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ताजा खबर: श्याम बेनेगल (Shyam Benegal biography) एक भारतीय फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार थे. उन्हें समानांतर सिनेमा का पायनियर माना जाता है और 1970 के बाद के दौर के सबसे महान भारतीय फिल्म निर्देशकों में गिना जाता है. उन्होंने अठारह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, एक फिल्मफेयर पुरस्कार और एक नंदी अवॉर्ड जीता. 2005 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.1976 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री, और 1991 में पद्मभूषण से सम्मानित किया.23 दिसंबर 2024 को वे 90 वर्ष की आयु में मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ के इलाज के दौरान निधन हुआ.
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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Shyam Benegal early life)
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श्याम बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में कोंकणी भाषी हिंदू परिवार में श्याम सुंदर बेनेगल के रूप में हुआ. उनके पिता श्रीधर बी. बेनेगल प्रसिद्ध फोटोग्राफर थे.वे 12 वर्ष की आयु में अपने पिता की दी हुई कैमरा से फिल्म बनाने लगे.उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और वहीं हैदराबाद फिल्म सोसायटी की स्थापना की.निर्देशक और अभिनेता गुरु दत्त उनके दूर के रिश्तेदार थे.वे नीर बेनेगल के पति और पिया बेनेगल (कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर) के पिता थे.
करियर की शुरुआत
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1959 में उन्होंने Lintas Advertising में कॉपीराइटर के रूप में काम शुरू किया और आगे चलकर क्रिएटिव हेड बने.1962 में उन्होंने अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री घर बैठे गंगा (गुजराती) बनाई.1966 से 1973 तक वे FTII, पुणे में अध्यापन से जुड़े रहे और दो बार इसके अध्यक्ष भी रहे.इस दौरान उन्होंने 70 से अधिक डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्में बनाई.उन्हें 1970–72 में होमी जे. भाभा फैलोशिप भी मिली जिसके तहत उन्होंने न्यूयॉर्क और बॉस्टन में कार्य किया.
फीचर फिल्मों का सफर
1973 में आई अंकुर ने उन्हें रातोंरात फिल्म जगत में स्थापित कर दिया.इसके बाद के दशक में उनकी ये चार फिल्में भारतीय "न्यू सिनेमा" आंदोलन की आधारशिला बनीं:
अंकुर (1973)
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निशांत (1975)
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मंथन (1976)
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भूमिका (1977)
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इन फिल्मों ने स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी जैसे कलाकारों को पहचान दिलवाई.मंथन भारत की पहली क्राउड-फंडेड फिल्म मानी जाती है — गुजरात के 5 लाख किसानों ने ₹2-2 देकर इसे वित्तपोषित किया.
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1980 का दशक (Shyam Benegal career)
इस दशक में उन्होंने:
भारत एक खोज (1988) जैसी ऐतिहासिक टीवी श्रृंखला बनाई
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यात्रा (1986) जैसी अन्य प्रमुख टीवी परियोजनाओं का निर्देशन किया
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NFDC के निदेशक के तौर पर योगदान दिया
शशि कपूर के साथ उन्होंने जुनून (1978) और कलयुग (1981) जैसी फिल्मों पर काम किया.1983 में आई उनकी फिल्म मंडी राजनीति और वेश्यावृत्ति पर व्यंग्य थी.1985 में उन्होंने गोवा में पुर्तगाली शासन के अंतिम दिनों पर आधारित त्रिकाल बनाई.
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1990 के बाद का दौर (Shyam Benegal films)
उन्होंने भारतीय मुसलमान महिलाओं पर आधारित प्रसिद्ध ट्रिलॉजी बनाई:
मम्मो (1994)
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सरदारी बेगम (1996)
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ज़ुबैदा (2001)
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इन सभी को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.उन्होंने कई जीवनी-आधारित फिल्में भी बनाईं:
सूरज का सातवां घोड़ा (1992)
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द मेकिंग ऑफ द महात्मा (1996)
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो (2005)
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2009 में वे मॉस्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के ज्यूरी सदस्य रहे.
बाद के प्रोजेक्ट्स
वेलकम टू सज्जनपुर (2008)
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वेल डन अब्बा (2010)
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संविधान (2014) – भारतीय संविधान निर्माण पर आधारित टीवी श्रृंखला
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मुझे: द मेकिंग ऑफ अ नेशन (2023) – शेख मुजीबुर्रहमान की बायोपिक
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नूर इनायत खान पर फिल्म (अपूर्ण)
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निधन (Shyam Benegal death)
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23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में किडनी रोग के चलते उनका निधन हो गया.2025 में ऑस्ट्रेलिया के NIFFA फिल्म महोत्सव में श्याम बेनेगल को विशेष श्रद्धांजलि दी गई.
पुरस्कार और सम्मान
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दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2005)
18 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
पद्मश्री (1976)
पद्मभूषण (1991)
फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2025)
कान्स, बर्लिन, मॉस्को सहित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान
FAQ
Q1. श्याम बेनेगल कौन थे?
श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा के महान निर्देशक, पटकथा लेखक और डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार थे, जिन्हें समानांतर सिनेमा का पायनियर माना जाता है.
Q2. श्याम बेनेगल का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उनका जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में हुआ था.
Q3. श्याम बेनेगल का निधन कब हुआ और कारण क्या था?
23 दिसंबर 2024 को मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में किडनी रोग (Chronic Kidney Disease) के कारण उनका निधन हुआ.
Q4. श्याम बेनेगल की पहली फीचर फिल्म कौन-सी थी?
उनकी पहली फीचर फिल्म अंकुर (1973) थी, जिसने उन्हें रातोंरात प्रसिद्ध कर दिया.
Q5. श्याम बेनेगल की कौन-सी फिल्में समानांतर सिनेमा की आधारशिला मानी जाती हैं?
अंकुर, निशांत, मंथन और भूमिका — ये चार फिल्में भारतीय न्यू सिनेमा आंदोलन की नींव मानी जाती हैं.
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