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नबेंदु घोष: समाज और मानवीय भावनाओं के संवेदनशील चित्रकार

ताजा खबर: नबेंदु घोष (1929–2018) एक प्रसिद्ध बंगाली लेखक और उपन्यासकार थे, जिन्होंने बंगाली साहित्य और भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया उनका  लेखन और फिल्मों में

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Nabendu Ghosh: Sensitive painter of society and human emotions
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ताजा खबर: नबेंदु घोष (1929–2018) एक प्रसिद्ध बंगाली लेखक और उपन्यासकार थे, जिन्होंने बंगाली साहित्य और भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया उनका  लेखन और फिल्मों में योगदान न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि सामाजिक और मानवीय मुद्दों पर उनकी समझ ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाया घोष का लेखन अक्सर जीवन की जटिलताओं, मानव भावनाओं और सामाजिक वास्तविकताओं के प्रति उनकी गहरी समझ को दर्शाता है 

In Memoriam: A Daughter's Tribute - KITAAB

वह न केवल एक लेखक थे, बल्कि एक प्रभावशाली पटकथा लेखक भी थे, जिन्होंने बिमल रॉय और हृषिकेश मुखर्जी जैसे महान निर्देशकों के साथ काम किया उनके लेखन में मानवीयता, प्रेम, अस्तित्ववाद, और सामाजिक मुद्दों की गहरी छाप थी उनकी कहानियाँ अक्सर रोज़मर्रा के जीवन की जटिलताओं को सरल और प्रभावशाली तरीके से पेश करती थीं

सुजाता और बंदिनी

नबेंदु घोष के लेखन ने भारतीय सिनेमा पर गहरा प्रभाव डाला, और उनके दो प्रसिद्ध काम—सुजाता और बंदिनी—बिमल रॉय और हृषिकेश मुखर्जी जैसे महान निर्देशकों के निर्देशन में फिल्माए गए इन दोनों फिल्मों में घोष के साहित्यिक दृष्टिकोण का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.

सुजाता

सुजाता Sujata - 1959 | सुनील दत्त, नूतन, शशिकला | म्यूजिकल गोल्ड विंटेज  क्लासिक हिंदी फुल मूवी |

सुजाता (1959) एक महत्वपूर्ण फिल्म है जो नबेंदु घोष की कहानी पर आधारित है. इस फिल्म का निर्देशन बिमल रॉय ने किया और इसमें मुख्य भूमिका में नूतन थीं. फिल्म का कथानक एक अनाथ लड़की, सुजाता (नूतन), के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे एक प्रगतिशील परिवार में पाला जाता है, लेकिन वह जातिवाद के कारण सामाजिक भेदभाव का सामना करती है.

Sujata (1960) - IMDb

फिल्म में जातिवाद, मानव गरिमा और समाज में स्वीकृति की खोज जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है. नबेंदु घोष की पटकथा ने जातिवाद और वर्ग भेदभाव को एक संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया, जो भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक बयान बन गई. यह फिल्म न केवल सामाजिक मुद्दों को उठाती है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी उभारती है.

बंदिनी

बंदिनी (1963) भी नबेंदु घोष के उपन्यास पर आधारित एक प्रसिद्ध फिल्म है, जिसे बिमल रॉय ने निर्देशित किया और नूतन ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। फिल्म की कहानी कल्याणी नामक एक महिला (नूतन) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी जवानी में किए गए अपराध के कारण जेल में बंद है. जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, दर्शक जान पाते हैं कि कल्याणी का एक दुखद प्रेम कहानी है, जिसमें विश्वासघात और आंतरिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है.

Recall and Relish: Lost Chapters of Hindi Cinema: Bandini (1963)

यह फिल्म नैतिक दुविधाओं, अपराधबोध और आत्म-पहचान की खोज को गहराई से पेश करती है. नबेंदु घोष की लेखनी ने फिल्म को एक जटिल और भावनात्मक स्तर पर प्रस्तुत किया, जिससे यह भारतीय सिनेमा में एक अनमोल रत्न बन गई. नूतन की अभिनय क्षमता और घोष की पटकथा ने इस फिल्म को एक सशक्त और संवेदनशील कथा के रूप में उभारा।

तीसरी क़सम

Teesri Kasam - Wikipedia

तीसरी क़सम (1966) भी एक महत्वपूर्ण फिल्म है, जिसका निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया और इसका आधार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर था. हालांकि नबेंदु घोष इस फिल्म से सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं थे, फिर भी इस फिल्म के ग्रामीण जीवन और मानवीय संवेदनाओं की गहरी खोज नबेंदु घोष के काम से मिलती-जुलती है.

Films that are 50: 'Teesri Kasam' is a rich monochrome about love and loss

यह फिल्म एक त्रासदीपूर्ण प्रेम कहानी है, जिसमें ग्रामीण भारत की सामाजिक संरचनाओं और प्रेम, सम्मान तथा स्वतंत्रता के बीच संघर्ष को दर्शाया गया है. नबेंदु घोष का लेखन और उनका दृष्टिकोण जो सामाजिक बंधनों और मानवीय संघर्षों पर आधारित था, तीसरी क़सम में भी उसी प्रकार के जटिल विषयों का सामना करता है.

नबेंदु घोष की धरोहर

Hindi Director Nabendu Ghosh Biography, News, Photos, Videos | NETTV4U

नबेंदु घोष का योगदान न केवल बंगाली साहित्य में, बल्कि भारतीय सिनेमा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण था. उनके लेखन ने भारतीय सिनेमा को गहरे सामाजिक और मानवीय मुद्दों की ओर मोड़ा बिमल रॉय और हृषिकेश मुखर्जी जैसे महान निर्देशकों के साथ उनकी सहयोगी भूमिका ने भारतीय सिनेमा को एक नया आयाम दिया

Nabendu Ghosh - Silhouette Magazine

नबेंदु घोष की कृतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और उनकी कहानियाँ, जो समाज के भीतर के जटिल मुद्दों को उजागर करती हैं, उन्हें आज भी पढ़ा और देखा जाता है उनका लेखन साहित्य और सिनेमा दोनों में सामाजिक बदलाव के वाहक के रूप में स्थायी रूप से जीवित रहेगा

रेडियो  पर शो था मशहूर 

Tribute To Nabendu Ghosh | WhatsHot Hyderabad

नबेंदु घोष का विविध भारती रेडियो शो, जो 106.4 MHz पर सुबह 9:30 बजे दैनिक रूप से प्रसारित होता था, भारतीय रेडियो जगत में एक प्रमुख स्थान रखता था. यह शो नबेंदु घोष की विविध लेखन शैली और उनकी सामाजिक समझ को दर्शाता था.नबेंदु घोष का यह शो विशेष रूप से उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान पर आधारित था. इसमें वह श्रोताओं को समाज और संस्कृति से जुड़े मुद्दों, साहित्यिक लेखन, और भारतीय समाज की जटिलताओं पर गहरी चर्चा करते थे. शो के माध्यम से उन्होंने अपनी संवेदनशीलता और गहरी सोच को साझा किया, जिससे श्रोताओं को एक नया दृष्टिकोण और विचार मिलते थे.

Nabendu Ghosh: The Master of Screen Writing - Silhouette Magazine

यह शो न केवल साहित्यिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित था, बल्कि इसमें नबेंदु घोष के व्यक्तिगत अनुभव और दृष्टिकोण भी शामिल होते थे. शो की शैली सरल और प्रभावशाली थी, जिससे आम श्रोताओं के लिए यह बेहद समझने योग्य और दिलचस्प बन जाता था.विविध भारती पर उनका यह शो भारतीय श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय था, क्योंकि नबेंदु घोष ने इसे एक साधारण लेकिन सार्थक तरीके से प्रस्तुत किया था, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता था.

फिल्म से फेमस गाने 

गोरे गोरे हाथों में मेहंदी रचा के

लड़की तुम्हारी कवारी रह जाती के मानो हमारा

रूप जब ऐसा मिला

तेरी बिंदिया रे

अब तो है तुमसे 

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