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फिल्म फतेह
निर्माताः सोनल सूद,जी स्टूडियो और षक्ति सागर प्रोडक्शन
लेखकः सोनू सूद व अंकुर पजनी
निर्देशकः सोनू सूद
कलाकारः सोनू सूद, जैकलीन फर्नाडिस, नसीरुद्दीन शाह,विजय राज,दिव्येंदु भट्टाचार्य, प्रकाष बेलावड़ी, शिव ज्योति राजपूत,सूरज जुमान
अवधिः दो घंटे दस मिनट
स्टारः- 1
सलमान खान के साथ फिल्म ‘दबंग’ में छेदी सिंह का किरदार निभाकर बेहतरीन विलेन के रूप में उभरे अभिनेता सोनू सूद ने कोविड के दौरान लोगों की मदद कर निजी जीवन में एक मदद गार इंसान की ईमेज बनाने वाले सोनू सूद लगता है कि अब अभिनय भी भूल गए है,इसका संकेत उन्होंने 2022 की असफल फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज’ में अभिनय कर दे चुके थे.पर अब पूरे लगभग तीन साल बाद वह सिर्फ अभिनेता ही नही बल्कि बतौर लेखक,निर्देशक,निर्माता फिल्म ‘‘फतेह’’ लेकर आए हैं.जो कि एक नहीं कई फिल्मों का मिश्रण है.इस तरह की फिल्म तो बच्चे वीडियो गेम के रूप में खेलने में ही आनंद लेते हैं.पर इस फिल्म से बच्चे दूर ही रहें क्योकि इसे सेसर बोर्ड ने ‘ए’ प्रमाणपत्र दिया है.दस जनवरी 2025 को सिनेमाघरो में रिलीज हुई दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फतेह’ कमजोर दिल वालों को देखने से दूर ही रहना चाहिए.
स्टोरी
एक पूर्व-विशेष ऑपरेशन अधिकारी फतेह सिंह (सोनू सूद) पंजाब के मोंगा गांव में बहुत शांत पूर्ण जीवन जीता है.वह एक डेयरी फार्म में बैठता है.जबकि उसका अतीत अंधकार मय है.उसकी पड़ोसन निमृत कौर (शिव ज्येाति राजपूत) एक लोन देने वाले एप की कंपनी में काम करती है.और खतरनाक साइबर अपराध सिंडिकेट का शिकार बन जाती है.निमृत कौर की तलाष में फतेह सिंह दिल्ली पहुंचता है और एक एथिकल हैकर खुशी शर्मा (जैकलीन फर्नाडिस) के साथ जुड़कर फतेह राष्ट्रव्यापी धोखे के जाल को उजागर करने और न्याय के लिए लड़ने के लिए अपने संयुक्त कौशल का उपयोग करता है।
रिव्यू
अगर आप कमजोर दिल के नही है और एक्शन व खूनखराबा देखना पसंद है,तो आप इस फिल्म को देख सकते हैं.फिर भी सिरदर्द होने लगे तो सिर दर्द की गोली देने सोनू सूद आने से रहे.अति कमजोर पटकथा वाली इस फिल्म में कहानी का कोई सिर पैर ही नही है.साइबर क्राइम को लेकर हर आम इंसान व गांव के गरीबों तक के मन में बहुत बड़ा डर पैदा करने के अलावा यह फिल्म कुछ नही करती.सोनू सूद की फिल्म की कहानी का केंद्र पंजाब के गांव है,शायद सोनू सूद को पता ही नही है कि साइबर क्राइम के शिकार शहर वासी ज्यादा आसानी से हो रहे हैं.लेकिन सोनू सूद भी उन्ही मे से हैं,जिन्हे खुद कहानी कहने की खुजली है,पर उस कहानी या विषय पर शोध कार्य करना गंवारा नही.साइबर अपराध माफिया के खिलाफ युद्ध को छोड़कर, सोनू सूद की फतेह में कुछ भी नया नहीं है,लेकिन अफसोस वह इस पर भी ठीक से बात नही कर पाए.फिल्म ‘फतेह’ में ‘जय हो’, ‘‘पठान’, ‘एनीमल’,‘मार्को’ ,‘किल’ व हालीवुड फिल्म ‘द इक्वलाइज़र’ का अति घटिया मिश्रण ही है. इस फिल्म में सलमान खान की फिल्म ‘जय हो’, शाहरुख खान की ‘पठान’ तक से कुछ दृश्य व कथ्य चुराए गए हैं.जय हो में दूसरों की मदद करने की बात है.इस फिल्म में फतेह सिंह डेयरी में काम करने वाले एक गरीब के बच्चो की फीस जमा करने के लिए उसके ड्राइवर में बिना उसकी जानकारी के पैसे रख देता है.पठान में जाॅन अब्राहम कभी भारतीय एजंसी में काम करते थे,पर उचित सम्मान न मिलने पर वह पाकिस्तान के लिए काम करते हैं.तो यही हाल इस फिल्म में नसीरूददीन शाह के किरदार का है.पहले वह भी फतेह सिंह की ही तरह उसी भारतीय विषेष ऑपरेशन एजंसी का हिस्सा थे,पर अचानक यह विभाग बंद कर दिया गया तो विरोध के तौर पर अब वह सबसे बडे साइबर अपराधी बन गए हैं और अपने ही देष को बर्बाद कर रहे हैं.सोनू सूद ही लेखक,निर्देशक अभिनेता हैं,तो उन्होने सब कुछ अपने ही इर्द गिर्द रखते हुए फिल्म का गुड़ गोबर कर डाला.सोनू सूद का सारा ध्यान खुद को परदे पर बनाए रखने व इंटरनेषल स्तर का एक्शन परोसने में ही रहा.मगर वह यह भूल गए कि एक्शन के साथ कहानी ,इमोशन,मानवीय संवेदनाएं भी चाहिए.पर इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नही है.फिल्म में कहानी तो करेक्टर भी सही तरह से डिफाइन नही किए गए हैं. सोनू सूद उर्फ फतेह दोनो हाथ में बंदूक से गोली चलाए जा रहे हैं,सैकड़ों लोग मर रहे है,मरते समय इंसान के जो भाव होते हैं,जो आह निकलती है,वैसा कुछ भी नही है. घायल इंसान भी चुप रहता है.सब कुछ मषीन जैसा नजर आता है.पूरी फिल्म में दर्शक को परेशान कर देने वाली भयंकर हिंसा व खून ही खून है.पटकथा इतनी अच्छी है कि पूरी फिल्म खत्म हाने पर भी पता नही चलेगा कि नसिरूद्दीन किस देश में बैठे हुए हैं,वह किस देष में भारत के गांव वालों का पैसा लूट कर भेज रहे हैं,जिस निमृत कौर को बचाने फतेह सिंह निकलतेे है,उस लड़की का अंत में क्या हुआ,कुछ नही पता.. सिर्फ लेखक ही नही निर्देशक के तौर पर भी सोनू सूद बुरी तरह से मात खा गए हैं.
एक्टिंग
फतेह सिंह के किरदार में सोनू सूद का अभिनय कुछ ठीक ठाक है,पर यदि फिल्म का निर्देषक कोई और होता तो शायद बेहतर होता.कई दृश्य ऐसे है जहां सोनू सूद का चेहरा एकदम सपाट भावशून्य नजर आता है.जैकलीन के हिस्से करने को कुछ आया ही नही.वैसे भी जैकलीन फर्नाडिष को अभिनय नही आता.अपनी सुंदरता के बल पर फिल्में पा जाती हैं.नई लड़की षिव ज्योति राजपूत छोटे किरदार में अपनी अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं.दिव्येंदु भट्टाचार्य,विजय राज,नसीरूद्दीन शाह जैसे कलाकारों की प्रतिभा को जाया किया गया है.इन कलाकारों ने क्या सेाचकर इस फिल्म में अभिनय किया यह तो वही जाने..सिर्फ रिश्ते निभाने या पैसे जेब मे रखने के लिए..
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