रेटिंग - 3 स्टार
निर्माता: करण जौहर, गुनीत मोंगा, अचिन जैन और अपूर्व मेहता
लेखक: निखिल नागेश भट्ट और आयशा सैयद
निर्देषकः निखिल नागेष भट्ट
कलाकार: लक्ष्य, राघव जुयाल, तान्या मानिकतला, अभिषेक चैहान, आशीष विद्यार्थी, अद्रिजा सिन्हा, हर्ष छाया व अन्य..
अवधि: एक घंटा 46 मिनट
लंबे समय से लगातार असफलता का दंष झेल रहे करण जौहर की फिल्म निर्माण कंपनी "धर्मा प्रोडक्षन' को भी बदलने पर मजबूर होना पड़ा है. अब वह भी दक्षिण भारत की सफलतम हिंसा प्रधान फिल्म "एनीमल" की ही तर्ज पर अति हिंसक फिल्म 'किल' लेकर आए हैं. जिन्हे मनोरंजन की बजाय सिर्फ खून खराबा और अति हिंसा देखने का चाव है, वही इस फिल्म को देखना चाहेंगे. कुछ लोगों की डाकू व लूटेरों की कहानी बयां करने वाली साठ व सत्तर के दषक की फिल्मों की भी याद आ जाएगी. विदेषी फिल्मों के षौकीनों को दक्षिण कोरिया की 'ट्रेन टू बुसान' या 'स्नोपीयरसर' जैसी फिल्में याद आ सकती है.
कहानी:
नौकरी से अवकाष लेते ही एनएसजी कमांडो अमृत (लक्ष्य लालवानी) के सामने एक नया संकट खड़ा हो जाता है. उसे उसकी प्रेमिका तूलिका (तान्या मानिकतला) का संदेष मिलता है उसके पिता किसी और से उसकी सगाई कर रहे हैं. तूलिका के अमीर, प्रभावशाली पिता बलदेव सिंह ठाकुर (हर्ष छाया) के आदेश पर, उसकी इच्छा के विरुद्ध यह जोड़ी बनाई गई है. अमृत तुरंत अपने मित्र व एनएसजी कमांडो वीरेश (अभिषेक चैहान) के साथ मिलकर योजना बनाते हुए रांची आता है, उसकी योजना समारोह स्थल से तूलिका को भगा कर ले जाने की है. पर तूलिका यह जानकारी देते हुए मना कर देती है कि उसके ससुर ने अभी कई बंदूकों से हवाई फायरिंग की है. इसलिए जिंदा रहने के लिए यहां से भागना मुष्किल है. दिल्ली में मिलने का वादा होता है.
अगले दिन तूलिका और उसका परिवार दिल्ली के लिए रात की ट्रेन में सवार होते है. अमृत भी वीरेश के साथ उसी ट्रेन में अलग कोच में बैठने से पहले वॉशरूम में तूलिका को अपनी तरफ से प्रपोज कर अंगूठी पहनाता है. इसी ट्रेन में लुटेरों का एक गिरोह भी है, जिसका नेतृत्व कामुक, मानसिक रोगी फानी (राघव जुयाल) कर रहा है. वह चार डिब्बों और ट्रेन पुलिंग के सिग्नल बंद कर देते हैं. इस प्रकार, ट्रेन बिना किसी बाधा के चलती रहती है और वह यात्रियों को डराते और लूटते हैं. जब यह लुटेरे तूलिका के पास पहुँचता है, तभी अमृत व वीरेष एक साथ इस गिरोह से लड़ना शुरू कर देते हैं. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. ट्रेन में कई साथियों के मारे जाने के बाद फानी के पिता बेनी (आशीष विद्यार्थी) की राय बदलती है. वह चाहते हैं कि बलदेव सिंह ठाकुर को खत्म कर ट्रेन को बीच मे रोक कर लूटे हुए सामान के साथ भागा जाए, पर फानी तो बलदेव को अपने साथ ले जाकर फिरौती वसूलना चाहता है. फानी, तूलिका को चलती ट्रेन से बाहर फेंक कर उसे मौत की नींद सुला देता है और बेचारा अमृत कुछ नही कर पाता. पर अब उसे तूलिका की इच्छा के अनुरूप तुलिका की छोटी बहन आहना (अद्रिजा सिन्हा) व उसके परिवार को बचाना है. ट्रेन में एसी के चार कोच खून से रंग जाते हैं. लुटेरों का पूरा गिरोह मारा जाता हैं. इस लड़ाई में वीरेष भी मारा जाता है.
रिव्यू:
बलदेव राज चोपड़ा की चलती ट्रेन में हो रही हिंसा वाली हिंसक ,मगर सर्वाइवल फिल्म "द बर्निंग ट्रेन" के बाद अब ट्रेन के अंदर हिंसा व खून खराबे से भरपूर फिल्म 'किल' लेकर निखिल नागेष भट आए हैं, मगर फिल्म "किल" कहानी के नाम पर षून्य है. फिल्मकार ने हिंसा को दिखाने के लिए कहानी का जो आधार चुना,वह गलत हैं. पहली बात तो वह दिन बीते कई साल बीत गए, जब डाकुओे या लुटेरों का गिरोह इस तरह के कर्म करता था. इतना ही नहीं साठ व सत्तर के दषक में डाकुओं व लुटेरो का गिरोह उत्तर भारत में सक्रिय था, पर वह लूटपाट करके भाग जाते थे, हत्याएं मजबूरी में करते थे. जबकि फिल्मकार नीलेष नागेष भट्ट का नायक फानी लूटपाट से ज्यादा हिंसा व लोगों को मौत की नींद सुलाने की तरफ ही ज्यादा ध्यान देता प्रतीत होता है. फिल्म पूरी तरह से कोरियाई एक्शन निर्देशक से-योंग ओह और परवेज शेख की है, जिन्होने ट्रेन के एसी कोच में कम जगह के अंदर अलग अलग तरीके से कई तरह के हथियारों से लोगों को मौत की नींद सुलाने के दृष्य रचे. फिल्म में अमृत और तूलिका के बीच के अति छोटे रोमांटिक हिस्से जरुर कुछ समय के लिए हिंसा से राहत दिलाते हैं. फिल्मकार ने फानी को ऐसे खलनायक के रूप में पेष किया है, जो मजाकिया और शातिर दोनो है. कमजोर दिल या दिल के मरीजों को इस फिल्म से दूरी बनाकर रखना चाहिए. फिल्म मे जिस तरह के एक्षन दृष्य व हिंसा दिखायी गयी है,वह हमारे सेंसर बेर्ड पर भी कई सवाल उठाते हैं? क्या सेसर बोर्ड ने धर्मा प्रोडक्षन के आगे घुटने टेक दिए हैं. हिंसक व खून खराबा के दृश्यों को लेकर 'किल' ने तो 'एनिमल' को भी मात दे दी है. फिल्म 'किल' देखकर सवाल उठना लाजमी है कि क्या वास्तव में हम अति हिंसक समाज में जी रहे है. यह फिल्म अपरोक्ष रूप से एक संदेष देती है कि जब तक हम एक जुट नही होंगे, तब तक कोई भी हमें लूटता रहेगा.जब तक हम यह सोचकर एक खलनायक के प्रति मूक दर्षक बने रहेंगे कि वह भलां इंसान को नुकसान पहुंचा रहा है, हमें इससे क्या लेना देना, तब तक हम नुकसान उठाते रहेंगे. बेहतरीन फोटोग्राफी के लिए कैमरामैन रफ़ी महमूद बधाई के पात्र है.
अभिनय:
लक्ष्य लालवानी ने टीवी श्रृंखला पोरस में मुख्य किरदार के रूप में अपनी पहचान बनाई. 28 वर्षीय अभिनेता ने अपनी पहली फिल्म में एक्शन हीरो के रूप में अद्भुत छाप छोड़ी. वह एक्शन में लगभग दोषरहित है और अमृत की भावनात्मक गहराई को चित्रित करने में काफी सक्षम है. पूरी फिल्म को अपने कंधे पर ढोते हुए लक्ष्य ने साबित कर दिखाया कि उनके अंदर एक्षन स्टार बनने की पूरी क्षमता है, मगर उनकी आगमी फिल्में बनाएंगी कि उनका हाल क्या होता है. फानी के किरदार में डांसर व कोरियोग्राफर राघव जुयाल को एक अभिनेता के रूप में अपनी छाप छोड़ने के लिए संघर्ष करना पड़ा है. पर वह ट्रेन के यात्रियों के मन में डर पैदा करने में सफल रहते है. बेनी की भूमिका में आशीष विद्यार्थी का अभिनय ठीक ठाक है. लुतिका के किरदार में 'ए सूटेबल बयां' फेम अभिनेत्री तान्या मानिकतला खूबसूरत जरुर नजर आयी हैं,मगर उन्हें अपने अभिनय में काफी निखार लाने की जरुरत है. तूलिका की छोटी बहन आहना के छोटे किरदार में "एक बंदा काफी है" किशोर कलाकार अद्रिजा सिन्हा प्रभावित कर जाती है.
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