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भारतीय टेलीविजन ने पिछले कुछ दशकों में न केवल मनोरंजन का परिदृश्य बदला है, बल्कि यह उन अनगिनत प्रतिभाओं का पहला मंच भी बना है, जिन्होंने छोटे पर्दे की सीढ़ियों से बड़े पर्दे तक का सफर तय किया. यह एक ऐसी कहानी है जो सपनों, मेहनत, और रचनात्मकता से बुनी गई है. एकता कपूर (Ekta Kapoor), राजन शाही (Rajan Shahi) और संजय-बिनैफर कोहली (Sanjay- Binaiferr Kohli) जैसे निर्माता-निर्देशकों ने अपने धारावाहिकों के जरिए न केवल दर्शकों के दिलों में जगह बनाई, बल्कि उन सितारों को अवसर प्रदान किए जिन्होंने बाद में बॉलीवुड, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, और वैश्विक सिनेमा में अपनी पहचान बनाई.
भारतीय टेलीविजन- एक सांस्कृतिक क्रांति
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1980 और 1990 के दशक में भारतीय टेलीविजन ने अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं, जब दूरदर्शन पर "हम लोग", "बुनियाद", और "रामायण" जैसे धारावाहिकों ने दर्शकों को टीवी सेट्स से जोड़ा. लेकिन 2000 के दशक में, जब निजी चैनल्स का उदय हुआ, टेलीविजन ने एक नया रूप लिया. इस दौर में एकता कपूर, राजन शाही, और संजय-बिनैफर कोहली जैसे निर्माताओं ने ऐसी कहानियां पेश कीं जो भारतीय परिवारों की भावनाओं, सामाजिक मुद्दों, और हास्य से गूंजती थीं. इन धारावाहिकों ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि सामाजिक संदेशों को घर-घर तक पहुंचाया और कई प्रतिभाशाली अभिनेताओं को मंच दिया.
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टेलीविजन का यह दौर एक सांस्कृतिक क्रांति का था. यह वह समय था जब "क्योंकि सास भी कभी बहू थी" (Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi) ने टीआरपी के सारे रिकॉर्ड तोड़े, "अनुपमा" (Anupamaa) ने नारी सशक्तिकरण को नया आयाम दिया, और "भाभी जी घर पर हैं" ने हास्य के जरिए दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर किया. इन शोज ने न केवल दर्शकों को बांधे रखा, बल्कि स्मृति ईरानी (Smriti Irani), रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly), शाहरुख खान (Shahrukh Khan), और सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) जैसे सितारों को पहचान दी. यह लेख इस बात का जश्न मनाता है कि कैसे टेलीविजन ने एक मजबूत नींव प्रदान की, जिस पर इन सितारों ने अपने करियर की इमारत खड़ी की.
एकता कपूर- टीवी की क्वीन
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एकता कपूर ने भारतीय टेलीविजन को एक नया चेहरा देकर इसे सांस्कृतिक क्रांति का प्रतीक बनाया. उनके प्रोडक्शन हाउस, बालाजी टेलीफिल्म्स (Balaji Telefilms) के बैनर तले “क्योंकि सास भी कभी बहू थी”, “कहानी घर घर की”, “कसौटी ज़िंदगी की” (‘Kasautii Zindagii Kay’), “पवित्र रिश्ता” (‘Pavitra Rishta’), “कुमकुम भाग्य” (‘Kumkum Bhagya’) और “नागिन” (‘Naagin’) जैसे धारावाहिकों ने भारतीय परिवारों की कहानियों को पर्दे पर जीवंत किया. इन शोज ने न केवल दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ा, बल्कि सामाजिक मुद्दों जैसे पारिवारिक रिश्तों की जटिलताएं, नारी सशक्तिकरण और प्रेम की गहराइयों को संवेदनशीलता के साथ उजागर किया.
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“क्योंकि सास भी कभी बहू थी” में तुलसी (स्मृति ईरानी) का किरदार भारतीय संस्कृति की परंपराओं और आधुनिकता के बीच संतुलन का प्रतीक बना. इस शो ने स्मृति ईरानी को घर-घर में ‘तुलसी’ के नाम से मशहूर किया, और बाद में उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा राजनीति और सिनेमा में भी मनवाया. इसी तरह, “नागिन” ने फंतासी और ड्रामा के अनूठे मिश्रण के साथ मौनी राय को एक नई पहचान दी. इस शो की सफलता ने मौनी को बॉलीवुड में “गोल्ड” (2018) और “ब्रह्मास्त्र पार्ट 1” (2022) जैसी फिल्मों में अपनी जगह बनाने का मंच प्रदान किया.
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एकता कपूर की खासियत उनकी कहानियों की विविधता और दर्शकों से जुड़ाव की कला है. “पवित्र रिश्ता” ने सुशांत सिंह राजपूत और अंकिता लोखंडे जैसे सितारों को जन्म दिया, जिन्होंने मानव और अर्चना के किरदारों के जरिए प्रेम और परिवार की भावनाओं को जीवंत किया. सुशांत ने बाद में “काई पो छे” (2013), “एम.एस. धोनी-द अनटोल्ड स्टोरी” (2016) और “छिछोरे” (2019) जैसी फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का परचम लहराया. “कसौटी जिंदगी की” ने प्रेरणा और अनुराग जैसे किरदारों के जरिए प्यार की गहराइयों को दिखाया, जिसने श्वेता तिवारी और सीजेन खान को स्टार बनाया.
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एकता ने टेलीविजन के साथ-साथ सिनेमा और डिजिटल मंचों पर भी अपनी छाप छोड़ी. उनकी फिल्में जैसे “द डर्टी पिक्चर” (2011), “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई” (2010), “शूटआउट एट लोखंडवाला” (2007), “रागिनी एमएमएस” (2011) और “उड़ता पंजाब” (2016) ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की, बल्कि बोल्ड और असली कहानियों के लिए सराहना भी बटोरी. उनके डिजिटल मंच “ऑल्ट बालाजी” ने “गंदी बात”, “ब्रोकन बट ब्यूटीफुल” और “लॉक अप” जैसी वेब सीरीज के साथ नई पीढ़ी के दर्शकों को आकर्षित किया. एकता की उपलब्धियों ने उन्हें 2018 में पद्मश्री और 2020 में इंटरनेशनल एमी डायरेक्टरेट अवार्ड जैसे प्रतिष्ठित सम्मान दिलाए, जिसने उन्हें भारतीय टेलीविजन की ‘क्वीन’ बनाया.
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राजन शाही-सामाजिक बदलाव का मंच
राजन शाही ने अपने शोज के जरिए टेलीविजन को सामाजिक बदलाव का मंच बनाया. उनके धारावाहिक “ये रिश्ता क्या कहलाता है”, “अनुपमा” और “सपना बाबुल का... बिदाई” ने भारतीय समाज की गहरी परतों को छुआ. इन शोज ने नारी सशक्तिकरण, पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ पेश किया, जो दर्शकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने.
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“ये रिश्ता क्या कहलाता है” (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) ने हिना खान (अक्षरा) और करण मेहरा (नैतिक) जैसे सितारों को पहचान दी. इस शो ने पारिवारिक रिश्तों और प्रेम की कहानी को इतनी खूबसूरती से पेश किया कि यह 16 साल से अधिक समय तक दर्शकों का पसंदीदा बना रहा. हिना खान ने बाद में “खूबसूरत” (2014) और “डैमेज्ड” जैसी वेब सीरीज में अपनी बहुमुखी प्रतिभा दिखाई. इसके बाद के सीज़न में, जिसमें शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) और मोहसिन खान (Mohsin Khan) मुख्य भूमिका में नजर आए. दर्शकों ने उनके किरदारों को खूब पसंद किया. वर्तमान में शोज़ में आद्रिजा रॉय (Adrija Roy) और रोहित पुरोहित (Rohit Purohit) ने अपनी शानदार परफॉर्मेंस से दर्शकों का ध्यान खींचा और अपनी मौजूदगी से शो की लोकप्रियता को बनाए रखा.
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“अनुपमा” ने रूपाली गांगुली को एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया, जो नारी सशक्तिकरण का प्रतीक बनी. अनुपमा का किरदार एक ऐसी महिला का है, जो अपने परिवार के लिए सब कुछ करती है, लेकिन अपने आत्मसम्मान और सपनों को भी प्राथमिकता देती है. यह शो न केवल टीआरपी चार्ट्स पर छाया, बल्कि इसने दर्शकों को यह सिखाया कि उम्र और परिस्थितियां सपनों की राह में बाधा नहीं बन सकतीं. रूपाली की यह सफलता टेलीविजन की ताकत को दर्शाती है, जो अभिनेताओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मजबूत मंच देता है.
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इसके अलावा “सपना बाबुल का... बिदाई” ने सारा खान (Sara Khan) और पारुल चौहान (Parul Chauhan) को घर-घर में मशहूर किया, और इसने रंगभेद जैसे सामाजिक मुद्दे को संवेदनशीलता से उठाया. राजन शाही के शोज ने साबित किया कि टेलीविजन केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करने और बदलाव लाने का शक्तिशाली मंच है.
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संजय और बिनैफर कोहली-हास्य का जादू
संजय और बिनैफर कोहली ने भारतीय टेलीविजन को हास्य की नई परिभाषा दी. उनके शोज “भाभी जी घर पर हैं” (Bhabiji Ghar Par Hain!) और “हप्पू की उलटन पलटन” (Happu Ki Ultan Paltan) ने दर्शकों को हंसी का खजाना दिया. इन शोज ने शुभांगी अत्रे (अंगूरी भाभी), आसिफ शेख (विभूति नारायण मिश्रा) और सौम्या टंडन (अनीता भाभी) जैसे कलाकारों को कॉमेडी के सितारे बनाया. इन किरदारों ने दर्शकों के बीच ऐसी जगह बनाई कि लोग आज भी इन्हें उनके असली नामों की बजाय किरदारों के नाम से जानते हैं.
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“भाभी जी घर पर हैं” ने भारतीय मध्यम वर्ग की जिंदगी को हास्य के रंग में पेश किया. अंगूरी भाभी की मासूमियत और विभूति की शरारतों ने दर्शकों को हंसाने के साथ-साथ उनके दिलों में जगह बनाई. यह शो अपनी अनोखी कॉमेडी और मजेदार डायलॉग्स के लिए लोकप्रिय है. “हप्पू की उल्टन पलटन” ने हप्पू सिंह (योगेश त्रिपाठी) जैसे किरदारों के जरिए हास्य की नई शैली पेश की. संजय और बिनैफर ने अपने शोज के जरिए यह साबित किया कि हास्य एक शक्तिशाली माध्यम हो सकता है, जो दर्शकों को तनावमुक्त करता है और उन्हें अपने रोजमर्रा के जीवन से जोड़ता है. उनकी प्रोडक्शन कंपनी, एडिट II प्रोडक्शंस, ने हाल ही में “मायावी मलिंग” (Mayavi Maling) और “जीजाजी छत पर हैं” (Jijaji Chhat Per Hain) जैसे शोज के साथ अपनी रचनात्मकताको बढ़ाया, जो उनके हास्य और कहानी कहने की कला को और मजबूत करते हैं.
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टीवी से बॉलीवुड तक - सपनों का सुनहरा सफर
भारतीय टेलीविजन न केवल मनोरंजन की दुनिया में क्रांति लाया, बल्कि यह उन सितारों के लिए पहला मंच बना, जिन्होंने छोटे पर्दे की चमक से बॉलीवुड की ऊंचाइयों को छुआ. छोटा पर्दा केवल कहानियों और किरदारों का माध्यम नहीं, बल्कि प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें सितारा बनाने का एक सुनहरा रास्ता है. शाहरुख खान से लेकर अवनीत कौर, कई सितारों ने टेलीविजन के मंच से अपनी प्रतिभा को परखा और फिर सिनेमा की दुनिया में अपनी अनूठी पहचान बनाई.
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शाहरुख खान-छोटे पर्दे से बॉलीवुड के बादशाह
शाहरुख खान, जिन्हें आज बॉलीवुड का ‘किंग खान’ कहा जाता है, ने अपने करियर की शुरुआत टेलीविजन से की. 1988 में “फौजी” में लेफ्टिनेंट अभिमन्यु राय का किरदार उन्हें पहली बार दर्शकों के सामने लाया. इसके बाद “सर्कस” और “दिल दरिया” जैसे सीरियल्स में उनकी एक्टिंग ने ध्यान खींचा. टीवी पर सफलता के बाद, शाहरुख ने 1992 में फिल्म “दीवाना” से बॉलीवुड में कदम रखा. इस फिल्म की सफलता ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. इसके बाद “बाजीगर” (1993), “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” (1995), “कुछ कुछ होता है” (1998), “देवदास” (2002), “चक दे इंडिया” (2007), “स्वदेश”, “कभी खुशी कभी गम”, “माई नेम इज खान”, “पठान” और “जवान” (2023) जैसी फिल्मों ने उन्हें हिंदी सिनेमा का बादशाह बना दिया. शाहरुख की यह सफर दिखाता है कि टेलीविजन ने उनके करियर की नींव रखी, जिस पर उन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा से सफलता का सम्राज्य बनाया. उन्हीं के नक्शे कदम पर अब बच्चे आर्यन और सुहाना खान चल रहे हैं.
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इरफान खान- टीवी से विश्व सिनेमा तक
इरफान खान, जिन्होंने अपने अभिनय से भारतीय और विश्व सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी, ने भी टेलीविजन से शुरुआत की. “भारत की खोज”, “सारा जहां हमारा”, “चाणक्य”, “बनेगी अपनी बात”, और “चंद्रकांता” जैसे सीरियल्स में उनके अभिनय ने उनकी प्रतिभा को उजागर किया. हालांकि उन्होंने शुरुआत में फिल्मों में छोटी भूमिकाएं निभाईं, लेकिन टीवी ने उन्हें वह पहचान दी, जिसने बाद में “मकबूल” (2003), “द नेमसेक” (2006), “लाइफ ऑफ पाई” (2012), “पान सिंह तोमर” (2012), और “हिंदी मीडियम” (2017) जैसी फिल्मों में उनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाया. इरफान की यात्रा यह साबित करती है कि टेलीविजन ने उन्हें न केवल अभिनय का मंच दिया, बल्कि उनके कौशल को निखारने का अवसर भी प्रदान किया.
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पंकज कपूर- टीवी के ऑफिस से सिनेमा के मास्टर तक
पंकज कपूर ने “ऑफिस ऑफिस” में मुसद्दीलाल के किरदार से दर्शकों को हंसाया और टीवी पर अपनी गहरी छाप छोड़ी. इस शो ने उन्हें घर-घर में मशहूर किया. पंकज ने “गांधी” (1982), “जाने भी दो यारों” (1983), “खंडहर” (1984), “खामोश” (1985), “मकबूल” (2003), और “धर्म” (2007) जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया. उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे सम्मानित अभिनेताओं में से एक बनाया. “ऑफिस ऑफिस” ने उनकी कॉमेडी की प्रतिभा को उजागर किया, जिसने उन्हें फिल्मों में और अधिक अवसर दिलाए.
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आर. माधवन-टी वी के रास्ते रोमांटिक हीरो
आर. माधवन ने टेलीविजन पर “सी हॉक्स”, “बनेगी अपनी बात”, और “घर जमाई” जैसे सीरियल्स में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता. उनकी सादगी और अभिनय की गहराई ने उन्हें जल्द ही फिल्मों का रास्ता दिखाया. 2001 में “रहना है तेरे दिल में” (Rehnaa Hai Terre Dil Mein) ने उन्हें बॉलीवुड में रोमांटिक हीरो के रूप में स्थापित किया. इसके बाद “3 इडियट्स” (2009), “तनु वेड्स मनु” (2011), “विक्रम वेधा” (2017), “रॉकेट्री-द नंबी इफेक्ट” (2022) और “शैतान” जैसी फिल्मों में उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें दर्शकों और समीक्षकों का ख़ास बनाया. माधवन की यह यात्रा टीवी के मंच की ताकत को दर्शाती है, जहां से उन्होंने अपने सपनों को उड़ान दी.
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विद्या बालन- हम पांच से परिनीता तक
विद्या बालन ने 1995 में “हम पांच” में राधिका के किरदार से टेलीविजन पर अपनी शुरुआत की. इस शो की लोकप्रियता ने उन्हें दर्शकों के बीच मशहूर किया. 2005 में “परिणीता” (Parineeta) से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उन्हें तुरंत स्टार बना दिया. इसके बाद “लगे रहो मुन्नाभाई” (2006), “कहानी” (2012), “तुम्हारी सुलु” (2017), “भूलभुलैया”, “शकुंतला देवी” (2020) और “डर्टी पिक्चर” जैसी फिल्मों ने उनकी अभिनय क्षमता को साबित किया. विद्या की यह यात्रा दर्शाती है कि टीवी ने उनके करियर को एक मजबूत नींव दी, जिस पर उन्होंने अपनी प्रतिभा का ताज बनाया.
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आयुष्मान खुराना- रियलिटी शो से नेशनल अवार्ड तक
आयुष्मान खुराना ने 2002 में रियलिटी शो “पॉपस्टार्स” में हिस्सा लिया और फिर “रोडीज 2” जीतकर सुर्खियां बटोरीं. इसके बाद रेडियो जॉकी के रूप में काम करने के बाद उन्होंने 2012 में “विक्की डोनर” से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इस फिल्म की सफलता ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. “दम लगाके हईशा” (2015), “बधाई हो” (2018), “आर्टिकल 15” (2019), और “बाला” (2019) जैसी फिल्मों ने उन्हें नेशनल अवार्ड विजेता बनाया. आयुष्मान की यह यात्रा टेलीविजन के रियलिटी शो से शुरू होकर सिनेमा की ऊंचाइयों तक पहुंची.
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मृणाल ठाकुर- टीवी से सिनेमा की चमक तक
मृणाल ठाकुर ने 2012 में “मुझसे कुछ कहती... ये खामोशियां” से टेलीविजन पर अपनी शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने 2014 में मराठी फिल्म “हैलो नंदन” से सिनेमा में कदम रखा. उनकी पहली हिंदी फिल्म “लव सोनिया” (2018) ने उनकी प्रतिभा को उजागर किया. “सुपर 30” (2019), “बटला हाउस” (2019), “जर्सी” (2022), और “मेड इन हेवन 2” (2023) में उनकी एक्टिंग ने उन्हें प्रशंसा दिलाई. हाल में वे “सन ऑफ सरदार 2” में भी नजर आई. “तुम हो तो”, और “डकैत-ए लव स्टोरी” दर्शकों का इंतजार बढ़ा रही हैं. मृणाल की यह यात्रा टीवी से सिनेमा तक की उनकी मेहनत और प्रतिभा का प्रमाण है.
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सुशांत सिंह राजपूत- पवित्र रिश्ता से बॉलीवुड की ऊंचाइयों तक
सुशांत सिंह राजपूत ने “किस देश में है मेरा दिल” और “पवित्र रिश्ता” में मानव के किरदार से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई. 2013 में “काई पो छे” से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उन्हें तुरंत स्टार बना दिया. “शुद्ध देसी रोमांस” (2013), “एम.एस. धोनी-द अनटोल्ड स्टोरी” (2016), “केदारनाथ” (2018) और “छिछोरे” (2019) जैसी फिल्मों में उनकी एक्टिंग ने उन्हें लाखों दिलों की धड़कन बनाया. सुशांत की यह यात्रा टीवी की ताकत को दर्शाती है, जिसने उन्हें सिनेमा की दुनिया में चमकने का मौका दिया.
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यामी गौतम- टीवी की सादगी से सिनेमा की चमक तक
यामी गौतम ने 2008 में “चांद के पार चलो” से अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद “राजकुमार आर्यन”, “सीआईडी”, “ये प्यार ना होगा कम”, और “किचन चैंपियन” जैसे शोज में उनकी मौजूदगी ने ध्यान खींचा. 2012 में “विक्की डोनर” से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उन्हें स्टार बनाया. “उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक” (2019), “बाला” (2019), “ओएमजी 2” (2023), और “आर्टिकल 370” (2024) जैसी फिल्मों ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को साबित किया. उनकी अपकमिंग फिल्म “धूम धाम” (2025) दर्शकों के बीच उत्साह पैदा कर रही है. यामी की यह यात्रा टीवी से सिनेमा तक की उनकी मेहनत का प्रतीक है.
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मौनी राय- नागिन से बॉलीवुड की चमक तक
मौनी राय ने “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” से अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद “कहो ना यार है”, “कस्तूरी”, “देवों के देव महादेव”, और “नागिन” जैसे शोज ने उन्हें घर-घर में मशहूर किया. “नागिन” की अपार सफलता ने उन्हें स्टार बनाया. 2018 में “गोल्ड” से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उनकी प्रतिभा को नया मंच दिया. “मेड इन चाइना” (2019) और “ब्रह्मास्त्र” (2022) में उनकी एक्टिंग ने उन्हें और पहचान दिलाई. मौनी की यह यात्रा टीवी की दुनिया से बॉलीवुड की चमक तक की कहानी है.
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अंकिता लोखंडे- पवित्र रिश्ते से सिनेमा तक
अंकिता लोखंडे ने “पवित्र रिश्ता” में अर्चना के किरदार से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई. इस शो ने उन्हें टीवी की पॉपुलर एक्ट्रेस बनाया. 2019 में “मणिकर्णिका” (Manikarnika: The Queen of Jhansi) से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उनकी प्रतिभा को नया मंच दिया. “बागी 3” (2020) और “स्वतंत्र वीर सावरकर” (Swatantrya Veer Savarkar) (2024) में उनकी एक्टिंग ने उन्हें और पहचान दिलाई. अंकिता की यह यात्रा टीवी की लोकप्रियता से सिनेमा की दुनिया तक की उनकी मेहनत को दर्शाती है.
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प्राची देसाई- कसम से बॉलीवुड तक
प्राची देसाई ने “कसम से” में बानी के किरदार से दर्शकों का दिल जीता. इस शो की सफलता ने उन्हें रातोंरात स्टार बनाया. 2008 में “रॉक ऑन” से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उन्हें नई पहचान दी. “वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई” (2010), “तेरी मेरी कहानी” (2012), “बोल बच्चन” (2012), “साइलेंस... कैन यू हियर इट?” (2021), और “साइलेंस 2” (2024) जैसी फिल्मों ने उनकी प्रतिभा को साबित किया. प्राची की यह यात्रा टीवी की सादगी से सिनेमा की चमक तक की कहानी है.
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प्रतिभा रांटा- कुर्बान हुआ से लापता लेडीज तक
प्रतिभा रांटा ने “कुर्बान हुआ” से टेलीविजन पर अपनी शुरुआत की. इसके बाद 2023 में “लापता लेडीज” ने उन्हें बॉलीवुड में एक उभरती हुई सितारा बनाया. संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज “हीरामंडी” (2024) में उनकी एक्टिंग ने उन्हें और पहचान दिलाई. उनकी एक और अपकमिंग फिल्म का इंतजार दर्शकों को है, जिसका नाम अभी सामने नहीं आया है. प्रतिभा की यह यात्रा टीवी से सिनेमा और डिजिटल मंचों तक की उनकी प्रतिभा को दर्शाती है.
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रिद्धि डोगरा- टीवी से जवान तक
रिद्धि डोगरा ने 2007 में “झूमे जिया रे” से टेलीविजन पर कदम रखा. “मर्यादा-लेकिन कब तक?” जैसे शोज ने उन्हें पहचान दिलाई. इसके बाद उन्होंने 2023 में “लकड़बग्घा”, “जवान”, और “टाइगर 3” जैसी फिल्मों में शाहरुख खान और सलमान खान के साथ काम किया. 2024 में “द साबरमती रिपोर्ट” में विक्रांत मैसी के साथ उनकी एक्टिंग ने उन्हें और प्रशंसा दिलाई. रिद्धि की यह यात्रा टीवी से सिनेमा और वेब सीरीज तक की उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाती है.
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राजीव खंडेलवाल- कही तो होगा से सिनेमा तक
राजीव खंडेलवाल ने “कही तो होगा” में सुजल के किरदार से रातोंरात शोहरत हासिल की. इसके बाद “लेफ्ट राइट लेफ्ट” और “टाइम बॉम्ब” जैसे शोज में उनकी एक्टिंग ने उन्हें और पहचान दिलाई. 2008 में “आमिर” से बॉलीवुड में उनकी एंट्री ने उनकी प्रतिभा को नया मंच दिया. “शैतान” (2011), “टेबल नं. 21” (2013), और वेब सीरीज “नक्सलबाड़ी” (2020) में उनकी एक्टिंग ने उन्हें बहुमुखी अभिनेता के रूप में स्थापित किया. राजीव की यह यात्रा टीवी की लोकप्रियता से सिनेमा की दुनिया तक की उनकी मेहनत को दर्शाती है.
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अवनीत कौर-अलादीन से सिनेमा तक
अवनीत कौर ने रियलिटी शो “डांस इंडिया डांस लिटिल मास्टर्स” से शुरुआत की और फिर “अलादीन – नाम तो सुना होगा” में यास्मीन के किरदार से घर-घर में मशहूर हुईं. 2019 में “मर्द को दर्द नहीं होता” में उनकी छोटी भूमिका ने ध्यान खींचा. 2023 में “टीकू वेड्स शेरू” में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ उनकी मुख्य भूमिका ने उन्हें बॉलीवुड में स्थापित किया. हाल ही में “लव इन वियतनाम” में उन्होंने अपनी एक्टिंग से दर्शकों का ध्यान खींचा. अवनीत की यह यात्रा टीवी और रियलिटी शो से सिनेमा तक की उनकी प्रतिभा को दर्शाती है.
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सितारों की पहली सीढ़ी
भारतीय टेलीविजन ने इन सितारों को न केवल एक मंच दिया, बल्कि उनकी प्रतिभा को निखारने का अवसर भी. टीवी शोज में लंबे समय तक किरदार निभाने से अभिनेताओं को अपनी एक्टिंग को परखने, दर्शकों से जुड़ने और अपने कौशल को बेहतर करने का मौका मिलता है. टेलीविजन का अनुशासन, लंबे शूटिंग शेड्यूल और दर्शकों की तत्काल प्रतिक्रिया ने इन सितारों को सिनेमा की चुनौतियों के लिए तैयार किया.
"क्योंकि सास भी कभी बहू थी" ने पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं को दिखाया, "अनुपमा" ने नारी सशक्तिकरण को नया आयाम दिया, और "भाभी जी घर पर हैं" ने हास्य के जरिए दर्शकों को बांधे रखा. इन शोज ने सितारों को पहचान दी और उन्हें सिनेमा में कदम रखने का आत्मविश्वास. टीवी पर किरदारों को जीवंत करने की प्रक्रिया ने इन अभिनेताओं को वह अनुभव दिया जो सिनेमा में उनकी सफलता की नींव बना.
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टेलीविजन की चुनौतियां और अवसर
टेलीविजन का मंच अभिनेताओं के लिए एक दोधारी तलवार भी है. जहां यह उन्हें दर्शकों से जोड़ता है, वहीं लंबे समय तक एक ही किरदार निभाने से टाइपकास्ट होने का खतरा भी रहता है. फिर भी, शाहरुख खान, सुशांत सिंह राजपूत, और मौनी राय जैसे सितारों ने इस चुनौती को अवसर में बदला. उन्होंने अपने टीवी किरदारों की लोकप्रियता का उपयोग सिनेमा में नए और विविध किरदारों को निभाने के लिए किया.
निर्माताओं की भूमिका भी इस सफर में अहम रही. एकता कपूर ने अपनी कहानियों में फंतासी, ड्रामा, और सामाजिक मुद्दों का मिश्रण किया, जिसने दर्शकों को बांधे रखा. राजन शाही ने नारी सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव पर फोकस किया, जबकि संजय और बिनैफर कोहली ने हास्य के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया. इन निर्माताओं ने न केवल कहानियां बनाईं, बल्कि सितारों को वह मंच दिया जो उनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाया.
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टीवी की विरासत
टेलीविजन ने न केवल सितारों को जन्म दिया, बल्कि सामाजिक बदलाव का मंच भी बना. "क्योंकि सास भी कभी बहू थी" ने परिवार में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा शुरू की, "अनुपमा" ने नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया, और "भाभी जी घर पर हैं" ने हास्य के जरिए सामाजिक रूढ़ियों पर हल्का-फुल्का कटाक्ष किया. इन शोज ने दर्शकों को न केवल मनोरंजन दिया, बल्कि उन्हें सामाजिक मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित किया.
भारतीय टेलीविजन एक ऐसी प्रयोगशाला है जहां प्रतिभाएं निखरती हैं और सपने उड़ान भरते हैं. एकता कपूर, राजन शाही, और संजय-बिनैफर कोहली जैसे निर्माताओं ने न केवल मनोरंजन के नए मानदंड स्थापित किए, बल्कि उन सितारों को मंच दिया जो आज सिनेमा की दुनिया में चमक रहे हैं.
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शाहरुख खान से लेकर मृणाल ठाकुर तक, टीवी ने इन सितारों को वह नींव दी जिस पर उन्होंने अपने करियर की इमारत खड़ी की. यह छोटा पर्दा न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि सपनों का वह पहला कदम है जो सितारों को सितारा बनाता है.
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