पुरूष वर्चस्व को चुनाैती देने वाली महिला संगीतकार Usha Khanna

संगीतकारों की पुरूष प्रधान दुनिया में एक महिला संगीतकार ने दस्तक दिया था और अपनी काबिलियत का सिक्का जमा लिया. मशहूर फिल्म लेखक विनोद कुमार संगीतकार उषा खन्ना के बारे में बता रहे हैं...

New Update
K
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

संगीतकारों की पुरूष प्रधान दुनिया में एक महिला संगीतकार ने दस्तक दिया था और अपनी काबिलियत का सिक्का जमा लिया। मशहूर फिल्म लेखक विनोद कुमार संगीतकार उषा खन्ना के बारे में बता रहे हैं जिनका नाम ताजी हवा के झोंके जैसी धुनें रचने वाली संगीतकार के तौर पर उभरा।

आज की नई पीढ़ी हो सकता है कि संगीतकार उषा खन्ना के नाम से अनजान हो, लेकिन उनकी धुनें यह पीढ़ी भी गुनगुनाती है. उषा खन्ना अपने हुनर के दम पर फिल्म संगीत की दुनिया में अभिन्न हिस्से की तरह शामिल हो गईं. हालांकि इस महिला संगीतकार ने पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में बड़े-बड़ों को टक्कर दी. लेकिन बेहद कर्णप्रिय संगीत देने के बाद वे इंडस्ट्री में तो बनी रहीं, पर उन्हें वह मुकाम नहीं मिला जिसकी वे हक़दार थीं.

t

उषा खन्ना का जन्म 7 अक्टूबर 1941 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर ज़िले में हुआ था. उनके पिता मनोहर खन्ना एक शास्त्रीय गायक थे, और ग्वालियर राज्य के जल विभाग में कार्यरत थे. उषा का अपने पिता के कारण ही संगीत के प्रति प्रेम पैदा हुआ. गीतकार इन्दीवर उषा खन्ना के पिता के मित्र थे. इस तरह उषा खन्ना की परवरिश संगीत के माहौल में ही हुई. वह छोटी उम्र से ही मुखड़ा लिखा और गाया करतीं थीं. उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इन्दीवर ने उषा खन्ना को सशधर मुखर्जी से मिलवाया लेकिन उषा का गाना सुनकर सशधर मुखर्जी ने कहा तुमने लता मंगेशकर या आशा भोसले जैसा अच्छा नहीं गाया.  

t

बाद में जब इन्दीवर ने सशधर मुखर्जी को बताया कि उषा ने जो गाना सुनाया है उसे उन्होंने खुद बनाया है. तो सशधर मुखर्जी ने उषा को एक मुखड़ा दिया और गाना बनाने को कहा. उषा ने तुरंत गाना बनाकर सुनाया, जिसके बाद सशधर ने उन्हें रोज़ दो गाने बनाने को कहा. इसके कुछ ही महीनों बाद, उन्होंने अपनी फिल्म ‘दिल देके देखो‘ में उषा को बतौर संगीत निर्माता साइन कर लिया. हुआ यूं कि ओपी नैयर से उन दिनों मुखर्जी साहब की अनबन चल रही थी और जब उन्होंने ऊषा खन्ना का ओ पी नैयर साहब की स्टाइल वाला म्यूज़िक सुना तो ख़ुशी-ख़ुशी उषा को काम दे दिया. अपनी पहली ही फिल्म 'दिल देके देखो' में नौ बेहद लोकप्रिय गीच रचकर उन्होंने जैसे मुनादी कर दी थी कि फिल्म संगीत में उनकी धुनों का जादू काफी दूर और देर तक चलने वाला है. 

yt

ht

y

इस फिल्म में शम्मी कपूर और आशा पारेख ने अभिनय किया था. साल 1959 में आई यह फिल्म न केवल उषा खन्ना बल्कि आशा पारेख और हास्य अभिनेता राजेन्द्र नाथ की भी पहली फिल्म थी. इस फिल्म के कुछ गाने बेहद लोकप्रिय हुए. लेकिन इसके बावजूद उन्हें कुछ सालों तक काम नहीं मिला और उन्हें घर पर बैठना पड़ा. इसके कई साल बाद उषा को साल 1960 की फ़िल्म ‘आओ प्यार करें’ के लिए संगीत देने का काम मिला. 

j

1964 में आई फिल्म ‘शबनम’ उनके कैरियर में दूसरी महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट साबित हुई. फिल्म शबनम के लिये उषा खन्ना ने अरबी संगीत पर आधारित एक बेहतरीन धुन तैयार की- ‘मैंने रखा है मोहब्बत’. मोहम्मद रफी साहब इस गीत को गाने की शुरूआत अरबी शैली में ‘या हबीबी’ से करते हैं. उनका अरबी उच्चारण इस तरह का है मानो वह सऊदी अरब मूल के हैं. इस गीत पर महमूद ने कमाल का अभिनय किया है.

gy

उषा खन्ना की एक और उल्लेखनीय रचना है-फिल्म एक सपेरा एक लुटेरा में रफी साहब का गाया राग दरबारी पर आधारित यह गीत ‘हम तुमसे जुदा होकर’ फिरोज खान पर फिल्माया गया है.

u

उषा खन्ना के संगीत निर्देशन में सुमन कल्याणपुर के साथ गाया रफी साहब का युगल गीत- ‘तुम अकेले तो कभी बाग में’- आज भी स्मरणीय है. उषा खन्ना की धुन पर रफी साहब का गाया एक और यादगार गीत है, फिल्म लाल बंगला के लिये ‘हसीन वादियों’. उनके संगीत निर्देशन में फिल्म निशान के लिये मोहम्मद रफी साहब का गाया एक और गीत बहुत अच्छा बन पड़़ा है- ‘हाय तबस्सुम तेरा’. रफी साहब ने इस गजल को बहुत ही उतार-चढ़ाव और स्वर के घुमाव के साथ गाया है. 

उषा खन्ना के संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी ने साल 1974 में एक और गीत गाया है फिल्म हवस के लिये-‘तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम.

उषा खन्ना के लिए रफी साहब ने एक दर्दभरा गीत गाया है- ‘दोस्त बनके आये हो’. फिल्म आप तो ऐसे ना थे में उनका गाया गीत- ‘तू इस तरह से मेरी जिंदगी में’ सुनने लायक है. इसी गीत को मनहर उधास और हेमलता ने भी गाया है. इसी फिल्म में मोहम्मद रफी ने किशोर कुमार के साथ एक और बेहतरीन गीत गाया है- ‘खुदा ही जुदा करे तो करे’.

दोस्त बनके आये हो

k

उषा खन्ना के लिए रफी साहब ने फिल्म दादा में शैलेन्द्र सिंह के साथ दो युगल गीत गाए लेकिन इनमें सबसे अधिक यादगार गीत है, पंजाबी लोकगीत पर आधारित गीत- ‘गड्डी जांदी ए छलांगा मारदी’.

उ

उषा खन्ना ने करीब तीन दशक तक मोहम्मद रफी से लेकर किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे और येसुदास से लेकर लता मंगेशकर‚ आशा भौसले‚ सुमन कल्याणपुर, हेमलता और अनुराधा पौडवाल जैसे गायक गायिकाओं से कई यादगार गीत गवाएं. लेकिन उनको अपने पूरे कैरियर में सावन कुमार प्रोडक्शंस को छोड़कर किसी अन्य बड़े बैनर के साथ काम करने का मौका नहीं मिला. शंकर-जयकिशन, ओ. पी. नैयर, रवि, मदन मोहन और बाद में आर. डी. बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और राजेश रौशन जैसे दिग्गज संगीतकारों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण उषा खन्ना न तो किसी भी साल फिल्म फेयर के लिये नामांकित हुईं और न ही उन्हें कोई पुरस्कार मिला लेकिन फिल्म दादा के लिये ‘दिल के टुकड़े टुकडे करके मुस्कुरा के चल दिए’ गीत के लिये गायक येशुुदास को फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. फिल्म सौतन के गीत ‘शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है’ के लिये किशोर कुमार को फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया.

t

j

j

h

j

j

उषा खन्ना ने तमाम चुनौतियों और प्रतिस्पर्धा के बावजूद पुरुष प्रधान संगीत की दुनिया में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाकर महिला संगीतकारों के लिये रास्ता बनाया. वह हिन्दी फिल्म संगीत की सबसे सफल महिला संगीतकार मानी जाती हैं. यूं तो उनसे पहले नर्गिस की मां जद्दन बाई और सरस्वती देवी संगीतकार के तौर पर सक्रिय थीं, लेकिन उषा खन्ना अकेली महिला संगीतकार हैं, जिन्होंने सबसे लम्बी पारी खेली.

उनकी धुनों में विविधता के साथ ऐसी सहजता है कि जब आप फिल्म एक लुटेरा का 'हम तुमसे जुदा होके', हम हिन्दुस्तानी का 'छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी', बादल का 'अपने लिए जिए तो क्या जिए', शबनम का 'मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम', लाल बंगला का 'चांद को क्या मालूम', स्वीकार किया मैंने का 'अजनबी कौन हो तुम', लैला का 'तू जो कहे तो राधा बनूं मैं' या सौतन का 'जिंदगी प्यार का गीत है' सुनते हैं तो साथ-साथ गुनगुनाने लगते हैं. 

हम तुमसे जुदा होके

अपने लिए जिए तो क्या जिए

चांद को क्या मालूम

अजनबी कौन हो तुम

जिंदगी प्यार का गीत है

1960 से लेकर 1970 वाले दौर में ऊषा खन्ना अपने चरम पर थीं. वे कल्याण जी-आनंद जी, जयदेव, लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल और रॉबिन बनर्जी जैसों के साथ कदम ताल कर रहीं थीं. ऊषा खन्ना ने रॉबिन बनर्जी से गायन सीखा था और अब वो उनसे मुकाबला कर रही थीं. तो दूसरी तरफ़ उनके म्यूजिक अरेंजर लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल उनसे आगे निकल गए. 

gh

गायिका बनने की चाह रखने वाली उषा ने संगीत निर्देशन में आने के बाद बतौर गायिका भी कुछ गाने गाए. संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी के लिए उन्होंने फिल्म जॉनी मेरा नाम का गीत 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले' में किशोर कुमार के साथ कुछ पंक्तियां गुनगुनाई थीं. मोहम्मद रफी साहब के साथ उनकी आवाज वाला फिल्म अनजान है कोई का 'शाम देखो ढल रही है' खासा लोकप्रिय रहा.

पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले

1990 के दशक के मध्य तक एक संगीतकार के रूप में वह काफी सक्रिय थीं. बतौर संगीतकार उनकी आखिरी फिल्म 2003 में रिलीज हुई ‘दिल परदेसी हो गया’ थी. 

ty

फिर लोगों की पसंदें बदलने लगी. लफ़्ज़ों में गहराई नहीं बची थी, संगीत से मेलोडी तो लगभग ख़त्म ही गयी थी. इस दौर में अब ऊषा खन्ना पिछड़ती जा रही थीं. उन्होंने वापसी की भरपूर कोशिश की जो कामयाब नहीं हुई. बड़े बैनर्स नहीं थे, छोटे बजट की फ़िल्में अक्सर कम चलती थीं और उनका संगीत उनसे से भी कम. धीरे-धीरे ऊषा खन्ना बिलकुल ही गायब हो गयीं. 

ऊषा खन्ना के पर्सनल लाइफ की बात करें तो उन्होंने प्रोड्यूसर-डायरेक्टर सावन कुमार से शादी की थी. वह एक फिल्म का संगीत डायरेक्ट कर रही थीं, जिसमें सावन कुमार आए थे. वह इसके गीत लिख रहे थे. उन दोनों ने बहुत जल्दी एक अच्छी बॉन्डिंग बना ली. फिर उन्होंने उषा को अपनी अगली फिल्म 'हवस' के लिए साइन कर लिया. उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई और उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. हालांकि, उनकी शादी में उनके परिवार वाले शामिल नहीं हुए थे.

yt

लेकिन यह शादी 7 साल बाद ही 1980 के आसपास टूट गयी. इंडस्ट्री से हर कोई हैरान था कि क्या वह वास्तव में अलग हो गए हैं. दरअसल, सावन कुमार की कई लड़कियों से दोस्ती थी जो उनकी शादी टूटने की वजह बनी. कुछ समय पूर्व सावन कुमार का निधन हो गया.

उषा खन्ना ने अपने फिल्मकार पति सावन कुमार की ज्यादातर फिल्मों का संगीत दिया. यह जुगलबंदी बाद में तलाक के साथ टूट गई. लेकिन विडंबना देखिये या मजबूरी, सावन कुमार ने ‘सौतन’ फ़िल्म का संगीत उन्हीं के ज़िम्मे किया. उन्होंने भी अच्छा संगीत दिया. उस फ़िल्म के लगभग सारे गाने हिट हुए थे. सावन कुमार की पहली ही फ़िल्म ‘हवस’ का गाना था ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद’ उन पर सटीक बैठती है. 

rt

दुनिया को बेहिसाब सुरीला धुनें देने वालीं उषा खन्ना कई साल से फिल्मों से दूर हैं, लेकिन उनके सैकड़ों गाने संगीतप्रेमियों के दिलों के आस-पास हैं.

u

लेखक – विनोद कुमार 

विनोद कुमार मशहूर फिल्म लेखक और पत्रकार हैं जिन्होंने सिनेमा जगत की कई हस्तियों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। इन पुस्तकों में ʺमेरी आवाज सुनोʺ‚ ʺसिनेमा के 150 सितारेʺ‚ ʺरफी की दुनियाʺ के अलावा देवानंद‚ दिलीप कुमार और राज कपूर की जीवनी आदि शामिल हैं।

Read More:

सोनाक्षी ने हीरामंडी के लिए संजय लीला भंसाली का किया आभार व्यक्त

अमूल इंडिया ने की संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी की तारीफ

विजय देवरकोंडा ने फैंस को दिया एक और गिफ्ट, अपनी नई फिल्म का किया एलान

विजय देवरकोंडा ने अपने बर्थडे पर शेयर किया फिल्म SVC59 का फर्स्ट लुक

Latest Stories