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क्यों यादगार है 1974 की फ़िल्म "Haath Ki Safai"

"हाथ की सफाई" को भारतीय स्क्रीनों पर प्रदर्शित हुए पूरे पचास साल हो गए हैं, फिर भी इसकी चर्चा आज भी उतनी ही ताज़ी है जितना इसके रिलीज़ होने के दिन था। प्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित...

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"हाथ की सफाई" को भारतीय स्क्रीनों पर प्रदर्शित हुए पूरे पचास साल हो गए हैं, फिर भी इसकी चर्चा आज भी उतनी ही ताज़ी है जितना इसके रिलीज़ होने के दिन था। प्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित और विनोद खन्ना, रणधीर कपूर और हेमा मालिनी अभिनीत यह त्रिकोणीय मुख्य किरदार ने अपनी कहानी,  प्रदर्शन और मधुर संगीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया था।

उस जमाने में प्रकाश मेहरा की फिल्मों का अलग ही जलवा था, और मेले ठेले में दो भाइयों के खो जाने के टॉपिक में कहानी विकसित करने में उन्हे माहिर माना जाता था।

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यह फिल्म भी  दो भाइयों का बचपन में बिछड़ने और परिस्थितियों के कारण फिर से एकजुट होने की एक मनोरंजक कहानी है, जो मुंबई के धुरंधर अंडरवर्ल्ड की अच्छी खासी झलक भी पेश करती है। विनोद खन्ना द्वारा निभाया गया क्रूर अपराधी शंकर का किरदार उनके उस समय के इमेज के अनुसार पर्फेक्ट था, जबकि रणधीर कपूर द्वारा निभाया गया छोटे मोटे जेबकतरे राजू का किरदार कहानी में संवेदनशीलता का स्पर्श लाता है। हेमा मालिनी, मासूम और डैमसेल इन डिस्ट्रेस कामिनी के रूप में, कहानी में सुंदरता और ग्लैमर का तड़का लगाती हैं।

हालांकि फ़िल्म की कहानी में कोई बहुत नयापन नहीं था लेकिन उस जमाने के दर्शकों को ऐसी ही मसाला फिल्मों की चाहत होती थी, अतः यह फ़िल्म खूब पसंद की गई और फ़िल्म ने डेढ़ करोड़ की कमाई की थी जो उन दिनों बहुत था। दो घंटे छत्तीस मिनट की यह म्यूज़िकल एक्शन फ़िल्म बड़े ही भव्य पैमाने पर बनी तो सही लेकिन शूटिंग के दौरान, पर्दे के पीछे, यह फिल्म मेकिंग की कई चुनौतियों से  भरी हुई थी।
यह फिल्म 30 अगस्त 1974 को रिलीज हुई थी।

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खबरों के मुताबिक प्रकाश मेहरा इस फिल्म के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को विनोद खन्ना वाले रोल के लिए लेना चाहते थे लेकिन शत्रु को रोल पसंद नहीं आया और उन्होंने यह फिल्म ठुकरा दी।

तब मेहरा ने नवीन निश्चल को यह रोल ऑफर किया लेकिन नवीन निश्छल ने यह फिल्म इसलिए रिजेक्ट कर दी क्योंकि वह रणधीर कपूर के साथ सपोर्टिंग रोल नहीं करना चाहते थे।

उसके बाद प्रकाश मेहरा उस जमाने के एक चर्चित हीरो महेंद्र संधू को कास्ट करना चाहते थे। महेंद्र संधू ने स्क्रिप्ट सुनी, हाँ भी किया लेकिन उसने रणधीर कपूर और हेमा मालिनी से ज्यादा फीस की मांग ली।

प्रकाश मेहरा ने महेंद्र को इतना ज्यादा फीस देने से इंकार कर दिया और काफी सोच विचार के बाद विनोद खन्ना से संपर्क किया, विनोद को कहानी पसंद आई और उन्होंने फिल्म साइन कर ली. 

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और विडंबना देखिए, इस फिल्म के लिए विनोद खन्ना को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

बताया जाता है कि शूटिंग के दौरान प्रकाश मेहरा और हेमा मालिनी के बीच थोड़ी सी अनबन हो गई थी।
हेमा का कहना था कि वह शूटिंग के लिए, जब जब बुलाया जाता था, वो आती थी लेकिन प्रकाश मेहरा उसके साथ शूटिंग ना करके रणधीर कपूर के साथ शूटिंग करता रहता था और वो इंतजार करती रहती थी।

इस पर प्रकाश मेहरा ने भी कहा था कि उसने हेमा को बुलाया ही नहीं था क्योंकि वह  रणधीर और विनोद खन्ना के साथ क्लाइमेक्स शूट कर रहे थे। इसलिए वह बीच में नहीं रुक सकते थे और हेमा मालिनी उन्हें बिना बताए ही सेट पर आ गईं थीं। प्रकाश मेहरा ने उन पर स्टार वाले नखरे दिखाने और ठीक से काम न करने का आरोप भी लगाया था।

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इसी खींचा तानी के साथ किसी तरह फ़िल्म पूरी हुई। फिल्म की रिलीज के बाद, हेमा और प्रकाश मेहरा ने फिर कभी एक-दूसरे के साथ काम नहीं करने की कसम खाई। हालांकि बाद में यह पता चला था कि फ़िल्म के निर्माता आई ए नाडीयाडवाला ने हेमा को गलती से कई बार यह कह कर बुलाया था कि उस दिन उनकी शूटिंग है।

बता दें कि इस फिल्म के बाद हेमा ने फिर कभी ना प्रकाश मेहरा के साथ काम किया और ना ही रणधीर कपूर के साथ काम किया।

 बताया जाता है कि फिल्म -'हाथ की सफाई' का टाइटल संगीत, हेनरी मैनसिनी के "द थीफ हू केम फॉर डिनर" से लिया गया था। बाद में इसका उपयोग रफू चक्कर के शीर्षक संगीत में भी किया गया।

उस जमाने में एक विवादित अफवाह यह भी उड़ा था कि सलीम-जावेद ने इस फ़िल्म के पोस्टर से अपने नाम हटवाया था।

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सलीम-जावेद अपने समय के स्टार लेखक थे। इन दोनों ने ही फिल्मों में लेखकों को भी क्रेडिट देने के लिए  लंबी लड़ाई लड़ी थी लेकिन इस फ़िल्म में ऐसा क्या हुआ कि इन स्टार लेखकों ने पोस्टर से अपने नाम हटवाने की ठानी? इसी फिल्म के एक किस्से के बारे में बताया जाता है कि ये दोनों स्टार लेखक, फिल्म की एडिटिंग से बिल्कुल खुश नहीं थे। इसलिए उन्होंने निर्देशक से फिल्म के पोस्टर से उनका नाम हटाने का अनुरोध किया था । जब ऐसा नहीं हो सका तो दोनों एक पेंटर के साथ मुंबई की सड़कों पर निकल पड़े और फिल्म के पोस्टर्स पर अपने नाम को मिटाने के लिए पेंट करवाने लगे, लेकिन  अफवाह यह भी उड़ी कि जब फिल्म हिट हो गई तो उन्होंने फिल्म के पोस्टर्स पर दोबारा अपना नाम लिखवाया।

'हाथ की सफाई' की कहानी कुछ इस तरह की है

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दो भाई अपनी मां की सेवा करते हुए जीवन गुजार रहे थे लेकिन माँ की मृत्यु हो जाने के बाद गांव छोड़कर मुंबई पहुंचे यह दोनों बच्चे एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं। राजू (रणधीर कपूर) को एक अपराधी, अपने पास शरण देता है और उसके साथ रहने के बाद राजू जेबकतरा बन जाता है। वहीं दूसरा भाई शंकर (विनोद खन्ना) एक डॉन के हत्थे चढ़ जाता है और बड़ा होकर अपराध का बादशाह बन जाता है। आखिर एक दिन दोनों भाई तब आमने-सामने आते हैं जब राजू एक अमीर लड़की कामिनी (हेमा मालिनी) को डॉन शंकर के क्राइम सिंडिकेट को बेच देता है। दरअसल  कामिनी के माता पिता नहीं है और उसका अंकल पैसों की लालच में उसकी शादी एक बुरे इंसान रंजीत से करवाने लगता है। तब कामिनी अपने शादी के मंडप से भाग कर राजू से टकरा जाती है और राजू उसकी मदद सिर्फ इस मकसद से करता है कि वो भी उसका धन लूटना चाहता है, लेकिन मासूम कामिनी उससे प्यार करने लगती है।  राजू जब पैसों के  लालच में डॉन को कामिनी सौंप देता है तो घटना के बाद राजू को अपनी गलती का एहसास होता है। और वो डॉन के चंगूल से कामिनी को छुड़वाने के लिए शिद्दत से लड़ जाता है। कामिनी आखिर शंकर के गुर्गों से छूटकर भागते भागते शंकर के ही घर में शरण लेने घुसती है, जहां शंकर की पत्नी रोमा (सिमी ग्रेवाल) उसे शरण देती है लेकिन वहां शंकर की तस्वीर देख कर कामिनी डर जाती है और रोमा को बताती हैं कि इसी इंसान ने उसे बंदी बनाकर रखा था।

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रोमा यह सुनकर इतना दुखी होती है कि आत्महत्या करने के लिए निकल जाती है। उधर कामिनी शंकर के घर से भी भाग जाती है। राजू कामिनी को ढूंढने के लिए शंकर से लड़ जाता है लेकिन उसे जल्द ही यह एहसास होता है कि वह जिससे लड़ रहा है वह उसका भाई है। उधर शंकर जो अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार करता है, वो उसे ढूंढता है। आखिर एक लंबे ड्रामे के बाद, शंकर को रोमा भी मिल जाती है और भाई राजू भी मिल जाता है, राजू भी कामिनी को ढूंढ लेता है और कामिनी को भी राजू के प्यार का एहसास हो जाता है।

फिल्म के एक्शन से भरपूर दृश्यों और इसके मार्मिक क्षणों ने दर्शकों को अपनी सीटों से बांधे रखा था । वो दृश्य जहां राजू और शंकर एक-दूसरे को पहचाने बिना भिड़ते हैं, दर्शकों के दिमाग में आज भी बना हुआ है।

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"हाथ की सफाई" ने इसके मुख्य अभिनेताओं के करियर में भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित किया। विनोद खन्ना का प्रदर्शन, उनका  सॉफिसटिकेटेड डॉन का खतरनाक रूप और कई  भावुक  दृश्यों ने एक अभिनेता के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। रणधीर कपूर, जो अपनी रोमांटिक भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं, ने अधिक गंभीर और एक्शन-प्रधान भूमिका में अपनी योग्यता साबित की।  शालीनता और सुंदरता की प्रतीक हेमा मालिनी ने दो दुनियाओं के बीच फंसी एक महिला का किरदार निभाकर अपने चरित्र में गहराई जोड़ दी थी। रंजीत ने बताया था कि हेमा मालिनी की सुशीलता और सभ्यता के कारण, सेट पर छोटा बड़ा हर कोई उन्हे हेमा जी कहकर पुकारते थे।

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अपनी मनमोहक कहानी और शानदार प्रदर्शन के अलावा, "हाथ की सफाई" अपने मधुर संगीत के लिए भी यादगार बन गया है। कल्याण जी आनंद जी द्वारा संगीतबद्ध, गुलशन कुमार मेहता (गुलशन बावरा) द्वारा लिखे गाने सारे के सारे हिट थे 'वादा करले साजना, मेरे बिना तू न रहे', ऊपर वाले तेरी दुनिया, हमको मुहब्बत हो गई है तुमसे और तुमको मुहब्बत हो गई है हमसे, पीने वालों को पीने का, तू क्या जाने वफा', ये सारे के सारे उस जमाने में खूब चले थे। इसकी आकर्षक धुन और भावपूर्ण गीत सभी उम्र के दर्शकों को पसंद आए।

बताया जाता है कि यह फ़िल्म 1959 की हिट फिल्म 'दो उस्ताद' का रीमेक है। इस फ़िल्म को आगे चलकर तेलगु में 'मानशुलू चेसिना डोंगलू (1976) और तमिल में सावल (1981) नाम से बनाया गया है।

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