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REVIEW: 'The Sabarmati Report' एक आधी पकी खिचड़ी...

27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के दो कोच मे आग लगाने,जिसमे 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी, की सत्य घटना पर आधारित क्राइम थ्रिलर  फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’...

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रेटिंगः ढाई स्टार
निर्माताः एकता कपूर,शोभा कपूर,अमूल मोहन,अंशुल मोहन
लेखनः अर्जुन भांडेगांवकर, अविनाश सिंह तोमर और विपिन अग्निहोत्री
निर्देशनः धीरज सरना (पहले रंजन चंदेल ने इसका निर्देशन किया था)
कलाकार: विक्रांत मैसे, राशी खन्ना, रिद्धि डोगरा, बरखा सिंह, नाजनीन पटनी,प्रिंस कश्यप व अन्य
अवधिः दो घंटे सात मिनट

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27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के दो कोच मे आग लगाने,जिसमे 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी, की सत्य घटना पर आधारित क्राइम थ्रिलर फिल्म "द साबरमती रिपोर्ट" लेकर एकता कपूर ,अमूल मोहन व अंशुल मोहन आए हैं, जिसका लेखन विपिन अग्निहोत्री और अविनाश ने किया है. पहले इसका निर्देशन रंजन चंदेल ने किया था. कर रहे थे पर बाद में धीरज सरन निर्देशक के तौर पर जुड़े और उन्होने कुछ बदलाव किए. 8 अप्रैल 2024 को सीबीएफसी यानी कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ द्रश्यों पर आपत्ति जतायी, तब निर्माताओं ने 9 जुलाई 2024 को, रंजन चंदेल को फिल्म से बाहर कर दिया और अगस्त 2024 में रंजन चंदेल की जगह टेलीविजन लेखक और अभिनेता धीरज सरना ने निर्देशन की जिम्मेदारी लेेते हुए कथानक में कुछ बदलाव कर कुछ दृष्य पुनः फिल्माए,जो कि आज,15 नवंबर से सिनेमाघरों में है.

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कहानीः

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन के नजदीक साबरमती एक्सप्रेस के दो कोच में आग लग गई थी, जिसमें 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी. उसके बाद एक दृढ़संकल्पित रिपोर्टर इसकी जांच करने निकलता है कि क्या यह एक दुखद दुर्घटना थी अथवा कोई एक भयावह साजिश. खोजी पत्रकार की यात्रा जटिल सच्चाइयों पर प्रकाश डालती है. फिल्म शुरू होती है अदालत से,जहां ईबीटी चैनल ने पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसे ) के खिलाफ मुकदमा दायर किया है कि उसने उनके चैनल की मानहानि की है.समर कुमार से सार्वजकिन माफी के साथ ही दो करोड़ रूपए की मांग की गयी है.अदालत में समर कुमार सच उगलना शुरू करते है. फिर फिल्म उनकी यात्रा के साथ आगे बढ़ती है. तो यह फिल्म उनकी बतौर पत्रकार एक यात्रा है. समर कुमार कैमरामैन कम पत्रकार के रूप में फिल्म बीट संभालते हैं, अचानक गोधरा कांड हो जाता है,तो ईबीटी की मशहूर पत्रकार मणिका राजपुरोहित (रिद्धि डोगरा) के साथ समर कुमार को कैमरामैन के रूप में गोधरा जाने का अवसर मिलता है, रिपोर्टिंग के दौरान एक राजनेता द्वारा राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने की बात की जाती है और मनिका के पास एक फोन आता है. मनिका दिल्ली आफिस चली जाती है, कुछ देर बाद समर कुछ और फुटेज व सच लेकर दफ्तर पहुॅचकर टेप संपादक को दे देता है. समर के अनुसार आग लगवाई गयी है. चैनल पर मकिना की स्टोरी चलायी जाती है कि साबरमती ट्रेन में लगी आग एक दुर्घटना है. समर इसका विरोध करता है,तो उसे नौकरी से निकालकर उस पर चोरी का इल्जाम लगाया जाता है,समर की प्रेमिका (बरखा सिंह) उसकी जमानत कराने के बाद उसका साथ छोड़ देती है. अब समर शराबी हो गया है. पांच साल बाद चैनल में नई पत्रकार अमृता गिल (राशी खन्ना) आती है,उसे गोधराकांड की पांचवीं बरसी पर काम करने के लिए कहा जाता है,तो उसके हाथ समर कीफफटेज लग जाती है. फिर वह समर के साथ मिलकर सच जानने का प्रयास करते हुए 59 मृत लोगों के नाम भी उजागर होते है. समर को एक नए चैनल ‘भारत न्यूज’ में नौकरी मिलती है, जहां समर इस सच को सभी के सामने लाते है.

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रिव्यूः

‘गोधरा कांड’ पर अब तक काफी कुछ कहा जा चुका है. कई फिल्में आ चुकी हैं. सभी नानावटी कमीशन की रिपोर्ट ही घुमा फिराकर पेश कर रहे हैं. तो कहानी में नयापन नही है. केवल प्रस्तुतिकरण में अंतर है. इस बार निर्माताओ ने पत्रकारों ,खासकर अंग्रेजी भाषी पत्रकारों को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हुए यह कहने का प्रयास किया है कि अंग्रेजी पत्रकारो के सामने हिंदी के पत्रकारों को इज्जत नही दी जाती. लेकिन कमजोर पटकथा के चलते यह बात उभरकर नही आ पाती. अदालत के अंदर कुछ संवाद मात्र से हिंदी के महत्व को सिद्ध करने का प्रयास सफल नही रहा. माना कि समर की यात्रा के माध्यम से फिल्मकार ने मीडिया का एक अलग चेहरा दिखाया है, पर इससे हर आम इंसान परिचित है. मीडिया व राजनेता के रिश्तों को भी ठीक से स्थापित नही किया गया. सब कुछ हवाबाजी में ही है. परिणामतः फिल्म दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती. फिल्म में गाना नही है,मनोरंजक पल का अभाव है. समर की प्रेम कहानी भी ठीक से नही कही गयी. पहली बात तो इस प्रेम कहानी की जरुरत ही नही थी. पर जबरन ठूॅंसा गया.घटनाओं की तीव्रता को पकड़ने वाला निर्देशन सराहनीय है. इंटरवल के बाद फिल्म भटकी हुई है. इंटरवल के बाद गति धीमी हो जाती है, यह एक डॉक्यूमेंट्री जैसा लगता है. तथ्य और कल्पना के बीच केअंतर को ठीक से चित्रित नही कर पाए. फिल्म का प्रार काफी कमजोर रहा. साबरमती ट्रेन में आग लगने के बाद भड़के दंगों पर फिल्म खामोश रहती है. इससे यह साबित होता है कि इसे किसी अजेंडे के तहत बनाया गया है. यॅूं भी फिल्म की सटीकता और चित्रण पर कुछ लोगों द्वारा सवाल उठाए गए हैं. गोधरा कांड की बात करते करते अंत में राम मंदिर के बनने व उद्घाटन के द्रश्यों को दिखाने के मायने भी समझ से परे है. फिल्म यह भी समझाती है कि राजनीति और पत्रकारिता में भी कोई स्थायी सहयोगी या दुश्मन नहीं होता है. फिल्म में इशारा किया गया कि कैसे झूठी खबरें बेचकर सत्ताधारी सरकार को खुश रखा जाता है. पर यह बात दर्शकों तक नही पहुॅच पाती. विक्रांत मैसे के चरित्र में भी कमियां है.

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एक्टिंगः

‘12वीं फेल’ में शानदार अभिनय के लिए शोहरत बटोर चुके विक्रांत मैसी ने इस फिल्म में इमानदार हिंदी भाषी खोजी पत्रकार समर कुमार की भूमिका में चार चांद लगा दिए हैं. मगर उनका अभिनय बड़े परदे पर कमतर नजर आता है,वह हर जगह ओटीटी वाला काम करते नजर आए हैं. मीडिया के अंदरूनी सूत्रों के लिए भरोसेमंद अनुभवी पत्रकार मणिका राजपुरोहित के किरदार में रिद्धि डोगरा एक बार फिर सषक्त अदाकारा के रूप में उभरती है. वही प्रषिक्षु पत्रकार अमृता गिल के किरदार में राशि खन्ना का अभिनय ठीक ठाक है. अन्य कलाकार अपनी अपनी जगह ठीक है.

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