वही पुराना फार्मूला – अश्लील इशारे, चीप डायलॉग्स और आंख मारती स्क्रिप्ट?
पहले जहां हास्य ‘परिस्थिति’ से उत्पन्न होता था, आज वह ‘निचले दर्जे के संवादों’ से पैदा किया जाता है. आज के दौर की तथाकथित कॉमेडी फिल्में हंसी कम और शर्मिंदगी ज़्यादा दे रही हैं. हमारे समाज में जहां पूरा परिवार एक साथ सिनेमा हॉल में फिल्म देखने जाया करता था, वहीं अब “मम्मी ये सीन थोड़ा अजीब है” जैसे वाक्य थिएटर में भी आम हो गए हैं. हास्य का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी सामाजिक मर्यादा को लांघ दें. ‘हाउसफुल’ जैसी फिल्मों का दर्शक वर्ग अब भी वही है – आम लोग, मिडिल क्लास परिवार, बच्चे और बुज़ुर्ग – लेकिन क्या अब वे इसे साथ बैठकर देख पाएंगे? हास्य की ताकत होती है कि वह बिना किसी को नीचा दिखाए, या असहज किए, लोगों को जोड़ सकता है.
‘हाउसफुल 5’ से दर्शकों को एक उम्मीद है कि वह उस मासूम हँसी को लौटाए, जो पहले की फिल्मों में थी. वरना ‘कॉमेडी’ के नाम पर जबरन ठूंसी गई अश्लीलता और सस्पेंस दर्शकों को सिनेमाघरों से दूर करने का काम ही करेगी.
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