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आधुनिक समय में सिंगल पैरेंटिंग को किसी अजूबे की तरह देखा जाता है, जिसमें मां या पिता को अपने बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण की चुनौतियों के बीच से आगे बढ़ते हुए देखा जाता है. अपने जीवनसाथी के अभाव में खुद ही जिम्मेदारी और जवाबदेही का बोझ कंधे पर उठाना पड़ता है. भले ही सिंगल पैरेंटिंग की अवधारणा आज की नजर आती हो, जाने-अनजाने यह प्राचीन काल से जुड़ी हुई प्रतीत होती है. सदियों पहले, अयोध्या की रानी सीता ने उल्लेखनीय मिसाल कायम की थी. सोनी सब के श्रीमद् रामायण में वर्णित उनकी यात्रा न केवल जुझारूपन की कहानी है, बल्कि सभी बाधाओं के बावजूद अपनी ताकत, स्वतंत्रता और पालन-पोषण का सबक भी है.
सीता के जीवन में नाटकीय मोड़ तब आया जब परिस्थितियों ने उन्हें अपने बच्चों लव और कुश को अकेले ही पालने के लिए मजबूर किया. दिल टूटने और अलगाव का सामना करते हुए उन्होंने विपरीत परिस्थितियों को अपने या अपने बच्चों के भविष्य पर हावी नहीं होने दिया. इसके बजाय उन्होंने अपने प्रेम और ज्ञान का इस्तेमाल उनके चरित्र को आकार देने में किया. उन्हें साहस, विनम्रता और न्याय के मूल्य सिखाए. सीता की कहानी को जो बात विशेष रूप से प्रेरक बनाती है, वह है अपने बच्चों को नकारात्मकता से बचाने का उनका निर्णय. उन्होंने अपने बेटों में दयालुता और जुझारूपन विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि वे आत्मनिर्भर और गुणी व्यक्ति बन सकें.
सोनी सब के श्रीमद् रामायण में सीता का किरदार निभाने वाली प्राची बंसल आज अपनी कहानी की प्रासंगिकता पर विचार कर रही हैं. उन्होंने कहा, “एक सिंगल पैरेंट के रूप में सीता की ताकत समय से परे है. अपने संघर्षों से ऊपर उठने और अपने बच्चों की भलाई पर ध्यान केंद्रित करने की उनकी क्षमता कुछ ऐसी है जो आज भी सिंगल पैरेंट्स को प्रभावित करती है और उन्हें एक सदाबहार रोल मॉडल बनाती है.”
सोनी सब का श्रीमद् रामायण सिर्फ़ महाकाव्य को ही नहीं दोहराता; यह हमारे समय के लिए इसके स्थायी सबक पर प्रकाश डालता है. इसके केंद्र में सीता हैं - पहली सिंगल पैरेंट, जिनकी कहानी पीढ़ियों को बिना शर्त वाले प्यार और ताकत की परिवर्तनकारी शक्ति में विश्वास करने के लिए प्रेरित करती है.