रेटिंगः चार स्टार
निर्माता: फरहान अख्तर और रितेष सिद्धवानी
लेखकः अविनाष सिंह तोमर,विनय नारायण वर्मा
निर्देषकः गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर
कलाकारः पंकज त्रिपाठी, ष्वेता त्रिपाठी षर्मा ,अली फजल, ईषा तलवार, विजय वर्मा,लिलिपुट,अंजुम षर्मा, प्रियांशु पेनयुली,षीबा चड्ढा,राजेष तैलंग व अन्य
अवधिः 48 से 57 मिनट के दस एपीसोड, कुल लगभग साढ़े नौ घंटे
ओअीटी प्लेटफार्म: अमेजान प्राइम वीडियो
उत्तर प्रदेष का पूर्वांचल इलाका बाहुबलियों के लिए ही याद किया जाता है. यह बाहुबली अफीम से लेकर कोयले तक कई तरह के व्यवसाय करने के साथ ही हिंसक गतिविधियो में भी लिप्त रहते हैं. इन्हीं बाहुबलियों के कुछ सुने सुनाए किस्सो पर एक सेक्स,हिंसा व खूनखराबा से भरपूर वे बसीरीज ''मिर्जापुर'' ओटीटी प्लेटफार्म 'अमेजॉन प्राइम' पर स्ट्रीम हुआ था, जिसके मुख्य किरदार कालीन भईया के चलते यह सीरीज काफी लोकप्रिय हुआ. उसके बाद इसका सीजन तीन आया और अब इसका सीजन तीन आ गया है, जो कि अमेजॉन प्राइम पर पांच जुलाई से स्ट्रीम हो रहा है. इस बार भी हिंसा, खूनखराबा, गंदी गंदी गालियां,बाहुबलियों और राजनेताओं के रिष्ते सब कुछ चरम पर है.
कहानीः
इस बार सीरीज की कहानी वहीं से शुरू होती है,जहां पर सीजन दो खत्म हुआ था. सीजन दो के अंत में हमने देखा था कि मुन्ना मारा गया था,मगर किसी ने कालीन भईया को बचा लिया था. तीसरे सीजन के पहले एपीसोड में लगभग छह मिनट में अब तक का रीकैप ही है. जिससे पता चलता है कि कालीन भईया को बचाकर षरत शुक्ला अपने साथ ले जाकर दद्दा(लिलिपुट) के अड्डे पर छुपाया था और वहीं पर उनका इलाज शुरू करवाया है. वैसे कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) कहां हैं, इसकी खबर किसी को नहीं है. माधुरी (ईशा तलवार) अपने पति मुन्ना की चिता को आग देने के लिए आगे आती है. बीना त्रिपाठी(रसिका दुग्गल),गुड्डू पंडित(अली फज़ल) और गोलू (श्वेता त्रिपाठी शर्मा ) मान चुके हैं कि कालीन भईया की भी मौत हो गयी है. मुन्ना त्रिपाठी को मारकर और कालीन भैया को हटाकर गुड्डू पंडित ने खुद को मिर्जापुर का बाहुबली घोषित कर दिया है. गुड्डू पंडित त्रिपाठी चैाराहे पर लगी मुर्ति को भी तोड़ देता है. बीना त्रिपाठी कुछ कहने की स्थिति में नही है. अब गुड्डू की निगाह पूर्वांचल की गद्दी पर विराजमान होने पर है, लेकिन उसके रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा जौनपुर का शरद शुक्ला और पश्चिम के कुछ बाहुबली हैं. इसी बीच गुड्डू पंडित के पिता व वकील रमाकांत पंडित एसएसपी मौर्या की हत्या के जुल्म में जेल के अंदर पहुँच गए हैं और वहां पर कैदियों की रिहाई की अर्जी लिखते रहते हैं.वहीं पर अफीम व्यापार राउफ लाला भी बंद है.
उधर गुड्डू पंडित की साथी और लेडी डॉन गोलू (श्वेता त्रिपाठी) अब पहले से ज्यादा आक्रामक हो गई है. तो वहीं जौनपुर का बाहुबली शरद शुक्ला (अंजुम शर्मा) गुड्डू को मोत की नींद सुलाकर मिर्जापुर की भी गद्दी हथियाना चाहता है. इसके लिए वह षतरंजी चाल चलते हुए एक तरफ कालीन भईया को अपने घर का सदस्य बनाकर उन्हें अपने पक्ष में कर रहा है,तो दूसरी तरफ वह पेश की मुख्यमंत्री माधुरी यादव (ईशा तलवार) को अपना साझेदार बना लेता है. माधुरी यादव पेश से बाहुबलियों का खात्मा कर 'भय मुक्त' प्रदेष बनाना चाहती हैं. अपने इस कदम में सफल होने के लिए माधुरी यादव बाहुबलियों को ही अपना हथियार बनाती है. माधुरी यादव ने रंजना को अपने चाचा जे पी यादव की तलाश में लगा रखा है. वाराणसी में छिपे हुए जे पी यादव अपने तरीके से माधुरी यादव को मुख्यमंत्री के पद से मुक्त करने में लगे हुए हैं. पूर्वांचल की गद्दी पर आसीन होने की लड़ाई के साथ ही दद्दा के बेटे भरत उर्फ शत्रुघ को गोलू से अपने भाई की मौत का बदला लेना है.वह गोलू को अपने अड्डे पर बंदी बना लेता है.हिंसा, खूनखराबा, राजनीतिक चालें चली जाती रहती हैं.मुख्यमंत्री माधुरी यादव व शरद शुक्ला मिलकर चाल चलते हैं,जिससे गुड्डू पंडित को पता चलता है कि गोलू की हत्या हो गयी.फिर गुड्डू पंडित सरेंडर कर जेल पहुँच जाते हैं.इधर शरद शुक्ला को यकीन हो गया है कि मिर्जापुर और पूर्वांचल की गद्दी कालीन भईया उन्हे दिला देंगंे.पर जब कालीन भईया सभी के सामने आते है तब एक नया खेल हो जाता है.
रिव्यूः
'मिर्जापुर' का तीसरा सीजन प्रतिशोध की अति हिंसक,खूनखराबा, गंदी गाली गलौज,इंटीमसी सीन व सेक्स से भरपूर सीजन बनकर रह गया है. इस सीजन की पटकथा काफी हिचकाले लेकर चलती है.कई द्रश्य जबरन खींचे हुए लगते है. विजय वर्मा के चरित्र चित्रण में लेखक मार खा गए हैं. मिर्ज़ापुर हिंदी पट्टी की हिंसा की कहानी बताने के साथ ही भारतीय राजनीति और कानून व्यवस्था की परतें भी उधेड़ती है. यह सत्ता के खेल, सेक्स, ड्रग्स, मौत, विवादित रिश्तों और विश्वासघात का ऐसा द्रश्य पेश करती है,जिसे हम अक्सर सुनते या देखते रहे है. मुख्यमंत्री माधुरी यादव के किरदार पर मेहनत करने की जरुरत थी. जे पी यादव के चरित्र के साथ भी न्याय नही हो पाया. यदि सीरीज में जे पी यादव के सभी द्रश्य निकाल दें,तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. यह लेखकों की कमजोरी को दर्षाता है.बतौर निर्देषक गुरमीत सिंह कई जगह बुरी तरह से मात खा गए हैं. इतना ही नहीं नए किरदारों को जोड़ते हुए लेखक व निर्देषक ने जिस तरह से षायारी में भी गालियों को पिरोया है तथा जिस तरह से हिंसा व खून खराबा का स्तर बढ़ाया गया है,,वह इसके दर्षक कम करेगा. अब हम इसे परिवार के साथ या बच्चों के साथ नही देख सकते.
अभिनयः
मिर्जापुर सीजन 3 को गुड्डू पंडित,गोलू और शरद शुक्ला ही अपने कंधे पर लेकर चलते हैं.गुड्डू पंडित के किरदार को जीवंतता प्रदान करने में अली फजल ने कोई कसर नही छोड़ी है. उनकी बहुमुखी प्रतिभा के ही चलते उनका तनाव, संघर्ष और प्रतिशोध दर्शकों तक स्थानांतरित हो जाता है. हिंसक द्रश्यों के साथ ही भावानात्मक द्रश्यों में भी वह चमकते है. गोलू के किरदार में श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया है.शरद शुक्ला के किरदार में अंजुम शर्मा ने अपने सधे हुए अभिनय से अच्छा प्रभाव डाला है. छोटे उर्फ भरत उर्फ शत्रुघ के किरदार में विजय वर्मा ने महत्वाकांक्षाओं और भावनात्मक कमजोरियों की परतों को अपने अभिनय से उकेर कर साबित कर दिखाया कि वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार है. हर्षिता गौर, राजेश टैलंग,अनिल जाॅर्ज ,प्रियांशु पेनयुली और शीबा चड्ढा ठीक ठाक है. एक कुटिल राजनेता माधुरी के किरदार में ईषा तलवार की पकड़ साफ नजर आती है. बीना त्रिपाठी के किरदार में बिना संवादों के अपने हाव भाव व आँखों सें रसिका दुग्गल काफी कुछ कह जाती हैं.कालीन भईया के किरदार में पंकज त्रिपाठी के हिस्से इस बार कुछ खास करने को आया ही नहीं.
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