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फिल्म रिव्यू: सितारे ज़मीन पर
निर्देशक: आर. एस. प्रसन्ना
निर्माता: आमिर ख़ान और अपर्णा पुरोहित
लेखक: दिव्य निधि शर्मा
कैमरामैन: जी. श्रीनिवास रेड्डी
स्टार कास्ट: आमिर खान, जेनेलिया देशमुख, डॉली अहलूवालिया, बृजेन्द्र काला, गुरपाल सिंह, तराना राजा, अरूष दत्ता, गोपी कृष्ण वर्मा, सम्वित देसाई, वेदांत शर्मा, आयुष भंसाली, आशीष पेंडसे, ऋषि शाहानी, ऋषभजैन, नमन मिश्रा और सिमरन मंगेशकर
अवधि: 2 घंटे 38 मिनट
रेंटिंग: 4.5 स्टार
आमिर खान (Aamir Khan) और जेनेलिया देशमुख (Genelia Deshmukh) की फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ आज, 20 जून को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है. फिल्म को लेकर दर्शकों के बीच जबरदस्त उत्साह है. अगर आप भी इसे देखने का सोच रहे हैं, तो चलिए हम आपको बताते हैं कि ये फिल्म कैसी है और इसे देखना क्यों एक अच्छा फैसला हो सकता है.
कहानी
जूनियर बास्केटबॉल कोच गुलशन अरोड़ा (आमिर खान) छोटा कद, बड़ी हठ और आत्म-अहंकार से भरा एक व्यक्ति है. वह अपनी मां (डॉली अहलूवालिया) के साथ रहता है, जबकि उसकी पत्नी (जेनेलिया देशमुख), जो शादी के बाद अभिनेत्री बनने का सपना अधूरा छोड़ चुकी है, उससे उसके रिश्ते में खटास आ चुकी है. पेशेवर मोर्चे पर भी गुलशन का हाल बुरा है. खेल संस्थान से निलंबन और उसकी औसत हाइट को लेकर बार-बार होने वाले ताने उसके आत्मसम्मान को लगातार चोट पहुंचाते हैं.
इन्हीं हालातों के चलते एक रात वह शराब पीकर गाड़ी चलाता है और पुलिस की गाड़ी को ठोक देता है साथ ही उनके साथ बहसबाजी भी करता है. अदालत उसे जेल भेजने के बजाय कम्युनिटी सर्विस की सज़ा सुनाती है. अब उसे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित युवा-वयस्कों की एक फुटबॉल टीम बनानी है और उन्हें टूर्नामेंट के लिए तैयार करना है. टीम में शामिल हैं — सुनील (आशीष पेंडसे), सतबीर (आरूष दत्ता), लोटस (आयुष भंसाली), शर्मा जी (ऋषि शाहानी), गुड्डू (गोपीकृष्ण वर्मा), राजू (ऋषभ जैन), बंटू (वेदांत शर्मा), गोलू (सिमरन मंगेशकर), करीम (संवित देसाई) और हरगोविंद (नमन मिश्रा).
शुरुआत में गुलशन इन सभी को ‘पागल’ समझता है और उनसे गुस्से से पेश आता है. लेकिन मैदान में बहाया गया पसीना और उनकी मासूमियत धीरे-धीरे गुलशन की जिद को तोड़ देती हैं. उसकी पुरानी सोच पिघलने लगती है और वह समझने लगता है कि ‘नॉर्मल’ का कोई एक पैमाना नहीं होता. लेकिन सवाल यह है कि क्या गुलशन इन खिलाड़ियों से वाकई दिल से रिश्ता जोड़ पाएगा? क्या वह बास्केटबॉल-कोच की कठोर मानसिकता को छोड़कर फुटबॉल टूर्नामेंट में इन्हें एकजुट कर पाएगा? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी.
रिव्यू
दक्षिण भारतीय सिनेमा का चर्चित नाम आर. एस. प्रसन्ना हिंदी दर्शकों के लिए भले ही नया हो, लेकिन उन्होंने 'शुभ मंगल सावधान' जैसी फिल्म से यह साबित किया है कि वह संवेदनशील विषयों को हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहने में माहिर हैं. इस बार 'सितारे ज़मीन पर' के ज़रिए उन्होंने डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे युवाओं की एक चुनौतीपूर्ण लेकिन दिल छू लेने वाली कहानी पेश की है. हालांकि यह फिल्म ‘चैंपियंस’ (स्पैनिश फिल्म) पर आधारित है लेकिन दिव्य निधि शर्मा की संवेदनशील स्क्रिप्ट इसे पूरी तरह भारतीय और भावनात्मक बना देती है. फिल्म की सबसे बड़ी ताक़त है इसकी कास्टिंग. असल ज़िंदगी में डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे 10 युवा कलाकार, जिनकी मासूम अदाकारी और जज़्बा आपको भीतर तक छू जाता है. फिल्म थोड़ी धीमी जरूर है, खासकर पहले हाफ में, लेकिन दूसरा हिस्सा भावनाओं, हास्य और उम्मीद से भरपूर है। गुलशन की मां का ट्रैक फिल्म में ताजगी और अपनापन लाता है.
डायरेक्शन की बात करे तो निर्देशक की तारीफ करनी होगी कि है कि उन्होंने फिल्म को न तो बोझिल बनने दिया और न ही उपदेशात्मक. उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में यह दिखाया कि ऐसे युवाओं को 'स्पेशल' नहीं, समाज का समान हिस्सा माना जाना चाहिए. वहीं गुलशन की मां का सबप्लॉट फिल्म में हल्कापन और हास्य लेकर आता है. निर्देशक और निर्माताओं की तारीफ इसलिए भी ज़रूरी है कि उन्होंने हर कलाकार से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवाया है. संगीत की बात करें तो राम संपत का बैकग्राउंड स्कोर कहानी के मूड को खूबसूरती से दिखाता है और शंकर-एहसान-लॉय का गाना 'गुड फॉर नथिंग' कानों को सुकून देता है.
एक्टिंग
आमिर खान ने एक बार फिर साबित किया है कि वह सिर्फ सुपरस्टार नहीं, बल्कि संवेदनशील और अर्थपूर्ण सिनेमा के सच्चे प्रतिनिधि हैं. ‘सितारे ज़मीन पर’ में उन्होंने गुलशन अरोड़ा के जटिल किरदार को बारीकी और ईमानदारी से निभाया है. वह अपने किरदारों में जादू भरना जानते हैं, और गुलशन के किरदार में उन्होंने वही जादू दोहराया है. आज जब फिल्में जल्दी भुला दी जाती हैं, ऐसे में आमिर की यह फिल्म थिएटर से निकलने के बाद भी दिल में रह जाती है - यही है उनकी सिनेमा पर पकड़.
वहीं जेनेलिया देशमुख कम स्क्रीन टाइम में भी भावनात्मक गहराई जोड़ती हैं. मगर फिल्म के असली सितारे युवा कलाकार हैं जिन्होंने अपने- अपने किरदारों को बाखूबी निभाया हैं. ये सभी कलाकार असल जीवन में भी मानसिक चुनौतियों से जूझते हैं, लेकिन फिल्म में उन्होंने अपनी अदायगी से जान डाल दी है. इसके अलावा डॉली अहलूवालिया, बृजेन्द्र काला और अपनी जगह जमे हैं. गुरपाल सिंह ने भी ठीक-ठाक काम किया है.
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