नाना पाटेकर उन अभिनेताओं में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. 1994 में मेहुल कुमार निर्देषित नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म ""क्रांतिवीर"" को रिलीज से पहले देखकर दिलीप कुमार ने नाना पाटेकर के अभिनय की तारीफ करते हुए दावे के साथ कहा था कि ""नाना पाटेकर हमेषा क्रातिवीर "ही रहेगा. तब से नाना पाटेकर के अभिनय का जलवा बरकरार रहा है. फिल्म "क्रांतिवीर" के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था. कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं नाना पाटेकर नाना पाटेकर को उनके अभिनय के लिए तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, चार फिल्मफेयर पुरस्कार और दो मराठी फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुए हैं. सिनेमा और कला में उनके योगदान के लिए उन्हें 2013 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. लेकिन पिछले दो वर्ष के अंदर नाना पाटेकर ने खुद ही अपने पैरों पर कुन्हाडी मार कर अपनी गिनती सुपर फ्लाप कलाकारो में करवा ली है. तभी तो 5 दिसंबर 2024 को रिलीज हुई नाना पाटेकर व उत्कर्ष शर्मा की "गदर एक प्रेम कथा" और "गदर 2" फेम निर्देषक अनिल शर्मा के निर्देशन में बनी फिल्म ""वनवास" पहले दिन बाक्स आफिस पर पचास लाख रूपए भी एकत्र नहीं कर सकी थी. इतना ही नही पूरे सात दिन में "वनवास" चार करोड़ भी एकत्र न कर सकी. हम नाना पाटेकर के करियर की इस गिरावट पर बात करने से पहले आप सभी को सबसे पहले नब्बे के दशक में वापस ले जा रहे हैं. नब्बे के दशक में नाना पाटेकर व राज कुमार जैसे कलाकारों की तूती बोलती थी. यह कलाकार पूरी अकड़ के साथ काम करते थे. अच्छेे अच्छे व बड़े निर्देषक इन दो कलाकारों को लेकर फिल्में बनाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे. ऐसे वक्त में निर्माता,निर्देषक व लेखक मेहुल कुमार ने नाना वाटेकर और राज कुमार को लेकर एक दो नहीं बल्कि तीन फिल्में निर्देषित कीं और सभी फिल्मों ने बाक्स आफिस पर जबरदस्त कमाई की. जब मेहुल कुमार ने नाना पाटेकर, डिंपल कपाड़िया व अन्य कलाकारों को लेकर फिल्म "क्रातिवीर" की घोषणा की थी,तब फिल्म वितरकांे ेने कहा था कि नाना पाटेकर को हीरो लेकर मेहुल कुमार गलती कर रहे हैं. लेकिन आधी फिल्म बनने के बाद इसके कुछ अंष देखते ही लोग मेहुल की सोच व नाना पाटेकर के अभिनय की तारीफ करने लगे थे. फिल्म पूरी हुई और फिल्म के कुछ ट्ायल षो हुए. इन ट्ायल षो में जिन्होेने फिल्म देखी,वह तारीफ करने से नही थक रहे थे. यह बात उस वक्त के महान अभिनेता दिलीप कुमार के कानेा तक पहुंची. तो दिलीप कुमार इस फिल्म को देखने के लिए इसके रिलीज होने का भी इंतजार नही कर पाए. दिलीप कुमार ने फिल्म "क्रांतिवीर" के निर्देषक मेहुल कुमार को फोन कर फिल्म देखने की इच्छा जाहिर की. मेहुल कुमार ने खास दिलीप कुमार के लिए दिलीप कुमार के घर के नजदीक सुनील दत्त के "अजंटा आटर््स प्रिव्यू थिएटर में "क्रातिवीर" का खास षो रखा. इस फिल्म को देखने के लिए दिलीप कुमार अपनी पत्नी सायरा बानो के साथ पहुंचे थे. फिल्म देखने के बाद थिएटर से बाहर निकलकर वह पत्थर पर उसी जगह आकर बैठ गए, जहां पर नरगिस दत्त की तस्वीर लगी हुई थी. कुछ देर चुप रहने के बाद दिलीप कुमार ने नाना पाटेकर के अभिनय की तारीफ करते हुए मेहुल से कहा कि वह उनका संदेष नाना पाटेकर तक पहुंचा दें कि "नाना पाटेकर सही मायनों में क्रांतिवीर है. और नाना पाटेकर हमेषा कांतिवीर रहेगा."" दिलीप कुमार की यह बात दो वर्ष पहले तक सही साबित होती रही. फिल्म "क्रांतिवीर" में नाना पाटेकर ने प्रताप नामक एक ऐसे इंसान का किरदार निभाया था,जो कि निडर है,बहादुर है. उसे किसी से डर नही लगता. वह अन्याय के खिलाफ अकेले ही जंग छेड़ता है. अन्याय करने वाले दुष्टों का खात्मा करने के लिए वह अपनी जान देने को भी तैयार है. प्रताप के किरदार के साथ नाना पाटेकर के निजी जीवन का व्यक्तित्व काफी मेल खाता था,इसलिए भी वह इस किरदार मंे कुछ ज्यादा ही निखार ला पाए थे. फिल्म "क्रांतिवीर" का संवाद-""आ गए मेरी मोत का तमाषा देखने.."" क्या इस तरह के संवाद बोलते हुए नाना पाटेकर "वनवास" में नजर आए ,नहीं.. उनके संवादों में कोई जोष या हंगामा ही नही है. वास्तव में अभिनय कला का सबसे बड़ा सच यही है कि कलाकार के निजी जीवन की सोच,निजी जीवन के विचार,उसकी कार्यषैली,उसका कद काठी,निजी व्यक्तित्व का कुछ न कुछ अंष जाने अनजाने उसके द्वारा निभाए गए किरदार में आ ही जाते हैं. यही वजह है कि जब कलाकार अपनी सोच व व्यक्तित्व के अनुरूप किरदार निभाता है,तो वह किरदार परदे पर उभरकर आता है. और वह किरदार व फिल्म सफल हो जाता है. तथा उस कलाकार की अपनी एक ईमेज बन जाती है. दर्षक उस कलाकार को हर फिल्म में उसी तरह की ईमेज वाले किरदार में देखना पसंद करने लगते हैं. अतीत में जब भी किसी कलाकार ने अपनी ईमेज से अलग हटकर किरदार निभाए, दर्षकांे ने उनकी उस फिल्म को सिरे से नकार दिया. परिणामतः कलाकार व उसकी फिल्म बुरी तरह से असफल होती रही है. यही बात नाना पाटेकर के साथ भी लागू होती है. नाना पाटेकर किन मजबूरियों के तहत अपनी ठसक,अपनी दबंगई आदि को भुलाकर महज पैसा कमाने या किसी खास इंसान या राजनीतिक दल के करीब पहुंचने की कोषिष के तहत जो किरदार निभाए,उनमें दर्षको ने उन्हे पसंद नहीं किया. इस तरह नाना पाटेकर खुद ही अपने करियर पर या यूं कहे कि अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं. 1 जनवरी 1951 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मुरुद-जंजीरा में जन्में नाना पाटेकर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत मराठी थिएटर से की और बाद में हिंदी फिल्मों से जुड़े. वह तो थिएटर तक ही सीमित रहना चाहते थे. पर अभिनेत्री स्व.स्मिता पाटिल की वजह से वह फिल्मो से जुड़ गए.जी हां! नाना पाटेकर ने आमिर खान के साथ हुई बातचीत में में कहा था-""स्मिता पाटिल की वजह से मैं फिल्म इंडस्ट्री में आया था. स्मिता मेरा हाथ पकड़ के फिल्मों में लेकर आई थीं. हम लोग एक साथ नाटक करतें थे. नाटक का मजा कुछ और ही है. मुझे 50 साल हो गए इंडस्ट्री में."" स्मिता पाटिल के कहने पर नाना पाटेकर ने मुजफ्फर अली के निर्देषन में पहली फिल्म "गमन" की थी. फिल्म "गमन" में स्मिता पाटिल व फारुख षेख की जोड़ी थी. इस फिल्म में नाना पाटेकर ने वासु का छोटा सा किरदार निभाया था. पहली फिल्म में ही नाना पाटेकर ने अपने तेवर दिखा दिए थे. उसके बाद वह कई मराठी व हिंदी फिल्मो में अभिनय कर चुके हैं. 1988 में अकादमी पुरस्कार नामांकित फिल्म "सलाम बॉम्बे" में अभिनय करने के बाद वह विधु विनोद चोपड़ा के निर्देषन में फिल्म परिंदा (1989) में नजर आए और अपने उत्कृष् ट अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार अपनी झोली मंे डालने मंे सफल हुए थे. लेकिन जब नाना ने 1991 में फिल्म "प्रहारः द फाइनल अटैक" का निर्देषन करने के साथ ही उसमें मुख्य किरदार भी निभाया तो लोगों ेने उनकी प्रतिभा का लोहा मान लिया. उन्होने 1990 के दशक की ." राजू बन गया जेंटलमैन (1992)" "अंगार (1992), सहित कई व्यावसायिक सफल फिल्मों में अभिनय कर आलोचकों की प्रशंसा भी बटोरी. राजू फिल्म "अंगार (1992) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ खलनायक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.1993); क्रांतिवीर (1994), जिसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. अग्नि साक्षी (1996) के लिए प्रशंसा के साथ ही सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. 1996 में "खामोशीः द म्यूजिकल" में काफी सराहा गया. 2000 के दशक की शुरुआत में, उन्हें शक्तिः द पावर (2002), अब तक छप्पन (2004) और अपहरण (2005) में उनके प्रदर्शन के लिए प्रशंसा मिली; जिसके बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ खलनायक के लिए अपना दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार और टैक्सी नंबर 9211 (2006) मिला.पाटेकर को कॉमेडी फिल्म "वेलकम" (2007) और इसके सीक्वल वेलकम बैक (2015) में एक नेकदिल गैंगस्टर उदय शेट्टी और राजनीतिक थ्रिलर राजनीति (2010) में एक राजनेता की भूमिका निभाने के लिए व्यापक प्रशंसा मिली. 2016 में, उन्होंने समीक्षकों और व्यावसायिक रूप से सफल मराठी फिल्म नटसम्राट में अभिनय किया; जिसमें उन्होंने एक सेवानिवृत्त स्टेज अभिनेता का किरदार निभाया था. इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (मराठी) का फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया. जब दिलीप कुमार ने नाना पाटेकर के अभिनय की तारीफ की थी,तब तक नाना पाटेकर प्रतिघाट, प्रहार,तिरंगा जैसी फिल्मों में अभिनय कर बतौर अभिनेता अपनी एक अलग जगह व एक अलग ईमेज बना चुके थे. इन्ही फिल्मो जैसा किरदार नाना पाटेकर ने "क्रांतिवीर" में भी निभाया था. एक निडर,दबंग,हार्ड हीटिंग संवाद बोलने वाले, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाला,एक्षन करने वाले किरदार में ही दर्षक नाना पाटेकर को देखना पसंद करते हैं. अतीत में रिलीज हुई फिल्मों में नाना पाटेकर का हर किरदार ऐसे संवाद बोलता रहा है कि उन संवादों को सुनकर दर्षक का खून खौल उठता,उसके अंदर अन्याय की खिलाफत करने का एक जोष व जुनून सवार हो जाता. लेकिन जैसे ही नाना पाटेकर ने अपना यह चोला उतारकर फेंका और एक्दम अलग तरह के तेवर वाले किरदार में नजर आए,वैसे ही दर्षकों ने भी नाना पाटेकर की तरफ से आंखे मोड़ लीं यही वजह है कि 28 सितंबर 2023 को रिलीजं हुई विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ""द वैक्सीन वार"" में डॉक्टर बलराम भार्गव और 20 दिसंबर 2024 को रिलीज हुई अनिल षर्मा की फिल्म ""वनवास" में दर्षको ने नाना पाटकर को व उनकी फिल्मों को सिरे से नकार दियां. यह दोनो फिल्में बाकस आफिस पर अपनी लागत की चैथाई रकम भी नही बटोर सकी. और अब सभी एक ही रट लगाए हुए हंै कि नाना पाटेकर के अभिनय का जलवा खत्म हो गया. उनके अभिनय में जंग लग गयी. कल तक नाना पाटेकर का किसी फिल्म में होना सफलता की गारंटी माना जाता था. लेकिन नाना पाटकर ने अपनी गलतियो से अपनी यह साख गंवा दी. आखिर उनके सामने ऐसी क्या मजबूरी रही कि वह दूसरों के सामने झुकने वाले,प्यार मोहब्बत की बात करने वाले, अति कमजोर व मजबूर व दूसरो से मदद मांगने वाले इंसान के किरदार निभाने लगे? दो साल में जिस तरह की फिल्मे ंनाना पाटेकर ने की है,उन्हे देखते हुए कहा जा रहा है कि नाना पाटेकर खुद अपना करियर बर्बाद करने पर उतारू हैं. क्योंकि फिल्म व स्क्रिप्ट के चयन पर नाना पाटेकर कह चुके हैं-"एक सामान्य नागरिक होने के नाते मैं यह देखता हॅूं कि उसमें मुझे क्या पसंद आएगा? मैं स्क्रिप्ट को सुनता हूं. मैं दखलअंदाजी बहुत करता हूं. कई बार ऐसा भी होता है कि मैं कहानी लिखने के समय वही रहता हूं. मुझे बाद में फिर कोई दिक्कत नहीं होती है. मैं लोगों का काम की वजह से ही जानना चाहता हूं. स्क्रिप्ट लॉक करने के बाद हम उसी किरदार की धुन में रहते हैं और 6-8 महीने उसी भूमिका में रहते हैं. ऐसा लगता है कि शूटिंग के काफी समय तक कोई और हमारे अंदर रहता है. हमारी दवा फिल्म है.वनवास फिल्म मैं भी मुझे अपना किरदार काफी पसंद आया और कहानी कहने का तरीका काफी अच्छा लगा. फिर उन्होंने कहानी लिखी और मैं भी उसमें शामिल होते गया था. अनिल शर्मा में ताकत है कि वह छोटी चीज को काफी बड़ा बना दे." अब नाना पाटेकर इस तरह की बातें क्यो कर रहे हैं,यह वही जाने..पर क्या अपने दिल पर हाथ रखकर नाना पाटेकर कबूल कर सकते हंै कि फिल्म "वनवास" उनके टेस्ट /उनकी सोच/उनके तेवर वाली फिल्म है. फिल्म "द वैक्सीन वार" में जब नाना पाटेकर पहली बार सूटेड बूटेड डॉक्टर बलराम भार्गव के किरदार में नजर आए थे,तो इस फिल्म के ट्ेलर से ही अहसास हो गया था कि अब नाना पाटेकर के अंदर की ठसक गायब हो गयी और फिल्म में वह डाॅक्टर बलराम भार्गव के रूप में पहली बार सरकार के पक्ष में बात करते हुए नजर आए थे. ऐसे में दर्शक उन्हे कैसे स्वीकार करता. .क्योंकि यह नाना पाटेकर की ईमेज नही रही है. उस वक्त दर्षकों ने सोचा था कि "द वैक्सीन वार" की असफलता से सबक लेकर नाना पाटेकर अपनी पुरानी ईमेज में अब अगली फिल्म में नजर आएंगे. मगर "द वैक्सीन वार" के बाद वह पांच दिसंबर को रिलीज हुई फिल्म "वनवास" में तो और अधिक मजबूर, प्यार से बातें करने वाले,उनके दीपक त्यागी के किरदार के संवादों में हंगामा वाली बात ही नही नजर आयी. इस फिल्म में नाना पाटेकर जिस तरह एक मजबूर इंसान के रूप में नजर आए, उसे दर्शक कैसे बर्दाष्त कर लेता. इसलिए इस फिल्म को पहले दिन .टिकट खिड़की पर पूरे देषे से पचास लाख रूपए एकत्र करना भी मुष्किल हो गया. इस तरह नाना पाटेकर का करियर ही डूब गया. मजेदार बात यह है कि इस सच से नाना पाटेकर वाकिफ हैं, फिर भी उन्होने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली...जबकि यह सच नाना पाटेकर जानते हैं. फिल्म "वनवास" के ट्रेलर लांच प्रेस कॉफ्रेंस में नाना पाटेकर ने एक सवाल के जवाब में कहा था-""क्या परदे पर नानर पाटेकर की सनी देओल पटक पटक कर पिटाई करे, यह देखना आप पसंद करेंगें?"" इसके बावजूद नाना पाटेकर ने "द वैक्सीन वार" व ""वनवास" जैसी फिल्में कर क्यों अपना करियर हमेषा के लिए डुबाया और ऐसा करने के एवज में उन्हे कहां से क्या मिला,यह तो नाना पाटेकर का मन ही ज्यादा बेहतर जानता होगा. पर इस संबंध में जब हमने नाना पाटेकर को तीन सफल फिल्मोंमें निर्देषित कर चुके निर्देषक मेहुल कुमार से बात की. इस संबंध में मेहुल कुमार ने कहा-""इस फिल्म में कलाकार मिस कास्ट हुए हैं. देखिए, हर कलाकार की अपनी एक ईमेज होती है. उस ईमेज में उन्हे पेष करो, तो फिल्म सुपर डुपर हिट होती है. दर्षक उसे स्वीकार करता है. लेकिन अगर आपने एक कलाकार को साधारण से किरदार में पेष कर दो,दर्षक उसे निकाल कर फेंक देता है. राज कपूर,राज कुमार,अमिताभ बच्चन,धर्मेंद्र, नाना पाटेकर इन सभी की एक ईमेज हुआ करती थी. इन कलाकारो ने जब जब अपनी ईमेज के विपरीत जाकर केवल पैसे के लिए कोई फिल्म की तो उस फिल्म को सफलता नहीं मिल सकी. अब नाना पाटेकर की ईमेज बहुत अलग है. मगर फिल्म में उन्हे मजबूर इंसान के तौर पर दिखाया गया,यह बात दर्शकों के गले नही उतरी. नाना मतलब हार्ड हीटिंग संवाद व किरदार. अब आप उसे रोने धोने वाले इमोषनल किरदार में रखोगे,तो दर्षक कैसे स्वीकार करेगा."" 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