Gyaarah Gyaarah Review: कमजोर लेखन व निर्देशन ने किया मजा किरकिरा अतीत में ‘टाइम ट्रावेल’ पर कई फिल्में बन चुकी हैं, मगर किसी को भी सफलता नहीं मिली. अब ‘टाइम ट्रावेल’ के साथ ही रहस्य व अपराध प्रधान वेब सीरीज ‘ग्यारह: ग्यारह’ लेकर करण जौहर व गुनीत मोंगा आए हैं... By Shanti Swaroop Tripathi 10 Aug 2024 in रिव्यूज New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर रेटिंग: ढाई स्टारनिर्माता: करण जौहर व गुनीत मोगालेखक: कोरियाई सीरीज का भारतीय करण कर्ता पूजा बनर्जी और सुंजॉय शेखरनिर्देशक: उमेश बिस्टकलाकार: कृतिका कामरा, राघव जुयाल, धैर्य करवा, नितेश पांडे, ब्रजेंद्र काला, गौतमी कपूर, हर्ष छाया, पूर्णेंदु भट्टाचार्य और मुक्ति मोहन.अवधि: पैंतालिस से पचास मिनट के आठ एपीसोडओटीटी: नौ अगस्त से जी 5 पर अतीत में ‘टाइम ट्रावेल’ पर कई फिल्में बन चुकी हैं, मगर किसी को भी सफलता नहीं मिली. अब ‘टाइम ट्रावेल’ के साथ ही रहस्य व अपराध प्रधान वेब सीरीज ‘ग्यारह: ग्यारह’ लेकर करण जौहर व गुनीत मोंगा आए हैं, जो कि दक्षिण कोरिया की रहस्य व अपराध सीरीज ‘‘सिग्नल’ का भारतीय करण है. यह क्राइम थ्रिलर फैंटसी है. इसमें ड्रामा है, एक्शन है, थ्रिल है, रहस्य है. मगर दर्शकों के दिलों में जगह नहीं बना पाती. कहानी: इस रहस्य अपराध फैंटसीं सीरीज में समय सबसे बड़ी पहेली है, जो अतीत और भविष्य के रहस्यमय धागों को वर्तमान पल के ताने- बाने में बुनता है. रहस्य व अपराध प्रधान फैंटसी सीरीज की कहानी के केंद्र में देहरादून पुलिस स्टेशन में कार्यरत इंस्पेक्टर युग आर्या (राघव जुयाल) हैं. जो कि रात ग्यारह बजकर ग्यारह मिनट पर महज एक मिनट के लिए इंस्पेक्टर शौर्य अंथवाल (धैर्य करवा ) से एक टूटे हुए वाॅकी टाॅकी पर बात करते हैं. 2001 उसके बाद इस वाॅकी टाॅकी का कभी उपयोग ही नहीं किया गया. इंस्पेक्टर शौर्य 1990 के दशक में हैं और इंस्पेक्टर युग 2016 में हैं.इंस्पेक्टर शौर्य 2001 के बाद से गायब हैं, वह जिंदा हैं या मर गए, किसी को पता नहीं. 2016 में सरकार कानून लेकर आती है कि 15 वर्ष पुराने आपराधिक केस बंद कर दिए जाएंगे. इस नए कानून के तहत 2001 में हुआ अदिति तिवारी के अपहरण व हत्या का केस भी बंद हो जाएगा. दो दिन बाकी हैं और युग को इस केस को हल करना है. 2001 में युग दस ग्यारह साल के थे और उस दशहरे मेले में मौजूद थे, जहां से एक औरत ने अदिति का अपहरण किया था. वैसे उत्तराखंड के आई जी को 15 साल पहले के अनसाॅल्व केस खत्म करने की जल्दी है. जब इंस्पेक्टर युग को लगता है कि वह अदिति के हत्यारे को सामने नहीं ला पाएगा, तभी एक रात 11:11 बजे चमत्कार होता है. वाॅकी टाॅकी पर शौर्य व युग की जो एक मिनट में बात होती है,उससे अपराध के मामले हल करने में युग को मदद मिलती है. इंस्पेक्टर शौर्य द्वारा साझा की गई जानकारी आर्य और एस पी वामिका रावत (कृतिका कामरा) को अदिति तिवारी हत्याकांड को सुलझाने में काफी मदद करती है. इससे उसके साथ एसपी वामिका रावत (कृतिका कामरा ) भी हो जाती हैं. जबकि आईजी समीर भाटिया (हर्ष छाया) रहते हैं. अदिति तिवारी का केस हल होने के साथ ही अदालत सरकार के फैसले को पलट देती है. तब आई जी गुस्से में सारे पुराने केस हल करने की जिम्मेदारी वामिका रावत, युग, बलवंत (नितेश पांडे) व दीपू की टीम के कंधे पर डाल देते हैं. आठ एपिसोड कीे इस सीरीज में एक नहीं कई आपराधिक मामले हल किए जाते हैं. रिव्यू: निर्देशक उमेश बिस्ट ने सीरीज की शुरूआत शानदार की है. दो एपिसोड तक लगता है कि यह सीरीज हंगामा करेगी, मगर तीसरे एपिसोड से उमेश बिस्ट की इस सीरीज पर से पकड़ खत्म होती जाती है. तीसरे एपिसोड के शुरूआत होते ही अदिति तिवारी का केस हल होते ही लेखक व निर्देशक के हाथ से पूरी सीरीज निकल जाती है. सातवें एपिसोड में नए आपराधिक मामले के साथ एक बार फिर सीरीज पटरी पर लौटती है और सातवां व आठवां एपीसोड लोगों को बांधकर रखता है. इस तरह आठ में से चार एपिसोड रोचक और चार एपीसोड बकवास हैं. फिल्म की पटकथा काफी कमजोर व बिखरी हुई है. तीसरे एपिसोड से ही सीरीज गति खो देती है. इसकी मूल वजह यह भी है कि जो आपराधिक मामले जांच के लिए चुने जाते हैं, उनमें दम नजर नहीं आता.मसलन-तीसरे एपिसोड से जिस कांड की जांच शुरू होती है, वह 1990 का ‘टाई एंड डाई’ है. यह नाम ही अपने आप में गड़बड़ है. इसका अपराध से कोई लेना देना नहीं है. इसके अलावा इसमें सीरियल किलर द्वारा नौ हत्याएं करने को सुलझाने में तीसरे से छठे तक एपिसोड तक पहुॅच जाते हैं. बीच में कई दृश्य बेवजह ठॅूंसे हुए नजर आते हैं. लेखक व निर्देशक को यह भी नहीं पता कि 9 नवंबर 2000 से पहले उत्तरप्रदेश का हिस्सा था. 1990 व 1998 में भी उत्तराखंड ही बताया गया. यॅूं भी ‘पगलैट’ जैसी असफल फिल्म के निर्देशक उमेश बिस्ट से उम्मीद रखना भी बेमानी ही है. अतीत को बदलने के प्रयास में वर्तमान पर कितना असर पड़ता है, उसकी कहानी है. पर यह इस सीरीज की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है,क्योंकि इसे दर्शन शास्त्र का उपयोग कर बताया गया है. जिसके चलते हर आम आदमी इस सीरीज के साथ रिलेट नहीं कर सकता. फिल्म में बीच-बीच में कुछ धार्मिकता जोड़ी गयी है, उसकी जरुरत नहीं थी. निर्देशक उमेश बिस्ट व उनकी लेखकों की टीम ने कई किरदारों को संदेह के दायरे में रखकर सीरीज का कबाड़ा ही किया है. मसलन-पुलिस इंस्पेक्टर युग आर्य भेष बदले हुए पुलिस वाले की तरह महसूस होता है, जिसका भंडाफोड़ किसी भी क्षण हो सकता है. पिछले 15-20 वर्षों से ‘सीआईडी’, ‘क्राइम पेट्रोल’, ‘सावधान इंडिया’ जेसे सीरियल देखने के आदी दर्शक तो ‘ग्यारह ग्यारह’ देखते हुए बोर ही होंगे. सातवें व आठवें एपिसोड में अलग अपराध कथा है और यह दोनों एपिसोड जरुर काफी चुस्त व रोचक हैं. चमत्कार हर दिन या बार बार नहीं होते. शौर्य व युग के बीच रात ग्यारह बजकर ग्यारह मिनट पर एक मिनट की बातचीत बार बार होने से भी दर्शक को अजीब-सा लगना स्वाभाविक है. सवाल यह है कि इस सीरीज में ‘टाइम ट्रावैल की जो बात दिखायी गयी है वह विज्ञान सम्मत है? निश्चित रूप से कुछ भी कह पाना संभव नहीं. जिस तरह से कहानी बार बार अतीत में आती जाती रहती है, उससे भी भ्रम की स्थितियां बनती हैं. सीरीज न्यायिक प्रणाली की निराशाजनक खामियों के साथ ही ईमानदार पुलिस अधिकारियों की बेबसी को भी उजागर करने में जरुर सफल है. लगभग आठ एपिसोड के सात घंटे लंबी अवधि के बाद भी मूल रहस्य तो रहस्य ही रह गया है. शायद इसे सीजन दो में उजागर किया जाए. कैमरामैन कुलदीप ममानिया बधाई के पात्र है. वह उत्तराखंड की खूबसूरती को बेहतर ढंग से अपने कैमरे मंे कैद करने में सफल रहे हैं. एक्टिंग: आवेगशील और दृढ़निश्चयी पुलिस कर्मी युग आर्या के किरदार में राघव जुयाल कमजोर साबित हुए है. केस को निपटाने की जल्दी के बीच एक पुलिस ऑफिसर की बेचैनी को अपने अभिनय से राघव जुयाल जुबान नहीं दे पाए. समर्पित पुलिस कर्मी शौर्य अंथवाल के किरदार में धैर्य करवा कुछ दृश्यों में जमे हैं, मगर कई जगह उनका अभिनय भी स्तरहीन है. गौतमी कपूर, हर्ष छाया, पूर्णेंदु भट्टाचार्य, ब्रजेंद्र काला और मुक्ति मोहन सहित बाकी सहायक कलाकार कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं. वामिका रावत के किरदार में कृतिका कामरा को देखकर यह अहसास होता है कि वह 2001 और 2016 के बीच इंसान के व्यक्तित्व, सोच व कार्यशैली में जो बदलाव आता है, उसे न्हीं पकड़ पायी. वामिका का करियर 2001 में शौर्य के साथ शुरू होता है और अब 2016 में वह एसपी हैं. Read More राजेश खन्ना का करियर क्या इस वजह से हुए था चौपट, मुमताज़ ने किया खुलासा इस सीरीज में माधुरी दीक्षित निभाने वाली हैं सीरियल किलर का किरदार? क्या आयुष्मान खुराना ने इस वजह से छोड़ी करीना कपूर खान वाली फिल्म अमेरिकी तैराकी टीम ने ऐश्वर्या के गाने 'ताल से ताल' पर किया परफॉर्म हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article