मृत्यु
देव
का
कुछ
भी
नहीं
बिगड़
सकती
थी
,
मृत्यु
इनोसेंट
थी
,
यह
नहीं
जानती
थी
कि
यह
एक
ऐसे
व्यक्ति
को
ले
जाने
आई
थी
,
जो
पैदा
तो
हुआ
था
लेकिन
हमेशा
जीवित
रहने
के
लिए, कौन सोच सकता था, कि जो आदमी जीवन के सबसे शानदार उत्सव की तरह था, उसे एक ताबूत में जगह मिलेगी और एक अज्ञात स्थान पर ले जाया जाएगा जिस पर उनका मानना था कि पृथ्वी नामक स्थान से कहीं अधिक सुंदर जगह होगी ।
अली
पीटर
जॉन
जब
उन्होंने
अपना
जन्मदिन
सन
एंड
सैंड
होटल
में
मनाया
था
देव
जो
हमेशा
जीवन
से
भरा
हुआ
(
फुल
ऑफ
लाइफ
)
थे
,
उन्होंने
खुद
के
टूटने
और
अपनी
इच्छा
को
खोने
का
पहला
संकेत
तब
दिखाया
जब
उन्होंने
अपना
जन्मदिन
सन
एंड
सैंड
होटल
में
मनाया
था
,
और
अपने
उसी
रूम
(339)
में
कुछ
घंटे
बिताए
थे
,
जहां
वह
20
साल
से
अकेले
रह
रहे
थे
,
उन्होंने
मुझे
विशेष
रूप
से वहां
बुलाया
,
वह
वो
देव
आनंद
नहीं
थे
जिन्हें
मैं
जानता
था
,
और
पूरी
दुनिया
जानती
थी
,
वह
मुझे
गले
लगाते
रहे
और
मुझे
‘
मेरा
बेटा
मेरा
बेटा
’
कहते
रहे।
उन्होंने
मुझे
बताया
कि
वह
लंदन
जा
रहे
है
,
लेकिन
यह
नहीं
बताया
की
क्यों
जा
रहे
हैं
,
यह
पहली
बार
था
जब
मैंने
उनकी
आँखों
से
आँसू
बहते
हुए
देखा
और
मैं
समझ
नहीं
पाया
कि
वह
ऐसा
क्यों
कह
रहे
है
कि
, ‘
मैं
तुम्हें
मिस
करूँगा
,
मैं
तुम्हें
मिस
करूँगा
’
और
जब
हम
आखिरी
बार
गले
लगे
,
तो
मैं
उनके
शरीर
की
हर
हड्डी
को
महसूस
कर
सकता
था ।
वह
फिर
कभी
भी
वही
देव
नहीं
रहे
थे
,
जब
उन्हें
‘
आनंद
’
में
अपना
ड्रीम
पेंटहाउस
खाली
करना
पड़ा
था
,
जो
पाली
हिल
पर
स्थित
उनका
एक
बंगला
था
,
जो
उन्होंने
मुझे
एक
बार
इसे
अपने
दोस्त
श्री
लरसेन
का
बंगला
बताया
था
,
और
जिन
बिल्डरों
ने
आनंद
को
खरीद
लिया
था
,
उन्होंने
उसे
‘
रिद्धि
’
नामक
इमारत
के
रूप
में
बनाया
था
,
एक
बेडरूम
हॉल
का
फ्लैट
उन्हें
दे
दिया
था
जहां
मैंने
उन्हें
हर
दोपहर
मरते
देखा
,
क्योंकि
वह
अपने
पुराने
घर
के
खंडहरों
के
बीच
बैठे
थे
, ‘
गाइड
’
फिल्म
के
पोस्टर
उनकी
कुर्सी
के
पीछे
एक
कोने
में
पड़े
थे।
वह
सुनील
के
साथ
लंदन
के
लिए
रवाना
हो
गए
,
जो
उनका
इकलौता
बेटा
था
,
और
उनकी
कुछ
दिनों
तक
कोई
खबर
नहीं
थी
,
जब
तक
कि
उन्हें
यानि
पृथ्वी
के
‘
देव
’
को
उनके
पसंदीदा
होटल
के
रूम
में
मृत
नहीं
पाया
गया
था
,
वह
मर
तो
गए
थे
,
लेकिन
वह
हमेशा
के
लिए
जीवित
रहने
वाले
इन्सान
है
,
वह
अनंत
है
और
अमर
रहेगें ।
मैं
अभी
भी
इस
कहानी
को
लेकर
नहीं
आया
कि
उनके
नश्वर
अवशेषों
को
सोलह
दिनों
से
अधिक
समय
तक
मुंबई
क्यों
नहीं
लाया
गया
था
,
और
अंत
में
सिर्फ
सौ
शोक
मनाने
वाले
लोगों
के
साथ
लंदन
में
ही
उनका
अंतिम
संस्कार
किया
गया
था
,
देव
आनंद
के
ताबूत
ले
जाने
वाले
दो
लोग
एक
उनके
बेटे
सुनील
थे
और
दूसरे
सुब्रत
रॉय
थे।
जिनके
एक
घोटालों
का
इतिहास
रहा
है
और
जैसा
कि
उन्होंने
तिहाड़
जेल
में
वर्षों
बिताए
हैं
और
जैसा
कि
मैंने
एक
ऐसे
व्यक्ति
को
श्रद्धांजलि
दी
,
जो
मरा
नहीं
था
,
और
जो
कभी
मर
भी
नहीं
सकता
,
उन्होंने
कहा
था
,
न
सुख
है
न
दुःख
,
न
दीन
है
न
दुनिया
,
न
इंसान
है
न
भगवान
,
सिर्फ
मैं
सिर्फ
मैं
सिर्फ
मैं
हैं ।
अनु
-
छवि
शर्मा