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3 दिसंबर पुण्यतिथि पर :  पत्रकारों से खुलकर बात करते थे देव आनंद और बताते थे हमारी कमियां

शरद राय | 3 दिसंबर को देव आनंद दुनिया को अलविदा कह गए थे। साल था 2011 और तिथि भी यही थी...बस, नहीं थे तो वह। उनकी मौत की खबर ने सबको सन्नाटे में ला दिया था।

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On his death anniversary on December 3 Dev Anand used to talk openly to journalists and told about our shortcomings
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शरद राय | 3 दिसंबर को देव आनंद दुनिया को अलविदा कह गए थे। साल था 2011 और तिथि भी यही थी...बस, नहीं थे तो वह। उनकी मौत की खबर ने सबको सन्नाटे में ला दिया था। उस सन्नाटे को आज भी महसूस करता हूँ मैं। पिछला साल उनकी जन्मसती का था।
पूरे देश मे जगह जगह उनकी फिल्में प्रदर्शित करके लोगों ने उनके प्रति श्रद्धा जताया। मैं भी कुछ लिखूं इस सोच के साथ याद करने लगा उन मौकों को, जब देव साहब से मुलाकातें हुई थी। मुझे याद आया उनसे पत्रकारों को हमेशा कुछ प्रेरणादायी बातें मिलती थी। वह खुलकर बातें किया करते थे और बातचीत में जब हम कुछ कहना चाहते , वह फौरन टोक दिया करते थे- ' जेंटल मैन, बीच मे नहीं बोलते।'
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देव साहब की एक खासियत थी कि वे आज के स्टारों की तरह पत्रकारों की उपेक्षा नहीं करते थे। पूरे सम्मान के साथ बातें किया करते थे और सुलझे पत्रकारों की तो बड़ी इज्जत किया करते थे। मेरे साथ एक मुलाकात का संस्मरण बड़ा रोचक है जब मैं आनंद प्रिव्यू थियेटर (पाली हिल, मुम्बई) में पीआरओ दिनेश पाटिल के साथ मिलने गया था।तब उनकी फिल्म 'आनंद ही आनंद' फ्लोर पर थी।
Death Anniversary Screen superstars and real life heroes
प्रिव्यू थिएटपर के ऊपरी मंजिल पर देव साहब के लिए अपना खास ऑफिस था। स्टूडियो सुनील आनंद ( देव साहब के बेटे) चलाते थे। उसदिन देवीना ( उनकी बेटी) आयी थी पापा को मिलने इसलिए हमें कुछ देर इंतेजार करना पड़ा था। जब हम उनके कच्छ में प्रवेश किए, उन्होंने मिलते ही कहा "सॉरी जेंटल मैन देर के लिए...!" हम सोफे पर उनके सामने बैठ गए थे। अचानक वह उठे मेरे पास आकर मेरा कॉलर पकड़ लिए। मैं हैरान - यह क्या ? फिर वह मेरे शर्ट की ऊपरी खुली हुई बटन बंद किये, कहते हुए- "यंगमैन, तुम्हारी पर्सनाल्टी को खुली बटन- शर्ट ठीक नहीं लगती। जब कहीं जाते  हो इंटरव्यू देने या इंटरव्यू लेने इस बात को ध्यान रखा करो।" वह मेरी बटन बंद करके वापस अपनी सीट पर जा बैठे।मेरे लिए वह पल बेहद झेंप भरा था। मैं अक्सर अपनी शर्ट की ऊपरी कॉलर बटन बंद नही करता था। यह आदत आज भी है लेकिन जब किसी विशेष आदमी को मिलने जाता हूं मेरा हाथ मेरे शर्ट की कॉलर की बटन पर पहुच जाता है।उसदिन देव साहब ने कई बातें बताया था। वह खुद कभी खुले कॉलर में नही  दिखे। अपने व्यक्तित्व और पर्सनालिटी को लेकर वह सदैव सजग रहते थे। इसीलिए उन्हें जो मिलने आते थे उन्हें भी सलीके से होना चाहिए, वे ऐसा चाहते थे।उस दिन के बाद उन्हें कई और मौकों पर मिलने गया था पर शर्ट की कॉलर बटन बंद है या शूज की जगह चप्पल तो नही पहन रखा अथवा दाढ़ी तो नहीं बढ़ी है...हमेशा यह खयाल रहता था। देव साहब का वो सबक मुझे आज भी याद रहता है जब मैं किसी को इंटरव्यू करने जाता हूं। यह अलग बात है कि आजकल सभी सितारे खुली बटन शर्ट ही पहने होते हैं। कॉलर बंद करना ओल्ड फैशन हो गया है।
ANAND
पर देव आनंद साहब अपने ढंग की अकेली शख्सियत थे। उन्हें खुले कॉलर में कभी नहीं देखा गया। शायद इसीलिए वह जीवन की आखिरी सांस विदेश में लिए थे।
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