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Review The Storyteller: कहानीकार के मानवीय पक्ष को नहीं उभार पाए...

सत्यजीत रे की समीक्षकों द्वारा प्रशंसित लघु कहानी 'गोलपो बोलिए तारिणी खुरो' से प्रेरित होकर निर्देशक अनंत नारायण महादेवन एक फिल्म "द स्टोरी टेलर" लेकर आए हैं...

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Review The Storyteller
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रेटिंग: ढाई स्टार
निर्माता: जियो स्टूडियोज, पर्पज एंटरटेनमेंट और क्वेस्ट फिल्म्स
निर्माता: ज्योति देशपांडे, सलिल चतुर्वेदी, सुचंदा चटर्जी और शुभा शेट्टी
निर्देशक: अनंत नारायण महादेवन
कलाकार: परेश रावल, आदिल हुसैन, रेवती, तनिष्ठा चटर्जी व अन्य
अवधिः एक घंटा 53 मिनट
ओटीटी: डिज्नी+हॉटस्टार पर 28 जनवरी से स्ट्रीम

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सत्यजीत रे की समीक्षकों द्वारा प्रशंसित लघु कहानी 'गोलपो बोलिए तारिणी खुरो' से प्रेरित होकर निर्देशक अनंत नारायण महादेवन एक फिल्म "द स्टोरी टेलर" लेकर आए हैं. जिसे फेस्टिवल 2023, केरल के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में काफी सरहा जा चुका है, यह फिल्म बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2022, ह्यूस्टन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2023, और जागरण फिल्म फेस्टिवल 2023 में दिखायी जा चुकी है. फिल्म में रचनात्मक कॉपीराइट के साथ ही यह सवाल भी उठाया गया है कि असली कहानीकार कौन है. वह जो कहानियां सुनाता है या वह जो दूसरे से सुनी हुई कहानी को लिखता है?

स्टोरी:

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फिल्म की स्टोरी सत्यजीत रे की लघु कहानी 'गोलपो बोलिए तारिणी खुरो' पर आधारित है. कोलकता में रह रहे तारिणी बंदोपाध्याय (परेश रावल) को कहानियां सुनाने का शौक है. तारिणी एक सर्वोत्कृष्ट बंगाली हैं और उन्हें रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकों. मछली और दुर्गा पूजा सहित अन्य चीजों से बहुत प्यार है. वह जो कहानियां सुनाते है उनमें खुद को खो देना पसंद करते है. मगर वह कभी उन्हे कागज पर लिखकर उसे छपवाकर पैसा नही कमाते. क्योकि वह आलोचना से डरते हैं. जबकि एक बार उनके जन्मदिन पर उनकी पत्नी उन्हे उपहार में एक पेन देते हुए उनसे कहती है कि आप कहानियां लिखो... पर तारिणी डरते हैं... उनका बेटा व बहू अमरीका में रह रहा है और वह उन्हे अमरीका बुलाता रहता है. पर वह नही जाते. इसी बीच उन्हे गुजरात के अहमदाबाद शहर से अमीर कॉटन के व्यवसायी रतन गोराडिया (आदिल हुसेन) की तरफ से उन्हे नौकरी का ऑफर आता है. वह उन्हे नई मौलिक कहानियां सुनाने के लिए ही बुलाते है. उद्योगपति रतन गोराडिया को नींद ना आने की बीमारी है और उन्हें लगता है उन्हें कोई अच्छी कहानियां सुनाएगा तो वह सो पाएंगे. गरोडिया पूरी तरह से एक विशिष्ट गुजराती व्यवसायी का अवतार हैं. उनका व्यक्तित्व घर के डिज़ाइन. संख्याओं पर विशेष ध्यान और बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके पास बहुत सारी किताबें हैं लेकिन वह उन्हें पढ़ते नहीं है. तारिणी अहमदाबाद जाकर रतन गोराड़िया से मिलते हैं. उन्हें कहानियां सुनाना शुरू करते है उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. रतन ठहरे व्यापारी..तो वह अपनी व्यापारिक बुद्धि का उपयोग कर कुछ तो कारनामा करेगा ही... अब रतन को नींद आयी या तारिणी के साथ कोई खेला होता है. क्या तारिणी बंदोपाध्याय के साथ रतनन गारोड़िया धोखा करते हैं? उसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी.

रिव्यूः

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पिछले कुछ समय से कॉपीराइट का मुद्दा गरमाया हुआ है. आए दिन फिल्मकारों पर इसी बात को लेकर मुकदमे होते रहते हैं कि कहानी किसकी है? इस अहम मुद्दे पर कई दाक पहले सत्यजीत रे ने एक रोचक लघु कहानी लिखी थी. उसी पर अनंद महादेवन यह फिल्म लेकर आए है. धीमी गति से चलने वाली यह फिल्म बहुत कुछ कह जाती है. यह फिल्म कहीं न कहीं इस बात पर भी रोशनी डालती है कि जीत उसी की होती है. जो बिना डरे काम को अंजाम देता रहे. तारिणी कहानी सुनाते है. मगर लिखने से डरते हैं. इसको लेकर मानवीय और मनोवैज्ञानिक पक्ष को उभारने मे फिल्मकार बुरी तरह से मात खा गए. फिल्म जो कहना चाहती है वह अगर दर्शक समझते हैं तो जिंदगी की कुछ मुश्किलें आसान हो सकती हैं. साहित्यिक कहानियों को परदे पर पेश करने में तो अनंत नारायण महादेवन को महारत हासिल है. फिल्म एक सशक्त संदेश देती है कि कहानियां अपने आप में जादू का पिटारा नहीं है. मगर कहानीकार उनमें जीवन फूंकता है. रतन व सरस्वती के रिश्तों पर यह फिल्म साफ तौर पर कुछ नही कहती. कई द्रश्यों में रतन का किरदार रहस्यमय लगता है. क्यों पता नहीं. पर यह लेखक व निर्देशक की कमजोरी है? इतना ही नहीं तारिणी और रतन दोनों के किरदार में बदलाव आता है. इस बदलाव की वजह उजागर करने मे लेखक व निर्देशक मात खा गए. फिल्म में ईर्ष्या. सफलता. भय. धोखे और हेरा फेरी जैसे कई तत्व हैं. मगर इन्हें बहुत साफ तौर पर रेखांकित नही किया गया है. फिल्म को गति प्रदान किया जा सकता था. पर ऐसा नहीं हुआ. सत्यजीत रे इतनी अच्छी कहानी लिखकर गए कि निर्देशक अनंत नारायण महादेवन की कमजोरी को दर्शक अनदेखा कर जाता है. कुछ संवाद मार्मिक और रूपकात्मक हैं. मसलन- "अच्छे कलाकार नकल करते हैं; महान कलाकार चोरी करते हैं." अथवा "प्यार ऐसा प्रॉमिस है. जिसे निभाना मुश्किल." तो एक संवाद है. जब तारिणी.रतन से कहते हैं- "आपको कहानी सुनाने वाला नही. जिंदगी का नजरिया बदलनेीक जरुरत है." अथवा 'हिस्ट्री लिखने के लिए भी कलम उठाने की हिम्मत चाहिए.' जब तारिणी. गारोड़िया से मिलने अहमदाबाद में उनके घर पहुँचते हैं. उस वक्त का द्रश्य काफी गड़बड़ है.

एक्टिंग:

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तारिणी यानी कि मछली से बड़ा प्यार करने वाले बंगाली. जो बाद में अस्थायी रूप से आधा गुजराती बन जाते हैं. के किरदार में मूलतः गुजराती होते हुए भी परेश रावल ने जान फूंकी है. उनके चेहरे के हाव भाव. बॉडी लैंग्वेज व संवाद अदायगी कमाल की हैं. उद्योगपति रतन गोराड़िया के किरदार में आदिल हुसैन ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. एक उद्योगपति की गरिमा को भी उन्होने अपने किरदार से निखारा है. कैमियो के छोटे किरदार में रेवती अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती है. गुजराती लाईब्रेरियन के किरदार में तनिष्ठा चटर्जी का अभिनय स्वाभाविक लगता है. कहीं कोई बनावटीपन नहीं.

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