ताजा खबर: बॉलीवुड में एक ऐसा समय भी था जब बंगाली फिल्में इंडस्ट्री में राज किया करती थी.बिमल रॉय, ऋशिकेष मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य उस दौर के ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपने बेहतरीन निर्देशन से सभी का दिल जीता था. पहले के सिनेमा में जीवन की असलियत दिखाने की कोशिश की जाती थी. जिसकी वजह से आज भी भारतीय सिनेमा को याद किया जाता है. इस लिस्ट में एक और निर्देशक का नाम है जिन्होंने भारतीय सिनेमा को आगे बढाने में मदद की वह हैं बासु चटर्जी.बासु चटर्जी की आज बर्थ एनिवर्सरी है.
असल जीवन के किरदार को करते थे पेश
गहरी बातों को हल्के अंदाज में बड़े पर्दे पर किस तरह दिखाना है यह अंदाज़ बासु चटर्जी.को पहले से ही खूब आता था. बासु चटर्जी जनता की नब्ज अच्छी तरह जानते थे लोगों के बीच होने वाली घटनाओं को ही उन्होंने अपनी फिल्मों की कहानी का रूप चुना. इसके अलावा असल जिंदगी के किरदारों में रंग भर कर उन्ही के सामने पेश कर देते थे.
मिडिल क्लास फैमिली की कहानी को बनाया आधार
इसके अलावा उनकी फिल्मों की विशेषता यह थी कि उनकी कहानी मिडिल क्लास फैमिली की कहानी की तरह ही लगती थी. उन्होंने अपने समय के लेखकों की कहानियों को फिल्म का शेप दिया.20-22 साल की लड़की के मन के भाव से लेकर किसी बूढ़े आदमी में मन की बेचैनी सभी को उन्होंने अपनी कहानियों का आधार बनाया.
साधारण जीवन की असाधारण कहानियां
बासु चटर्जी ने अपनी फिल्मों में मिडिल क्लास समाज की भावनाओं, उनके संघर्ष, और उनकी खुशियों को बखूबी उतारा। उनकी फिल्में बड़े सितारों, भव्य सेट्स और ग्लैमर से दूर थीं, लेकिन उनका कंटेंट दर्शकों को बांधने में सक्षम था. उनकी कहानियां हमारे आस-पास की उन छोटी-छोटी चीजों पर केंद्रित होती थीं, जो अक्सर हमारी नजरों से छूट जाती हैं.फिल्म "रजनीगंधा" (1974) इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है. यह कहानी एक साधारण लड़की, उसकी नौकरी, और दो पुरुषों के बीच उसके उलझे हुए प्यार के इर्द-गिर्द घूमती है. फिल्म में अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा जैसे साधारण दिखने वाले लेकिन बेहतरीन कलाकार थे, जिन्होंने अपनी सादगी और अदाकारी से फिल्म को यादगार बना दिया.
रियल किरदार, रियल समस्याएं
बासु चटर्जी की फिल्मों की खासियत यह थी कि उनके किरदार असली लगते थे. उनकी फिल्में मिडिल क्लास परिवारों की रोजमर्रा की जिंदगी को पर्दे पर लाती थीं. फिल्म "चमेली की शादी" (1986) या "बातों बातों में" (1979) में उन्होंने प्रेम कहानियों को हल्के-फुल्के और मजेदार अंदाज में प्रस्तुत किया."छोटी सी बात" (1976) एक और ऐसी फिल्म थी, जिसने मिडिल क्लास के शर्मीले प्रेमी की कहानी को दिखाया. अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा की मासूमियत ने इस फिल्म को कालजयी बना दिया.
हास्य और सादगी का संगम
बासु चटर्जी की फिल्मों में हास्य का एक अलग ही अंदाज देखने को मिलता था. यह हास्य न तो ओवरड्रामेटिक था और न ही जबरदस्ती का. यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा था. उनकी फिल्मों का हर डायलॉग और हर सीन ऐसा लगता था जैसे वह हमारी ही जिंदगी का हिस्सा हो.
भारतीय सिनेमा को मिली नई दिशा
बासु चटर्जी ने भारतीय सिनेमा को यह सिखाया कि बिना बड़े बजट और भारी-भरकम स्टार कास्ट के भी दर्शकों का दिल जीता जा सकता है. उनकी फिल्मों ने यह साबित किया कि असली सिनेमा वह है, जो दर्शकों के दिलों तक पहुंचे और उनकी भावनाओं को छुए.
फिल्में
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